अगले 30 सालों में आज से 4 गुना हो जाएंगे कूलिंग उपकरण

एयर कंडीशनर की दक्षता में इजाफा करके ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 46,000 करोड़ टन की कटौती की जा सकती है.

WrittenBy:ललित मौर्या
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दुनिया भर में घरों और दफ्तरों को ठंडा रखने के लिए कूलिंग उपकरणों की जरुरत बढ़ती जा रही है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण दिन-प्रतिदिन तापमान बढ़ता जा रहा है. जिससे निपटने के लिए कूलिंग उपकरणों की मांग भी बढ़ रही है. आज यह उपकरण सिर्फ लग्जरी ही नहीं बल्कि जरुरत भी बनते जा रहे हैं. बात चाहे घरों और दफ्तरों को ठंडा रखने की हो या फिर सामान को ताजा बनाये रखने की या फिर दवाओं को सुरक्षित रखने की, हर जगह इनकी जरुरत पड़ती है.

अनुमान है कि दुनिया भर में इस समय घरों और जरुरी सामान ठंडा करने के लिए 360 करोड़ उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है. जोकि अगले 30 सालों में बढ़कर 1,400 करोड़ हो जाने का अनुमान है. कई एयर कंडीशनिंग यूनिट्स कार्बन डाइऑक्साइड, ब्लैक कार्बन और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करते हैं जोकि कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में जलवायु के लिए हजारों गुना ज्यादा हानिकारक होती है.

हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण अनुकूल कूलिंग उपकरणों की मदद से उत्सर्जन में भारी कटौती की जा सकती है. जोकि जलवायु में आ रहे बदलावों की गति को कम कर सकती है. यूएनईपी और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) द्वारा संयुक्त रूप से किये गए इस अध्ययन के अनुसार यदि अकेले हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) जैसे रेफ्रिजरेंट के उपयोग में कटौती कर दी जाए, तो इससे तापमान में हो रही 0.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को सदी के अंत तक रोका जा सकता है.

एयर कंडीशनर की दक्षता में इजाफा करके 46,000 करोड़ टन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोका जा सकता है. जोकि 8 सालों में उत्सर्जित होने वाली कुल ग्रीनहाउस गैसों के बराबर है. बस इसे हासिल करने के लिए अगले 4 दशकों तक कूलिंग उपकरणों की दक्षता को आज के मुकाबले में दोगुना करना होगा. जिसके परिणामस्वरूप 2050 तक 13,00,000 मेगावॉट बिजली की बचत की जा सकती है. यह उतनी ऊर्जा जितनी है भारत और चीन दोनों देशों में मौजूद थर्मल पावर प्लांट मिलकर साल भर में पैदा करते हैं. यह करीब 2,17,28,584 करोड़ रुपए (290,000 करोड़ डॉलर) की बचत करने जितना होगा.

ऐसे में तेजी से बढ़ते कूलिंग उपकरणों की मांग ने केवल एचएफसी और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों में वृद्धि करेगी. बल्कि साथ ही इनके लिए बड़ी मात्रा में बिजली की भी जरुरत पड़ेगी जोकि फॉसिल फ्यूल पर निर्भर होगी. ऐसे में इससे तापमान में हो रही वृद्धि में और इजाफा होगा. जिससे बचने के लिए इन कूलिंग सिस्टम्स की मांग और बढ़ेगी. इस तरह से यह बढ़ते तापमान के एक चक्र का रूप ले लेगी.

रिपोर्ट के अनुसार देशों के पास पहले ही ऐसे कई उपाय हैं जिससे इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है जैसे किगाली एग्रीमेंट और मोंट्रियल प्रोटोकॉल में पहले ही ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाली एचएफसी के उपयोग में कटौती करना शामिल है. साथ ही उपकरणों के लिए ऊर्जा दक्षता सम्बन्धी मानक, घरों और बिल्डिंग्स को इस तरह बनाना की कूलिंग उपकरणों की जरुरत कम से कम पड़े. साथ ही जिन वस्तुओं और खाद्य पदार्थों के लिए कूलिंग सिस्टम की जरुरत पड़ती है उसकी सप्लाई चेन को अधिक बेहतर और दक्ष बनाना. जिससे कूलिंग की जरुरत कम पड़े.

यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इनगर एंडरसन के अनुसार, "दुनिया पहले ही कोविड-19 जैसी महामारी का सामना कर रही है और देश अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में उनके पास जलवायु परिवर्तन को कम करने, प्रकृति की रक्षा करने और बुद्धिमानी से अपने संसाधनों का उपयोग करने का अवसर है. ऐसे में एक कुशल और दक्ष कूलिंग सिस्टम इन सभी लक्ष्यों को हासिल करने में मदद कर सकता है."

रिपोर्ट के अनुसार, अधिक दक्ष और बेहतर एयर कंडीशनिंग के अन्य लाभ भी होंगे जैसे कि जीवन रक्षक दवाओं और टीकों के लिए बेहतर कूलिंग सिस्टम, हवा की गुणवत्ता में सुधार और भोजन और अन्य जरुरी सामान को ख़राब होने से बचाया जा सकेगा. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र और आईईए के अनुसार ऊर्जा दक्षता में सुधार लाना जरुरी है. साथ ही एचएफसी के उपयोग में भी कटौती करनी होगी और ऐसे करने के लिए कठोर मानकों की जरुरत है. अध्ययन के अनुसार यह कदम वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान देगा, जोकि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों को कम करने के लिए जरुरी है.

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