गरीब किसान की फसल बर्बाद, जिम्मेदार अफसर को मिल रहा राजनीतिक संरक्षण

राजकुमार और उसकी पत्नी सावित्री ने खेत में फसल लगी होने के कारण पुलिस से दो महीने की मोहल्लत मांगी, लेकिन कार्रवाई की सनक ने 20 बीघा की फसल पर जेसीबी चला दी. उनके साथ यह घटना दूसरी बार हुई है.

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देश में नियम-कानून ताक पर रखकर काम करने की पुलिसिया प्रवृत्ति के कारण, हमारे सामने आए दिन मनमानी की घटनाएं सामने आती हैं. फिर चाहे वह तमिलनाडु हो या मध्य प्रदेश का गुना जिला या उत्तर प्रदेश का कानपुर. पुलिस की नागरिकों पर दमनकारी कारवाई जारी है और घटना की जांच के नाम पर ट्रांसफर और पोस्टिंग का खेल चल रहा है.

मध्य प्रदेश के गुना में एक किसान परिवार के सदस्यों को पुलिस द्वारा बर्बरता से पीटने का एक वीडियो वायरल हो रहा है. बार-बार माफी की गुहार लगा रहे किसान के भाई को पुलिस पीटते हुए हिरासत में ले लेती है. अपनी फसल बर्बाद होते देख किसान दंपति ने कीटनाशक दवाई पीकर अपनी जान देने की कोशिश की. जिला अस्पताल में दोनों का इलाज चल रहा है और हालात काबू में बताये जा रहे हैं.इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्वालियर रेंज के आईजी राजाबाबू सिंह, जिले के कलेक्टर एस विश्वनाथन और एसपी तरुण नायक को हटा दिया साथ ही जांच के आदेश भी दे दिए.

घटना की यह कहानी आपने पढ़ी और देखी होगी, लेकिन वास्तविकता में इस घटना का मूल कारण क्या है, कौन लोग हैं असली जिम्मेदार, यही जानने की कोशिश हमने की?

14 जुलाई के दिन राजकुमार अहिरवार और उसकी पत्नी सावित्रीबाई अपनी झोपड़ी में थे. परिवार गरीब होने के कारण खेत में ही झोपड़ी बनाकर रहता है. राजकुमार का परिवार बड़ा है और रोजगार भी नहीं है. ऐसे में अहिरवार परिवार ने गुना के हड्डी मील स्तिथ जगनपुर चक में बटाई पर खेती करने के लिए गब्बू पारदी नामक व्यक्ति से लगभग 45 बीघा ज़मीन ली थी. प्रशासन के अनुसार गब्बू पारदी ने उस ज़मीन पर पिछले 35 सालों से गैरकानूनी कब्ज़ा कर रखा था.

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गरीब होने के कारण राजकुमार और उसके परिवार के पास खेती करने के लिए पैसे नहीं थे, तो उसने उधार पैसे लेकर खेती की. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए परिजनों ने बताया कि, उनका परिवार पिछले दो सालों से उस जमीन पर खेती कर रहा था. पिछले साल दिसंबर में भी प्रशासन द्वारा इसी जमीन पर कारवाई की गई थी. एसडीएम के नेतृत्व में प्रशासन की टीम ने जमीन से कब्जा हटाने की कार्रवाई करते हुए पूरी फसल पर जेसीबी चला दी थी. खुद गुना की एसडीएम शिवानी गर्ग ने खेत पर जेसीबी चलाई थी और अहिरवार परिवार की गेंहूं की फसल को बर्बाद कर दिया था.

इस मामले की तह तक जाने के लिए सबसे पहले हमने उस दिन वहां मौजूद एक चश्मदीद कैमरापर्सन से बातचीत की.

चश्मदीद कैमरापर्सन ने न्यूज़लॉन्ड्री को नाम ना लिखने की शर्त पर बताया, "तकरीबन सुबह 10 बजे पुलिस और प्रशासन की टीम जगनपुर चक पर मौजूद ज़मीन पर पहुंच गयी थी. थोड़ी देर बाद तहसीलदार भी वहां पहुंच गए थे और किसी बड़े अधिकारी शायद एसडीएम मैडम का इंतज़ार कर रहे थे. जब प्रशासन वहां पहुंचा था तब राजकुमार अहिरवार और उनकी पत्नी सावित्री बाई ही सिर्फ वहां मौजूद थे. तकरीबन 11:30-12 बजे प्रशासन ने अपनी कार्रवाई शुरू की, जब प्रशासन ने जेसीबी मशीन शुरू की तो राजकुमार और सावित्री तहसीलदार से हाथ जोड़ के निवेदन कर रहे थे कि वह उनकी बोई हुई फसल ना उजाड़े.वह कह रहे थे कि उन्होंने ज़मीन गब्बू पारदी नाम के व्यक्ति से बटिया पर ली है और पैसे उधार लेकर मक्का और सोयाबीन की बुवाई की है.

वह कह रहे थे कि उन्हें सिर्फ अक्टूबर तक की मोहलत दे दी जाए जिससे वह फसल काट सकें. वह बार-बार कह रहे थे कि पिछली फसल (दिसंबर 2019 में जब एसडीएम गर्ग द्वारा की गयी कार्यवाई के दौरान अहिरवार परिवार की फसल बर्बाद हो गयी थी ) और इस फसल की बुवाई में उन पर लगभग तीन लाख रूपये से ज़्यादा का कर्ज हो गया है और अगर यह फसल भी उजाड़ दी जायेगी तो वह तबाह हो जाएंगे.लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने उनकी बात अनसुनी करते हुए फसल में जेसीबी चलाना शुरू कर दिया. वहीं तहसीलदार का कहना था कि जब भी कब्जा हटाने जाते हैं तो लोग ऐसे करते है.

चश्मदीद कैमरापर्सन आगे कहते है, "जब प्रशासन ने उनकी बात अनसुनी कर दी थी तब वहां मौजूद मीडियाकर्मियों से राजकुमार और सावित्री कह रहे थे, "उनके पांच बच्चे हैं और उन पर कर्ज़ा है. अगर सरकार उनकी बोई हुई फसल पर जेसीबी चलाती है तो उनके पास मरने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है और वो कीटनाशक पीकर अपनी जान दे देंगे.” इसके बाद जब जेसीबी खेत में चलने लगी तो वह दोनों अपनी झोपड़ी की तरफ दौड़ के गए और कीटनाशक पी लिया. जैसे ही वह लोग झोपड़ी की तरफ भागे मीडियाकर्मी भी उनके पीछे-पीछे गए. जब मीडिया ने पुलिस और प्रशासन को इस बारे में जानकारी दी तो सरकारी अमला उनके झोपड़ी पर करीब 15-20 मिनट बाद पहुंचा.

कैमरापर्सन आगे कहते हैं, "कीटनाशक पीने के बाद राजकुमार और सावित्री ज़मीन पर गिरे पड़े हुए थे. उनके छोटे बच्चे उनके शरीर से लिपट कर बिलख-बिलख कर रो रहे थे. तब तक राजकुमार के माता-पिता जो कि खेत में काम कर रहे थे और उसका एक छोटा भाई भी वहां पहुंच चुका था. वो लोग उनको संभालने की कोशिश कर रहे थे और रो रहे थे. परिवारजन वहां मौजूद पुलिस और प्रशासन से कह रहे थे कि "यह गलत किया साहब आप लोगों ने, मेरे बच्चों को मार दिया."

माता-पिता से लिपटकर रोते बच्चे

वो आगे बताते हैं, “इसके बाद पुलिसकर्मी ज़मीन पर पड़े हुए राजकुमार और सावित्री को उनके हाथ-पैरों से पकड़कर ले जाने लगे. वह उनको ऐसे टांग कर ले जा रहे थे जैसी किसी जानवर को ले जाते हैं. पुलिस वालों को ऐसे उनको ले जाता देख राजकुमार का छोटा भाई (शिशुपाल) महिला पुलिस कर्मियों की तरफ भागा और उन्हें रोकने की कोशिश करने लगा. वह डर रहा था कि पुलिस उसके भाभी और भाई को कहां ले जा रही है. इस दौरान उसने एक महिला पुलिसकर्मी का हाथ पकड़कर झटक दिया था. शिशुपाल की मां उसे ऐसा करने से रोक रही थी. लेकिन उसके बाद पुलिस वालों ने राजकुमार के भाई को मारना शुरू कर दिया. उसकी मां को भी पुलिस ने लाठी से मारा. शिशुपाल को पुलिस ने मार-मार कर अधमरा कर दिया था, वह लगभग बेहोश हो गया था. फिर उसे भी ज़मीन पर घसीट कर पुलिसवाले गाड़ियों की ओर ले गए और तीनों को पुलिस जीप में डाल कर जिला अस्पताल भेज दिया."

चश्मदीद कैमरापर्सन बताते है, “पुलिस ने राजकुमार के भाई को बेरहमी से मारा और उसकी मां को भी लाठियों से मारा था . इसी दौरान जब शिशुपाल लगभग बेहोश हो गया तब भी पुलिस वाले उसे लाठियों से मारते रहे. वो कह रहे थे इसे कुछ नहीं हुआ है, इसे और मारो यह ज़्यादा उत्पात मचा रहा है. यह घटना बिलकुल भी देखने लायक नहीं थीं. बच्चे रो रहे थे, पुलिस वाले उस परिवार के लोगों को बेरहमी से मार रहे थे. देख कर बहुत दया आ रही थी."

माता-पिता से लिपटकर रोते बच्चे

क्या कहना हैं राजकुमार के परिजनों का

इस घटना के बाद राजकुमार के परिजनों से मामले पर बात करने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने राजकुमार की मां गीता अहिरवार से बात की. वह कहती हैं, "इस ज़मीन पर पिछले दो सालों से हम बटाई पर खेती कर रहे थे. दिसंबर में सर्दियों के वक़्त जब हमने फसल बोई थी तब भी प्रशासन ने जेसीबी चलाकर हमारी फसल उजाड़ दी थी. तब एसडीएम मैडम आयी थीं, हमने तब भी उनके हाथ पांव जोड़ें थे लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी थी और गेहूं की सारी फसल उजाड़ दी थी. गेहूं की फसल बोने के लिए हमने लगभग ढाई लाख का कर्ज लिया था. लगभग पांच महीने तक ज़मीन खाली पड़ी रही. वहां पर मौजूद ईंटे वगैरह भी वहां से प्रशासन के लोग उठा कर ले गए थे. तो हमें लगा की शायद आपस में बात रफा-दफा हो गयी होगी और हम फिर से वहां बटाई पर खेती कर सकते हैं. हमारे सिर पर पहले से ही कर्जा था उसे चुकाने के लिए हमारे पास बस एक ही रास्ता था कि हम फिर से खेती करें. ज़मीन खाली पड़ी थी तो हमने फिर से लगभग एक लाख रूपये उधार लिए और फसल बो दी. लेकिन प्रशासन ने एक बार फिर हमारी फसल को उजाड़ दिया."

गीता आगे कहती हैं, "जब हम फसल बो रहे थे तब कोई नहीं आया, अब जब फसल थोड़ी बड़ी हो गई तो प्रशासन के लोग जेसीबी लेकर उसे उजाड़ने आ गए थे. हमने उनसे बहुत विनती की थी वो हमें बस दो महीने और दे दें जिससे हम फसल काट कर चले जाएं. मैंने यह भी कहा था कि हम गरीब लोग क्या सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करेंगे. इस पर वह लोग गालियां देते हुए कहने लगे 'मा….द च...र हो तुम. तुम्हें कैसे समझाएं, यहां से जाते क्यों नहीं हो, ज़मीन पर कब्ज़ा करने फिर रहे हो.' मेरे बच्चे ने जब कीटनाशक पी लिया था तब वह कह रहे थे कि मर जाने दो साले को. मेरे बेटे शिशुपाल को भी मारा और मुझे भी मारा. मेरा ब्लाउज़ भी फाड़ दिया था. अगर पुलिस ऐसी मारेगी तो गरीब आदमी कैसे जिएगा. पुलिस ने हमें ही मारा और अब हम पर ही मुकदमा लगा दिया."

राजकुमार के भाई और मां को  मारती पुलिस

गौरतलब है कि पुलिस ने गुना जिले के कैंट थाने में पटवारी शिवशंकर ओझा की शिकायत पर अहिरवार परिवार के आठ लोगों के खिलाफ सरकारी काम में रुकावट पैदा करने का आरोप लगाकर मामला दर्ज करा दिया है.

राजकुमार के एक अन्य भाई कमल अहिरवार न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, "हम तो मजदूर लोग हैं. हमें नहीं पता मालिक (गब्बू पारदी ) ने क्या किया था. हमें लगा मामला रफा-दफा हो गया है तो हम फिर से बटाई पर खेती करने लगे. पिछली बार भी जब हमारी फसल उजाड़ी थी तब भी हमने कुछ नहीं बोला था. इस बार भी हमने कुछ नहीं बोला था लेकिन पुलिस ने फिर भी हमारे परिवार के लोगों को मारा. छह महीने का मेरा भतीजा नितेश जब मेरी भाभी सावित्री गिर गई थी तो वह उनसे लिपटा हुआ था उसको पुलिस ने उठाकर फेंक दिया, जिससे उसके सिर में चोट लग गई. पुलिस को कोई डर नहीं है. यहां गरीब-मजदूर आदमी को कीड़े-मकोड़े की तरह समझा जाता है. आखिर हम लोग कर भी क्या सकते हैं.”

जमीन खाली कराने का किसने दिया था आदेश

तहसीलदार निर्मल सिंह राठौर से न्यूज़लॉन्ड्री ने जब आदेश को लेकर बात की तो उन्होंने कहा कॉलेज प्रबंधन ने निर्माण कार्य शुरू करने के लिए एसडीएम के पास अपील की थी. इस पर एसडीएम ने जमीन से कब्ज़ा हटाने के लिए एक टीम गठित की और थाने और जिला मु के लिख्यालय से पुलिस फोर्स भेजी. ग़ौरतलब है कि पिछली बार एसडीएम शिवानी गर्ग ने खुद जेसीबी से फसल बर्बाद कर दी थी .

एसडीएम ऑफिस से कब्जा हटाने के लिए दिया गया आदेश

सरकार ने किया कलेक्टर और एसपी का तबादला. क्या एसडीएम को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है?

इस घटना के सामने आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कार्रवाई करते हुए मामले में गुना जिले के कलेक्टर एस विश्वनाथन और पुलिस अधीक्षक तरुण नायक का तुरंत तबादला कर दिया लेकिन गर्ग के ऊपर कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है. स्थानीय लोगों के अनुसार इसके पीछे लोग गर्ग को गुना के एक स्थानीय नेता का संरक्षण मिलना बता रहे हैं. आरोप के तार महेंद्र सिंह सिसोदिया की ओर जुड़ रहे हैं. सिसोदिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी हैं. हाल ही में सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस छोड़ के भाजपा में शामिल हुए 22 विधायकों में से एक सिसोदिया भी हैं. यूं तो अभी वो विधायक नहीं हैं लेकिन शिवराज सिंह सरकार में हाल ही में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्रालय दिया गया है. वो पिछली कांग्रेस सरकार में भी श्रममंत्री थे.

स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि गुना के कलेक्टर एस विश्वनाथन और एसपी तरुण नायक काफी अच्छी तरह से काम कर रहे थे और एसडीएम की हरकतों का ख़ामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ा है. बता दे कि शिवानी गर्ग का तबादला एक महीने पहले नीमच कर दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद वो गुना में ही कार्यरत हैं. राजनैतिक संरक्षण के चलते उन्हें अभी तक रिलीज़ ऑर्डर नहीं मिले हैं. गर्ग के पति अंशुल गर्ग भी गुना उपजेल में डिप्टी जेलर हैं.

क्या कहते हैं लोग

गुना में कार्यरत एक समाजसेवी जिन्हें इस मामले की जानकारी है ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "गुना के कलेक्टर और एसपी की इस मामले में ज़्यादा भूमिका नहीं है. पिछली बार भी इसी अहिरवार परिवार की फसल एसडीएम शिवानी गर्ग खुद उजाड़ कर आई थीं. पांच महीने तक जमीन खाली पड़ी हुई थी. ना ही उस पर कॉलेज बनाने का कार्य शुरू हुआ और ना ही उसकी कोई चारदीवारी बनाई गई. जमीन पर पांच महीने तक कोई नहीं आया तो उस दलित परिवार को लगा कि शायद वो वहां पर फिर से खेती कर सकते हैं. उन्हें बिलकुल नहीं पता था कि उनके साथ ऐसा फिर से ऐसा हो जाएगा, वरना वो दोबारा से कर्ज लेकर वहां फसल क्यों बोते.”

प्रशासन ने बिना नोटिस दिए अपना पूरा अमला भेज दिया था जिसमें तहसीलदार, राजस्व विभाग के लोग, 22 पुलिस वाले, 23 पटवारी, एक पीडब्ल्यूडी अधिकारी, कॉलेज के प्रिंसिपल आदि शामिल थे. जब परिवार ने शुरुआत में फसल उजाड़ने का विरोध किया था तो अधिकारियों ने इस बात की सूचना एसडीएम को भी दी थी लेकिन एसडीएम ने वहां गए अधिकारियों को आदेश दिया था कि वो कड़ी कार्रवाई करें. यह पूरी कार्रवाई गर्ग के आदेश और निर्देश पर हुई थी. इस मामले में कलेक्टर एस विश्वनाथन और एसपी तरुण नायक की कोई भूमिका नही है उसके बावजूद भी उनका यहां से तबादला कर दिया गया. लेकिन गर्ग पर अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है. यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस घटना का पूरे देश में विरोध हो रहा है उसके लिए ज़िम्मेदार लोगों को बचाया जा रहा है."

गौर करने वाली बात यह है कि जून 2019 में भी गर्ग के तबादले के आदेश आये थे. उनका तबादला गुना से दमोह कर दिया गया था. एक स्थानीय सूत्र कहते हैं, "तब सिसोदिया कांग्रेस सरकार में श्रम मंत्री थे और गर्ग का तबादला तब भी उन्होंने रुकवा दिया था."

बता दें कि इस घटना के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘हमारी लड़ाई इसी सोच और अन्याय के खिलाफ है’.

वहीं बीएसपी सुप्रीमों ने मायावती ने कड़ी कार्रवाई की बात कहते हुए ट्वीट किया कि ‘एक तरफ बीजेपी व इनकी सरकार दलितों को बसाने का ढिंढोरा पीटती है जबकि दूसरी तरफ उनको उजाड़ने की घटनाएं उसी तरह से आम हैं जिस प्रकार से पहले कांग्रेस पार्टी के शासन में हुआ करती थी, तो फिर दोनों सरकारों में क्या अन्तर है? खासकर दलितों को इस बारे में भी जरूर सोचना चाहिए.’

इस मामले में गुना के पूर्व सांसद और बीजेपी के राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर घटना पर दुख जताया. उन्होंने कहा कि “गुना की दुर्भाग्यपूर्ण घटना को गंभीरता से संज्ञान में लेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी ने गुना के कलेक्टर और एसपी को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दे दिए है.”

ग़ौरतलब है कि गुना के भाजपा नेता और पूर्व विधायक राजेंद्र सलूजा ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर इस मामले में एसडीएम शिवानी गर्ग की भूमिका की जांच करने की गुज़ारिश की है. इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि एसडीएम गुना ने तहसीलदार को सीमांकन करने और कब्ज़ा हटाने के आदेश दिए थे. जिसके बाद प्रशासन और पुलिस ने अहिरवार परिवार द्वारा बोई गयी फसल को नष्ट कर दिया जिसके चलते वहां विवाद हो गया और पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की गयी.

पत्र में यह भी लिखा गया है कि ज़मीन इतने महीनों से खाली होने के बावजूद भी प्रशासन द्वारा कब्ज़ा क्यों नहीं किया गया. एक महीने से भी ज़्यादा पहले तबादले हो जाने के बावजूद गर्ग की गुना में आधिकारिक मौजूदगी के बारे में सवाल उठाये गए हैं. पत्र में यह भी लिखा गया है कि गुना के कलेक्टर और एसपी ने कोविड-19 महामारी के दौरान गुना में बहुत अच्छे तरीके से काम किया है लेकिन अच्छा काम करने की बावजूद भी उन्हें सज़ा दी गयी जबकि यह घटना एसडीएम द्वारा अंजाम दी गयी थी.

भाजपा नेता का मुख्यमंत्री को पत्र

बता दें कि इस पूरे प्रकरण में छह पुलिस वालों को निलंबित कर पुलिस लाइन में भेज दिया गया है. इन छह लोगों में कैंट थाने के उपनिरीक्षक अशोक सिंह कुशवाह के अलावा आरक्षक राजेंद्र शर्मा, पवन यादव, नरेंद्र रावत, नीतू यादव और रानी रघुवंशी के नाम शामिल है. कहने के लिए तो इनको निलंबित कर लाइन अटैच किया गया है लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि यह पांचों आरक्षक पहले से ही पुलिस लाइन में कार्यरत थे.

लाइन अटैच किए गए पुलिसकर्मी

गब्बू पारदी कौन है?

वहीं गब्बू पारदी जिसने सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा किया था उस पर हत्या, हत्या की कोशिश, मारपीट जैसे 16 मामले नामजद हैं.इस मामले के बाद गुना के पुलिस अधीक्षक ने पारदी को जिला बदर करने का प्रस्ताव कलेक्टर को भेजा है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने जब इस मामले में गब्बू पारदी से बात की तो वह कहते हैं, "मैं पिछले 35 साल से इस ज़मीन पर खेती कर रहा हूं और मैंने ही दो साल पहले उन्हें ज़मीन बटिया पर दी थी. वो नानाखेड़ी से आये थे मजदूरी करने. हमारा अदालत में भी मुकदमा चल रहा है उस ज़मीन को लेकर."

लेकिन जब न्यूज़लॉन्ड्री ने पारदी से ज़मीन के कागज़ात और कोर्ट के कागज़ात दिखाने की बात कही तो उन्होंने कागज़ात नहीं दिखाए और बात को टाल गए.

गब्बू पारदी के आपराधिक रिकॉर्ड के कागज़ात
गब्बू पारदी के आपराधिक रिकॉर्ड के कागज़ात

इस मामले को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने गुना जिले के पूर्व कलेक्टर एस विश्वनाथन से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उनका अभी तक जवाब नहीं मिला है. विश्वनाथन ने इस मामले में बयान जारी करते हुए कहा था कि आदर्श महाविद्यालय की ज़मीन पर गब्बू पारदी जो कि भूमाफिया है उसका कब्ज़ा था और उसी ने अपने अहिरवार परिवार को इस मामले में आगे करते हुए फंसा दिया. उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन अहिरवार परिवार के पुनर्वसन के कार्यवाही कर रहा है और साथ ही साथ उनके राजकुमार और सावित्री के बच्चों की भी देख रेख कर रहा है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा से इस मामले में कलेक्ट्रर और एसपी पर आनन् फ़ानन में कार्रवाई करने और इस मामले में एसडीएम जो इस मामले के लिए ज़िम्मेदार हैं पर कोई कार्रवाई नहीं करने की बात जाननी चाही. न्यूज़लॉन्ड्री ने एसडीएम का नीमच तबादला होने के बावजूद उनके गुना में बने रहने की बात पर गृहमंत्री मिश्रा से सवाल किया है लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला है.उनका जवाब मिलते है इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा

न्यूज़लॉन्ड्री ने शिवानी गर्ग से भी इस मामले को लेकर कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया.

इस मामले में यह सवाल भी उठता है कि 2019 में गुना प्रशासन ने एसडीएम जैसे बड़े अधिकारी के नेतृत्व में जमीन से कब्जा हटाने के लिए मुहिम चलाई थी, तो उस समय इस जमीन को प्रशासन ने अपने कब्जे में क्यों नहीं लिया?

यह बात जानने के लिए हमने इलाके के तहसीलदार निर्मल सिंह राठौर से बात की, उन्होंने कहा कि मेरी पोस्टिंग इस इलाके में अभी एक महीने पहले हुई है. इसलिए मुझे 2019 की कार्रवाई की कोई जानकारी नहीं है. लेकिन जहां तक बात कब्जे की हैं तो भूमाफिया गब्बू पारदी ने जमीन पर 2019 के बाद फिर से जमीन पर कब्जा कर लिया. हमारे पास आर्दश महाविद्यालय के लिए स्वीकृत की गई जमीन का सींमाकन करने का आर्डर था, उसी के तहत 14 जुलाई को कारवाई की गई.

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