इंडिया टुडे हिंदी: ख़बर के रूप में विज्ञापन या विज्ञापन में ख़बर?

फोकस पर्सनालिटी के तहत छपे लेख ने पैदा किए कई सवाल.

Article image
  • Share this article on whatsapp

इंडिया टुडे ग्रुप, भारत का सबसे सम्मानित और विविधतापूर्ण मीडिया ग्रुप है जिसने चार दशक पहले ग्रुप की स्थापना के बाद से ही विश्वास, नेतृत्व और प्रशंसा की एक उल्लेखनीय विरासत बनाई है. 1975 में इंडिया टुडे मैगज़ीन की लॉन्चिंग ने ग्रुपकी यात्रा को एक मल्टी ब्रांड, मल्टी-प्लेटफॉर्म और मल्टी वर्टिकल मीडिया ग्रुप के रूप में शुरुआत की, जिसमें ब्रांड्स के साथ ही निर्विवाद नेतृत्व भी था. ग्रुप वर्षों से निरंतर पत्रकारिता और संपादकीय उत्कृष्टता पर लगातार ध्यान केंद्रित करके पत्रकारिता के स्वर्मणिम मानकों का प्रतीक बन गया है.

इंडिया टुडे ग्रुप की वेबसाइट की प्रस्तावना में उपरोक्त पंक्तियों के साथ ग्रुप का महिमामंडन किया गया है. साथ ही लिखा है कि ग्रुप देश की नंबर 1 पत्रिका- इंडिया टुडे, देश की नंबर 1 हिंदी पत्रिका- इंडिया टुडे हिंदी, नंबर 1 बिजनेस पत्रिका - बिजनेस टुडे आदि का प्रकाशन करता है.

दावे के अनुसार क्या पत्रिका में पत्रकारिता के उसूलों के मुताबिक पत्रकारिता हो रही है. “इंडिया टुडे हिंदी” के 24 जून, 2020 के संस्करण में छपी एक ‘रिपोर्ट’ तो कम से कम उनके इन दावों पर सवाल खड़ा करती है.

पत्रिका का कवर पेज “कोविड विजेता” शीर्षक से है. जिसमें कोरोना को मात देकर आए लोगों की कहानियों का विस्तार से विवरण है.

पत्रिका के अंदर दो पेज फोकस पर्सनैलिटी के तहत दिनेश गोयल नामक व्यक्ति को सौंपा गया है, जिसमें उनकी दिनेश आनंद के साथ बातचीत है. पत्रिका के मुताबिक, दिनेश गोयल फेडरेशन ऑफ एजुकेशनल पब्लिशर्स इन इंडिया के अध्यक्ष और गोयल ग्रुप ऑफ पब्लिशिंग के एमडी हैं.

इसकी विशेषता यह है कि पाठक इसे पढ़कर अंदाजा नहीं लगा सकता कि आखिर फोकस पर्सनैलिटी, विज्ञापन है या लेख. पत्रिका ने भी इसको लेकर कोई सूचना नहीं दी है.

“एक नए भारत का उदय” शीर्षक से लिखे गए इस तथाकथित फोकस पर्सनैलिटी में दिनेश गोयल का गृह मंत्री अमित शाह और शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के साथ फोटो लगी है.

दिनेश आनंद से बातचीत में दिनेश गोयल आरक्षण, गरीबों, अल्पसंख्यकों आदि को दी जाने वाली सरकारी सब्सिडी या सरकारी स्कीमों, की कड़ी आलोचना करते हुए इन्हें ही देश की विफलता के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हैं. साथ ही वे आरक्षण को अभिशाप तक करार दे देते हैं.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
गृहमंत्री अमित शाह के साथ दिनेश आनंद.

इस लेख में गोयल के हवाले से कहा गया है, “अफसोस की बात है कि सामूहिक राष्ट्रीय चरित्र और गौरव के निर्माण के बजाय, हमारे ताने- बाने में पात्रता और दान के रूप में वितरण की संस्कृति ने जड़ें जमा लीं.समाज के एक बड़े वर्ग, जिसमें किसान, अल्पसंख्यक और दलित सहित समाज के बड़े वर्ग शामिल थे, को एक के बाद एक आई सरकारों ने सशक्त बनाने के बजाए उन्हें समय-समय पर सरकारों द्वारा दी जाने वाली खैरात पर आश्रित बनाना शुरू कर दिया.”

लेख में आगे कहा गया है कि नतीजतन, किसानों अल्पसंख्यकों और दलितों की दशा कभी नहीं सुधरी और खैरात की संस्कृति ने उन्हें हमेशा के लिए सरकार का मोहताज बना दिया.

साथ ही गोयल आरक्षण पर भी प्रधानमंत्री मोदी का हवाला देकर प्रहार करते हुए कहते हैं, “आरक्षण एक राष्ट्रीय अभिशाप है, खुद प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार चुनाव के बाद कहा था कि इसके बारे में बात करना भी एक राजनीतिक आत्महत्या जैसा है.”

हालांकि पीएम पर गोयल का ये दावा कहीं भी सही नहीं बैठता. लोकसभा चुनावों के दौरान बिहार में एक रैली को सम्बोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, “झूठ की राजनीति करने वाले बिहार में अफवाह फैला रहे हैं कि सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए जो 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. वो बाद में खत्म कर दिया जाएगा. ऐसे झूठ पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहे हैं, बाप भी चलाता था, बेटा भी चला रहा है.मैं कहना चाहता हूं कि जो आरक्षण बाबा साहब करके गए हैं उसे कोई हाथ नहीं लगा सकता.”

और हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कहा था कि भारतीय जनता पार्टी आरक्षण का समर्थन करती है.अब गोयल ने ये बात किस आधार पर कही ये समझ से परे है.

मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल के साथ दिनेश गोयल.

अन्त में गोयल देश के लोगों से आत्मनिर्भर बनने की अपील करने के साथ ही पीएम मोदी का गुणगान भी करते नजर आते हैं.

इतना ही नहीं गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी के बाकी नेता जिस वक़्त आपातकाल की बरसी पर ट्वीट करके कांग्रेस पर निशाना साध रहे थे उसी वक़्त दिनेश गोयल देश में अघोषित आपातकाल की ज़रूरत बताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘कोविड ने हमें धीरे-धीरे अपने देश के प्रति लोगों में जूनून भरने का अवसर दिया है ऐसे में हमें हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर ध्यान देना होगा. हमारे देश की अपनी विशाल क्षमता को पूरी तरह से नियंत्रित और संरक्षित करने के लिए एक अप्रत्यक्ष और अघोषित आपातकाल की आवश्यकता है.’’

सवाल है कि देश की नंबर 1 हिंदी पत्रिका होने का दावा करने वाली इंडिया टुडे ने इस खबर को इस तरह भ्रामक क्यों बनाया है? ये समझ से परे है कि ये एक इंटरव्यू है, लेख है, या प्रोफाइल. जैसा कि लिखा हुआ है कि ये “फोकस पर्सनैलिटी” है तो इसमें फोकस पर्सनैलिटी पर न होकर, उस व्यक्ति के विचारों पर क्यों है. और पर्सनैलिटी के बारे में तो कुछ भी नहीं बताया गया है कि ये दिनेश गोयल कौन हैं और उनकी योग्यता क्या है. सिर्फ फोटो के नीचे उनका पद दिया हुआ है.उनकी पर्सनैलिटी का बिल्कुल भी जिक्र नहीं किया गया है.

दूसरे, खबर में दिनेश आनंद की बाइलाइन दी है और साफ लिखा है कि गोयल ने आनंद के साथ बातचीत में उपरोक्त बातें कहीं हैं. तो फिर सवाल है कि इस पर कोई भी क्रॉस सवाल क्यों नहीं पूछा गया. खुद को भारत का सबसे सम्मानित और विविधतापूर्ण मीडिया ग्रुप क्या गोयल के आरक्षण को अभिशाप और सरकारी स्कीमों को खैरात का समर्थन करता है?

इंडिया टुडे हिंदी में रिपोर्टर रह चुके दो कर्मचारियों से हमने दिनेश आनंद के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि जहां तक हमारी जानकारी है, वहां इस नाम का कोई व्यक्ति काम नहीं करता है.

पहली नज़र में स्वतंत्र लेख का आभास देने वाला ये पूरा पन्ना विज्ञापन है या किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का प्रोफाइल, ये समझ नहीं आता. इसमें साफ तौर पर इंडिया टुडे पूरी तरह बाजीगरी कर पाठकों को भ्रमित करने की कोशिश करता नजर आता है.

इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमने इंडिया टुडे हिंदी के एडीटर अंशुमान तिवारी से बात करने की कोशिश की लेकिन हमारी उनसे बात नहीं हो पाई.

इसके बाद हमने अपने सवाल अंशुमान तिवारी को मेल के जरिए भेज दिए थे.बाद में हमने व्हाट्सएप पर भी उन्हें अपने सवाल भेजे. लेकिन हमारी स्टोरी पब्लिश होने तक उनका कोई जवाब नहीं आया था. अगर उनका कोई जवाब आता है तो स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.

Also see
article imageइंडिया टूडे की तहक़ीक़ात: इन्वेस्टिगेशन की आड़ में दर्शकों को परोसा गया झूठ
article imageविश्वसनीय पत्रकारिता? फर्जी ट्वीट के फेर में फंसा आजतक चैनल
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like