लॉकडाउन के दौरान 22 शहरों में ओजोन के स्तर का विश्लेषण करने के बाद सीएसई ने जारी की रिपोर्ट.
कोरोना वायरस (कोविड-19) के संक्रमण के मद्देनजर देशव्यापी लॉकडाउन के कुछ हफ्ते बीते थे, तो खबरें आने लगी थीं कि वायु प्रदूषण का स्तर कम हो रहा है, लेकिन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने देश के 22 बड़े शहरों में प्रदूषण के आंकड़ों का विश्लेषण कर पाया कि इस अवधि में ओजोन प्रदूषण मानक से अधिक था.
सीएसई ने ये विश्लेषण एक जनवरी से 31 मई 2020 तक के आंकड़ों के आधार पर किया है. ये आंकड़े केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से हासिल किए गए थे. आंकड़ों के विश्लेषण से ये बात सामने आई है कि जब लॉकडाउन के कारण शहरों में पार्टि कुलेटमैटर 2.5 और नाइट्रोजनडाई-आक्साइड का स्तर काफी कम हो गया था, तब ओजोन प्रदूषण चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया था, अमूमन ओजोन प्रदूषण तब हुआ करता है, जब तेज धूप और गर्मी का मौसम हो.
सीईएस की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण का स्तर नापने के लिए वैश्विक नियम अपनाए गए ताकि सटीक विश्लेषण सामने आ सकें. रिपोर्ट में कहा गया है, “24 घंटों में से अगर 8 घंटों का औसत देखें, तो दिल्ली-एनसीआर और अहमदाबाद में कम से कम एक ऑब्जर्वेशन स्टेशन में लॉकडाउन अवधि के दो तिहाई वक्त में ओजोन प्रदूषण मानक से अधिक रहा.”
वहीं, गुरुग्राम में 26 दिन ओजोन की मात्रा औसत से ऊपर रही, जबकि कम से कम एक आब्जर्वेशन स्टेशन में ओजोन प्रदूषण का स्तर 57 दिनों तक मानक से अधिक रहा.
गाजियाबाद में 15 दिनों तक ओजोन प्रदूषण की मात्रा मानक को पार कर गई जबकि कम से कम एक आब्जर्वेशन स्टेशन में 56 दिनों तक ओजोन प्रदूषण मानक से अधिक रहा. वहीं, उत्तरप्रदेश के नोएडा में 12 दिनों तक ओजोन प्रदूषण मानक से अधिक रहा और एक ऑब्जर्वेशन स्टेशन पर 42 दिनों तक प्रदूषण मानक से ज्यादा दर्ज किया गया.
इसी तरह कोलकाता, दिल्ली और अन्य शहरों में ओजोन प्रदूषण तयशुदा मानक से अधिक रहा.
हालांकि, चेन्नई और मुंबई की बात करें, तो पूरे शहर में कभी भी ओजोन प्रदूषण मानक से ऊपर नहीं पहुंचा, लेकिन दोनों शहरों के कम से कम एक ऑब्जर्वेशन स्टेशन में ओजोन प्रदूषण कई दिनों तक मानक से अधिक दर्ज किया गया.
सीएसई की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुमिता रायचौधरी ने कहा, “आपदा के चलते वायु गुणवत्ता में आए बदलाव ने हमें गर्मी के मौसम में होने वाले प्रदूषण को समझने में मदद की. सामान्य तौर पर हर साल सर्दी के मौसम में प्रदूषण हमारा ध्यान खीचता है. लेकिन, गर्मी के मौसम में जो प्रदूषण फैलता है, उसका चरित्र अलग होता है .”
वो आगे बताती हैं, “गर्मी में तेज हवाएं चलती हैं, बारिश होती है, आकाशीय बिजली गिरती हैं, तापमान अधिक होता है और लू चलती है. सर्दी में इसका उल्टा होता है. इसमें हवा की ऊंचाई कम होती है.आबोहवा में ठंडक होती है, जो हवा और उसमें मौजूद प्रदूषकों को रोक लेती है.”
सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से रोजाना वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) बुलेटिन जारी किया गया, जिनमें सभी दूसरे प्रदूषकों कीमात्रा में गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन ओजोन में गिरावट के बावजूद कई शहरों में इसकी मात्रा दूसरे प्रदूषकों से ज्यादा थी और सूचकांक में ये शीर्ष पर बना रहा. यहां ये भी बतादें कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तयशुदा रात आठ बजे से शाम चार बजे के बीच आंकड़े लेता है. इस वक्त प्रदूषण खराब स्तर पर नहीं हो सकता है.
प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए सीएसई ने साझा प्रयास की वकालत की. रायचौधरी ने कहा, “प्रदूषण में भारी गिरावट तभी मुमकिन है जब सभी शहर प्रदूषण कम करने के लिए साझा प्रयास तथा समान स्तर पर व एक रफ्तार से व्हीकल, उद्योग, पावर प्लांट्स, कूड़ा प्रबंधन, कंस्ट्रक्शन, ठोस ईंधन का खाना पकाने में इस्तेमाल होने वाले ईंधन पर कार्रवाई करें.”
उन्होंने कहा, “आपदा के खत्म होने के बाद भी प्रदूषण में जो कमी आई है, उसे बरकरार रखने और ब्लू स्काई एंड क्लीन लंग्स के लिए एक एजेंडे की जरूरत है. इन कार्रवाइयों से ये भी सुनिश्चित किया जाए कि एक साथ धूलकण व गैस उत्सर्जन के साथ ही ओजोन प्रदूषण भी कम हो”.