ट्रंप के लिए नुक़सानदेह हो सकते हैं बोल्टन के दावे

डोनाल्ड ट्रंप ने जॉन बोल्टन की किताब पर कुछ दिनों पहले कहा था कि प्रकाशन के बाद बोल्टन को बहुत मुश्किल हो सकती है.

WrittenBy:प्रकाश के रे
Date:
Article image

दुबारा राष्ट्रपति चुने जाने की डोनाल्ड ट्रंप की उम्मीदें लगातार हिचकोले खा रही हैं. एक ओर ताज़ा सर्वेक्षणों में डेमोक्रेट पार्टी के उम्मीदवार पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडेन की बढ़त बढ़ती जा रही है, तो दूसरी तरफ़ अप्रैल, 2018 से सितंबर, 2019 तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जॉन बोल्टन अपनी किताब में ख़तरनाक दावे कर रहे हैं. यह किताब अगले सप्ताह प्रकाशित होने वाली है. उसके अंश विभिन्न अमेरिकी अख़बारों में छपे हैं. किताब को रोकने के लिए न्याय विभाग ने मुक़दमा दायर कर दिया है.सरकार का कहना है कि इस किताब में गोपनीय सूचनाएँ हैं.

इससे पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने कह दिया था कि प्रकाशन के बाद बोल्टन को बहुत मुश्किल हो सकती है. उनका कहना है कि राष्ट्रपति के रूप में उनसे हुई हर बातचीत को वे बहुत गोपनीय समझते हैं और उस बातचीत को प्रकाशित करना क़ानून तोड़ना है. इससे पहले जनवरी में ही राष्ट्रपति के कार्यालय ने बोल्टन से गोपनीय सूचनाओं को हटाने के लिए कहा था, जिसे उन्होंने मानने से इनकार कर दिया था. तब राष्ट्रपति ने एक ट्वीट में लिखा था कि उन्होंने बोल्टन को कभी नहीं बताया था कि यूक्रेन को दी जा रही सहायता का कोई संबंध डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े लोगों की हो रही जाँच से है. इस जाँचके दायरे में जो बाइडेन और उनके बेटे भी हैं. यूक्रेन का मसला ट्रंप के ख़िलाफ़ लाए गए महाभियोग के आरोपों में बहुत अहम था.

'द रूम व्हेयर इट हैपेंड’ शीर्षक किताब में बोल्टन ने कई बड़े ख़ुलासे किए हैं. ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में छपे अंश में बताया गया है कि दुबारा चुनाव जीतने में मदद के लिए ट्रंप ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से आग्रह किया था. आग्रह यह था कि चीन अमेरिकी गेहूँ और सोयाबीन की ख़रीद अधिक करे ताकि किसानों को फ़ायदा मिले और वे ट्रंप के पक्ष में मतदान करें.

उल्लेखनीय है कि उन राज्यों में, जो मुख्य रूप से चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं, किसानों के वोट बहुत अहम हैं. चीन के साथ व्यापार युद्ध में किसानों को हुए घाटे की भरपाई के लिए ट्रंप उन्हें अनुदान दे रहे हैं, जिसे एक तरह की रिश्वत कही जा रही है. इसी अंश में यह भी बोल्टन ने लिखा है कि जिनपिंग ने ट्रंप के साथ और छह साल काम करने की इच्छा जतायी थी. इस पर ट्रंप ने कहा था कि लोग चाहते हैं कि उनके लिए दो कार्यकाल की मौजूदा संवैधानिक सीमा को हटा दिया जाए. उस बातचीत में शी जिनपिंग ने यह भी कहा था कि अमेरिका में बहुत चुनाव होते हैं.

‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में प्रकाशित अंश के अनुसार तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआँ ने ट्रंप से कहा था कि अमेरिका में जाँच के दायरे में फंसी एक तुर्की कंपनी का कोई दोष नहीं है. इस पर ट्रंप ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे इस मसले का समाधान कर देंगे, लेकिन मुश्किल यह है कि जाँच कर रहे अधिकारी राष्ट्रपति ओबामा के लोग हैं. पर ट्रंप ने यह भी कहा कि उन्हें हटाकर वे अपने लोग जाँच में बैठायेंगे. ट्रंप द्वारा उग्यूर मुस्लिम समुदाय के साथ चीनी सरकार के रवैए की प्रशंसा करने की बात भी बोल्टन ने लिखी है. सरकारी काम के लिए व्यक्तिगत ईमेल के इस्तेमाल के विवादों से घिरी अपनी बेटी इवांका ट्रंप से मीडिया का ध्यान हटाने के लिए ट्रंप ने पत्रकार जमाल ख़शोगी की हत्या के मामले में सऊदी अरब के शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान के समर्थन में बयान जारी किया था, ताकि वह सुर्खियों में आ जाए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, बोल्टन ने यह भी लिखा है कि ट्रंप वेनेज़ुएला पर हमले के विचार को मज़ेदार मानते थे और उनका कहना था कि वह देश असल में अमेरिका का हिस्सा है. यहाँ यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि बोल्टन ट्रंप प्रशासन के उन बड़े अधिकारियों में रहे हैं, जो किसी भी तरह से वेनेज़ुएला में राष्ट्रपति मदुरो को अपदस्थ करने पर आमादा थे. बोलिविया में तख़्तापलट की योजना बनाने वालों में बोल्टन भी शामिल हो सकते हैं क्योंकि वे किसी भी अमेरिका विरोधी सरकार को हटाने की नीयत रखते हैं.

'द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट भी कम दिलचस्प नहीं है. एक जगह बोल्टन बताते हैं कि 2018 में उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन से राष्ट्रपति ट्रंप की मुलाक़ात के बाद विदेश सचिव माइक पॉम्पियो ने उन्हें पर्ची पर लिखकर दिया था कि यह आदमी बकवास (शिट) से भरा हुआ है. महीने भरबाद पॉम्पियो ने यह भी कहा था कि उत्तर कोरिया से कूटनीतिक बातचीत से कुछ भी नहीं निकलेगा. इन अंशों को देखकर लगता है कि बोल्टन ट्रंप से सारी खुन्नस निकाल लेना चाहते हैं. वे लिखते हैं कि ट्रंप को ब्रिटेन के बारे में सामान्य समझ भी नहीं है. उन्होंने एक दफ़ा तत्कालीन प्रधानमंत्री थेरेसा मे से पूछा था कि क्या ब्रिटेन एक परमाणु शक्ति है. इसी तरह से ट्रंप ने एक बार बोल्टन से पूछा था कि क्या फ़िनलैंड रूस का हिस्सा है. इतना ही नहीं, वे अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व और वर्तमान राष्ट्रपतियों के उल्लेख में भी गड़बड़ करते थे.

ट्रंप प्रशासन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद से हटते हुए बोल्टन ने कहा था कि यह उनका निर्णय है, लेकिन राष्ट्रपति ने कहा था कि बहुत अधिक असहमत होने के कारण उन्होंने बोल्टन को पद से हटाया है. बोल्टन अमेरिकी विदेश नीति के गलियारों में एक आक्रामक सोच के व्यक्ति माने जाते हैं और कई लोग उन्हें हेनरी किसिंजर की परंपरा में देखते हैं, जिसका एक ही उद्देश्य होता है कि दुनिया में अमेरिकी चौधराहट चलती रहे. वे फ़ॉक्सन्यूज़ चैनल के टिप्पणीकार के रूप में भी कुख्यात रहे हैं तथा मुस्लिमविरोधी संगठनों से भी उनका जुड़ाव रहा है. ईरान और वेनेज़ुएला को पाबंदियों से परेशान कर वहाँ सत्ता में बदलाव की कोशिशों में बोल्टन की बड़ी भूमिका रही है.

बोल्टन जैसे कुछ लोग ट्रंप से इसलिए भी असहज हैं कि वे अमेरिकी राजनीति के व्याकरण से परे जाकर चीन, उत्तर कोरिया और रूस जैसे कुछ देशों से संबंधों को बेहतर करने की कोशिश करते हैं. बहरहाल, बोल्टन प्रकरण यह भी इंगित करता है कि अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था कितने तरह के अंतर्विरोधों से घिर चुकी है और इसका नतीजा यह है कि आज वह महाशक्ति आंतरिक और बाह्य स्तर पर तमाम संकटों से जूझते हुए अपने वर्चस्व की ढलान पर है.

Also see
article imageअमेरिका-तालिबान समझौता: बहुत कठिन है डगर पनघट की
article imageशीत युद्ध 2.0: जी-सेवेन या अमेरिकी सर्कस

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like