क्या उत्तर प्रदेश सरकार की रणनीति है ‘नो टेस्ट-नो कोरोना’?

22.5 करोड़ आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 13 जून तक महज 0.21% लोगों का टेस्ट हुआ है. बेहद कम जांच का मामला अब हाईकोर्ट में पहुंच गया है.

WrittenBy:बसंत कुमार
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बीती 16 मार्च को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख डॉ. टेड्रोस एडनम घेब्रेसियस ने कहा था, ‘‘कोरोना को लेकर पूरी दुनिया को हमारा एक ही संदेश है: टेस्ट… टेस्ट… टेस्ट…’

सिर्फ डब्ल्यूएचओ के प्रमुख ही नहीं तमाम विशेषज्ञों की राय है कि जब तक कोरोना का इलाज नहीं मिल जाता है तब तक इस बीमारी को रोकने का एकमात्र तरीका है ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करना, लेकिन भारत में ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है.

रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और गृहमंत्री अमित शाह के साथ हुई मीटिंग के बाद दिल्ली में कोरोना जांच को दोगुना करने का फैसला लिया गया. कोविड19 इंडिया.कॉम के आंकड़ों के अनुसार 13 जून तक दिल्ली में 2,90,592 लोगों का कोरोना टेस्ट हुआ है. दिल्ली की आबादी 1,98,14,000 है. यानी अब तक कुल आबादी का 1.46 प्रतिशत लोगों का ही टेस्ट हुआ है.

एक तरफ जहां दिल्ली में जांच बढ़ाने की बात हो रही है वहीं उत्तर प्रदेश में कम जांच करने के ऊपर सवाल खड़े हो रहे हैं. वकील अरुण कुमार दीक्षित ने आगरा में कम हो रहे टेस्ट और लोगों को बेहतर इलाज नहीं मिलने समेत कई दिक्कतों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया हैं. कोर्ट ने दीक्षित की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 19 जून तक जवाब सौंपने का समय दिया है.

यूपी की कुल आबादी 22,49,79,000 हैं, जबकि 14 जून तक यहां महज 4,67,702 लोगों का ही कोरोना जांच हो पाया है. जो पूरी आबादी का महज 0.21 प्रतिशत है.

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उत्तर प्रदेश में 13 जून तक हुए जांच

योगी आदित्यनाथ का बयान और जांच में अंतर

बीते दिनों यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक बयान सामने आया जिसके बाद काफी हंगामा हुआ. कई सवाल उठे थे. सीएम आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘यूपी में मुंबई से आने वाले जो भी मजदूर हैं उनमें से 75 फ़ीसदी ऐसे हैं जिनमें संक्रमण है. दिल्ली से आने वाले कामगारों में 50 फ़ीसदी ऐसे हैं जिनमें संक्रमण है. अन्य राज्यों से आने वालों में 20 से 30 फीसदी लोग व्यापक संक्रमण की चपेट में हैं.’’

14 जून को मीडिया से बात करते हुए अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी ने बताया कि देश में सबसे ज्यादा कामगार उत्तर प्रदेश में आए हैं. दक्षिण के राज्यों से हम अपने श्रमिकों को लाने में सफल हुए. प्रदेश में अब तक 1647 ट्रेनों से 22 लाख से ज्यादा लोगों को प्रदेश सरकार वापस लाई है. अवस्थी ट्रेन से आए लोगों का आंकड़ा दे रहे थे जबकि काफी सारे लोग पैदल और बसों से भी आए हैं.

योगी आदित्यनाथ, अवनीश अस्वस्थी के बयान से एक दिन पहले बताते हैं कि प्रदेश के 35 लाख प्रवासी कामगारों और श्रमिकों को वापस आना पड़ा है.

अगर योगी आदित्यनाथ की बातों को सही मान लें तो बाहर से आए कामगार हैं 35 लाख, जबकिपूरे राज्य मेंकोरोना टेस्ट महज 4.5 लाख हुआ है. इसमें से सिर्फ चौदह हज़ार लोग पॉजिटिव आए हैं. तो क्या मुख्यमंत्री ने गलत आंकड़े बताए, या उनकी जानकारी अधूरी है? अगरउनके दावे में दम है आंकड़े इतने कम क्यों हैं.

आगरा मॉडल और कोरोना जांच की हक़ीकत

किसी भी दुकान पर खरीदार शो-पीस देखकर ही खरीदारी करता है. योगी सरकार ने कोरोना की लड़ाई में आगरा में हुए काम को शोपीस के रूप में दिखाया. उसे एक मॉडल के रूप में पेश किया था. जिसकी तारीफ भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल ने भी किया था. अगर आगरा में ही टेस्ट पर सवाल उठने लगे है तो यह सोचना मुश्किल नहीं की प्रदेश के बाकी इलाकों में क्या स्थिति है.

हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले वकील अरुण कुमार दीक्षित ने याचिका में यूपी वापस लौटे कामगारों की जांच नहीं होने पर भी सवाल उठाया है.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘यूपी में सबसे ज्यादा मामले आगरा से आए हैं. ऐसे में यहां ज्यादा से ज्यादा जांच होना चाहिए, लेकिन यहां जांच में कमी कर दी गई. जिसका नतीजा यह हुआ कि यहां कोरोना के मामले अचानक से कम आने लगे. हमारी जानकारी के अनुसार आगरा में बाहर से 22 हज़ार के आसपास कामगार आए हैं. हालांकि प्रशासन इनकी संख्या ग्यारह हज़ार बता रहा है. लेकिन यहां उनका भी टेस्ट नहीं हुआ. क्वारंटाइन के बाद उन्हें घर भेज दिया गया.’’

इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे वकील अरुण कुमार

अरुण कुमार एक हैरान करने वाला आंकड़े का जिक्र करते हैं. वे कहते हैं,‘‘आगरा में 64 के करीब लोगों की मौत हुई है. उसमें से 37 की मौत के बाद कोरोना टेस्ट का नतीजा सामने आया है. यहां लोगों को लक्षण आने के बाद भी दवाई देकर वापस भेज दिया जाता है. एक दो दिन में उनकी स्थिति बेहद खराब हो जाती है तब टेस्ट किया जाता है. टेस्ट होने के लिए सैंपल अभी भी लखनऊ भेजा जाता है. इसके कारण 48 से 72 घंटे में उसका नतीजा आता है तब तक स्थिति और बिगड़ जाती है, अक्सर मरीज की मौत हो जाती है. आगरा मॉडल की तारीफ हुई, लेकिन यहां लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. मेरे दो करीबियों के साथ जब यह स्थिति बनी तो मैंने कोर्ट जाने का फैसला लिया.’’

अरुण कुमार आगरा प्रशासन की जिस लापरवाही की बात कह रहे हैं. इसकी शिकायत बीते दिनों दैनिक जागरण के स्थानीय पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत के बाद उनके परिजनों ने भी की थी. 52 वर्षीय पंकज का निधन कोरोना के कारण हो गया. तब उनके चचेरे भाई मोनू ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया था कि कोरोना पॉजिटिव आने के बाद 26 से 27 घंटे तक वे घर पर ही रहे, जबकि उन्हें रक्तचाप (बीपी) की परेशानी थी जिसकी दवाई वो हर सुबह खाते थे.’’

आगरा के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ का कोरोना से हो गया था निधन

पंकज कुलश्रेष्ठ के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उनके परिजनों का टेस्ट उनकी मौत के बाद किया गया.

अस्पताल की लापरवाही

आगरा में प्रशासन की जबरदस्त लापरवाही का मामला 12 जून को सामने आया. यहां के एसएन मेडिकल कॉलेज ने एक शख्स का शव कोरोना निगेटिव बताकर परिजनों को सौंप दिया. परिजनों ने समान्य तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया. उसके बाद स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बताया की मृतक कोरोना पॉजिटिव था. आनन-फानन में अंतिम संस्कार में शामिल परिजनों को क्वारंटीन कर दिया गया.

आगरा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस कहते हैं, ‘‘यहां आए दिन प्रशासन की नाकामियां सामने आती है. बीते दिनों एक शव परिजनों को देने के बाद वापस लिया गया क्योंकि मृतक कोरोना पॉजिटिव था. कई मामले ऐसे सामने आए जहां अस्पताल ने मृतक को कोरोना निगेटिव बताकर शव सौंप दिया बाद में पता चला की वो कोरोना पॉजिटिव था. जिसके बाद पूरे परिवार को क्वारंटीन करना पड़ा. आगरा में एक तस्वीर सामने आई थी जिसमें बच्चे इस्तेमाल पीपीई किट लकड़ी में लेकर घूमते नजर आ रहे थे. अब किसी डॉक्टर ने कोरोना मरीज का इलाज करते हुए ही उसे पहना होगा. फिर बच्चों तक वह आई कैसे.’’

नरेश पारस आगे कहते हैं, ‘‘एक तो यहां जांच कम हो रहा है. दूसरी बात जांच के लिए प्रशासन कम ही काम करता नजर आ रहा है. लोगों में कोरोना के लक्षणदिखते हैं तो लोग फोन करके प्रशासन को जानकारी देते हैं. जानकारी मिलने के एक दो दिन बाद प्रशासन के लोग उस व्यक्ति तक पहुंचते हैं तब जाकर उसकी जांच होती है. जांच होने के बाद नतीजे आने तक वो घर पर ही रहता है. नतीजा आने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता है, लेकिन उसके आसपास के किसी का भी जांच जल्दी नहीं किया जाता है. ऐसा कई बार हुआ है. यहां इलाज नहीं मिलने के कारण चार बच्चों की मौत हो गई. इस मामले को मैं राष्ट्रीय बाल आयोग ले गया जिसके बाद जिलाधिकारी को आयोग ने नोटिस भेजा है. आगरा में कोरोना को लेकर कोई लड़ाई नजर नहीं आ रही है.’’

अगर आगरा में टेस्ट की बात करें तो जिलाधिकारी प्रभु नरायण सिंह द्वारा ट्विटर पर दी गई जानकारी के मुताबिक रोजाना औसतन 225 टेस्ट हो रहे हैं.

7 जून, कुल मामले 15097

10 जून, कुल मामले 15714

11 जून, कुल मामले 15946

12 जून, कुल मामले 16202

13 जून, कुल मामले 16518

अरुण कुमार के मुताबिक आगरा में शुरुआत के दिनों में कोरोना के काफी मामले सामने आए. थोड़े मामले कम हुए तो योगी सरकार ने आगरा मॉडल बताना शुरू कर दिया लेकिन अचानक से मामले बढ़ने लगे और हर रोज 35 से 50 कोरोना पॉजिटिव सामने आने लगे हैं. इसको देखते हुए योगी आदित्यनाथ ने मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में एक टीम 29 अप्रैल से 11 मई तक आगरा में रही. उसके बाद पता नहीं क्या जादू की छड़ी चलाई गई कि रोजाना पांच से सात मामले सामने आने लगे. जानकार बताते हैं कि आगरा में टेस्ट की संख्या कम कर दी गई. अब जब हमने जनहित याचिका दायर कर दी तो यहां फिर कोरोना पॉजिटिव की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है.

अधिकारियों के साथ बातचीत करते योगी आदित्यनाथ

कुमार कहते हैं कि उनकी याचिका की सुनवाई के समय यूपी सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल जवाब दे रहे थे. उन्होंने कोर्ट से कहा कि हमें थोड़ा वक़्त दीजिए. कोर्ट ने उन्हें 19 जून तक आगरा की पूरी स्थिति से स्वगत कराया.

सिर्फ आगरा में ही टेस्ट को लेकर परेशानी नहीं है. स्क्रॉल डॉट कॉम की रिपोर्ट की माने तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहने वाली करोड़ों की आबादी के लिए केवल एक कोरोना जांच केंद्र है.

यूपी सरकार के अनुसार प्रदेश में कुल 34 कोरोना टेस्ट लैब सेंटर हैं. इसमें से सात सिर्फ लखनऊ में हैं. वहीं यूपी में सबसे ज्यादा मामले नोएडा और आगरा से आए हैं. आगरा में दो तो नोएडा में चार टेस्टिंग सेंटर हैं. प्रदेश में 15 जून को 12,962 लोगों का टेस्ट हुआ. जिसमें से 476 लोग पॉजिटिव आए हैं. उत्तर प्रदेश में 75 जिले है यानी एक दिन एक जिले से औसतन 172 कोरोना टेस्ट हुआ. इस तरह प्रदेश में कोरोना मरीजों की संख्या 14 हज़ार के ऊपर चली गई है. अब तक प्रदेश में पांच हज़ार से ज्यादा सेंपल पेंडिग है. उनके नतीजे नहीं आए है.

यूपी सरकार द्वारा जारी सूचना

टेस्ट पर सवाल पूछने पर मामला दर्ज

उत्तर प्रदेश में कोरोना काल में कई पत्रकारों पर सिर्फ इसलिए मामले दर्ज हुए हैं क्योंकि उन्होंने क्वारंटीन सेंटरों की दुर्दशा पर सवाल उठाए थे. वहीं टेस्टिंग को लेकर सवाल पूछने के कारण उत्तर प्रदेश शासन में रिटायर सीनियर आईएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह पर मामला दर्ज करा दिया गया.

यह मामला एक ट्वीट करने को लेकर दर्ज कराया गया है. उस ट्वीट में सिंह ने लिखा था कि “सीएम योगी की टीम 11 मई की मीटिंग के बाद क्या मुख्य सचिव ने ज्यादा कोरोना टेस्ट कराने वाले कुछ जिलाधिकारियों को हड़काया है कि क्यों इतनी तेजी पकड़े हो, क्या ईनाम पाना है, जो टेस्ट-टेस्ट चिल्ला रहे हो. चीफ सेकेट्री स्थिति स्पष्ट करेंगे? यूपी की स्ट्रेट्जी नो टेस्ट- नो कोरोना.’’

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, “यूपी में देश की आबादी का 20 प्रतिशत रहता है, लेकिन यहां कोरोना के मामले अब तक सिर्फ चौदह हज़ार मामले सामने आये हैं यानी देश के महज 3.2 प्रतिशत है. ऐसा कैसे हो सकता है? जबकि सीएम खुद कह चुके हैं कि मुंबई से आने वाले 75 प्रतिशत मजदूरों में कोरोना पाया गया, दिल्ली से आने वालों में 50 प्रतिशत तो बाकी राज्यों से आने वालों में 25 प्रतिशत. तो अगर यहां 22 लाख लोग आए हैं तो उनका टेस्ट हुआ क्या. अगर नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ?’’

अपने ऊपर हुए एफआईआर पर वे कहते हैं, ‘‘जहां तक मुझपर एफआईआर दर्ज कराने की बात है तो मैंने सिर्फ सवाल पूछा था. मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूं. सरकार की पूरी कोशिश है कि कम से कम टेस्ट हो ताकि कोरोना के मामले कम दिखाकर सरकार की छवि बनाई जा सके. आपका नाम भले हो जाएगा लेकिन लोग तो मर रहे हैं न.’’

पूर्व आईएएस सूर्या प्रताप सिंह

सिंह आगे हैरान करने वाला आंकड़ा बताते हैं, हालांकि इस आंकड़े को हम किसी स्वतंत्र स्रोत से पुष्टि नहीं कर सके हैं. वे बताते हैं, ‘‘मुझे लगता है कि यूपी में 15 से 20 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हैं. उनको खांसी है, जुखाम है, गला खराब है, लेकिन टेस्ट नहीं हो रहा उनका. लेकिन आप देखें तो उत्तर प्रदेश में लोगों की मौत की संख्या में इजाफा हुआ है. उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन साढ़े चार हज़ार लोगों की मौत होती है जो अब बढ़कर साढ़े छह हज़ार से आठ हज़ार के बीच हो गई होगी. सरकार संख्या दे नहीं रहे है. इसलिए मैंने ये मुद्दा उठाया था.’’

क्या कहता है प्रशासन

आगरा के जिलाधिकारी प्रभु नरायण सिंह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए वकील के लगाए आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं, “हम भारत सरकार और आईसीएमआर के बताये नियमों के तहत जांच कर रहे हैं. आज से नहीं शुरू से ही आगरा बाकी जिलों के तुलना में ज्यादा जांच कर रहा है. किसी कोरोना मरीज के संपर्क में जो आता है हम उसका टेस्ट करते हैं. रैंडम टेस्टिंग भी हम कर रहे हैं. किसी को टेस्ट करने से मना नहीं किया गया. दो बूथ हमने बनाया है जहां कोई भी जाकर टेस्ट करा सकता है. चार एम्बुलेंस हमने लगा रखा है. हम लगातार काम कर रहे हैं. अब किसको क्या कहना है वो जाने. आजकल हर कोई विशेषज्ञ है.’’

जिलाधिकारी आगे कहते है,‘‘अभी तक कोर्ट से हमें कोई नोटिस नहीं मिला. अगर कोर्ट हमसे सवाल पूछता है तो हम उसे जवाब देंगे.जहां तक टेस्टिंग की बात है. अब जांच आगरा में ही हो रहा है. सिर्फ आगरा के ही नहीं बाकी आसपास के जिला मथुरा, फिरोजाबाद और हाथरस के भी टेस्ट यहीं हो रहे हैं.’’

वकील अरुण कुमार दीक्षित

वकील अरुण कुमार दीक्षित ने बताया था कि 15 जून तक जिन 64 लोगों की मौत हुई उसमें से 37 का कोरोना रिजल्ट उनकी मौत के बाद आया. इसको लेकर जिलाधिकारी कहते हैं, ‘‘अब तो टेस्ट का नतीजा 24 घंटे के अंदर आ जाता है लेकिन पहले 72 घंटे तक लग जाते थे. ऐसे में तीन दिनों तक शव को रखना सही नहीं रहता है. हम शव को एहतियात के साथ और तमाम सुरक्षा के बाद परिवार को सौंप देते हैं. अगर किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो उसके परिवार के लोगों को क्वारंटीन के पीछे यह कारण नहीं की उस मृतक का शव दिया गया. दरअसल परिवार के लोग उस शख्स के संपर्क में आए होंगे. इसीलिए लोगों को क्वारंटाइन किया जाता है.’’

प्रदेश में कम टेस्ट के आरोप समेत बाकी कई अन्य सवाल हमने प्रदेश के मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी को भेजा है. ख़बर लिखे जाने तक.

बता दें कि 17 जून तक देश में कुल कोरोना मरीजों का आकंडा 354065 पहुंच गया है. बीते 24 घंटों में कोरोना वायरस से एक दिन में अब तक सबसे अधिक 2003 की मौत हुई है. जबकि अभी के मौत के आकंडों की बात करे तो कुल 11903 लोगों की मौत अभी तक हुई है.

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