फतेहपुर जिले में पत्रकार पानी में उतरे. जिलाधिकारी ने कहा-भ्रामक खबर फैलाने के कारण दर्ज हुआ मामला.
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार सत्ता में आने के बाद से पत्रकारों पर ‘सरकार की छवि खराब करने के नाम’ पर मुकदमे दर्ज करने की एक नई विधा खोज ली गई है. पत्रकारों के उत्पीड़न के ऐसे कई मामले अब तक सामने आ चुके हैं जिनमें अधिकारियों ने एक ही आधार, जिसे बहाना कहना ठीक होगा, का इस्तेमाल किया है. इसकी शब्दावली कुछ यूं है- ‘भ्रामक ख़बरें फैलाना अथवा सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करना.’
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के जिला पत्रकार एसोसिएशन प्रमुख अजय भदौरिया के खिलाफ प्रशासन ने बीती 13 मई को एफआईआर दर्ज करा दिया. स्थानीय पत्रकारों ने प्रशासन से एफआईआर वापस लेने की मांग की, लेकिन जब प्रशासन अपने पर अड़ा रहा तो पत्रकार इसके विरोध में जल सत्याग्रह करने उतर गए.
स्थानीय पत्रकारों ने 30 मई यानी हिंदी पत्रकारिता दिवस को ‘काले दिवस’ के रूप में मनाकर भी अपना विरोध दर्ज कराया था. लेकिन फतेहपुर का जिला प्रशासन इस पर भी नहीं माना तो रविवार को दिनभर जिले भर के पत्रकार अलग-अलग जगहों पर गंगा और यमुना नदी में उतरकर सरकार के खिलाफ नारे लगाए और अपना विरोध दर्ज कराया.
एक ट्वीट को लेकर एफआईआर
54 वर्षीय अजय भदौरिया बीते 30 सालों से पत्रकारिता कर रहे हैं. वे फतेहपुर जिला पत्रकार एसोसिएशन के बीते 20 सालों से अध्यक्ष रहे हैं.
भदौरिया पर राजस्व निरीक्षक पद पर तैनात भालचंद्र नाम के सरकारी कर्मचारी ने भारतीय दंड संहिता ( आईपीसी ) की धारा 188, 269, 270, 120-B, 385, 505 (2) और महामारी अधिनियम 1897 के तहत मामला दर्ज कराया है.
यह एफआईआर अजय भदौरिया द्वारा लिखी गई किसी ख़बर पर नहीं बल्कि उनके द्वारा किए गए एक ट्वीट के आधार पर किया गया है. एफआईआर में लिखा गया है कि अजय भदौरिया ने ट्विटर पर एक फर्जी खबर चला दिया कि फतेहपुर में कम्यूनिटी किचन बंद हो गया है. जबकि कम्यूनिटी किचन कभी बंद नहीं हुआ और उससे लगातार सुबह-शाम भोजन की सप्लाई दी जा रही है. अजय भदौरिया द्वारा फैलाई गई इस झूठी ख़बर से आज क्वारंटीन सेंटरों के लोगों ने जल्दी-जल्दी खाना पाने के लिए एक-दूसरे से धक्का मुक्की करने लगे जिससे अफरा तफरी और भगदड़ मच गई एंव महामारी फैलने की संभावना प्रबल हो गई.
एफआईआर में दूसरा आरोप भदौरिया पर लगाया गया कि ये एक संगठित गिरोह बनाकर अवैध वसूली करते हैं. जो लोग इन्हें पैसा नहीं देते उनके खिलाफ इसी प्रकार की असत्य खबरें निकालकर शासन की छवि धूमिल करते हैं.
एफआईआर की पड़ताल
एफआईआर में लिखा है कि भदौरिया ने ‘ट्विटर पर एक फर्जी खबर चला दिया कि फतेहपुर में कम्यूनिटी किचन बंद हो गया है, जिसके बाद यहां अफरा-तफरी का माहौल हो गया. लेकिन यह अपने आप में भ्रामक बात है. न्यूजलॉन्ड्री के पास अजय भदौरिया द्वारा 12 मई को किया गया वह ट्वीट है, जिसमें वो कम्यूनिटी सेंटर बंद होने की बात कह रहे हैं. लेकिन उनके ट्वीट का सदर तहसील के कम्यूनिटी किचन से कुछ लेना देना नहीं था.
अपने ट्वीट में उन्होंने एक बुजुर्ग दंपति का वीडियो साझा करते हुए लिखा है- ‘‘नेत्रहीन वृद्ध दंपति आदर्श गांव रामपुर के हैं. इनको खाने के लिए भोजन नहीं है. कभी मांग कर खाते हैं, कभी खाली पेट सो जाते हैं. कई बार उच्च अधिकारियों, जिम्मेदरों को अवगत कराया गया परन्तु विजयीपुर में चलने वाले कम्यूनिटी किचन से एक भी खुराक भोजन इन्हें नसीब नहीं हुआ.’’
भदौरिया द्वारा साझा किए गए वीडियो में बुजुर्ग दंपति बदहाल नजर आ रहे हैं. वे अपनी कई परेशानियों का जिक्र स्थानीय बोली में करते दिखते हैं.
भदौरिया पर एफआईआर दर्ज कराने वाले सदर तहसील स्थित कम्यूनिटी किचन के प्रमुख भालचंद्र को हमने इस बाबत उनका पक्ष जानने के लिए फोन पर संपर्क किया तो वे साफ़ साफ़ जवाब देने से बचते नज़र आए. वे कहते हैं, ‘‘जिस जगह पर लोग क्वारंटाइन थे वहां पर हंगामा हुआ था.’’
लेकिन जब हमने पूछा कि पत्रकार भदौरिया ने ट्वीट विजयीपुर के कम्यूनिटी किचन को लेकर किया था ना की आप जहां के निरीक्षक थे वहां का. फिर आपको एफआईआर दर्ज कराने की ज़रूरत क्यों पड़ी. उस वीडियो और पोस्ट में ऐसा कुछ था भी नहीं जिससे कोई खाने के लिए परेशान हो जाए. इस पर वे कहते हैं, ‘‘अधिकारियों ने ऊपर से कहा की एफआईआर दर्ज कराओ तो मैंने करा दिया.’’
एफआईआर में लिखा कि अजय भदौरिया गैंग बनाकर पैसे की वसूली करते हैं. इसको लेकर भालचंद्र कहते हैं, ‘‘उन्होंने मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं किया है. आप तो समझते हैं कि मैं एक छोटा कर्मचारी हूं. जो शासन का आदेश होता है उसे मानना मेरी मज़बूरी है.’’
एफआईआर की कमियों और भालचंद्र के बयान से साफ़ हो जाता है कि एफआईआर शासन की छवि धूमिल करने के लिए बल्कि बिगड़ी छवि को बचाने के लिए किया गया है. एफआईआर दर्ज कराने वाले भालचंद्र इस पूरे मामले में एक माध्यम भर हैं.
जिलाधिकारी की भूमिका
अजय भदौरिया का भी मानना है कि इस पूरे मामले के पीछे जिलाधिकारी संजीव सिंह ही हैं.
भदौरिया जल सत्याग्रह के दौरान नदी में खड़े होकर जिलाधिकारी के खिलाफ ही कार्रवाई की मांग करते हुए कहते हैं, ‘‘फतेहपुर के जिलाधिकारी के तानाशाह रवैये के खिलाफ हो रहा है. जिलाधिकारी संजीव सिंह ने सच्चाईयां उजागर होने पर पत्रकारों के खिलाफ फर्जी मुकदमे दर्ज कराए हैं. कोविड 19 महामारी के दौर में हमारे साथी एक योद्धा के रूप में काम कर रहे थे तब जिलाधिकारी ने कई पत्रकारों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया है. हम आज प्रदर्शन कर रहे हैं और ये लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक संजीव सिंह का यहां से तबादला नहीं हो जाता है.’’
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए भदौरिया कहते हैं, ‘‘मेरा ट्वीट जब वायरल हो गया तो लखनऊ से शासन ने जिलाधिकारी से सवाल पूछा था. जवाब में उन्होंने मुझे गलत बता दिया, तब शासन ने कहा कि अगर वो गलत है तो उसपर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? फिर जिलाधिकारी ने यह फर्जी एफआईआर दर्ज कराया है. मेरी छवि खराब करने के लिए गैंग बनाकर पैसे वसूली करने की बात लिखी गई है. अगर गैंग बनाकर कुछ करता तो आज एक भी मामला दर्ज नहीं होता.’’
भदौरिया आगे बताते हैं कि अपनी नाकामी छुपाने के लिए पत्रकारों को निशाना बनाने की जिलाधिकारी संजीव सिंह की पुरानी आदत है. बीते साल दिसम्बर में यहां की गोशाला में गायों को कुत्ते नोच रहे थे. उस खबर को जब दैनिक भास्कर के जिला ब्यूरो विवेक मिश्र ने लिखा तो उनके खिलाफ मामला दर्ज करा दिया. तब भी शासन के दबाव में ही ऐसा किया गया था.
विवेक मिश्रा की रिपोर्ट जिसपर दर्ज हुआ मामला
विवेक मिश्रा न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, ‘‘दिसम्बर में मैंने रिपोर्ट किया था कि यहां के गौशाला में गायों को कुत्ते नोचकर खा रहे हैं. खबर में तस्वीर भी थी. जिलाधिकारी ने कई अलग-अलग धाराओं में मेरे खिलाफ मामला दर्ज किया. उसमें यह भी आरोप लगा दिया कि मैंने धार्मिक उन्माद फ़ैलाने की कोशिश किया. गोशालाओं में कुत्ते गायों को नोचकर खा रहे थे ये लिखने से धार्मिक उन्माद कैसे फ़ैल गया है. हालांकि मुझे अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया लेकिन खबरों पर मुकदमे होने लगे तो हर रोज हम पर मुकदमे ही होंगे. हम हर रोज खबरें लिखते हैं. खबरों पर नोटिस दी जाती है.’’
क्या कहते हैं जिलाधिकारी
इस मसले पर हमने फतेहपुर के जिलाधिकारी से भी बातचीत की. जिलाधिकारी संजीव सिंह कहते हैं, “मुझे ऐसे प्रचारित किया जा रहा जैसे मैं मीडिया का उत्पीड़न कर रहा हूं. हकीकत तो यह है कि हमने जांच कराया तो पाया की ये पत्रकार ही नहीं है. जांच जिला सूचना अधिकारी ने एफआईआर करवाया है. दूसरा इनकी ट्वीट की हमने जांच कराई तो वो भ्रामक पाया गया है. इन पर जो मुकदमा लिखा गया उसको लेकर दबाव बनाने के लिए ये लोग जल सत्याग्रह कर रहे हैं.’’
एफआईआर दर्ज कराने वाले अधिकारी के बदलते बयान को लेकर जब हमने जिलाधिकारी से सवाल किया तो वे कहते हैं कि सोशल मीडिया पर जिस तरह से यह साझा हो रहा है वो अधिकारी दबाव में आ गया होगा. हालांकि हमने अपनी जांच में पाया की इन्होंने भ्रामक ट्वीट किए हैं. इनका एक बार का काम नहीं है. अभी 6 जून को मेरे आवास के सामने एक प्रवासी मजदूर तड़पता रहा जबकि हकीकत यह है कि मैंने उस मजदूर को रहने और खाने का इंतजाम कराया है. आज भी वो यहीं है. मेरे गेट पर सीसीटीवी लगा हुआ है. उसमें सबकुछ रिकॉर्ड है. आखिर क्यों भ्रामक ट्वीट कर रहे हैं इसका जवाब वे खुद ही दे सकते हैं.’’
हालांकि स्थानीय पत्रकारों से हमने इस बारे में जानकारी जुटाई तो जिलाधिकारी का बयान गलत साबित हुआ. पत्रकार बताते हैं कि कोई शख्स बिना पत्रकार रहे किसी जिला के पत्रकार एसोसिएशन का बीस साल से अध्यक्ष कैसे रह सकता है. जिलाधिकारी शासन की नाकामी छुपा रहे हैं. विजयीपुर का किचन अब भी बंद है.