नव उदारवादी भारत के पाताल लोक के हिंसा और बर्बरता की कहानी

रोजमर्रा का जीवन इस हद तक अमानवीय हो चुका है कि हर तरह की बर्बरता, जातीय उत्पीड़न, चाइल्ड एब्यूज, साम्प्रदायिक हिंसा, घरेलू हिंसा, ट्रांसजेंडरों या फिर मुस्लिमों के प्रति घृणा, सब नार्मल लगने लगा है.

WrittenBy:आनंद प्रधान
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

इन दिनों अमेज़न प्राइम सीरीज की वेब सिरीज़- “पाताल लोक” की काफी चर्चा है. आमतौर पर मेनस्ट्रीम अख़बारों-चैनलों के ज्यादातर समीक्षकों ने इस क्राइम थ्रिलर वेब सीरीज को हाथों-हाथ लिया है. इस वेब सीरीज का नायक वैसे तो दिल्ली पुलिस का एक सब-इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी (जयदीप अहलावत) है लेकिन इसके कथित खलनायक भी मुम्बईया सिनेमा के टिपिकल विलेन नहीं हैं बल्कि उन्हें एंटी हीरो (प्रति नायक) की तरह उभारा गया है.

इस वेब सीरीज में कई एंटी हीरो हैं. यहां तक कि खुद हीरो यानी सब-इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी भी एंटी हीरो के शेड्स लिए हुए है. ये ऐसे एंटी हीरो हैं जो भारतीय जाति व्यवस्था, सामन्ती और सामाजिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक घृणा और हिंसा, बाल यौन हिंसा, आर्थिक गैर-बराबरी और सबसे बढ़कर इस सबके संरक्षक सत्ता, राजनीति, कारपोरेट, पुलिस, प्रशासन, ठेकेदार, अपराधियों के गठजोड़ की पैदाइश है. उससे विद्रोह करते हुए भी आखिरकार उसके पुर्जे की तरह काम करने लगते हैं और उसी की खातिर जीते या मरते हैं.

इस वेब सीरीज की सधी हुई कहानी पिछले एक-डेढ़ दशक के उस भारत या इंडिया की कहानी है जहां नव उदारवादी आर्थिक सुधारों के बाद चमकते-दमकते बड़े मेट्रो शहरों के अन्दर एक नए तरह का वर्ग विभाजन पैदा हुआ है जो एक मायने में नया नहीं भी है क्योंकि वह पौराणिक है. सब इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी के मुताबिक, इस विभाजन के बारे में शास्त्रों में लिखा है लेकिन उसने खुद व्हाट्सऐप पर पढ़ा है. यह पौराणिक वर्ग विभाजन तीन लोकों यानी स्वर्ग लोक, धरती लोक और पाताल लोक में बंटा हुआ है जो आज के लोकतान्त्रिक भारत में भी न सिर्फ ज्यों का त्यों बना हुआ है बल्कि उनके बीच की दूरी और बढ़ गई है.

याद रहे कि इस पौराणिक दुनिया और उसके वर्ग विभाजन में भी तीनों लोकों के बीच तनाव, नफ़रत, लालसाओं, षड्यंत्रों, दुरभिसंधियों, संघर्षों और युद्धों की अनेक कहानियां हैं जिनका वर्णन शास्त्रों में है और आपमें से बहुतों ने उस “महान, पवित्र और प्राचीन विश्वगुरु भारतवर्ष” के किस्से व्हाट्सऐप फारवर्ड में पढ़े होंगे. लेकिन यह वेब सीरीज कलियुग के भारत लोक में मौजूद तीन लोकों की कहानी है जो एक दूसरे से दूर भी हैं और करीब भी और जिनमें जाति और धर्म के तनाव है, सामाजिक नफरत और इंसानों की चाहतें हैं, षड्यंत्र और दुरभिसंधियां हैं, अपराधी सरगना और कान्ट्रेक्ट किलर्स हैं, हत्याएं हैं और इन सबके बीच फंसे हुए या फंसाए गए कई किरदार हैं.

यह वेब सीरीज दिखाती है कि यह स्वर्ग लोक ब्रह्मांड के किसी और ग्रह पर नहीं बल्कि इसी “जम्बू द्वीपे, भरत खंडे, आर्यावर्त देशांतर्गते” मौजूद और फल-फूल रही लुटियन दिल्ली है. इस स्वर्ग लोक के वासी हैं- आधुनिक देवता यानी प्रभु वर्ग (इलीट) जिनमें शामिल हैं- दृश्य-अदृश्य नेता-मंत्री, कारपोरेट, नौकरशाह, पुलिस और सीबीआई जैसी एजेंसियों के टाप आफिसर्स, और तो और न्यूज चैनल के स्टार एंकर भी इसी स्वर्गलोक के वासी हैं. फिर धरती लोक है जो लुटियन दिल्ली से बाहर का इलाका है और जिसमें हाथीराम, उनकी पत्नी (गुल पनाग), बेटा (बोधिसत्व शर्मा) और उन जैसे बहुतेरे आदमी रहते हैं जो खुद को स्वर्गलोक और पाताल लोक के बीच फंसा हुआ पाते हैं और जिनकी लालसाओं में स्वर्गलोक के सपने बनते-बिगड़ते रहते हैं.

और फिर है- पाताल लोक यानी दिल्ली का जमनापार इलाका और उसके स्लम्स जहां खुद सब-इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी के मुताबिक, कीड़े रहते हैं. वैसे हैं तो ये आदमी लेकिन उनका जीवन कीड़ों की तरह है. जिस तरह के हालात में वे रहते हैं, उसमें उनका जिन्दा रहना भी चमत्कार से कम नहीं है. लेकिन वे जिन्दा रहना सीख लेते हैं. सीरीज के छठे एपिसोड में हाथीराम से एक किरदार कहता है- “इंसान के बच्चे की जान बहुत सख्त होती है साहब, कीड़े के जैसे. लोग मरने के लिए छोड़ जाते हैं पर वो जिन्दा रहना सीख ही लेता है. वेब सीरीज की पूरी कहानी इसी पाताल लोक और उसके किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है.”

यह वह पाताल लोक है जिसमें रहने वाले लोग स्वर्गलोक के लिए कोई मायने नहीं रखते हैं, सिवाय हर तरह के “डर्टी जाब” कराने के. वे स्वर्गलोक के देवताओं या प्रभु वर्ग के लिए अदृश्य लोग हैं जिनकी हैसियत कीड़े-मकोड़ों से ज्यादा नहीं है. पाताल लोक, स्वर्ग लोक का कूड़ा घर है- हर तरह की गन्दगी में बजबजाता हुआ. इस पाताल लोक की कूड़े, भूख, अपमान, छोटे-बड़े अपराधों और सेक्सयूल एब्यूज के अमानवीय माहौल में कीड़े की तरह रह रहे लोगों के लिए इस लोक से निकल पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सा हो गया है.

हालांकि कई बार वे कोशिश करते हैं, कभी-कभार सपने भी देखते हैं लेकिन स्वर्ग लोक का चक्रव्यूह ऐसा है कि वह पाताल लोक से किसी को निकलने नहीं देता और पाताल लोक के वासी धीरे-धीरे इसे ही अपना नसीब मानने लगते हैं. वहां से मुक्ति सिर्फ मौत में ही मिलती है जो इस लोक में बहुत सस्ती है. यहां जिंदगी और रोजमर्रा के जीवन का इस हद तक अमानवीयकरण हो चुका है कि हर तरह की बर्बरता, चाहे वह बलात्कार हो या जातीय उत्पीड़न, चाइल्ड एब्यूज, साम्प्रदायिक हिंसा, घरेलू हिंसा, ट्रांसजेंडरों या फिर मुस्लिमों के प्रति घृणा, सब सामान्य या नार्मल लगने लगती है.

आश्चर्य नहीं कि इस वेब सीरीज में एक किरदार हथौड़ा त्यागी (अभिषेक बनर्जी) बर्बरता का पर्याय सा बन जाता है और जो हत्याएं हथौड़े से मारकर करता है. वह हथौड़े से एक-दो नहीं, 47 हत्याएं कर चुका है. उसकी घूरती लाल आंखों में एक गुस्सा और ठंडापन दोनों दिखाई देते हैं. उसके लिए डर, यातना, दर्द और लहू का कोई मतलब नहीं है. मतलब है तो सिर्फ मास्टरजी यानी दुनलिया डकैत की स्वामी-भक्ति, जिसने उसे शरण देकर कभी उसकी जान बचाई थी.

लेकिन इस आधुनिक पाताल लोक के तिलिस्म को समझने के लिए एक और पौराणिक कथा की ओर लौटना होगा जो आपमें से बहुतों ने व्हाट्सऐप पर पढ़ी होगी. शास्त्रों में लिखा है कि एक बार देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया जिससे अथाह धन-दौलत, सम्पदा और यहां तक कि अमृत भी निकला लेकिन स्वर्ग लोक वासियों ने धोखे से सब हड़प लिया. जो असुर तीनों लोकों के स्वामी थे, उनके हिस्से पाताल लोक ही रह गया.

असल में, इस वेब सीरीज में दिखाया गया आधुनिक पाताल लोक वह भारत या इंडिया है जिसे एक बार फिर पिछले तीन दशकों के नव उदारवादी आर्थिक सुधारों के समुद्र मंथन से निकले अथाह धन-दौलत और समृद्धि से वंचित कर दिया गया है. स्वर्ग लोक ने इस पाताल लोक को एक बार फिर ठेंगा दिखा दिया है. इन आर्थिक सुधारों ने पाताल लोक यानी जमनापार में आकांक्षाएं, लालसाएं और सपने तो बहुत पैदा कर दिए हैं लेकिन वहां से निकलने का रास्ता बंद है. स्वर्गलोक तक पहुंचने के रास्ते में स्वर्गलोक की पुलिस, सीबीआई, न्यूज चैनल और उसके स्टार एंकर, नेता और कारपोरेट्स सब रास्ता रोके खड़े हैं.

लेकिन ऐसा नहीं है कि आज के स्वर्गलोक को पाताल लोक से कोई लेना-देना नहीं है. सच यह है कि स्वर्गलोक का काम पाताल लोक के बिना नहीं चल सकता है. जैसे स्वर्गलोक के नेता बाजपेयी का काम पाताल लोक के दुनलिया उर्फ़ मास्टरजी और ग्वाला गूजर के बिना नहीं चल सकता है. वैसे ही स्वर्गलोक के न्यूज चैनल और उसके पत्रकारों का काम पाताल लोक के पत्रकारों के बिना नहीं चल सकता है.

लेकिन स्वर्गलोक को पता है कि पाताल लोक का कैसे इस्तेमाल करना है! मार्क्स जिसे आदिम संचय यानी “प्रिमिटिव एक्यूमुलेशन” कहते हैं, आज भी उसके लिए स्वर्ग लोक और उसके देवता पाताल लोक और उसके भांति-भांति के वासियों का इस्तेमाल करते हैं जिनमें खुद को जिन्दा रखने के जद्दोजहद में लगे कीड़े-मकोड़ों जैसे आम लोगों से लेकर लंपट, छुटभैय्ये अपराधियों तक और ग्वाला गूजर से लेकर दुनलिया उर्फ़ मास्टरजी तक सब शामिल हैं. स्वर्ग लोक के देवता उनका इस्तेमाल श्रम और सम्पदा की लूट और वोट को मैनेज करने जैसे अनेकों “डर्टी जाब्स” के लिए करते हैं जिसमें उन्हें प्यादों की तरह जरूरत पड़ने पर कुर्बान भी कर दिया जाता है.

जैसाकि खुद मार्क्स ने लिखा है कि प्रिमिटिव एक्यूमुलेशन यानी आदिम संचय कोई सुखद या काव्यात्मक प्रक्रिया नहीं है. हालांकि मार्क्स पूंजीवाद के पूर्व के दौर की बात कर रहे थे लेकिन इस नव उदारवादी पूंजीवाद और ‘उदार लोकतंत्र’ के दौर में भी आदिम संचय न सिर्फ जारी है बल्कि उसके साथ मध्ययुगीन हिंसा, बर्बरता और उत्पीड़न भी जारी है. इस आदिम संचय की प्रक्रिया में स्वाभाविक तौर पर बेहिसाब हिंसा, सामाजिक बर्बरता, आर्थिक शोषण, बलात्कार, चाइल्ड एब्यूज और कुल मिलाकर उस हिंसा और बर्बरता को नार्मल बनाना शामिल है.

यह वेब सीरीज एक क्राइम थ्रिलर होते हुए भी बिना बहुत लाउड हुए दिखाती है कि अपराध, हिंसा और बर्बरता की जड़ें किस तरह से मौजूदा सत्ता संरचना और राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था से जुड़ी हुई हैं. यह भी कि नव उदारवादी आर्थिक सुधारों के तहत लाइसेंस-परमिट-कोटा राज खत्म होने के कथित दावों के बावजूद किस तरह अब भी आदिम संचय के माध्यम से लूट-खसोट जारी है. पाताल लोक के कीड़े-मकोड़ों की तरह जीनेवाले लोगों के पास अपनी चमड़ी तक बेच देने के अलावा कुछ नहीं बचा है.

माफ़ कीजियेगा, यह फिल्म या वेब सीरीज की टिपिकल समीक्षा नहीं है. इसलिए यहां इस वेब सीरिज की कहानी, उसके स्टोरी राइटर या उसके कलाकारों, सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक और निर्देशकों के शानदार काम की चर्चा नहीं करूंगा. लेकिन “पाताल लोक” की टीम की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि कुछ संकोचों और सीमाओं के बावजूद “पाताल लोक” आज के इंडिया के स्वर्ग लोक के तहखाने में बजबजाते भारत यानी पाताल लोक की कहानी है. समकालीन भारत के कई सामाजिक-आर्थिक अंतर्विरोधों, तनावों, लालसाओं, षड्यंत्रों, हिंसा और बर्बरताओं की झलक और उसकी कहानियां यहां दिख जाती है.

यह एक कड़वी सच्चाई है कि स्वर्ग लोक ही नहीं हम-सब धरती लोक के वासी भी इस पाताल लोक से आंखें चुराते हैं. उसके होने तक से इनकार करते हैं जबकि यह पाताल लोक और इसे नरक लोक में बदलने का काम स्वर्ग लोक ने ही किया है. हैरानी की बात नहीं है कि पाताल लोक और इसके वासियों को अदृश्य रखने के लिए कभी स्वर्ग लोक को जानेवाली सड़कों पर ऊंची दीवारें खड़ी करवाई जाती हैं, कभी उनकी मौजूदगी को पाकिस्तान और आईएसआई का षड्यंत्र बता दिया जाता है और आमतौर पर उन्हें कीड़े-मकोड़ों की तरह ट्रीट किया जाता है.

इसके बावजूद पाताल लोक दिख ही जाता है. पिछले दिनों लाकडाउन के दौरान धरती लोक के अपार्टमेंटों और फ्लैटों में शवासन और प्राणायाम से मानसिक संतुलन बनाए रखने और आध्यात्मिक खुराक के लिए रामायण-महाभारत देखते खाए-पिए अघाए मध्यवर्ग और स्वर्ग लोक के वासियों को पाताल लोक ने एक बार फिर चौंका दिया.

सबने हैरत से देखा कि झोला-झक्कड़ और बाल-बच्चों को कंधे पर उठाये लाखों-लाख मजदूरों की भीड़ हर शहर के पाताल लोक से निकलकर स्वर्ग लोक के हाइवेज पर पैदल ही उन गांवों की ओर चल पड़ी है जो एक और पाताल लोक है. कहते हैं कि ये लाखों-लाख मजदूर इन्फार्मल या अनआर्गनाइजड सेक्टर में काम करते हैं. क्या अब भी यह दोहराने की जरूरत है कि यह इन्फार्मल और अनआर्गनाइज क्षेत्र ही समकालीन भारत एक सबसे बड़ा पाताल लोक है?

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
Also see
article image अर्नब गोस्वामी की पत्रकारिता बोले तो भारत का रेडियो रवांडा
article imageबहुत बुरे समय में बहुत कुछ कहने का हुनर है पाताललोक
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like