कोविड 19: दुनिया भर में टीके के शोध की लगी होड़, कब तक मिलेगी राहत?

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 20 मार्च तक 42 टीके प्रीक्लिनिकल स्टेज में और दो टीके क्लिनिकल ट्रायल के आरंभिक चरण में थे.

WrittenBy:विभा वार्ष्णेय
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

दुनिया की अधिकांश आबादी कोरोना वायरस महामारी और इसके प्रसार को रोकने के लिए लगे सार्वजनिक प्रतिबंधों से प्रभावित है. लेकिन इस महामारी ने कई कंपनियों को दवाइयों, टीके और डायग्नोस्टिक्स का परीक्षण करने और बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मार्च 2020 तक सार्स-सीओ वी -2 के 42 टीके प्रीक्लिनिकल स्टेज में थे और दो टीके क्लीनिकल ट्रायल्स के प्रथम चरण में पहुंच चुके थे .

इसी तरह, फाउंडेशन फॉर इनोवेटिव न्यू डायग्नॉस्टिक्स द्वारा डायग्नोस्टिक्स के पाइपलाइन के अनुसार 38 में से कुल 36 इममयूनोएसेज़ पर परीक्षण चल रहे हैं.

नए उपचारों का समर्थन करने के लिए यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा चलाए गए “कोरोनोवायरस उपचार त्वरण कार्यक्रम” के डेटा से पता चला कि 10 चिकित्सीय एजेंटों पर सक्रिय परीक्षण चालू थे और अन्य 15 चिकित्सीय एजेंट योजना के चरण में थे.

इन प्रयासों का मुख्य उद्देश्य धनोपार्जन है. वॉल स्ट्रीट पहले से ही इन उत्पादों को बनाने में लगी बायोटेक कंपनियों पर नजर रखे हुए है. नैसडैक के अनुसार, कैलिफोर्निया स्थित एक कंपनी डायनावैक्स टेक्नोलॉजीज कॉर्प, जो कम खुराक पर टीकों को प्रभावी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सहायक उपकरण बनाती है, इस उद्यम में निवेश करेगी.

यह कंपनी क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के साथ काम कर रही है और ओस्लो स्थित गैर-लाभकारी निधि, कोएलिशन फॉर एपिडेमिक प्रीपेयर्डनेस इनोवेशन्स (सीईपीआई) ने इस प्रोजेक्ट को फंड किया है .

सीईपीआई ने कोविड-19 वैक्सीन की खोज में 29.2 मिलियन डॉलर के आसपास का निवेश किया है. यह संगठन इस टीके के कम से कम तीन उम्मीदवारों को फंड करने का लक्ष्य रखता है. इनके अनुसार वैश्विक इस्तेमाल के लिए इस टीके को विकसित कर पाने के लिए 2 बिलियन डॉलर का निवेश अनुमानित है.

वर्तमान में दवाइयों टीकों और डायग्नोस्टिक्स पर अधिकांश शोध छोटे बायोटेक कंपनियों और विश्वविद्यालयों द्वारा किए जा रहे हैं, जो अपने नतीजों को द बिग फोर- ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन, सनोफी, मर्क अथवा फाइजर को बेचेंगे. वैक्सीन बाजार का 85 प्रतिशत तक का हिस्सा इन चार कंपनियों के नियंत्रण में है.

इन छोटी कंपनियों में से कई टीकों को विकसित करने के लिए नई तकनीकों का उपयोग कर रही हैं.

उदाहरण के लिए, बोस्टन स्थित मॉडर्न नामक कंपनी संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग के अंदर आने वाले नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (एनआईएआईडी ) के साथ मिलकर एक राइबोन्यूक्लिक एसिड आधारित वैक्सीन पर काम कर रही है जो वायरस पर स्पाइक प्रोटीन के लिए कोड करता है.

कंपनी पहले ही वैक्सीन की खुराक को फेज वन सेफ्टी ट्रायल के लिए एनआईएआईडी वैक्सीन अनुसंधान केंद्र भेज चुकी है. ट्रायल के अप्रैल में शुरू होने की संभावना है. हालांकि टीके के जल्द बनकर तैयार हो जाने की संभावना नहीं है. एनआईएआईडी के निदेशक एंथोनी फाउची ने हाल ही में अमेरिकी सीनेटरों को बताया कि टीका बनाने में कम से कम डेढ़ साल का समय लगेगा.

इसके बाद, यह देखने की आवश्यकता होगी कि क्या ये टीके पर्याप्त मात्रा में निर्मित किए जा सकते हैं और क्या वे सस्ती कीमत पर उपलब्ध हैं.

वैक्सीन गठबंधन जीएवीआई के एक प्रवक्ता ने बताया कि संगठन ने निम्न-आय वाले देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों की तैयारियों को मजबूत करने में मदद करने के लिए कदम उठाए हैं. इसके तहत, जीएवीआई के समर्थन के लिए योग्यता रखने वाले देश उन्हें दिए गए अनुदान का दस प्रतिशत तक का हिस्सा सार्स -सीओ वी -2 द्वारा उत्पन्न खतरे से निबटने में लगा सकेंगे .

जीएवीआई 2000 में बनाया गया एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य नए और कम इस्तेमाल में लाए जा रहे टीकों को दुनिया के सबसे गरीब देशों में रहने वाले बच्चों तक पहुंचाना है .

जीएवीआई ने कहा “जीएवीआई आने वाले दिनों में इस महामारी की निगरानी करना जारी रखेगा ताकि यह समझा जा सके कि कैसे सबसे कमजोर लोगों को सस्ते टीके देने में गठबंधन की विशेषज्ञता का लाभ उठाया जाए.”

वायरस के खिलाफ बीसीजी वैक्सीन की प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए दुनिया भर में कम से कम चार क्लीनिकल ट्रायल किए जा रहे हैं. देखने में आया है कि यह वैक्सीन किसी व्यक्ति में उपस्थित उसकी जन्मजात प्रतिरक्षा को प्रशिक्षित करता है.

जब किसी व्यक्ति पर किसी कीटाणु द्वारा हमला किया जाता है, तो शरीर की जन्मजात प्रतिरक्षा प्रणाली हरकत में आ जाती है. मोनोसाइट्स, जो एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका हैं, संक्रमित ऊतक में प्रवेश कर मैक्रोफेज में परिवर्तित हो जाते हैं और रक्षा की पहली पंक्ति का काम करते हैं .

नीदरलैंड के रैडबड विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता मिहाई नेतिया ने दिखाया है कि जन्मजात प्रतिरक्षा प्रणाली में एक तरह की स्मृति होती है. प्रतिरक्षा सेल में स्थित आनुवंशिक सामग्री किसी संक्रमण के बाद कई महीनों तक उहाई अलर्ट की स्थिति में रहती है और नए संक्रमण से सुरक्षा प्रदान कर सकती है.

इसके अलावा, सिवियर एक्यूट रेसपिरेट्री सिंड्रोम (सार्स ) और मिडल ईस्ट रेसपिरेट्री सिंड्रोम (एमईआरएस ) के खिलाफ इस्तेमाल में लाए जाने वाले मौजूदा प्रयोगात्मक टीकों के भी काम करने की संभावना है.

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने हाल ही में ChAdOx1 nCoV-19 वैक्सीन का परीक्षण मनुष्यों पर करने की अनुमति प्राप्त की है. यह वैक्सीन एक एडेनोवायरस वैक्सीन वेक्टर और कोविड-19 स्पाइक प्रोटीन पर आधारित है और इसी समूह द्वारा एमईआरएस वैक्सीन पर किए गए काम का एक विस्तार है.

इसी तरह, मैरीलैंड स्थित नोवावैक्स इंडस्ट्रीज कॉर्प सार्स और एमईआरएस के खिलाफ टीकों पर काम कर रही है और उम्मीद है कि जल्द ही पशु परीक्षण पूरा कर लेगी. यही नहीं 2020 के वसंत के अंत तक मानव परीक्षणों के पहले चरण की शुरुआत भी हो जाएगी.

सार्स-सीओ वी-2 के खिलाफ मौजूदा दवाओं का भी तेजी से परीक्षण किया जा रहा है. एंटीमलेरिअल दवा क्लोरोक्विन का उपयोग एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन के साथ संयोजन में उनके सुरक्षात्मक प्रभाव के लिए किया जा रहा है.

एक शोध-आधारित बायोफार्मास्युटिकल कंपनी गिलीड साइंसेज ने एक अन्य दवा, रेमडेसिविर, इबोला वायरस के खिलाफ 10 साल पहले विकसित और पेटेंट की थी. हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि यह दवा एमईआरएस कोरोनोवायरस के खिलाफ उपयोगी है जिससे कोविड -19 पर भी इसका असर दिखने की संभावना बनती है.

गिलियड चीन सरकार के सहयोग से चीन में इसी दवा के क्लीनिकल परीक्षण कर रहा है. इन परीक्षणों के शुरुआती परिणाम अप्रैल 2020 में आने की उम्मीद है.

जिन अन्य दवाओं के साथ प्रयोग किए जा रहे हैं वे हैं एंटीवायरल लोपिनाविर और रीटॉनाविर (एचआईवी / एड्स के रोगियों के लिए कालेट्रा के रूप में बेचा जाता है) और ओसेल्टामिविर जैसी इन्फ्लूएंजा दवाएं. हाल ही के एक अध्ययन से पता चला है कि कैमोस्टेट मेसिलेट, जो जापान में पैनक्रीयाटाइटीस के लिए अनुमोदित एक दवा है, कोशिकाओं को सार्स-सीओ वी -2 संक्रमण से रोकती है. यह एक अन्य ऑफ-लेबल दवा विकल्प हो सकता है.

इन दवाइयों में से अधिकांश पेटेंटमुक्त हैं और उनके उत्पादन की क्षमता भी हमारे पास है.

यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा के डिपार्टमेंट ऑफ मॉलिक्यूलर मेडिसिन के अंतर्गत आने वाले फ्लोरिडा सेंटर ऑफ एक्सलन्स फॉर ड्रग डिस्कवरी एंड इनोवेशन में कार्यरत प्रोफेसर जेम्स लेही कहते हैं कि चूंकि इन यौगिकों के लिए पदार्थ की संरचना काफी लंबे समय से सार्वजनिक है, अतः किसी भी नए प्रयोग के लिए की गई मांग आसानी से पेटेंट की प्रक्रिया को बाइपास कर सकती है .

लेही का मानना है कि इन जीवनघातक दवाओं के उद्योग को भी बाजार ठीक उसी तरह प्रभावित करेगा जैसे उसका प्रभाव जीवनशैली जनित बीमारियों जैसे ईडी अथवा सराइअसिस पर पड़ता है. उन्होंने आगे कहा, “एक अनुमोदित उपचार योजना लागू होने के बाद, कई संगठन दवाओं का निर्माण शुरू कर देंगे. पुराने लोगों के लिए यह प्रक्रिया सरल होगी. नए वालों के लिए, मुझे उम्मीद है कि भारत जैसे देश सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए पेटेंट अमान्य करने की अनुमति देंगे.”

प्रस्तावित दवाओं और टीकों को ठीक से जांचने की आवश्यकता है. कुछ समय पहले एक प्रायोगिक सार्स वैक्सीन से जानवरों में बीमारी के लक्षण घटने के बजाय बढ़ गए थे. हालांकि बाद में इस समस्या को खत्म करने के लिए इसे संशोधित किया गया था, लेकिन यह वही वैक्सीन थी जिसे सार्स-सीओ वी -2 के लिए फिर से तैयार किया गया है.

अतः सख्त सुरक्षा परीक्षणों की आवश्यकता है. स्कूल ऑफ बेसिक मेडिकल साइंसेज, फुडन यूनिवर्सिटी, शंघाई में वायरोलॉजी के प्रोफेसर शिबा जियांग के अनुसार, सुरक्षा जोखिमों को पूरी तरह से समझे बिना टीकों और दवाओं का परीक्षण मौजूदा महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई को बाधित कर सकता है.

वह लिखते हैं, “वायरस की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा उठाए गए क्वारंटाइन जैसे कदमों का समर्थन जनता तभी करती है जब सरकार के स्वास्थ्य संबंधी परामर्श पर उसका भरोसा हो. ऐसे जोखिम वाले टीकों के इस्तेमाल में हड़बड़ी करने से इस भरोसे पर बुरा असर पड़ेगा और उससे बेहतर टीकों के विकास की प्रक्रिया बाधित होगी. हालांकि अभी हड़बड़ी करने की सच में आवश्यकता है लेकिन हमें फिर भी “दो बार नापो और एक बार काटो” के सिद्धांत पर भरोसा रखना चाहिए.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
Also see
article imageउत्तराखंड पलायन: सिर्फ़ हानि नहीं, सुनहरा मौक़ा भी लेकर आया है कोरोना संकट!
article imageकोरोना का सबक: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती ही एकमात्र विकल्प
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like