द कारवां की रिपोर्ट पर आईसीएमआर और पीआईबी के खंडन ने विवाद को सुलझाने की बजाय और गहरा दिया है.
15 अप्रैल को द कारवां पत्रिका के वेब पेज पर छपी एक रिपोर्ट का आईसीएमआर यानि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रीसर्च और पीआईबी द्वारा गलत बताने का विवाद बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ कारवां न सिर्फ अपनी रिपोर्ट के साथ डटकर खड़ा है, बल्कि उसने अगले ही दिन आईसीएमआर और पीआईबी को एक पत्र लिखकर उससे इस विवाद के संबंध में 11 सवालों का जवाब मांगा है. आईसीएमआर की तरफ से इसका कोई जवाब अभी तक नहीं मिला है. द कारवां ने इस विवाद से पीछे न हटते हुए अब अपनी रिपोर्ट को हिंदी में भी छापने का फैसला किया है.
इस विवाद की शुरुआत द कारवां की स्वास्थ्य मामलों की संवाददाता विद्या कृष्णन की अंग्रेजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट से हुई. इस रिपोर्ट का शीर्षक था, "मोदी प्रशासन ने महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय आईसीएमआर द्वारा गठित कोविड-19 टास्क फोर्स से विचार-विमर्श तक नहीं किया".
यह रिपोर्ट प्रकाशित होने के कुछ ही समय बाद आईसीएमआर की आधिकारिक वेबसाइट से एक ट्वीट किया गया. इसमें लिखा था- “एक मीडिया रिपोर्ट में कोविड-19 टास्क फोर्स के बारे में गलत दावा किया गया है. सच्चाई ये है कि टास्क फोर्स से पिछले महीने 14 बार बात की गई है और सभी निर्णयों में टास्क फोर्स के सदस्य मौजूद थे. कृपया इन अटकलों को नजरअंदाज करें.”
इस मामले में विवाद का एक और पहलु तब जुड़ा जब आईसीएमआर के ट्वीट को पीआईबी यानि पत्र सूचना कार्यालय ने कारवां की उस रिपोर्ट को फोटो के साथ अपने फैक्ट चेकिंग अकाउंट से रीट्वीट कर दिया. पीआईबी यहां पर आईसीएमआर से दो क़दम आगे बढ़ाते हुए यह भी लिखा कि- "नकली और आधारहीन मीडिया रिपोर्ट को फॉलो न करें."
गौरतलब है कि पीआईबीभारत सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों पहल और उपलब्धियों के बारे में समाचार-पत्रों तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को सूचना देने वाली प्रमुख आधिकारिक संस्था है.
कारवां ने जो ख़बर छापी थी उसके मुताबिक सरकार ने कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए बनाई गई विशेषज्ञों की टास्क फोर्स से बिना पूछे और मीटिंग किए ही लॉकडाउन बढ़ाने सहित कई बड़े निर्णय लिए गए. लेकिन आईसीएमआर का दावा है कि ये कदम उनसे पूछकर और उनकी सिफ़ारिशों के आधार पर ही उठाए गए हैं.
पूरी दुनिया कोविड-19 की चपेट में है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में अब तक कोरोना वायरससे लगभग डेढ़ लाख लोगों की मौतें हो चुकी हैं जबकि 24 लाख से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हैं.
भारत में भी कोरोना वायरस का कहर दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए भारत की कोविड-19 नीति को तैयार करने वाली नोडल संस्था आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव की देखरेख में18 मार्च को कोविड-19 विशेषज्ञों की 21 सदस्यों वालीएक उच्च स्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया गया था. इसमें एम्स के डॉक्टर, आईसीएमआर के सदस्य, वर्तमान व पूर्व सरकारी अधिकारी शामिल हैं.
नीति आयोग के सदस्य विनोद पॉल को इस टास्क फोर्स का अध्यक्ष बनाया गया था. इसका उद्देश्य सरकार को कोविड-19 की रोकथाम करने संबंधी सुझाव और रीसर्च आदि करना है.
लेकिन कारवां की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 टास्क फोर्स के कुछ सदस्यों ने नाम और पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर ये बातें उन्हें बताई थीं कि कोविड-19 से संबन्धित लिए गए बड़े निर्णयों में उनसे कोई राय नहीं ली गई है.
कारवां के मुताबिक, टास्क फोर्स के चार सदस्यों ने यह भी बताया कि देश में लॉकडाउन को बढ़ाने पर उनसे एक बार भी बात नहीं की गई. गौरतलब है कि सरकार ने देश में लॉकडाउन को 14 अप्रैल से बढ़ाकर 3 मई तक करने का फैसला किया था.
टास्क फोर्स के एक सदस्य ने यह भी बताया कि 4 अप्रैल को आईसीएमआर ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि टास्क फोर्स से गहन विचार के बाद प्राइवेट लैब को कोविड-19 का टेस्ट करने की इजाजत दी गई है. जबकि ऐसा कोई विचार-विमर्श हमसे नहीं किया गया. सदस्य ने यह भी कहा कि 14 अप्रैल तक, टास्क फोर्स को किसी भी मीटिंग का समय नहीं दिया गया था. एक अन्य सदस्य ने भी नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बैठकों के कार्य विवरण टास्क फोर्स के सदस्यों को नहीं केवल कैबिनेट सचिव को भेजे जाते थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, टास्क फोर्स के गठन के 3 दिन बाद 21 मार्च को स्वास्थ्य मंत्रालय ने आईसीएमआर द्वारा जारी दिशानिर्देशों को अधिसूचित किया ताकि निजी क्लीनिकों को कोरोनवायरस के परीक्षण की अनुमति दी जा सके, और इसके लिए 4,500 रुपये शुल्क तय किया गया. इस फैसले को शशांक देव नाम के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. उस पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि सरकारी और प्राइवेट दोनों जगह कोरोना का टेस्ट फ्री में किया जाय. लेकिन दो दिन बाद दिल्ली के एक डॉक्टर ने इस आदेश में संशोधन करने के लिए कोर्ट में यह कहकर आवेदन दिया कि प्राइवेट लैब को सामान्य लोगों से 4500 रुपये की अनुमति दी जाए और सिर्फ गरीबोंका टेस्ट फ्री में किया जाए.
आईसीएमआर भी इस बदलाव के समर्थन की अपील करने सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. आईसीएमआर के असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल आर लक्ष्मी नारायण नेआईसीएमआर की ओर से एक हलफनामा दायर कर कहा, “भारत सरकार ने इस महामारी द्वारा उत्पन्न वैश्विक चुनौती से प्रभावी और वैज्ञानिक तरीके से निपटने, अधिकतम जान बचाने के उद्देश्य से और विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर निर्णय लेने के लिए कोविड-19 पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया है. संसाधन असीमित नहीं हैं. मैं बताना चाहता हूं कि परीक्षण की प्रक्रिया में निजी प्रयोगशालाओं को शामिल करने का निर्णय सरकार ने सभी पहलुओं पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिया है.”
लेकिन कारवां की रिपोर्ट कहती है कि टास्क फोर्स के सदस्यों ने लक्ष्मीनारायण के दावों का यह कहते हुए खंडन किया कि केंद्र ने निजी परीक्षण के बारे में टास्क फोर्स के साथ कोई विचार-विमर्श किया था.
रिपोर्ट यह भी कहती है कि सरकार ने निजी प्रयोगशालाओं को अनुमति देने की प्रक्रिया में प्राइवेट सेक्टर के लोगों को भी शामिल किया लेकिन इसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट में नहीं किया. यह बात तब सामने आई जब भारत की प्रमुख बायोफार्मास्युटिकल कंपनी बायोकॉन लिमिटेड की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक किरण मजूमदारशॉ ने एक इंटरव्यू में बताया कि प्राइवेट लैब को परीक्षण की अनुमति देने में उनकी राय भी शामिल थी.
रिपोर्ट का दावा है कि रिपोर्टर ने स्टोरी प्रकाशित होने से पहले टास्क फोर्स के चेयरमैन विनोद पॉल और आईसीएमआर के महानिदेशक से इस संबंध में कई ई-मेल भेजकर जवाब मांगा था, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया.
लेकिन जैसे ही कारवांकी रिपोर्ट प्रकाशित हुई, आईसीएमआर की तरफ से उसका खंडन आ गया. रिपोर्ट को गलत और फर्जी करार देते हुए यह भी कहा दावा किया गया कि कितनी बार सरकार और टास्क फोर्स के बीच बैठक और बातचीत हुई.
यहां एक स्वाभाविक सा सवाल पैदा होता है कि जब उनके आईसीएमआर के टास्क फोर्स से बातचीत होती थी तो उसने कारवां के सवालों का जवाब स्टोरी प्रकाशित होने से पहले क्यों नहीं दिया, अब ट्वीट के जरिए उसका खंडन करने का क्या औचित्य है?
आईसीएमआर महानिदेशक को कई मेल किए गए लेकिन उनका कोई जवाब नही दिया गया. इस पर आईसीएमआर दिल्ली के पॉलिसी प्लानिंग एंड कम्युनिकेशन के हेड रजनीकांत श्रीवास्तव कहते हैं, “ये हमको तो पता नहीं है. ये तो वही बता पाएंगे, लेकिन अभी सबसे बड़ा काम ये है कि हमें देश में जो काम करना है, वह करें, इतने लोग हैं एक अरब की आबादी है कोई भी आदमी आकर बोलेगा तो हर एक का जवाब देने का टाइम नहीं होता है. एक जनरल जवाब दे दिया गया है कि जो कमेटी बनी हुई है जो रेगुलरली मिलती है उस पर जो डिस्कशन होते हैं, वो सरकार को बता दिए जाते हैं.”
हमने कारवां पत्रिका के पॉलिटिकल एडिटर हरतोष सिंह बल से बात की. उन्होंने कहा, "हमारी रिपोर्ट बिल्कुल सही है, और हम इसे हिंदी में भी छापेंगे. आईसीएमआर और पीआईबी के खंडन के बाद हमने एक रिजॉइन्डर भी प्रकाशित किया है, जिसमें 11 सवालों का उनसे जवाब मांगा है. लेकिन न तो पहले भेजे गए सवालों का उन्होंने कोई जवाब दिया, न ही इन सवालों का कोई जवाब अभी तक आया."
पीआईबी के फैक्ट चैक पर हरतोष बल कहते हैं, "ये लोग पब्लिक ऑफिस में बैठकर सरकार का प्रोपगैंडा कर रहे हैं. इन्हें फैक्ट चैक करना तो आता नहीं. आईसीएमआर ने एक ट्वीट कर दिया और ये उसको रिट्वीट करके फैक्ट चेक बता रहे हैं. ये सरकारी प्रोपगैंडा है."
आईसीएमआर ने किस आधार पर इस ख़बर को गलत बताया और कारवां के रिजॉइन्डर पर उनकी क्या राय है. इसके जवाब में रजनीकांत ने कहा, “उन्होंने खबर छापी थी कि कमेटी के मेम्बर मिलते नही हैं. उसमें हमने बता दिया कि कमेटी मेम्बर मिलते हैं और जो बात होती है भारत सरकार को सूचित कर दी जाती है. उन्होंने लिखा था कि पीएम टास्क फ़ोर्स से सलाह नहीं लेते. जबकि ये बात गलत है, टास्क फ़ोर्स कमेटी रेगुलर मिल रही है, उनकी जो भी सिफारिशें होती हैं, वे रेगुलरली प्राइम मिनिस्टर को दी जाती हैं.”
रिपोर्ट में लिखा है कि कुछ कमेटी के सदस्यों ने ही ये बात बताई है कि उनकी बात नहीं सुनी जाती, इस सवाल के जवाब में रजनीकांत कहते हैं, “अब ये तो पता नहीं कि वे मेम्बर कौन लोग हैं, आप उन्हीं मेम्बरों से बात करो, वही बता सकते हैं, हमें तो पता नहीं है इस बारे में.”
कारवां ने जो रिजॉइन्डर भेजा है, उसका क्या उत्तर भेजा गया. इस पर रजनीकांत कहते हैं, “हम यही सब करते रहेंगे तो काम कब करेंगे, आप बताओ? देश में इतने मीडिया वाले हैं, हर एक के सवाल रहते हैं, अगर हम सबके जवाब देंगे तो काम कब करेंगे. मिनिस्ट्री में हर शाम एक प्रेस ब्रीफिंग होती है, अगर आपको ज्यादा डिटेल चाहिए तो आप वहां सवाल पूछ सकते हैं. हम तो टास्क फ़ोर्स के अनुसार ही अभी तक काम कर रहे हैं. इसी से देश में कोविड को कंट्रोल कर पाए हैं. वरना दुनिया में जो हालत है आपको पता ही है.”
रिपोर्ट के मुताबिक, प्राइवेट लैब को टेस्ट की अनुमति देने से पहले आपने प्राइवेट सेक्टर के लोगों (किरण मजुमदार शॉ) की सलाह भी ली थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी नहीं दी गई? इस पर रजनीकांत कहते हैं, “हर बात को हर किसी से डिस्कस करने की जरूरत नही होती, जिसे रिप्लाई चाहिए उसे जवाब दे दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी आईसीएमआर की सुनवाई कर ली है. जो आयुष्मान भारत योजना के अंदर आते हैं उनका फ्री इलाज होगा, जो नहीं आते हैं उनको प्राइवेट लैब में चार्ज देना होगा, बस.”
पीआईबी ने आईसीएमआर के ट्वीट पर जो रीट्वीट और फैक्टचेक का दावा किया था, उसके बारे में पीआईबी का क्या मत है. इस बारे में हमने पीआईबी के प्रधान महानिदेशक कुलदीप सिंह धतवालिया से बातचीत कर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही, लेकिन उन्होंने हमारे फोन का कोई जवाब नहीं दिया.