एनएल चर्चा 108: कोरोना वायरस, रंजन गोगोई और सर्विलांस स्टेट

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

एनएल चर्चा

न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के 108वें एपिसोड में हमने दुनिया भर में तेजी से पैर पसार रहे कोरोना वायरस, गौमूत्र और गोबर से वायरस का इलाज, मध्यप्रदेश के बदलते राजनीतिक घटनाक्रम, पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की राज्यसभा सदस्यता और साथ में सभी नागरिकों के कॉल डाटा रिकॉर्ड से पैदा हुए विवाद पर चर्चा की.

इस सप्ताह चर्चा मेंपूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में जाने और मध्यप्रदेश मामले पर सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई के मद्देनजर हमारे साथ सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और राजनीतिक विश्लेषक देशरतन निगम, न्यूज़लॉन्ड्री से स्तंभकार आनंद वर्धन और न्यूज़लॉन्ड्री परिवार के नए साथी शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

रंजन गोगोई द्वारा राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार करने के मुद्दे से चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल ने कहा, “सीजेआई के पद से रिटायर होने के सिर्फ चार महीने बाद ही राज्यसभा का पद स्वीकार करने के लिए अब रंजन गोगोई के अपनी ही जमात के लोग मसलन जस्टिस जोसेफ कुरियन, जस्टिस लोकुर, जस्टिस चेलमेश्वर ने इसकी फैसले की आलोचना की है.” देशरतन निगम से सवाल पूछते हुए अतुल कहते है- “आप भी वकील है और आप उन लोगों को करीब से देखते रहे है, आखिर उनके ही जमात के लोग इस फैसले के खिलाफ क्यों हैं, इसको आप कैसे देखते है और राज्यसभा सदस्यता ग्रहण कर गोगोई ने ठीक किया या नहीं?”

देश रतन निगम ने कहा, “आप जिस जमात के लोगों की बात कर रहे है उनमें सिर्फ 5 प्रतिशत लोग ही उनके खिलाफ बोल रहे हैं, बाकी 95 प्रतिशत लोगों ने या तो तारीफ की है या तटस्थ हैं.” निगम कहते है कि इस मामले में दो पहलू है, पहला अगर कोई मुझे मनोनीत कर दे इसमें मेरी गलती नहीं है और दूसरा जब मनोनीत किया गया तो कानून के दायरे में रह कर किया गया और इसमें कोई कानून का उल्लंघन नहीं हुआ. हमारे पास ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहां पूर्व न्यायाधीशों को मनोनीत किया जा चुका है. कई लोग इस मामले को गिव एंड टेक के रूप में देख रहे हैं. ऐसा करते समय हमें ध्यान रखना चाहिए की राममंदिर मामले की सुनवाई 5 जजों की बेंच ने की थी और फैसला सर्वसम्मति से हुआ था. लिहाजा क्विड-प्रो-को का आरोप लगाना सही नहीं है.

अतुल ने चर्चा में आनंद को शामिल करते हुए पूछा, “लंबे समय से मांग की जा रही है कि पोस्ट रिटायरमेंट जॉब में कूलिंग पीरियड होना चाहिए, लेकिन इस मामले में तो वह बात भी नहीं है क्योंकि रंजन गोगोई एक पूरे इंस्टीट्यूशन के हेड रहे हैं.” आंनद कहते हैं, “अठारहवीं शताब्दी से संवैधानिक संस्थाओं में एक स्पिरिट है सेपरेशन ऑफ पावर का, इसलिए उसे एक सीमा के बाद नियमबंध नहीं किया जा सकता क्योंकि वह स्पिरिट है. जो संवैधानिक संरक्षणवाद है उसमें उस स्पिरिट की रक्षा होनी चाहिए, इस दृष्टि से मुझे यह नामिनेशन सही नहीं लगा. हालांकि यह भी एक प्रकार का दवाब ही है कि अगर सरकार का पक्ष किसी केस में मजबूत है या किसी पार्टी का जो की सरकार की विचारधारा के नजदीक है, अगर आप उनके पक्ष में फैसला कर देते है तो आपको किसी एक खास कैंप का मान लिया जाएगा, इस प्रकार का दवाब किसी जज पर देना सही नहीं है.”

यहां पर शार्दूल ने चर्चा में हस्तक्षेप किया, “यह कोई अर्थमैटिक नहीं है कि मानइस - माइनस प्लस हो जाएंगे. राजनीति अनुभूति का विषय है. 27 मार्च, 2019 को रंजन गोगोई ने खुद कहा रिटायरमेंट के बाद जो जज पोस्टिंग लेते हैं वो एक धब्बा है डेमोक्रेसी पर और आज शपथ लेने के बाद उन्होनें कहा कि न्यायपालिक और विधायिका को देश निर्माण में एक साथ काम करना चाहिए. अगर आप नैतिकता की बात कर रहे हैं तो कैसे एक ही व्यक्ति एक साल के अंदर दो विपरीत नैतिकताओं वाली बात कर सकता है. दूसरी बात कोई भी कितना ही महान क्यों ना हो लेकिन वह व्यक्ति व्यवस्था को दरकिनार नहीं कर सकता. वह उस व्यवस्था के जरिए ही शीर्ष तक पहुंचा है. तो सवाल उठता है कि कैसे कोई व्यवस्था को चोट पहुंचा सकता है, यह तो अंहकार वाली बात है. कई पूर्व सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ने भी इस बात पर चिंता जताई है. यह अच्छी बात नहीं है.”

इसी तरह बाकी के विषयों पर भी चर्चा को विस्तार से सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुने और न्यूजलॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें. गर्व से कहें- 'मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.'

पत्रकारों की राय, क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.

देश रतन निगम

अतुल मिश्रा की किताब - ऑक्सीजन मैनिफेस्टो

पदमजीत सहरावत का गाना कोरोना वायरस पर

आनंद वर्धन

अल्बर्ट कामू का उपन्यास– द प्लेग

विनोद कुमार शुक्ल का उपन्यास- नौकर की कमीज़

शार्दूल कात्यायन

डब्लूएचओ की वेबसाइट

फिल्म - कंटेजियन

अतुल चौरसिया

जॉर्ज ऑरवेल का उपन्यास – 1984

जस्टिस रंजन गोगोई का हिंदी प्रोफाइल – कारवां

Also see
article imageकोरोना वायरस: वैश्विक महामारी बनने का संदेह
article imageजजों पर सरकारी कृपा बरसती रही है पर जो नेहरु ने किया वो कोई और नहीं कर सका

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like