24 जनवरी को 154 लोगों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा था और लगभग 20 दिन बाद 17 फरवरी को भी 154 लोगों ने ही राष्ट्रपति को पत्र लिखा. लेकिन ये लोग हैं कौन?
सोमवार, 17 फरवरी को द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, हिंदुस्तान हिंदी, नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, आज तक यानि कि लगभग सभी मुख्यधारा के मीडिया संस्थानों ने पीटीआई-भाषा के हवाले से एक ख़बर प्रकाशित किया कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), एनपीआर और एनआरसी के समर्थन में देश के 154 प्रतिष्ठित नागरिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ख़त लिखा है. इसमें लिखा गया है कि संशोधित सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ झूठा और स्वार्थी अभियान कुछ लोगों द्वारा चलाया जा रहा है.
मीडिया संस्थानों में छपी इस रिपोर्ट में जिन 154 लोग का जिक्र किया गया है उनका परिचय हाईकोर्ट के 11 पूर्व जस्टिस, 24 रिटायर्ड आईएएस अधिकारी, भारतीय विदेश सेवा के 11 पूर्व अफसर, भारतीय पुलिस सेवा के 16 सेवानिवृत अधिकारी, 18 पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल बताया गया. पत्र लिखने वाले किसी भी प्रतिष्ठित नागरिक का नाम रिपोर्ट में नहीं बताया गया.
दरअसल सोमवार देर शाम 7 बजकर 24 मिनट पर पीटीआई-भाषा ने यह खबर अपने वायर सेवा पर डाला जिसके बाद तमाम मीडिया संस्थानों ने उस पर रिपोर्ट किया है.
भाषा ने ‘सीएए, एनपीआर व एनआरसी के समर्थन में 154 प्रतिष्ठित नागरिकों ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र’ हेडिंग के साथ अपनी कॉपी में पत्र लिखने वाले किसी शख्स का नाम नहीं लिखा है.
भाषा की रिपोर्ट में बताया गया है कि पत्र लिखने वाले लोगों को लगता है कि सीएए और एनआरसी के विरोध से पैदा की जा रही गड़बड़ी के बाहरी आयाम भी हैं. भाषा की कॉपी में पत्र लिखने वाले का जो बयान छपा है वो “उन्होंने कहा” के जरिए लिखी गई है. ये ‘उन्होंने’ कौन हैं, ये पूरी स्टोरी में स्पष्ट नहीं है.
इस रिपोर्ट को पढ़कर यह स्वाभाविक सा सवाल पैदा होता है कि अगर 154 लोगों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा है तो उसमें से कुछ लोगों का नाम तो रिपोर्ट में होना चाहिए. ये कोई समान्य नागरिकों द्वारा लिखा गया पत्र नहीं है बल्कि दावे के अनुसार पूर्व जस्टिस, रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अफसर हैं.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने सोमवार को ही इस पत्र के आधार पर तीन ख़बरें प्रकाशित किया. दो बार टेक्स्ट स्टोरी के रूप में और एक बार वीडियो के रूप में.
पहली बार टीओआई ने पीटीआई के हवाले से रात 8 बजकर 13 मिनट पर ख़बर प्रकाशित किया. उसके बाद रात 11 बजकर 14 मिनट पर दूसरी ख़बर प्रकाशित हुई जिसमें भारती जैन की बाइलाइन थी. बाइलाइन बाद में हटा दिया गया. दोनों रिपोर्ट लगभग एक ही हैं. बस कुछ शब्दों का हेरफेर है.
तीसरा एक वीडियो है जो टाइम्स ऑफ़ इंडिया के टेलीविजन चैनल टाइम्स नाउ का है. एक मिनट 40 मिनट के वीडियो में इस ख़बर को ब्रेकिंग न्यूज़ के तौर पर दिखाया गया. एंकर हिना इस पर अपने रिपोर्टर मोहित शर्मा से बात करती हैं. मामले की जानकारी देते हुए मोहित कई बातें बताते हैं, लेकिन पत्र लिखने वाले किसी “प्रतिष्ठित नागरिक” का नाम नहीं लेते हैं. यह वीडियो शाम 6 बजकर 40 मिनट का है.
इससे पहले भी 154 लोग ही लिख चुके हैं पत्र
अपनी जांच में हमने पाया कि 24 जनवरी, 2020 यानि करीब 20 दिन पहले भी पीटीआई-भाषा ने ऐसी ही एक ख़बर जारी की थी. इसके आधार पर उस समय भी तमाम मीडिया संस्थानों ने अपने यहां रिपोर्ट प्रकाशित की थी. उस ख़बर का लब्बोलुआब आश्चर्यजनक ढंग से 17 फरवरी को प्रकाशित हुई ख़बर की हुबहू कॉपी है. उस समय भी राष्ट्रपति को 154 लोगों ने ही सीएए और एनआरसी के समर्थन में पत्र लिखा था. उस दिन राष्ट्रपति ऑफिस द्वारा एक ट्वीट के जरिए इस ख़बर की पुष्टि भी की गई थी.
24 जनवरी को राष्ट्रपति से मुलाकात करने वाले इन प्रतिष्ठित नागरिकों ने सीएए और एनआरसी को लेकर हो रहे प्रदर्शन पर कड़ी कार्रवाई की मांग की थी. हालांकि तब जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी उसमें राष्ट्रपति को ज्ञापन देने वाले लोगों का नाम और उनका बयान भी शामिल था.
24 जनवरी को राष्ट्रपति को जो ज्ञापन दिया गया था उसका नेतृत्व केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के पूर्व अध्यक्ष और सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रमोद कोहली ने किया था. इस शिष्टमंडल ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात कर सीएए और एनआरसी को लेकर पैदा हुए हालात पर चिंता जताई थी.
समाचार एजेंसी एएनआई ने भी 24 जनवरी को ट्वीट करके इसकी जानकारी दी थी.
20 दिन के अंतराल पर पीटीआई-वायर के द्वारा प्रकाशित दो एक सी स्टोरी का सच क्या है? सवाल उठता है कि 24 जनवरी को भी 154 प्रतिष्ठित लोगों ने ही पत्र लिखे थे और 17 फरवरी को भी 154 लोगों ने ही पत्र लिखा है? 24 जनवरी को जो पत्र लिखा गया था उसमें भी 11 पूर्व न्यायाधीश थे और 17 फरवरी को जो पत्र लिखा गया उसमें भी 11 पूर्व न्यायाधीश ही हैं.
जनसत्ता वेबसाइट ने 24 जनवरी, 2020 को इस बाबात जो खबर छापा था उसका शीर्षक था- ‘नागरिकता विवाद : CAA विवाद पर 154 पूर्व जजों, IPS अफसरों ने लिखी राष्ट्रपति को चिट्ठी, कहा-उपद्रवियों पर फौरन हो एक्शन’.
इसके बाद जब 17 फरवरी को जनसत्ता ने दोबारा से वही ख़बर प्रकाशित किया. इस बार शीर्षक है- ‘‘सीएए के समर्थन में 154 प्रतिष्ठित नागरिकों ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र.’’
जनसत्ता ने अपनी पहली रिपोर्ट में पत्र लिखने वालों के बारे जानकारी देते हुए बताया कि इस चिट्टी में हस्ताक्षर करने वालों में 11 पूर्व न्यायाधीश, तीनों प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी, पूर्व राजनयिक समेत 72 हस्तियां शामिल हैं. इनके अलावा रक्षा क्षेत्र से जुड़े 56 शीर्ष अधिकारी, एकेडमिक स्कॉलर, चिकित्सा से जुड़े अधिकारी हैं.
17 फरवरी की रिपोर्ट में बताया गया कि पत्र लिखने वाले नागरिकों में विभिन्न न्यायलयों के 11 पूर्व न्यायाधीश, 24 सेवानिवृत्त आईएसएस अधिकारी, भारतीय विदेश सेवा के 11 पूर्व अफसर, भारतीय पुलिस सेवा के 16 सेवानिवृत्त अधिकारी और 18 पूर्व लेफ्टीनेंट जनरल शामिल है.
154 लोगों द्वारा राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र को दोनों बार न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने भी प्रकाशित किया. दोनों दफा पीटीआई के हवाले से ही ख़बर लिखी गई है. दोनों ख़बरों के शीर्षक में सिर्फ कुछ शब्दों का अंतर है.
न्यूजलॉन्ड्री ने इस बाबत सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रमोद कोहली से बात की. उन्होंने बताया, ‘‘हमने 24 जनवरी को ही राष्ट्रपति से मुलाकात की थी और सीएए-एनआरसी के प्रदर्शन को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी. उसके बाद हमने कोई पत्र नहीं लिखा और न ही कोई मुलाकात की है.’’
तो फिर 17 फरवरी को पीटीआई-भाषा ने किस आधार पर अपने यहां यह ख़बर प्रकाशित की.
अमित मालवीय का ट्वीट
खोजबीन के दौरान हमने पाया कि भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने 17 फरवरी की शाम 5 बजकर 15 मिनट इसी से संबंधित एक ट्वीट किया था.
अपने ट्वीट में मालवीय राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र की प्रति को साझा करते हुए लिखते हैं, ‘‘पूर्व न्यायाधीशों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों, राजनयिकों, सशस्त्र बलों के पूर्व अधिकारियों सहित 154 प्रतिष्ठित नागरिक सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरोध की आड़ में निहित स्वार्थों द्वारा बनाए गए शातिर माहौल के खिलाफ याचिका पर हस्ताक्षर किए है.’’
मालवीय द्वारा ट्विटर पर जारी पत्र सादे कागज पर टाइप किया हुआ है. इस पर न तो किसी का नाम है, न ही किसी का हस्ताक्षर है, ना ही किसी का बयान है.
तो क्या मालवीय के ट्वीट के आधार पर पीटीआई ने छापी ख़बर?
यह सवाल उठता है कि क्या अमित मालवीय के ट्वीट को आधार बना कर पीटीआई-भाषा ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की. समय का मिलान करें तो मालवीय का ट्वीट शाम 5 बजकर 15 मिनट पर आया, वहीं पीटीआई-भाषा द्वारा यह ख़बर 7 बजकर 24 मिनट पर जारी किया है. यानि 2 घंटे 9 मिनट के बाद.
इस संदेह को और बढ़ाता है टाइम्स नाउ पर एयर हुई रिपोर्ट. इसमें एंकर हिना और रिपोर्टर जब इस विषय पर बात कर रहे थे तब लूप में अमित मालवीय का वही ट्वीट लगातार चल रहा था. तो क्या सबने अमित मालवीय के ट्वीट के आधार पर रिपोर्ट किया?
क्या अमित मालवीय के ट्वीट के आधार पर पीटीआई-भाषा ने एक ऐसी खबर चलाई जिसका सिर-पैर ही नदारद था. इस गुत्थी को सिर्फ और सिर्फ पीटीआई-भाषा के शीर्ष संपादकीय जिम्मेदार लोग ही सुलझा सकते थे. लिहाजा हमने ‘भाषा’ के एडिटर निर्मल पाठक से संपर्क किया. उन्होंने इसको लेकर कोई साफ़ जवाब नहीं दिया. वे कहते हैं, ‘‘24 जनवरी वाली ख़बर तो भाषा के रिपोर्टर ने किया था लेकिन 17 फरवरी वाली ख़बर हमने पीटीआई के रिपोर्टर के हवाले से किया है. वो गृह मंत्रालय कवर करते हैं. हमने सिर्फ उसका अनुवाद प्रकाशित किया था.’’ उन्होंने कहा कि इस बारे में पीटीआई के कार्यकारी संपादक सुधाकर नायर ज्यादा जानकारी दे सकते हैं.
हमने सुधाकर नायर से संपर्क किया. उन्होंने कहा कि आप मुझे अपना सवाल मेल पर भेज दीजिए. मैं वहीं पर जवाब दे पाऊंगा. हमने उन्हें इससे जुड़ा तीन सवाल मेल किया है. लेकिन उनका कोई जवाब अभी तक नहीं आया. अगर उनका जवाब आता है तो हम उसे ख़बर में जोड़ देंगे.
एक और वाजिब सवाल था कि जो पत्र अमित मालवीय ने ट्विटर पर शेयर किया है उसका आधार क्या है? यह पत्र किसने लिखा, कब लिखा. इसका जवाब जानने के लिए हमने अमित मालवीय से संपर्क करने की कोशिश की. उन्होंने फोन नहीं उठाया. उनको हमने मैसेज भी किया है लेकिन उसका कोई जवाब नहीं मिला.
अभी तक की पड़ताल और हालात में ऐसा संकेत मिलता है कि पीटीआई-भाषा ने अमित मालवीय के ट्वीट पर भरोसा किया. ऐसे में कुछ सवाल पीटीआई और भाषा के संपादकों के ऊपर उठते हैं कि उन्होंने इतने बड़े और प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में किस तरह के एडिटोरियल फिल्टर्स लगा रखे हैं.
विशेषकर यह देखते हुए कि अमित मालवीय का फर्जी खबरें फैलाने, फर्जी वीडियो फैलाने का लंबा इतिहास रहा है. दिल्ली चुनावों के दौरान भी सबने देखा कि किस तरह से उन्होंने एक फर्जी वीडियो अपने ट्विटर हैंडल से फैलाया जिसमें कहा गया कि शाहीन बाग में औरतें 500 रुपए लेकर धरना देने आती हैं.