छत्तीसगढ़ पुलिस ने पुणे पुलिस को जो जवाब भेजा था उससे साफ हो गया कि कोरेगांव भीमा मामले में गिरफ्तार किये गए लोगों का सुकमा में किसी भी नक्सली गतिविधि में हाथ नहीं था.
11 अक्टूबर, 2018 का दिन था, पुणे पुलिस के तत्कालीन जॉइंट कमिश्नर शिवाजी बोडके के दफ्तर से बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक विवेकानंद सिन्हा को एक फैक्स प्राप्त होता है. पत्र का विषय था माओवादियों के विषय में जानकारी प्रदान करने हेतु. सन्दर्भ में विश्रामबाग पुलिस थाने में कोरेगांव भीमा - एल्गार परिषद् मामले का हवाला दिया गया था और तकरीबन 13 मुद्दों पर जानकारी मांगी गयी थी, जिसमें से सिवाय एक सवाल के, बाकी सवालों का कोरेगांव-भीमा मामले से किसी भी तरह का कोई सम्बन्ध नहीं था.
पहला सवाल था कि 6 जून, 2018 को कोरेगांव भीमा मामले में गिरफ्तार किये गए लोगों जिनमें सुधीर ढवले, रोना विल्सन, शोमा सेन, सुरेन्द गडलिंग और महेश राउत का नाम शामिल था के खिलाफ बस्तर में कोई अपराध दर्ज है क्या? और अगर है तो पुणे पुलिस को उसकी एफ़आईआर कॉपी मुहैया कराई जाए. इसके बाद दूसरे सवाल में पूछा गया था कि 30 जुलाई, 2017 के पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर नंदिनी सुन्दर के नेतृत्व में बस्तर में कोई फैक्ट फाइंडिंग टीम आयी थी की नहीं. इसके बाद पूछा गया था कि 10 से 27 अगस्त, 2017 के दौरान सुकमा और बीजापुर में कोई फैक्ट फाइंडिंग टीम आयी थी क्या? पत्र में यह भी पूछा गया था कि ज्योति और देवांगना नाम की महिलाओं के नेतृत्व में बस्तर जिले में कोई फैक्ट फाइंडिंग टीम आयी थी या नहीं.
पत्र में आगे सवाल थे कि नार्थ जोनल कमेटी ने किसी शासकीय सेवक का अपहरण किया हो तो उसकी एफआईआर पुणे पुलिस को दी जाए. उसके आगे पूछा था कि 25 सितम्बर 2017 के बाद कांदुलनार, बीजापुर, बासागुड़ा थाने की पुलिस पार्टियों पर एंटी-नक्सल ऑपरेशन के दौरान अगर कोई हमला हुआ है तो उसकी जानकारी प्राप्त दी जाय. उसी तर्ज पर उसूर, पामेड़, एलमगुंडा, केरलापाल, पालचलम की पुलिस पार्टियों पर 19 मार्च, 2017 के बाद अगर नक्सलियों ने हमला किया हो तो उसकी एफआईआर और पंचनामे की नकल पुणे पुलिस को दी जाए. आगे के सवालों में पुणे पुलिस ने छत्तीसगढ़ लीगल ऐड एन्ड बस्तर सॉलिडेरिटी नेटवर्क रायपुर या जगदलपुर नाम के अगर कोई संगठन हो तो उनके बारे में भी जानकारी मांगी थी.
पुणे पुलिस ने आगे के सवालों में लिखा था, "अधिवक्ता आर भल्ला जिनको सुकमा जिले में गिरफ्तार किया गया था, उनके पास से जब्त किए गए साहित्य की जानकारी, एफआईआर और पंचनामे की कॉपी प्राप्त करवाये. इसके अलावा अधिवक्ता आर भल्ला के साथ जो लोग गिरफ्तार किए गए हैं उनके बारे में भी अवगत करायें.”
पुलिस ने 'द कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ पार्टी, पार्टी प्रोग्राम, स्ट्रेटेजी एंड टैक्टिस ऑफ इंडियन रेवॉल्यूशन, होल्ड हाई द ब्राइट रेड बैनर ऑफ एमएलएम एंड पोलिटिकल रेज़ोल्यूशन नाम की किताबों का हवाला देते हुए यह पूछा था कि क्या यह किताबें किसी नक्सल अपराध में ज़ब्त की गई थीं. इसके अलावा पुणे पुलिस ने यह भी पूछा था कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने अगर अर्बन माओवाद के संबंध में कोई अपराध दर्ज किया हो तो वह उसकी एफआईआर उन्हें प्राप्त करवा दे. आखिर में पुणे पुलिस ने भारत और छत्तीसगढ़ में सक्रिय नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी के सदस्यों और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के सदस्यों की सूची भी मांगी थी.
गौरतलब है इसके उत्तर में छत्तीसगढ़ पुलिस ने दो दिन बाद जो जवाब भेजा उससे साफ हो गया था कि कोरेगांव भीमा मामले में 6 जून, 2018 को गिरफ्तार किये गए लोगों का सुकमा में किसी भी तरह की कोई नक्सली गतिविधि में हाथ नही था.
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक द्वारा भेजे गए जवाबी पत्र में लिखा था कि उन पांचों पर सुकमा जिले में कोई भी अपराध दर्ज नही है. इसके अलावा पुणे पुलिस के नंदिनी सुंदर, ज्योति, देवांगना के नेतृत्व में या किसी अन्य फैक्ट फाइंडिंग कमेटी से जुड़े सवालों को लेकर जवाब दिया गया था कि बस्तर रेंज के सुकमा और बीजापुर के इलाकों में ऐसी कोई भी फैक्ट फाइंडिंग कमेटी नही आयी थी. छत्तीसगढ़ लीगल ऐड एन्ड बस्तर सॉलिडेरिटी नेटवर्क रायपुर या जगदलपुर के नाम से कोई भी संगठन संचालित नही होता है. छत्तीसगढ़ पुलिस ने अपने जवाब में यह भी लिखा था कि आर भल्ला नाम के किसी भी अधिवक्ता को गिरफ्तार नही किया गया है.
पुलिस पार्टियों पर नक्सली हमलों और सेंट्रल कमेटी के नक्सलियों की फेहरिस्त और उनकी जानकारी के अलावा पुणे पुलिस द्वारा पूछे गए बाकी सभी सवालों के जवाब ना में थे, जिससे पुलिस द्वारा भेजे गए सवालों की बुनियाद पर सवाल उठता है. गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा भेजी गई नक्सलियों की फेहरिस्त और उनसे जुड़ी जानकारी भी इस मामले की चार्जशीट में शामिल की गई है, बावजूद इसके की इस मामले में गिरफ्तार लोगों के खिलाफ छत्तीसगढ़ में किसी भी तरह का कोई भी आपराधिक मामला नहीं है.
पहाड़ सिंह की एंट्री
जब छत्तीसगढ़ में नक्सली अपराधों के मामलों में, इस मुकदमे में गिरफ्तार 10 लोगों का कोई संबंध पुणे पुलिस को नही मिला, तो पुलिस ने आत्मसमर्पित नक्सल पहाड़ सिंह के बयान के ज़रिए गिरफ्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकीलों का नक्सलियों के साथ संबंध जोड़ने की पहल की.
इनामी नक्सली पहाड़ सिंह, जिनके सिर पर एक समय 47 लाख का इनाम था, ने 23 अगस्त, 2018 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में आत्म समर्पण कर दिया था और इसके ठीक पांच दिन बाद पुणे पुलिस ने सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वरनन गोनज़ाल्वेस, वरवरा राव और गौतम नवलखा को कोरेगांव भीमा मामले में हुई दूसरी दौर की दबिश के दौरान गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद पांचों सामाजिक कार्यकर्ता लगभग एक महीने अपने घर मे नज़रबंद रहे थे, जिसके बाद चारों को गिरफ्तार कर पुणे की यरवदा जेल में डाल दिया गया. फिलहाल सिर्फ गौतम नवलखा ही जेल से बाहर हैं. 6 दिसंबर को महाराष्ट्र हाईकोर्ट में नवलखा के मामले में हुई सुनवाई के बाद उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी गई है.
पहाड़ सिंह का सबसे पहले साक्षात्कार ऑप इंडिया नाम की एक दक्षिणपंथी वेबसाइट ने पुलिस की मौजूदगी में किया था. उन्होंने पहाड़ सिंह से हुई बातचीत के आधार पर लिखा कि गिरफ्तार हुए लोगों में से वो कुछ को जानते हैं और अरुण फरेरा से 2006 में एक डिवीज़न मीटिंग के दौरान उनकी मुलाकात हुई थी. फरेरा उस वक़्त राज्य कमेटी के सदस्य थे. पहाड़ सिंह के साक्षात्कार से जुड़ी ये ख़बर 13 सितंबर 2018 को छपी थी.
अक्टूबर में मिले छत्तीसगढ़ पुलिस के जवाब में जब मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ नक्सली गतिविधियों में शामिल होने के कोई सबूत नही मिले, तब पुलिस ने आत्मसमर्पित नक्सली पहाड़ सिंह को सामने किया.
न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद इस बयान की कॉपी के अनुसार पहाड़ सिंह से पहली बार पुणे पुलिस ने 2 नवंबर, 2018 को बात की थी और उसका जवाब लिखवाया गया. इसके बाद पुणे पुलिस ने 23 दिसंबर को सिंह से एक और जवाब लिखवाया था. इस जवाब में पहाड़ सिंह ने वरवरा राव, अरुण फरेरा, सुधीर ढवले, रोना विल्सन, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबड़े, सुधा भारद्वाज, हर्षाली पोतदार और जेन मिर्डल के नामों का जिक्र किया है.
पुलिस को लिए दिए गए बयान में पहाड़ सिंह ने लिखा है, "मैं आगे पूछने पर बताता हूं कि कॉमरेड वरवरा राव हमारी पार्टी का बड़ा नेता है तथा शहरी तथा जंगल मे कार्यरत संगठन का काम देखते हैं." हमारी पार्टी सम्पूर्ण भारत में सर्वहारा क्रांति लाने की लगातार कोशिश कर रही है तथा उसके लिए शहरी विभाग में काम करने वाले माओवादी नेता जनता को संगठित करने के लिए अलग-अलग सामाजिक, जातीय, किसान तथा बुद्धिजीवी वर्ग, छात्र, मजदूर आदि अलग-अलग नामों से संगठन बनाकर, अपने नाम बदलकर, भूमिगत रहकर काम कर रहे हैं. दूसरा संघटन हथियारों के सहारे जंगल मे रहकर आदिवासी, वनवासियों को संगठित करने का काम कर रहा है तथा सरकार से लड़ने के लिए सशस्त्र सेना तैयार कर रहा है.”
इसी क्रम में पहाड़ सिंह आगे कहते हैं- “इसी क्रम में अरुण फरेरा माओवादी नेता छात्र संगठनों में घुसपैठ करके कैडर तैयार कर जंगलों में भेजते हैं. वरनन गोंजाल्विस को मैंने प्रत्यक्ष तौर पर नहीं देखा है, लेकिन वह बुद्धिजीवी वर्ग को संगठित करने का काम पार्टी के लिए करते हैं. ऐसे ही सुधीर ढवळे, रोना विल्सन, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबड़े, सुधा भारद्वाज, हर्षाली पोतदार, इनका नाम मैंने अपनी पार्टी के सीसीएम दीपक (दीपक उर्फ मिलिंद तेलतुंबड़े) से सुना है. सुधीर ढवळे दलित समस्या पर क्रांतिकारी लेखन करता है, रोना विल्सन बुद्धिजीवी वर्ग को माओवादी पार्टी के लिए संघटित करता है. गौतम नवलखा जनवादी फ्रंट आर्गेनाइजेशन में रहकर पार्टी के लिए काम करता है तथा जनवादी लेखक आनंद तेलतुंबड़े यह दलित मूवमेंट को माओवादी पार्टी के साथ जोड़ने का काम करता है. सोमा सेन बुद्धिजीवी वर्ग के साथ मिलकर महिलाओं की समस्या तथा छात्रों के लिए काम कर रही है.”
पहाड़ सिंह के पुलिस बयान में यह भी लिखा है कि जॉर्डन का पत्रकार जेन मिर्डल भी छत्तीसगढ़ आया था और माओवादी पार्टी की जानकारी लेकर चला गया.
गौरतलब है कि जेन मिर्डल, 93 साल के एक मशहूर स्वीडिश लेखक हैं जिनका नाम अपने मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट विचारों के लिए विवादित रह चुका हैं. उनके नाम का जिक्र पुणे पुलिस द्वारा ज़ब्त किये गए पत्रों में भी मिलता है जो उन्होंने तथाकथित रूप से इस मामले में गिरफ्तार कुछ लोगों के कंप्यूटर से मिले थे.
गौरतलब है कि पुलिस ने पहाड़ सिंह से लिये गए बयान में उन सभी लोगों के नक्सली संबंध दिखाने की कोशिश की है जिन्हें कोरेगांव भीमा मामले में गिरफ्तार किया गया है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पहाड़ सिंह से उनके दिए गए बयान के बारे में बातचीत की. हमने पूछा कि क्या वह कोरेगांव-भीमा में गिरफ्तार हुए लोगों से कभी मिले हैं तो वो कहते हैं, "नही मैं इनमें से किसी से नहीं मिला हूं, लेकिन सेंट्रल कमेटी के सदस्यों से मैंने इन लोगों के नाम सुने हैं. यह लोग छद्म रूप से काम करते हैं, ऐसा कमेटी के सदस्य बताते थे. इन सबके नाम मैंने सीसीएम के साथ चर्चा में भी सुना है. अरुन्धती राय, गौतम नवलखा का नाम सुना है. अरुन्धती राय तो खैर जंगल में आकर महीने-दो महीने रही भी हैं और उन्होंने उस पर जंगलनामा नाम की पुस्तक भी लिखी है. यह सभी लोग बाहर से पार्टी को सहयोग देते हैं. इस तरह आनंद तेलतुंबड़े अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का अपने वामपंथी लेखों के ज़रिए पार्टी का प्रचार करते हैं. यह सभी लोग देश को तोड़ने की बात करते है.”
गौरतलब है कि जंगलनामा पुस्तक अरुन्धती राय ने नही बल्कि मशहूर पंजाबी लेखक सतनाम ने 2004 में पंजाबी भाषा में लिखी थी.
जब सिंह से यह पूछा गया कि पुणे पुलिस से उनकी मुलाकात कैसे हुई, तो वो बताते हैं, "मेरे आत्मसमर्पण करने के बाद जब मैं चर्चा में आया, तब पुणे पुलिस से मेरा सम्पर्क हुआ था. मुझे दीपक (दीपक तेलतुंबड़े) ने बताया था कि दलितों का जो बड़ा कार्यक्रम होता है, वहां आंदोलन खड़ा करने के लिए पार्टी ने वहां लोगों को बुलाया था. मेरे आत्मसमर्पण करने के बाद जब मीडिया में मेरा साक्षात्कार हुआ था तो उसके बाद पुणे पुलिस मेरे पास आयी थी. उन्होंने छत्तीसगढ़ पुलिस के ज़रिए मुझसे संपर्क साधा और राजनंदगांव के पुलिस निरीक्षक कार्यालय में मुझसे मुलाकात कर बातचीत की थी और मेरे बयान भी लिए थे.
हमारी बातचीत में यह साफ हो गया कि पहाड़ सिंह को कोरेगांव भीमा मामले में गिरफ्तार हुए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बारे में ढंग से जानकारी तक नही है. उन्हें बहुतों के नाम नही पता हैं. उदाहरण के तौर पर नागपुर यूनिवर्सिटी की पूर्व प्रोफेसर शोमा सेन को उन्होंने पेशे से मानवाधिकार वकील बताया. यह भी गौर करने वाली बात है कि कोरेगांव भीमा में गिरफ्तार हुए लोगों की इस मामले में भूमिका को लेकर भी उनके पास कोई जानकारी नही है.
इसी तरह से पुणे पुलिस ने तेलंगाना पुलिस से भी अभियुक्तों के बारे में जानकारी मांगी थी. जानकारी में वरवरा राव के खिलाफ सयुंक्त आंध्र प्रदेश और और मौजूदा तेलंगाना में 23 मुकदमे दर्ज थे जिनमें से 20 मुकदमों में उनको बरी कर दिया गया है या वो मुकदमें खारिज हो चुके हैं. बाकी तीन मुकदमों में से एक में उन्हें गिरफ्तार कर उसी दिन छोड़ दिया गया और बाकी दो मुकदमे कोर्ट में लंबित हैं.
इसके अलावा पुणे पुलिस ने 4 अक्टूबर, 2018 को त्रिचरापल्ली केंद्रीय जेल के अधीक्षक से भी सुरेंद्र गडलिंग और अरुण फरेरा के बारे में जानकारी मांगी थी. पुलिस की ओर से भेजे गए पत्र में पूछा गया था कि त्रिचरापल्ली जेल में कैद वकील मुरुगन से मिलने कौन-कौन व्यक्ति आया था और क्या 1 अगस्त, 2018 से 7 अगस्त 2018 के बीच गडलिंग और फरेरा मुरुगन से मिलने गए थे.
जवाब में जानकारी आयी कि जगदीश मेश्राम, अरुण फरेरा, उथयानं, सुरेश कुमार, राजा, गुरुनाथन और अलगू देवी नाम के लोग उस दौरान मुरुगन से मिलने आये थे.
गौरतलब है कि अय्यान्न मुरुगन तमिलनाडु के सेलम जिले की रहने वाली दो महिलाओं का मुकदमा लड़ रहे थे. दोनों महिलाओं को 2016 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के साथ उनके संबंधों के चक्कर में गिरफ्तार किया गया था. लेकिन 2017 में मुरुगन की इस मामले में गिरफ्तारी हो गयी थी. पुलिस ने उन्हें यह कहकर गिरफ्तार कर लिया था कि गिरफ्तार हुई महिलाओं ने अपने इकबालिया बयान में यह कहा है कि मुरुगन के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से संबंध हैं.
उसी मामले की गिरफ्तारी के चलते इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपल लॉयर्स (आईएपीएल) की तरफ से सुरेश कुमार, अरुण फरेरा, जगदीश मेश्राम और गुरुनाथन उनसे मिलने गए थे.
पुणे पुलिस ने इस मामले की जांच करते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के दो छात्रों के बारे में भी जानकारी मांगी थी. इन दोनों छात्रों के नाम थे ऋतुपर्णा गोस्वामी और मोहम्मद शिराजुद्दीन. पुणे पुलिस के अनुसार गोस्वामी को प्रकाश और नवीन के नाम से भी जाना जाता है और वो भूमिगत है.
इस केस के जांचकर्ता और पुणे पुलिस के सहायक पुलिस आयुक्त शिवाजी पवार ने इन दो छात्रों की जानकारी हेतु जेएनयू के कुलपति को पत्र लिख कर दोनों छात्रों का नाम पता, उनके फ़ोटो, उनके पहचान पत्र, उनके घरवालों की जानकारी, उनके पर्यवेक्षकों के नाम आदि की जानकारी मांगी थी.
इसके अलावा जेएनयू में होने वाले कामरेड नवीन बाबू मेमोरियल लेक्चर सीरीज़ के बारे में और इस कार्यक्रम को आयोजित करने वालों के बारे में भी जानकारी मांगी थी.
इस मामले की जांच के दौरान पुणे पुलिस ने बहुत से सभागारों में पत्र लिखकर वहां पर हुए कार्यक्रमों के बारे में भी जानकारी मांगी थी. गौरतलब है कि पुणे पुलिस ने दिल्ली के राजेन्द्र भवन ट्रस्ट में अप्रैल 2018 में हुए 'कमेटी फ़ॉर द डिफेंस एंड रिलीज़ ऑफ जीएन साईबाबा' के द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम कर बारे में जानकारी मांगी थी. इस कार्यक्रम के संयोजक थे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमटी हनी बाबू.
इस कार्यक्रम के वक्ताओं में उच्चतम न्यायालय और मुम्बई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीशों का नाम शामिल हैं. गौरतलब है कि सितंबर 2019 में पुणे पुलिस ने प्रोफेसर बाबू के नोएडा स्तिथ मकान पर दबिश दी थी और उनका लैपटॉप, पेनड्राइव और अन्य उपकरण ज़ब्त कर लिए थे. इस दबिश के पीछे पुलिस ने कोरेगांव भीमा मामले की जांच बताया था.
पुणे पुलिस ने हैदराबाद के सुंदरिया विज्ञान केंद्र से भी वहां पर हुए कार्यक्रमों की जानकरी जुटाई थी. पुलिस ने केंद्र से निम्लिखित बातें पूछी थीं-
1. 9 और 10 सितंबर 2017 को केंद्र में क्या कार्यक्रम हुए थे?
2. क्या विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन समिति ने 9 और 10 फरवरी 2016 को कोई कार्यक्रम किया था?
3. क्या 24 और 25 सितंबर 2017 को केंद्र में आईएपीएल की कोई बैठक हुई थी?
4. 2 और 3 सितंबर 2017 को केंद्र में क्या कार्यक्रम हुए थे?
पुलिस की पूछताछ के बाद केंद्र ने अपने जवाब में बताया था की 9 और 10 सितंबर को विरासम जो कि इंकलाबी लेखकों का एक समूह है, उसका कार्यक्रम हुआ था और हॉल वरवरा राव के नाम से बुक हुआ था. 9 और 10 फरवरी 2016 को निर्वासित्व व्यक्तिरेखा जनचेतन्य उदयमामा और अर्जुन नाम की पुस्तक के विमोचन का कार्यक्रम हुआ था. 24 सितंबर, 2017 को आईएपीएल की कोई बैठक नही हुई थी बल्कि प्रजा कला मंडली का कार्यक्रम हुआ था. आईएपीएल की बैठक 25 जून, 2017 को हुई थी. 3 सितंबर को सिविल लिबर्टीज़ कमेटी की बैठक हुई थी.
आईएपीएल का नाम भी पुणे पुलिस के द्वारा सबूत के तौर पर इस्तेमाल किये गए पत्रों में हैं. पुलिस ने आईएपीएल को इस तरह से दर्शाया है कि यह संघटन नक्सलवादियों के लिए काम करता हो. गौरतलब है कि फरवरी 2014 के लोकसभा के सत्र में आईएपीएल की महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु की इकाई को लोकसभा के एक गैर तारांकित प्रश्न क्रमांक 3,838 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के मुखौटा संगठन के रूप में बताया था.
इस बात की जानकारी जब आईएपीएल को लगी तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया था 2017 में गृहमंत्रालय के सचिव से इसकी शिकायत भी की थी. आईएपीएल ने शिकायत में कहा था कि यह मानवाधिकार के लिए काम करने वाले वकीलों को बदनाम करने की साजिश है. गौरतलब है कि साल 2004 में बने आईएपीएल के कार्यक्रमों में पूर्व न्यायाधीश एच सुरेश, राजेन्द्र सच्चर, माइकल सलदाना, अभय टिप्से जैसी शख्सियतें भाग ले चुकी हैं.
आईएपीएल की जून 2017 में हुई बैठक में, मुम्बई हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश को उसका अध्यक्ष चुना गया था. उस कार्यक्रम में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अभय टिप्से, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा के उप कुलपति श्रीकृष्ण देवराव, कानून की शोधकर्ता उषा रामनाथन ने भाग लिया था. यह वही बैठक है जिसकी बारे में पुणे पुलिस ने सुंदरिया विज्ञान केंद्र से पूछताछ की थी.
पुलिस ने इससे मामले में गिरफ्तार हुए लोगों के सीडीआर (कॉल डेटा रिकार्ड्स) भी निकलवाये थे. यह सीडीआर इन लोगों के कुछ विशेष तारीखों और स्थानों पर रही मौजूदगी को जानने के हिसाब से निकलवाये गए थे. लेकिन हैरत की बात यह है यह सीडीआर में आये नमूने खुद पुलिस की जांच और सवाल उठाते हैं, क्योंकि सीडीआर के अनुसार यह लोग वहां मौजूद नही थे जहां पुलिस अपनी जांच में इन्हें मौजूद होने का दावा कर रही थी.
उदाहरण के तौर पर पुलिस ने अपनी जांच में कहा कि वरनन गोंसाल्वेस 2 अगस्त, 2017 को तमिलनाडु की त्रिचूला जेल में गए थे लेकिन उनके सीडीआर के अनुसार वह उस दिन मुम्बई में थे. पुलिस जांच में कहती है कि 10 अगस्त, 2017 से 28 अगस्त, 2018 तक गोंसाल्वेस सुकमा और बीजापुर में थे लेकिन सीडीआर के अनुसार वह उस दौरान मुम्बई और सूरत में थे. इसी तरह पुलिस ने बताया है कि उसकी जांच के अनुसार वह 1 से 4 सितंबर के बीच हैदराबाद के सुंदरिया हॉल में थे लेकिन सीडीआर के नमूने उनकी मौजूदगी मुम्बई में बात रहे हैं.
वरावरा राव को भी जिन तारीखों में पुलिस ने अपनी जांच के अनुसार कलकत्ता और केरल में बताया है उस वक़्त वो हैदराबाद में थे. इसी तरह सुधा भारद्वाज को पुलिस ने जिन तारीखों को अपनी जांच में हैदराबाद, मुम्बई, कोलकाता, केरल, बस्तर, त्रिचूला जेल, सुकमा व बीजापुर बताया है उस वक़्त वह वहां नही थी बल्कि सीडीआर के अनुसार वह हरियाणा, दिल्ली, बिलासपुर, नागपुर, रायपुर, फरीदबाद, डालुपुर, मथुरा, भोपाल आदि जगहों पर थीं. अरुण फरेरा को भी पुलिस जांच में जिन तारीखों में बस्तर, सुकमा ,बीजापुर में बताया गया है उस वक़्त वह ठाणे और मुम्बई में थे. इसी तरह बाकी अन्य लोगों की मौजूदगी भी पुलिस की जांच से मेल नहीं खाती.
असल में इस मामले में पुलिस द्वारा जिन पत्रों की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठाए गए हैं और जिन्हें सबूत बताया गया है पुलिस उसमें मौजूद नाम, पते, संगठनों और उसमें लिखी गई बातों को किसी न किसी तरह से साबित करने में लगी है. उदाहरण के तौर पर पुलिस के द्वारा तथाकथित रूप से ज़ब्त किये गए एक पत्र में, जिसे किसी कॉमरेड सुधा ने लिखा है, जगदलपुर छत्तीसगढ़ लीगल ऐड और बस्तर सॉलिडेरिटी नेटवर्क के नामों का जिक्र है. पत्र में यह भी लिखा था यह दोनों संगठन अंदर के इलाकों में जानकारी पहुंचाने और आर्थिक मदद पहुंचाने का सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. पुणे पुलिस ने जब इन संगठनों की जानकारी छत्तीसगढ़ पुलिस से मांगी थी तो उन्होंने यह बताया था कि छत्तीसगढ़ में इस नाम का कोई संगठन नही हैं.
असल में जगदलपुर लीगल ऐड ग्रुप (जैग-लेग) नाम का एक संगठन है जो छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभवित क्षेत्रों में रह रहे आदिवासियों को मुफ्त कानूनी सेवा प्रदान करता है. इस तरह बस्तर सॉलिडेरिटी नेटवर्क नाम का एक फेसबुक पेज है जो साल 2016 में बनाया गया था. यह बस्तर में आदिवासियों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों की मुखालफत करता है. ऐसा प्रतीत होता गई कि जिसने भी वो पत्र लिखा है उसे इन संघटन की पूरी जानकारी नही थी और उनसे मिलता जुलता नाम लिख कर आदिवासियों के लिए काम कर रहे इन संगठनों पर निशाना साधने की कोशिश की गई है.
गौरतलब है कि इस मामले से जुड़े कुछ लोगों का या पुणे पुलिस द्वारा तथाकथित रूप से ज़ब्त किये गए पत्रों में जिन लोगों का नाम है उन पर इज़राइली स्पायवेर (जासूसी उपकरण) पेगासस का इस्तेमाल कर निगरानी रखी जा रही थी. उदाहरण के तौर पर निहाल सिंह राठौड़, आनंद तेलतुंबड़े, सरोज गिरी, डिग्री प्रसाद चौहान, आशीष गुप्ता और अंकित ग्रेवाल के फ़ोन हैक हुए थे. इसमे से राठौड़ इस मामले में गिरफ्तार सुरेंद्र गडलिंग की पैरवी कर चुके हैं, वही आनंद तेलतुंबड़े पर खुद इस मामले में एक शिकायत दर्ज है. इसके अलावा चौहान, गिरी, गुप्ता और ग्रेवाल का नाम पुणे पुलिस के द्वारा इस मामले में अहम सबूत बनाये गए पत्रो में दर्ज है जिनकी विश्वसनीयता शुरू से सवालों के घेरे में है. इसके अलावा ग्रेवाल जो कि पेशे से वकील हैं इस मामले में सुधा भारद्वाज की पैरवी कर चुके हैं.
पुणे पुलिस ने इस मामले के आरोप पत्र (चार्जशीट) में कई बार यह लिखा है कि पुलिस जांच के दौरान पता चला है कि इस मामले में गिरफ्तार लोग भारतीय माओवादी पार्टी के सदस्य है और उन्होंने हिंसा व दंगे करवाने के उद्देश्य से पुणे के शनिवाड़ा में एल्गार परिषद का आयोजन किया था. लेकिन एल्गार परिषद का आयोजन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पीबी सावंत की अध्यक्षता में हुआ था.
इस सभा मे डॉ भीमराव अंबेडकर के पोते और वंचित बहुजन अघाड़ी के नेता प्रकाश अम्बेडकर, मुम्बई उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बीजी कोलसे पाटिल, गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवानी, बस्तर में आदिवासी हक़ के लिए काम करने वाली सोनी सोरी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के राष्ट्रीय सचिव मौलाना अब्दुल हमीद अज़हरी, सर्वहारा जन आंदोलन की उल्का महाजन, जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, भीम आर्मी के नेता विनय रतन सिंह, अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के प्रशांत डोनाथा वक्ता थे. इस परिषद का उद्घाटन रोहित वेमुला की माता राधिका वेमुला ने किया था. इसके अलावा कबीर कला मंच और अन्य कुछ लोगों ने इस सभा में कार्यक्रम किये थे.
गौरतलब है इस सभा मे सुधीर ढवले के अलावा इस मामले में गिरफ्तार हुए अन्य कोई भी मौजूद नहीं था. गौर करने वाली बात यह भी है कि इस मामले में जब तुषार दामगुड़े ने 8 जनवरी, 2018 को पुणे के विश्रामबाग पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी, तब भी सुधीर ढवले के अलावा उस प्राथमिकी में गिरफ्तार हुए लोगों में से अन्य किसी का नाम दर्ज नही था. इस प्राथमिकी में कबीर कला मंच के रमेश गायचोर, दीपक ढेंगले, ज्योति जगताप, सागर गोरखे के नामों के साथ-साथ मुम्बई में दलित हितों के लिए काम करने वाली हर्षाली पोतदार का नाम भी था. इसके अलावा प्राथमिकी में यह भी लिखा था कि कबीर कला मंच के अन्य कलाकार और अन्य कुछ लोग भी शामिल थे, लेकिन कहीं भी महेश राउत, रोना विल्सन, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वरनन गोंसाल्वेस, गौतम नवलखा, वरावरा राव, सुरेंद्र गडलिंग और शोमा सेन का नाम नही लिखा था.
दामगुड़े के पहले अक्षय बिक्कड़ नामक युवक ने इसी मामले में जिग्नेश मेवानी और उमर खालिद के खिलाफ़ विश्रामबाग पुलिस स्टेशन में ही प्राथमिकी दर्ज कराई थी, उस प्राथमिकी में भी कोरेगांव भीमा मामले में गिरफ्तार किसी भी व्यक्ति का नाम नही था. इसके बावजूद भी पुलिस ने उन लोगों को गिरफ्तार किया जो ना तो वहां मौजूद थे और ना है उनका नाम प्राथमिकी में था.
इससे पूरे मामले में पुलिस की जांच में कही भी ऐसे पुख्ता सबूत नही मिलते हैं जो यह बताएं कि इस मामले में गिरफ्तार या आरोपी बनाए गए लोगों का हाथ एल्गार परिषद-कोरेगांव भीमा में हुई हिंसा में था. बजाय इस मामले की सच्चाई उजागर करने के इस मामले में की गई पुलिस जांच का जोर इस बात पर ज़्यादा है कि गिरफ्तार किए गए लोगों को नक्सलवादी कैसे साबित किया जाय.