देविंदर सिंह का आना और राष्ट्रवादी एंकरों का चुप हो जाना

अर्नब गोस्वामी से लेकर सुधीर चौधरी तक सभी राष्ट्रवादी एंकरों ने जेएनयू के ‘क्रूर हिंसक’ छात्रों पर हमला जारी रखते हुए आतंकवादियों को पनाह देकर आतंकी हमले की फिराक़ में लगे पुलिस अधिकारी से नज़रे फेर ली. 

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हाल ही में कश्मीर घाटी  से आई एक सनसनीखेज़ खबर के मुताबिक एक पुलिस अफसर को हिजबुल मुजाहिद्दीन के दो आतंकियों के साथ गिरफ़्तार किया गया. उनमे से एक पर दक्षिणी कश्मीर में एक प्रवासी मजदूर की हत्या का मामला दर्ज है.

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जो पुलिस अफसर सवालों के घेरे में है वह जम्मू कश्मीर पुलिस का डिप्टी सुप्रीटेंडेंट देविंदर सिंह है. सिंह को पिछले साल प्रेसिडेंट पुलिस मेडल द्वारा सम्मानित किया जा चुका है और वह कुछ समय के लिए  घाटी में आतंकवादरोधी विशेषज्ञ के तौर पर सेवा दे चुका है. शुरुआती पड़ताल से पता चलता है कि देविंदर सिंह आतंकवादियों के लिए एक “वाहक” की तरह काम कर रहा था और वो यह सब केवल पैसों के लिए कर रहा था.

जो बात पूरे मामले को बेहद गंभीर बनाती है वो है एक पत्र जो 2001 में संसद पर हुए हमले के दोषी अफज़ल गुरु ने अपने वकील को तिहाड़ जेल से 2004 में लिखा था. इस पत्र में, अफज़ल ने देविंदर सिंह का नाम दिया था और कहा था कि सिंह ही वो व्यक्ति था जिसने उसे संसद पर हमले के जिम्मेदारों में से एक व्यक्ति से मिलाया था. आप वो पूरा पत्र यहां पढ़ सकते हैं. आप सिंह का वो साक्षात्कार भी यहां पढ़ सकते हैं जिसमें वो यह कबूल करते हैं कि उन्होंने अफज़ल गुरु को यातनाएं दी थी.

अब 2019 में सिंह उन आतंकियों के साथ पकड़े गये हैं जो कथित रूप से गणतंत्र दिवस के आस-पास नई दिल्ली में आतंकी हमला करने के मिशन पर थे. आमतौर पर इस तरह की महत्वपूर्ण ख़बर प्रमुख न्यूज़ चैनलों द्वारा प्राइम टाइम के लिए चुनी जाती हैं, ख़ासकर हमारे राष्ट्रवादी एंकरों द्वारा. कुछ तो इस तरह के मामले में इतने प्रतिभावान हैं कि अपनी कपोल-कल्पना के जरिए इन आतंकियों को देश के अलहदा हिस्सों में चल रहे छात्र आंदोलनों और सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शनों से भी जोड़ सकते हैं. आपके पसंदीदा एंकरों का गुस्सा कुछ इस तरह के शब्दों के साथ फूट पड़ता: “आतंकियों को भारत पर हमला करने के लिए आते हुए रास्ते में पकड़ा गया. अब क्यों चुप है कन्हैया कुमार. क्या वो इसका समर्थन करता है.” काफ़ी अजीब है कि इस तरह का कोई भी मसख़रापन इस बार हमारे एंकरों से देखने को नहीं मिला. इसके बजाए हमारे राष्ट्रवादी एंकरों ने इस पूरे मामले से अपनी आंखें मोड़ ली.

टाइम्स नाउ पर, अर्नब गोस्वामी के बगलबच्चे नविका कुमार और राहुल शिवशंकर (आरएसएस), जामिया के “परेशान” करने वाले विरोध प्रदर्शनों को लेकर बहस लड़ाने में व्यस्त थे- जिसने हाल ही में एक स्पष्ट कट्टरपंथी इस्लामिक मोड़ ले लिया था. उनके मुताबिक…

आरएसएस ने इस तरह का दावा करने के बाद क्या सबूत दिया? नीचे दी गई तस्वीर में स्वयं देखें.

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हम यहां बिल्कुल मज़ाक नहीं कर रहे. आरएसएस ने वास्तव में इस नारे को “इस्लामिक” करार दिया.

रिपब्लिक पर, अपने फेसबुक के दर्शकों के लिए एक उन्मादी विडियो डालने के बाद, अर्नब गोस्वामी ने इन हैशटैग के साथ- #कांटस्टॉपरिपब्लिक, #आज़ादीहिपोक्रेसी, और #कांग्रेसबनामभारत: तीन चौंकाने वाली बहसें पेश की. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि उनमें से एक का भी जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की साजिश और पुलिस अधिकारी की गिरफ्तारी से लेना देना नहीं था. वास्तव में यही वो स्थिति है जिससे आपको परेशान होना चाहिए.

इंडिया टुडे पर, एंकर शिव अरूर अपने शो इंडिया फर्स्ट पर घाटी की ख़बर का विवरण देते हैं. रिपोर्ट में कश्मीर से मिले इनपुट थे ओर दर्शकों को बताया गया था कि आईबी और रॉ जैसी खुफिया एजेंसियां डीएसपी से पूछताछ करेंगी.

लेकिन इस चैनल के स्वघोषित आर्मी कमांडो गौरव सी सावंत ने इस मामले पर बिल्कुल चुप्पी मार ली. उन्हें आखिरी बार ट्विटर पर पाकिस्तान के एक मंत्री को ट्रोल करते हुए पाया गया.

इसी बीच इंडिया टुडे के न्यूज़ रूम में सावंत के सखा राहुल कंवल ने अपने कार्यक्रम न्यूज़ट्रैक में “जेएनयू के इकबालिया टेप” पर चौपाल चर्चा की. हमने सुना कि उन्होंने अपने कार्यक्रम में बारंबार पाथब्रेकिंग शब्द का इस्तेमाल कर दर्शकों और पैनलिस्टों का ज्ञानवर्धन किया.

ज़ी न्यूज़ पर, भारत विरोधी ताकतों के सबसे बड़े स्वघोषित दुश्मन सुधीर चौधरी ने अपने प्राइमटाइम शो पर संघर्ष करने वाले छात्रों बनाम सब्सिडी लेने वाले का डीएनए टेस्ट किया. चाहे इसका कुछ भी मतलब हो. उन्होंने इस दौरान उपवास की महिमा का बखान किया औऱ बताया कि व्रत करने से कैसे-कैसे चमत्कार संभव हैं. इस स्वास्थ्यवर्धक उपाय के दौरान लूप में तली हुई पूरिया देखकर अच्छा लगा और समझ में आया कि उपवास रखने की परंपरा कितनी महान है.

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एबीपी न्यूज़ पर, रुबिका लियाक़त, जिनकी ताजा-तरीन पहचान है सुबकते हुए देश के मीडिया की दुर्दशा का दुखड़ा रोना, वो भी देश के सामने सबसे बड़े खतरे यानि आन्दोलनकारी छात्रों  पर बहस लड़ा रही थीं. उनके लिए जामिया के छात्रों और वीसी के बीच कि बहस स्पष्ट रूप से एक आतंकवादी हमले से अधिक महत्वपूर्ण था.

इसी बीच रुबिका कि दूर की बहन अंजना ओम कश्यप की बहस का दायरा था कि कैम्पस में वाम बनाम दक्षिणपंथ की लड़ाई में कौन सही, कौन गलत है.

क्या आप यहां एक पूरा पैटर्न देख सकते हैं? एक भी राष्ट्रवादी न्यूज़ एंकर जम्मू कश्मीर में आतंकी साजिश रच रहे पुलिस अधिकारी- जो कि एक आतंकी हमले को अंजाम देने का वास्तविक प्रयास था, इस पर बहस नहीं कर रहा है. इसके बजाय वे सभी भारत के कॉलेज और विश्वविद्यालय के देशद्रोही-खूंखार छात्रों पर अपना ध्यान टिकाए हुए हैं.

स्पष्ट रूप से, जो लोग प्राइम टाइम समाचार का एजेंडा सेट करते हैं, वे नहीं चाहते कि देश इस बारे में ज्यादा जाने. आदर्श परिस्थितियों में एक अच्छे पत्रकार के लिए यह सबसे अच्छा मौका होना चाहिए था.

पुनश्च

टाइम्स नाउ, रिपब्लिक टीवी की नींद आखिर में तब खुली जब बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस के ऊपर हाहाकारी आक्रमण करने वाला प्रेस कांफ्रेंस किया. आपको पता ही है कि इसका हश्र क्या होना है. घंटो तक प्राइम टाइम पर वीर-वीरांगनाएं चिल्ला-चिल्ला कर कांग्रेस और पूरे विपक्ष को पाकिस्तान समर्थक बताएंगे. इन सबके बीच, हम यह पूछना भूल जायेंगे कि इसका क्या मतलब है जब एक पुलिस अफसर आतंकवादियों के साथ आतंकी हमले की योजना बनाते हुए पकड़ा गया है.

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