यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट व्हाट्सएप ग्रुप में घुसपैठ के बाद हमने पाया कि न सिर्फ इनके संबंध एबीवीपी से हैं बल्कि और भी बहुत कुछ सामने आया.
बीते रविवार देर शाम तक ख़बरें आ रही थी कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के हॉस्टल और कैंपस परिसर में हथियारों से लैस गुंडे बेखौफ हिंसा कर रहे थे. कई विडियो सामने आए जिनमें कुछ नकाबपोश आदमी और महिलाएं हाथों में लाठी, लोहे की छड़ें, और कई प्रकार के हथियार के साथ हॉस्टल में बेखौफ हिंसा करते नज़र आ रहे थे.
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Contributeइस पूरे घटनाक्रम का एक हिस्सा एक व्हाट्सएप ग्रुप से भी जुड़ा हुआ था. जिसका उपयोग कथित रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा इस हमले की योजना बनाने के लिए किया गया था. इस व्हाट्सएप ग्रुप में हो रही बातों के कई स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से शेयर किये गए.
इंडियन एक्सप्रेस ने भी एक स्टोरी की जिसमें यह बताया गया कि जेएनयू में हुए हमले की योजना बनाने के लिए कथित रूप से कई व्हाट्सएप ग्रुप्स का उपयोग किया गया. हालांकि हमने अपनी पड़ताल में पाया कि सारे स्क्रीनशॉट्स एक ही ग्रुप से आ रहे थे, लेकिन ग्रुप का नाम उसमें शामिल सदस्यों द्वारा बार बार बदले जाने के कारण ऐसा लग रहा था की यह एक ग्रुप न होकर कई अलग अलग ग्रुप हैं.
हमने ग्रुप के संचालकों (एडमिन) को केंद्र में रखते हुए अपनी पड़ताल की. जिसमें हमने पाया कि इस ग्रुप के 14 एडमिन थे. उनमें से 10 का संबंध एबीवीपी के साथ है. दिलचस्प बात यह रही कि इनमें से दो एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने भी एम्स में घायल होने की सूचना दर्ज कराई.
चौकाने वाली बात यह भी है कि बाकी बचे चार एडमिन में से दो के नाम दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के एडहोक सूची में भी शामिल है. बाकी के बचे दो एडमिन्स में से एक जेएनयू में रिसर्च स्कॉलर है. न्यूज़लॉन्ड्री एबीवीपी या किसी अन्य राजनीतिक समूह के साथ इस एडमिन का संबंध स्थापित करने में असमर्थ रहा. बचे एक एडमिन की पहचान नहीं हो पाई. तो, अब हम जानते हैं कि ये 14 लोग कौन हैं.
ग्रुप में घुसपैठ
5 जनवरी की रात लगभग 8 बजे इस व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए एक लिंक शेयर किया जाने लगा. इस लिंक का इस्तेमाल करके न्यूज़लॉन्ड्री के तीन जोशीले रिपोर्टर ग्रुप में घुसने में कामयाब रहे. लिंक को कॉपी करना, यूआरएल में डालना और समूह में प्रवेश करने के लिए आमंत्रण का उपयोग करना एक साधारण बात थी.
इस तरह रात 8:30 बजे तक न्यूज़लॉन्ड्री इस ग्रुप में प्रवेश कर चुका था. तब से लेकर रात के 10 बजे तक हम ग्रुप की हर गतिविधि पर नज़र बनाए हुए थे. ध्यान रहे कि यह ठीक वही समय था जब एक-एक कर सभी एडमिन ग्रुप से बाहर निकलने लगे थे.
रात 10 बजे हमने ग्रुप में हुई पूरी बातचीत को शुरुआत से जांचना शुरू किया कि इस ग्रुप के एडमिन में कौन-कौन शामिल था. हमने ग्रुप के भीतर कुछ ऐसे लोगों को भी पाया जो ग्रुप में उनके पक्ष में होने का नाटक कर एबीवीपी के सदस्यों के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उनका एबीवीपी की विचारधारा से कोई संबंध नहीं था.
ग्रुप की जांच के आधार पर हमने पाया कि ग्रुप का नाम “यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट” रखा गया था जिसे शाम को 5:28 बजे योगेन्द्र शौर्य भारद्वाज नाम के व्यक्ति ने बनाया था. योगेन्द्र जेएनयू का ही छात्र हैं और 2017-18 में एबीवीपी का ज्वाइंट सेक्रेटरी रह चुका है. यहां ध्यान रहे कि जेएनयू में शाम 6 बजे तक हिंसा शुरू हो चुकी थी. ऊपर दिए गए स्क्रीनशॉट में देखें जिसमें लिखा है “फ्रेंड्स ऑफ आरएसएस”.
ध्यान दें कि विकास पटेल नाम का व्यक्ति जो डीयू के छात्रों से यूनिवर्सिटी में प्रवेश करने की बात कर रहा है. स्क्रॉल ने अपनी जांच में पाया कि विकास एबीवीपी कार्यकारी समिति सदस्य है और जेएनयू में एबीवीपी का पूर्व उपाध्यक्ष था.
अब वापस “यूनाइटेड अगेंस्ट लेफ्ट” पर आते हैं जो इस पूरी स्टोरी का विषय है.
ग्रुप एडमिन
इस ग्रुप में कुल 14 एडमिन थे. हम इनमें से दस की पहचान करने में कामयाब रहे हैं जो एबीवीपी के साथ जुड़े हुए हैं या उसके साथ करीबी संबंध हैं.
सभी लोगों के ग्रुप छोड़ने से पहले की गतिविधि जिसे हमने 8.35 से रात 10 बजे के बीच देखा था, वह ओंकार श्रीवास्तव, देवेंद्र कुमार, अनिमा सोनकर और वेलेंटीना ब्रह्मा के द्वारा की गई थी.
शाम 8:41 पर ओंकार ग्रुप में कहता है, “भाई इस ग्रुप में भी लेफ्टिस्ट आ गए. लिंक क्यों शेयर किया जारा” इसके बाद, ओंकार ग्रुप छोड़ने तक कुछ नहीं कहता.
अनिमा रात 8.54 बजे ग्रुप में सक्रिय हुई, जब उसने ग्रुप में से लोगों को निकालना शुरू किया. 9.07 बजे खुद ग्रुप छोड़ने से पहले उसने कुल 11 लोगों को ग्रुप से बाहर किया.
वेलेन्टिना ने भी ठीक उसी समय लोगों को ग्रुप से हटाना शुरू कर दिया. हमें उसके द्वारा 12 लोगों को बाहर करने का सबूत मिला. शाम 8:57 बजे वेलेंटीना ने भी ग्रुप छोड़ दिया था. ग्रुप छोड़ने से पहले वेलेन्टिना ने ग्रुप की सेटिंग बदल कर “ओनली एडमिन्स कैन पोस्ट” कर दिया था.
देवेन्द्र भी ग्रुप छोड़ने के एक मिनट पहले ठीक 9:09 पर ग्रुप की सेटिंग बदलने की कोशिश करता है. जब तक हम ग्रुप में बने रहे उस समय तक योगेंद्र भारद्वाज, सुमंत साहू, मनीष जांगिड़, वेंकट चौबे, आशीष गुप्ता और रेणु सेन की ग्रुप में कोई सक्रिय भूमिका नहीं थी.
हालांकि, हम दो अन्य एडमिन्स, रेणु सेन और आशीष गुप्ता को लेकर ज्यादा उत्सुक थे. हमारी छानबीन में हमने पाया था कि रेणू सेन का नाम दिल्ली विश्विद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के अप्रैल, 2018 की एडहॉक लिस्ट में शामिल था और आशीष गुप्ता का नाम 2017 की एडहॉक सूची में शामिल था. दोनों सूचियों में दिए गए मोबाइल नंबर उन नंबर के साथ मेल खाते हैं जो “यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट” ग्रुप में एडमिन के तौर पर इन दोनों के द्वारा उपयोग किए गए थे.
लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं होती. काफी अजीब बात है, जब हम ग्रुप एडमिन की पड़ताल कर रहे थे, उसी समय हमारे रिपोर्टर जो उस समय एम्स में मौजूद थे ने हमें उन एबीवीपी के सदस्यों की सूची भेजी जो अस्पताल में भरती थे और घायल होने की बात कह रहे थे. हमारे रिपोर्टर द्वारा भेजी गई सूची में से दो नामों ने हमारा ध्यान अपनी तरफ खींचा. ये उन 14 लोगो में से थे जो “यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट” ग्रुप के एडमिन में शामिल थे.
हमने एम्स में रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. हरजीत भट्टी से बात की, जो ट्रॉमा सेंटर के आपातकालीन कक्ष के अंदर होने वाली घटनाओं के चश्मदीद गवाह थे. भट्टी से एबीवीपी के सदस्यों द्वारा दिखाई गई चोटों के बारे में पूछने पर वो कहते हैं, “कुछ कथित एबीवीपी के सदस्यों ने छोटी-मोटी चोटों के साथ खुद को आपातकालीन सेवा में भरती करवा लिया था और दूसरे मरीजों और चिकित्सकों के लिए परेशानी पैदा कर रहे थे.”
भट्टी आगे बताते हैं कि जेएनयूएसयू अध्यक्ष आईशी घोष को सर पर गहरी चोटें आई थीं. उसकी चिकित्सा इन गुंडों द्वारा बाधित की जा रही थी. भट्टी ने आगे कहा, “यह पूरी तरह साफ़ नहीं है कि गुंडे और वो लोग जिनका नाम सूची में शामिल था एक ही थे या नही जो चिकित्सकों और मरीजों को चिकित्सा के दौरान परेशानी उत्पन्न कर रहे थे.
जासूसी
हमने उस समय ग्रुप में घुसपैठ की जब सब कुछ हो चुका था. इस कारण हमें कोई खास भड़काऊ बात तो ग्रुप के एडमिन की तरफ से देखने को नहीं मिला केवल इसके कि वो बार-बार ग्रुप की सेटिंग बदल रहे थे, लोगों को बाहर निकालने रहे थे और ये बोलने के कि वामपंथी लिंक के ज़रिये ग्रुप को ज्वाइन कर रहे हैं.
हालांकि, सोशल मीडिया इस ग्रुप के स्क्रीनशॉट्स से भरा हुआ है, जिसमें लोगों ने निम्नलिखित भड़काऊ बातें कही हैं और ये किसी प्रकार की “योजना” की ओर इशारा करते हैं:
#1. “नहीं, वीसी ने एंट्री मना किया है. अपना वीसी है.”
#2. “अगर जाना है तो साबरमती हॉस्टल जाओ वहां सब कार्यकर्ता जमा है.”
#3. “आइशी का सर फटा है। अभी सीरियस है वो.. बचेगी नही शायद.”
इस पर एक व्यक्ति ने जवाब दिया #4. बढ़िया हुआ अभी तो चुन-चुन कर इन देश द्रोहियों को मारना है.”
यहां से हमारी जांच का दूसरा भाग शुरू होता है. हमने पता लगाया कि ये बातें किसने कहीं… और क्यों?
पहला बयान #1. ये बात आनंद मंगनाले नामक एक व्यक्ति ने कही जो शाम 8:30 बजे ग्रुप से जुड़ा था.
समय के आधार पर वो अपनी बात #1. शाम 8:41 पर बोलता है. ध्यान दें की इस समय तक जेएनयू में हिंसा थम चुकी थी. आनंद मंगनाले के फेसबुक प्रोफाइल के आधार पर हमने पाया कि वह आई-पैक, जो की प्रशांत किशोर द्वारा शुरू की गयी राजनीतिक कंसल्टेंसी फर्म है, में काम कर चुका है.
चैट लॉग से पता चलता है कि आनंद को 8:55 पर एबीवीपी के एक एडमिन एनिमा द्वारा ग्रुप से निकाल दिया गया. जब आनंद का नंबर स्क्रीनशॉट के ज़रिये फैलने लगा तो आनंद ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर एक बयान जारी करते हुए कहा कि वह केवल एबीवीपी के साथ खुद को जोड़ने और उन्हें खुश करने के लिए ऐसा कर रहा था. उसने आगे अपने बयान में कहा, “मैंने ऐसा केवल इन गुंडों के बारे और जानने के लिए किया था. ताकि और सवाल करके मैं उनकी पूरी योजना के बारे में जान सकूं.”
इन खुलासे के मद्देनजर, आई-पैक के ग्राहकों में से एक, कांग्रेस पार्टी को इस विवाद से खुद को दूर करने के लिए एक बयान जारी करना पड़ा.
ट्रू कॉलर के अनुसार बयान #2 और #3 “रईस” नाम के किसी व्यक्ति द्वारा ग्रुप में दिए गए थे. रईस रात के 9:19 पर ग्रुप से जुड़ा था.
ट्रू कॉलर के अनुसार बयान #4 अमन पठान नाम के एक व्यक्ति द्वारा बोला गया था. अमन रात 9:35 पर इस ग्रुप से जुड़ा था. न्यूज़लॉन्ड्री रईस और पठान दोनों से किसी प्रकार की अन्य प्रतिक्रिया प्राप्त करने में असफल रहा.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस ग्रुप को बनाने वाले योगेन्द्र भारद्वाज से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली.
न्यूज़लॉन्ड्री ने ग्रुप के सभी एबीवीपी के एडमिन से सम्पर्क कर यह जानने की कोशिश की कि यह लोग इस पूरे घटनाक्रम से क्यों जुड़े हुए थे. आप उनकी प्रतिक्रिया नीचे पढ़ सकते हैं.
ग्रुप एडमिन वेलेंटीना ब्रम्हा का बयान
हमने वेलेंटीना से ग्रुप में उनका नाम एडमिन के तौर पर होने पर सवाल किया जो योगेन्द्र भारद्वाज द्वारा बनाया गया था. वो कहती हैं, “मुझे नहीं पता मुझे इस ग्रुप में किसने जोड़ा था. मैं हमले के बाद एम्स ट्रॉमा सेंटर गई थी. जब मुझे यह पता चला कि मुझे ग्रुप का एडमिन बना दिया गया है. तब मैंने सबको ग्रुप से निकालने और ग्रुप को बंद करने की कोशिश की ताकि एबीवीपी का कोई सदस्य जाल में न फंसे. जब मैं ऐसा कर रही थी तब किसी ने मुझे ग्रुप एडमिन से हटा दिया उसके बाद मैंने ग्रुप छोड़ दिया. इसके बाद मैंने ज्यादा जानने की कोशिश नहीं की कि किसने यह ग्रुप बनाया और मुझे किसने एडमिन बनाया.”
वेलेंटीना को ग्रुप से निकाला नहीं गया था उसने खुद 8:57 पर ग्रुप छोड़ दिया था.
ग्रुप एडमिन मनीष जांगिड़ का बयान
एबीवीपी के सदस्य मनीष जांगिड़ कहते हैं, “मुझे नहीं पता मुझे किसने ग्रुप एडमिन बनाया, हमने ऐसा कोई ग्रुप नहीं बनाया. मेरा फ़ोन हमले में टूट गया था इसलिए मुझे कल तक इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. मुझ पर पेरियार हॉस्टल में हमला हुआ और उन लोगो ने कावेरी हॉस्टल के मेरे कमरे में भी घुस कर तोड़-फोड़ की.”
जांगिड़ कहते हैं, “ये लोग वामपंथी दल के थे उनमे से कुछ छात्र थे और कुछ लोग बाहर के लग रहे थे. उन लोगों ने अपने चेहरे ढंके हुए थे और विद्यार्थियों पर हमला कर रहे थे, मैं हमले से बचने के लिए तुरंत हॉस्टल से भागा.”
मनीष ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उसे गर्दन पर कई खरोचें आई हैं और उसके हाथ की हड्डी टूट गई है.
ग्रुप एडमिन एनिमा सोनकर का बयान
एबीवीपी की वरिष्ठ कार्यकर्ता और ग्रुप की एडमिन में से एक एनिमा सोनकर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “यह ग्रुप तब बनाया गया जब विश्वविद्यालय में लेफ्ट के छात्र संगठनों ने हिंसा शुरू की थी. उन्होंने पेरियार हॉस्टल में हिंसा शुरू की और वह एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को निशाना बना रहे थे. हमारा इरादा दक्षिणपंथी छात्रों का समर्थन जुटाकर उन्हें सुरक्षित करने का था लेकिन हम गलत जगह फंस गए.”
एनिमा ने बताया ग्रुप योगेन्द्र द्वारा बनाया गया था और चूंकि एनिमा खुद एक वरिष्ठ एबीवीपी कार्यकर्ता हैं इसलिए उन्हें ग्रुप का एडमिन बनाया गया था. कई लोग लिंक के ज़रिये ग्रुप से जुड़े थे, और तो और सउदी अरब और अमेरिका जैसे देशों से भी लोग इस ग्रुप से जुड़े थे. हममें से कई लोगों को रात भर धमकी भरे कॉल आ रहे थे और हमसे पूछा जा रहा था की हम क्यों दंगे भड़काने की कोशिश कर रहे हैं. हम इस तरह के भी कॉल आ रहे थी कि तुम्हें नहीं पता तुम किससे उलझ रहे हो.”
एनिमा आगे अपनी बात जोड़ते हुए कहती है, “दुर्भाग्य से ग्रुप ग़लत लोगों के हाथ में चला गया. लोग ग्रुप का नाम बदल कर एबीवीपी-आईएसआईएस, आरएसएस आदि रख रहे थे और गलत चीजें ग्रुप में भेज रहे थे. ग्रुप का एडमिन योगेन्द्र था और पड़ताल होने पर वो शायद हिरासत में लिया जा सकता था इसलिए शायद वो ग्रुप से निकल गया था. एबीवीपी के सभी लोगों ने ग्रुप छोड़ दिया था.”
ग्रुप एडमिन आशीष गुप्ता का बयान
न्यूज़लॉन्ड्री ने आशीष गुप्ता से बात की, जो ग्रुप एडमिन में से एक था. आशीष ने कहा, “मुझे ग़लती से ग्रुप में जोड़ दिया गया था. जिस पल मुझे इसके बारे में मालूम हुआ मैंने ग्रुप छोड़ दिया. मैं इंटरनेशनल स्टडीज में पीएचडी कर रहा हूं और मैं एबीवीपी या लेफ्ट के किसी छात्र संघ का सदस्य नहीं हूं.”
ग्रुप एडमिन शुभम पोतदार का बयान
एबीवीपी के कार्यकर्ता शुभम पोतदार जिन्हें ग्रुप एडमिन बनाया गया था, ने कहा, “मैं ट्रेन में था और अपने घर पुर्णिया से दिल्ली वापिस आ रहा था. यह मेरे ध्यान में नहीं आया कि मुझे ग्रुप का एडमिन बनाया गया था. लेकिन जब सन्देश 150 से ज्यादा हो गए, तब मैंने ग्रुप में देखा कि कई अलग-अलग लोग ग्रुप में आपत्तिजनक सन्देश भेज रहे थे. मुझे ग्रुप से निकलने के लिए कहा गया तो मैंने ग्रुप छोड़ दिया. मैंने ग्रुप में कुछ भी नहीं भेजा था. जब मैंने ग्रुप की जांच की तो मुझे मालूम पड़ा कि मुझे ग्रुप में शाम 5:36 पर जोड़ा गया था. मैंने रात 9:28 पर ग्रुप छोड़ दिया था.”
ग्रुप एडमिन वेंकट चौबे का बयान
वेंकट चौबे जेएनयू में एबीवीपी के उपाध्यक्ष हैं. उन्होंने हमें बताया, “मुझे कोई जानकारी नहीं है की मैं ग्रुप का एडमिन कैसे बना. मैंने कुछ लोगों को ग्रुप में अश्लील सन्देश भेजते देखा जो बोल रहे थे की वह एबीवीपी की लड़कियों के साथ छेड़-छाड़ करना चाहते थे. हज़ारों सन्देश ग्रुप में आ रहे थे. मैंने उसी क्षण ग्रुप छोड़ दिया जिस क्षण मैंने इस तरह के सन्देश देखा.”
हम इस स्टोरी को आगे अपडेट करते रहेंगे जैसे-जैसे हमे ग्रुप के अन्य एडमिन्स के बयान मिलते रहेंगे.
निष्कर्ष
तो हम अपनी पड़ताल के आधार पर निष्कर्ष के तौर पर क्या कह सकते हैं?
(अयान शर्मा के सहयोग के साथ)
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