अंतिम अध्याय अयोध्या का: श्रृंखला के इस हिस्से में निर्मोही अखाड़ा के प्रमुख महंत दिनेंद्र दास से बातचीत.
9 नवम्बर को बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से जारी न्यूज़लॉन्ड्री की इस साक्षात्कार श्रृंखला में हमने इस मामले से जुड़े हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के तमाम पैरोकारों से बातचीत की है.
सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया है उससे इस मामले के सबसे करीबी पक्ष रहे निर्मोही अखाड़ा के संत महंत दिनेंद्र दास से बातचीत की.
निर्मोही अखाड़ा रामजन्मभूमि विवादित स्थल का सबसे पुराना दावेदार रहा है. 1885 में निर्मोही अखाड़ा के संत रघुबर दास ने सबसे पहले अंग्रेजी शासनकाल में याचिका दायर करके विवादित स्थल में पूजापाठ की इजाजत मांगी थी. उस समय उन्होंने बाबरी मस्जिद के बाहरी हिस्से में मौजूद राम चबूतरे पर मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी थी. लेकिन अंग्रेज सरकार ने उस समय इसलकी इजाजत नहीं दी. हालांकि तत्कालीन मजिस्ट्रेट ने मस्जिद के बाहरी हिस्से को एक लोहे की जाली से अलग करके वहां पूजापाठ की अनुमति दे दी. इसके बाद से लगातार निर्मोही अखाड़ा इस विवाद में एक पक्ष रहा है.
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का जो निर्णय आया था उसमें विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटते हुए एक हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया था.
9 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े की दावेदारी को खारिज करते हुए कहा कि निर्मोही अखाड़े की दावेदारी सही नहीं है. लेकिन एक लम्बे समय से इस मामले में उसका लगातार जुड़ाव रहा है लिहाजा केंद्र सरकार रामजन्मभूमि पर मंदिर के लिए बनने वाले ट्रस्ट में जगह जरूर दे.
अयोध्या स्थित निर्मोही अखाड़े के महंत दिनेंद्र दास का कहना है 9 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है वो राम के नाम आया है इसलिए वे इससे संतुष्ट हैं और उनको यह फैसला मंज़ूर है.
1885 से 1992 (मस्जिद के ध्वंस तक) तक निर्मोही अखाड़ा ही उस स्थान पर मजूद था. यह दस्तावेज़ों में भी दर्ज है. 1992 में रिसीवर की नियुक्ति के बाद से वहां सत्येन्द्र दास पूजा-पाठ का काम देखते हैं.
अभी यह सवाल सबसे बड़ा बना हुआ है कि मंदिर में पूजा पाठ की ज़िम्मेदारी किसे मिलेगी. क्या निर्मोही अखाड़ा अपनी दावेदारी रखेगा? ऐसे ही कई सवालों पर दिनेंद्र दास से हमने बात की. पूरी बातचीत सुनने के लिए यह वीडियो देखें. और हां न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें- ‘मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें.
1885 से 1992 (मस्जिद के ध्वंस तक) तक निर्मोही अखाड़ा ही उस स्थान पर मजूद था. यह दस्तावेज़ों में भी दर्ज है. 1992 में रिसीवर की नियुक्ति के बाद से वहां सत्येन्द्र दास पूजा-पाठ का काम देखते हैं.
अभी यह सवाल सबसे बड़ा बना हुआ है कि मंदिर में पूजा पाठ की ज़िम्मेदारी किसे मिलेगी. क्या निर्मोही अखाड़ा अपनी दावेदारी रखेगा? ऐसे ही कई सवालों पर दिनेंद्र दास से हमने बात की. पूरी बातचीत सुनने के लिए यह वीडियो देखें. और हां न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें- ‘मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें.