नासिर अज़ीम ज़ी मीडिया के वीडियो कंटेंट के प्रमुख थे. कंपनी का दावा है कि उनका काम संतोषजनक नहीं था.
16 दिसम्बर को, जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन ने हिंसक रूप लिया, उसके एक दिन बाद ज़ी मीडिया के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी ने अपने प्राइम टाइम शो डेली न्यूज़ एनालिसिस (डीएनए) के जरिए दर्शकों को संबोधित किया.
चौधरी ने अपने कार्यक्रम में दर्शकों से कहा कि “लोकतांत्रिक” रूप से विरोध करना सबका अधिकार है, लेकिन इस देश में फिलहाल जो हो रहा है, वह प्रदर्शनकारी विरोध प्रदर्शन की आड़ में हिंसा का प्रचार कर रहे हैं. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह गाड़ियां जलाने, लोगों को परेशान करने और “अराजकता फ़ैलाने” का आरोप विद्यार्थियों पर लगाते हैं.
ज़ी मीडिया के वीडियो कंटेंट के पूर्व प्रमुख नासिर आज़मी ने चौधरी के कार्यक्रम का हवाला देते हुए अपने ही चैनल पर “एकतरफ़ा रिपोर्टिंग” का आरोप लगाया. ज़ी ग्रुप के अध्यक्ष सुभाष चंद्रा को लिखे एक पत्र में, नासिर ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए संगठन के रुख और उसके संपादकीय निर्णयों के बीच मौजूद तनाव की ओर इशारा किया.
न्यूज़लॉन्ड्री को नासिर ने बताया, “सुधीर बहुत ताकतवर हैं ज़ी समूह में. उनकी जानकारी के बिना वहां पत्ता भी नहीं हिलता. फिलहाल वो और उनके कुछ करीबी मिलकर पूरे संगठन को नियंत्रित कर रहे हैं.”
चंद्रा को लिखे अपने पत्र में नासिर कहते हैं: “मुझे लगता है कि ज़ी मीडिया पत्रकारिता की अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में नाकाम रहा है, विशेषकर ज़ी न्यूज़ जिसमे मैंने अपने जीवन का सबसे सुनहरा समय दिया है. चाहे जेएनयू और कन्हैया कुमार का मामला हो या फिर हाल में घटी एएमयू और जामिया की घटना हो, ज़ी न्यूज़ हर मामले में नाकाम रहा है.”
वो आगे कहते हैं, “चैनल ने देश और उसके नागरिकों को गुमराह करने की कोशिश की है. ख़ासकर जामिया वाले मामले पर, जहां छात्रों को सीएए और उसके बाद आने वाली एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के चलते पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटा गया था. इसलिए मैंने देश के हित में, और पत्रकारिता को बचाने के लिए नैतिक आधार पर यहां अपनी सेवाएं बंद करने का फैसला लिया है.”
नासिर ने आगे न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि ज़ी अपने दर्शकों को गुमराह करने के लिए मुद्दों से बाहर की चीजें पेश करता है. 2016 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अफजल गुरु की फांसी के विरोध में हुए प्रदर्शन का ज़िक्र करते हुए नासिर ने कहा, “जेएनयू वाला मामला ही देख लीजिये, पकिस्तान जिंदाबाद के नारे कभी वहां नहीं लगाए गए. मैं कोई एक या दो दिन से नहीं लड़ रहा हूं. अपने संस्थान के भविष्य के प्रति अपनी चिंताओं को सबके सामने उठाते हुए मुझे दो साल हो गए हैं.”
ज़ी न्यूज़ पर चलाई गई क्लिप जिसमे छात्र “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगा रहे थे वो क्लिप शरारत करते हुए एडिट की गयी थी, ताकि यह दावा किया जा सके कि छात्र “भारत विरोधी” नारे लगा रहे थे. चैनल के एक कर्मचारी विश्व दीपक ने उस समय जी द्वारा जेएनयू के फर्जी कवरेज के चलते इस्तीफा दे दिया था.
नासिर ने हाल फ़िलहाल का एक विडियो पेश किया जिसमें यह दावा किया गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने “हिन्दुओं से आज़ादी” के नारे लगाए थे. जबकि असल में छात्रों ने “हिंदुत्वा से आज़ादी” का नारा लगाया था. फिर भी कई मीडिया घरानों, जिनमें ज़ी न्यूज़ भी शामिल है, ने उस विडियो का इस्तेमाल किया. यहां परेशानी यह है कि जब इन वीडियो की फोरेंसिक जांच होती है और जब असली सच निकल कर सामने आता है, तब ज़ी न्यूज़ जैसे मीडिया संस्थान कभी इस वाले पक्ष को दिखाने या उसकी व्याख्या करते नज़र नहीं आते हैं.”
15 दिसम्बर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पुलिस की बर्बरता के बाद, ज़ी न्यूज़ ने एक “विशेष कार्यक्रम” प्रसारित किया कि कैसे जामिया के स्थानीय बाशिंदों ने बसों में आग लगा दी और पुलिस ने उन्हें नियंत्रण करने के लिए जवाबी कार्यवाही की. अपने कार्यक्रम डीएनए पर चौधरी ने कहा, “हम में से हर आदमी ऐसे इलाकों के बारे में जानता है जहां एक विशेष समुदाय के लोग रहते हैं जहां कोई किसी कानून को नहीं मानता. कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्र भी ऐसा ही माहौल बना रहे हैं.”
नासिर ने दावा किया कि ज़ी न्यूज़ ने जामिया के छात्रों के खिलाफ पुलिस की हिंसा को कवर न करने का निर्णय लिया था. वो कहते हैं, “हमारा संपादकों का एक व्हाट्सएप ग्रुप है, मैं लगातार उसमे दिल्ली पुलिस की छात्रों के खिलाफ बर्बरता वाली वीडियो भेज रहा था. आप विश्वास नहीं करेंगे, मुझे उन वीडियो पर एक भी जवाब या टिप्पणी नहीं मिली. अगले दिन एडिट मीटिंग में यह तय किया गया कि उस पक्ष को नहीं लिया जाएगा और हम केवल यही कहेंगे कि हिंसा हुई थी.”
दिलचस्प बात तो यह थी कि ज़ी मीडिया ने 4 दिसंबर को नासिर को एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि उनका प्रदर्शन “औसत से कम” है और इस कारण उन्हें एक महीने के लिए नोटिस पर रखा जा रहा है ताकि वो अपना “प्रदर्शन सुधार” सकें. नासिर ने आरोप लगाया कि यह उनके “निरंतर सवाल” करने का परिणाम था. “मैंने अपनी टीम में लोगो की कमी के चलते अपनी चिंताएं जताई थी,” उन्होंने कहा. “एक और बात जिसके कारण मुझे निशाना बनाया गया, वह थी मेरे द्वार फेसबुक पर साझा की गई चीजें. मुझे इसके कारण कंपनी की तरफ से कई बार फोन आया कि मैं इस तरह की चीजें शेयर न करूं,” नासिर ने बताया.
नासिर ने ज़ोर देकर कहा कि वह अंडरपरफॉर्मर नहीं थे. “उन्होंने मुझे 3 महीने पहले ही क्लस्टर लेवल 2 में स्थानांतरित कर दिया था. एक चैनल को संभालने की जगह, मैं लगभग 7 क्षेत्रीय चैनलों का प्रभारी था. केवल 3 महीने में एक दम से उन्हें मेरे प्रदर्शन से परेशानी होने लगी?”
न्यूज़लॉन्ड्री ने ज़ी मीडिया में कलस्टर 2 के प्रबंध संपादक पुरुषोत्तम वैष्णवा से बातचीत की. क्लस्टर 2 में ज़ी हिंदुस्तान सहित क्षेत्रीय चैनल शामिल हैं. वैष्णवा ने कहा कि एक घटना को कवर करना एक संपादकीय निर्णय होता है न कि वीडियो संपादकों का निर्णय.
वैष्णवा ने कहा, “नासिर के साथ परेशानी काफी पहले ही शुरू हो चुकी थी.” उसका काम बहुत अच्छा नहीं था और उसे हटाने की चर्चा काफी पहले से चल रही थी. मैंने हस्तक्षेप किया, यह देखते हुए कि वह सीनियर था, और उसे कलस्टर 2 में ले गया. शिफ्ट होने के बाद भी, उसने काम की बजाए केवल शिकायतें ही की. वह वीडियो टीम का प्रमुख था और जामिया के बारे में हमारी रिपोर्ट के बारे में, वह संपादकीय निर्णय नहीं ले सकता था.”
ज़ी के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, कि नासिर “धार्मिक कार्ड खेल रहे थे.” चंद्रा को लिखे अपने पत्र में, नासिर ने संगठन पर उनके खिलाफ नस्लवादी गालियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.
कर्मचारी ने नासिर के दावे को झुठलाते हुए कहा, “ऐसा कुछ नहीं हुआ था. एक व्यक्ति के रूप में उनकी विचारधारा में भिन्नता हो सकती है और वो इस्तीफा दे सकते हैं. लेकिन खुद को पीड़ित बताना सही नहीं है. यहां ज़ी में हम किसी के साथ भेदभाव नहीं करते, विशेषकर किसी के धर्म को लेकर तो बिलकुल नहीं. पत्र में कई पेशेवर मुद्दों का उल्लेख किया गया था. बेशक, उनके साथ भी कुछ गलत हुआ लेकिन बाहर आकर खुद को सिर्फ हीरो दिखाने की कोशिश करना उचित नहीं है.”
नासिर ने लिखा कि चौधरी सहित चार-पांच लोगों का एक गुट है जो ज़ी में सभी महत्वपूर्ण फैसले लेता है. ज़ी मीडिया के एक पूर्व कर्मचारी ने भी इस बात की पुष्टि की है. “पूर्व कर्मचारी ने बताया कि, “जिस पल संस्थान यह तय कर लेता है कि उसे आपकी जरूरत नहीं है उसी पल से वे आपकी हर मुमकिन ग़लती की ओर इशारा करना शुरू कर देता है. यक़ीनन यहां कुछ लोगों की विशेष साठगांठ है, लेकिन मुझे लगता है कि सामान्य रूप से मीडिया शायद इसी तरह काम करता है.”