बच्चों पर जहरीली हवा का हानिकारक प्रभाव एक टाइम बम है, जो कि गंभीर बीमारियों की बेकाबू महामारी के रूप में फटने की प्रतीक्षा कर रहा है.
भारत में जहरीली हवा के कारण पांच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की सबसे ज्यादा समय पूर्व मौतें हो रही हैं. यह बेहद चिंताजनक बात है. वर्ष 2016 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक बाहरी और घर के भीतरी प्रदूषण के कारण पांच वर्ष से कम उम्र वाले 1,01,788 बच्चे समय पूर्व दम तोड़ देते हैं.
इसका मतलब वायु प्रदूषण के कारण प्रति घंटे करीब 12 बच्चों की असमय ही मौत हो जा रही है. इनमें से बाहरी प्रदूषण के कारण जान गंवाने वाले बच्चों की संख्या 7 है. मरने वाले बच्चों में से आधे से ज्यादा लड़कियां हैं. भारतीय बच्चे ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुरूप नहीं है.
एशिया में अफगानिस्तान और पाकिस्तान ही ऐसे देश हैं जहां वायु प्रदूषण के कारण मौतों की दर भारत के बाद सबसे ज्यादा है. वहीं, विश्व आर्थिक मंच के मुताबिक भारत दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. ऐसे में यह स्थिति स्वीकार योग्य नहीं है.
हमें अचरज में डालने वाले सबूत यह खुलासा करते हैं कि माताओं की कोख और उसमें पल रहा बच्चा इस तरह की असुरक्षित हवा की जद में रहने के चलते शायद ही जीवित रहने के संघर्ष में विजयी हो. प्रदूषित हवा के कारण गर्भवती महिला की कोख और उसमें पल रहे बच्चे को सबसे ज्यादा खतरा है. इसी वजह से समय पूर्व बच्चे का जन्म, जन्म के समय कम वजन और जन्मजात विकारों के मामले बढ़े हैं.
शिशुओं की मौत और बाहरी व घर के भीतर मौजूद वायु प्रदूषण के बीच एक मजबूत रिश्ता है. शिशुओं के फेफड़े सबसे ज्यादा प्रदूषण और हवा जनित दुष्प्रभावों के लिए संवेदनशील होते हैं. वायु प्रदूषण बच्चों की वृद्धि और विकास पर काफी ताकतवर तरीके से असर डालता है. शुरुआती स्तर यह प्रभाव दिमाग और तंत्रिका विकास और फेफड़ों की कार्य क्षमता पर पड़ता हैं.
लंबे समय तक जहरीली हवा के जद में रहने से बच्चों में कैंसर और मोटापा जैसी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं. अध्ययन यह बताते हैं कि पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार भी बच्चों में पैदा होते हैं. खासतौर से बच्चों में अत्यधिक चंचलता संबंधी, बुद्धिमत्ता में कमी और बिगड़े हुए तंत्रिका विकास जैसी परेशानियां देखी गई हैं.
बच्चों के फेफड़े जो कि परिपक्व होने की प्रक्रिया में होते हैं ऐसे में वायु प्रदूषण फेफड़े के काम करने की क्षमता और विकास में बाधा पैदा करते हैं. बच्चे के जन्म के पूर्व जो भी दुष्प्रभाव वह प्रदूषण के कारण झेलता है उससे बच्चे में कैंसर होने का जोखिम उच्च स्तर तक पहुंच जाता है. वायु प्रदूषण का शुरुआती स्तर पर ही पड़ने वाला दुष्प्रभाव न सिर्फ फेफड़ों के विकास को बाधित कर सकता है बल्कि फेफड़ों की कार्य क्षमता को भी मंद कर सकता है. ऐसे में शुरुआती दुष्प्रभाव झेलने वाले को वयस्क होने तक लाइलाज फेफेड़े की बीमारी से भी गुजरना पड़ सकता है.
इसी तरह गर्भावस्था के दौरान यदि कोई महिला वायु प्रदूषण के जद में रही है तो यह भी संभव है कि बाद में उसे हृदय रोग भी झेलना पड़े. कई रोग बचपन में ही पलने लगते हैं जो वयस्क उम्र तक आकर अपना असर दिखा सकते हैं.
भारतीय शहरों में भी अपने चौंकाने वाले सबूत हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नेशनल चितरंजन कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक विस्तृत अध्ययन में यह बताया है कि दिल्ली में हर तीसरे बच्चे का फेफड़ा बिगड़ा हुआ है. वहीं, बड़ी संख्या में बच्चों में फेफड़े के रक्तस्राव के भी संकेत हैं. दिल्ली के पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट ने अपने अध्ययन में बताया है कि दिल्ली जैसे प्रदूषित शहरों में बच्चे छोटे फेफड़ों के साथ कैसे बड़े हो रहे हैं.
इसके अलावा स्मॉग (धुआं मिश्रित धुंध) सूरज की रोशनी को भी रोक रहा है और बच्चों व कइयों में विटामिन डी के अवशोषण में बाधा पैदा कर रहा है. इस तरह की उदासी और कयामत के संदेह के बावजूद वायु प्रूदषण के विरुद्ध कार्रवाई इन घातक रुझानों को उलट सकती है. अच्छी ख़बर यह है कि वायु गुणवत्ता प्रदूषण में सुधार स्वास्थ्य जोखिम को भी कम कर सकता है.
चीन ने कड़े वायु प्रदूषण विनियमन की शुरुआत कर इसके ‘पहले और बाद में प्रभाव’ का आकलन किया है. चीन में उत्सर्जन में 20 की नाटकीय कमी होते ही नवजात शिशु की मृत्यु दर में कमी, नवजात अवधि के दौरान 63 प्रतिशत की कमी, विशेषकर तंत्रिका और संचार प्रणाली से जुड़ी मौतों में कमी पाई गई है.
यदि प्रदूषक तत्वों में कमी होती है तो जद में रहने वाली माताओं का जोखिम भी कम होता है. उनमें भ्रूण का विकास और बच्चे के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है. यह हमें एक मजबूत कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करता है. अक्सर महत्वाकांक्षी कार्य योजनाओं को आर्थिक प्रभाव के डर से हतोत्साहित किया जाता है. लेकिन वायु प्रदूषण को खत्म करने या कम करने की लागत हमेशा स्वास्थ्य और पर्यावरणीय लागतों से कम ही रहेगी. बच्चों पर जहरीली हवा का हानिकारक प्रभाव एक टाइम बम है, जो कि गंभीर बीमारियों की बेकाबू महामारी के रूप में फटने की प्रतीक्षा कर रहा है.
(यह लेख डाउन टू अर्थ फीचर सेवा से साभार)