नीट परीक्षा के माध्यम से सरकार ने छात्रों को जिस मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिया वही कॉलेज फर्जी निकला.
कुछ दिन पहले हरियाणा के यमुना नगर में रहने वाले 46 वर्षीय सुशील कटारिया अचानक से बेहोश हो गए. अच्छे-भले स्वस्थ कटारिया को लगे इस झटके की वजह उनकी बेटी के लिए लिया गया एक लोन है. बेटी को डॉक्टर बनाने के लिए उन्होंने 32 लाख रुपए का कर्ज ले रखा है. जब उन्हें पता चला कि जिस मेडिकल कॉलेज में इतनी महंगी फीस देकर उन्होंने अपनी बेटी का एडमिशन करवाया था, वह फर्जी है. वहां न तो स्टाफ है, न जरूरी सुविधाएं और एमसीआई (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) ने भी कॉलेज की मान्यता खारिज कर दिया है.
सुशील की तरह ही करीब 148 अभिभावकों ने अपने बच्चों का एडमिशन हरियाणा के झज्जर शहर के वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज में करवाया था, जिसे साल 2017 में ही एमसीआई ने बतौर मेडिकल कॉलेज रद्द कर दिया था.
अपने भविष्य और अपनी डिग्री पूरी करने के लिए छात्र-छात्राएं सरकार और प्रशासन से भी मिले, लेकिन उनकी आवाज नहीं सुनी गई. कोई समाधान न निकलने के कारण पिछले 44 दिनों से वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज के सभी छात्र-छात्राएं झज्जर जिले के श्रीराम पार्क में आंदोलन पर बैठे हैं. इन विद्यार्थियों ने साल 2016 में नीट की परीक्षा पास कर इस कॉलेज में एडमिशन लिया था.
अनशन पर बैठे साहिल सैनी बताते हैं, “जब हमें और हमारे घरवालों को मेडिकल कॉलेज की असलियत पता लगी तो हमने हर सरकारी तंत्र के दरवाजे खटखटाने शुरू कर दिए. हम डीसी से मिले, सांसद से मिले, मंत्रियों से मिले, मुख्यमंत्री साहब से मिले, राज्यपाल से मिले, राष्ट्रपति से मिले. इतना ही नहीं हम तो अमित शाह और प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी गए. लेकिन हर जगह समाधान की बजाए सिर्फ आश्वासन ही दिया गया, जिसके कारण आज हम आज आंदोलन करने को मजबूर हैं. आज हमें अनशन पर बैठे पूरे 44 दिन हो चुका है, लेकिन अभी तक हमारा कोई समाधान नहीं किया गया है. नेता वोट मांगने में व्यस्त हैं, तो प्रशासन उनकी आवभगत में मस्त हैं और हम यहां सड़क के किनारे भूखे-प्यासे न्याय के लिए बैठे हैं.” इतना कहकर साहिल रो पड़ते हैं.
साहिल के पास बैठे छात्र अभिषेक सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “इस कॉलेज को साल 2014 में राज्य सरकार ने एनओसी दी थी. मगर इस कॉलेज में आज तक न ओपीडी है और न ही मेडिकल कॉलेज के लिए जरूरी सुविधाएं. इसका मतलब तो सरकार ने गड़बड़ की है. इतना ही नहीं, एमसीआई ने अपनी हर रिपोर्ट में इस मेडिकल कॉलेज को खारिज किया है. असल में इस कॉलेज के चेयरमैन नरेन्द्र सिंह राजस्थान भाजपा की कार्यकारिणी में हैं और बीजेपी के नेता होने के कारण सरकार हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है. कॉलेज की कमेटी में दो आईएएस और एक आईपीएस अधिकारी भी हैं, शायद इस वजह से ही प्रशासन भी हमारे प्रति इतना निष्कृय है.”
कॉलेज के चेयरमैन और भाजपा नेता नरेन्द्र सिंह पर सीबीआई ने 3 अगस्त 2017 को अपने मेडिकल कॉलेज को मंजूरी दिलाने के लिए रिश्वत देने के जुर्म में एफआईआर भी दर्ज की थी, जिसमें तीन लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई थीं.
अभिषेक आगे बताते हैं, “हम अपनी समस्या लेकर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के पास गए तो शुरुआत में उन्होंने मांगों को जायज कहकर हमें आश्वासन देकर वापस लौटा दिया था, लेकिन बाद में दोबारा मिलने गए तो बोले कि ये तो प्राइवेट कॉलेज है कुछ नहीं होगा. आप सारे बच्चे फ्रॉड हैं. सरकार और प्रशासन द्वारा बनाई गई ग्रिवांस रिड्रेसल कमेटी ने सात दिन जांच पड़ताल कर हम छात्रों को दूसरे मेडिकल कॉलेजों में शिफ्ट करने की सिफारिश की. लेकिन ऐसा करने की बजाय सरकार ने उस कमेटी को ही खत्म कर दिया.”
साल 2016 में पीजीआई यूनिवर्सिटी, रोहतक ने नीट काउंसलिंग के माध्यम से छात्रों को वर्ल्ड मेडिकल कॉलेज, झज्जर में प्रवेश दिया था. लेकिन साल 2017 में जब एमसीआई ने कॉलेज का निरीक्षण किया को बुनियादी सुविधाओं की भी पूर्ति करने में अक्षम इस कॉलेज को साल 2017-18, 2018-19 में छात्रों को दाखिला देने से कॉलेज को प्रतिबंधित कर दिया था.
अनशन पर बैठी एक छात्रा बताती हैं, “हम आमरण अनशन पर बैठे तो हमारे 8 साथियों की तबियत बिगड़ने लगी. उन्हें झज्जर के सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया गया. हमें न तो वहां ठीक से ट्रीटमेंट दिया गया और न ही सोने के लिए बेड. हम दो रात सिविल अस्पताल में जमीन पर सोए. वहां के सीएमओ (चीफ मेडिकल ऑफिसर) हमें लगातार धमकाते रहते थे और आखिरी दिन तो उन्होंने पुलिस के साथ मिलकर हमारे ऊपर केस ही दर्ज करवा दिया. हमारी रिपोर्टिंग करने आए ‘बोल हरियाणा’ चैनल के पत्रकार परविन्दर सिंह को पुलिस उठाकर ले गई और उनका सामान छीनकर उनके साथ मारपीट की.”
परविन्दर सिंह ‘बोल हरियाणा’ के रिपोर्टर हैं और वह छात्रों के अनशन को कवर करने आए थे. जब वह छात्राओं की बाईट ले रहे थे, तभी पुलिस ने आकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. परविन्दर सिंह बताते हैं, “मैंने पहले भी इन छात्र-छात्राओं के इस मुद्दे को कवर किया है. उस दिन जब मैं वहां लड़कियों की बाईट लेने गया तो वहां खड़ी पुलिस ने मुझे जबरदस्ती उठाकर जिप्सी में डाल दिया और थाने ले गए. मैं उनको अपना आईकार्ड दिखाता रहा. लेकिन वो आईकार्ड देखने की बजाय मुझे लगातार भद्दी-भद्दी गालियां निकाल रहे थे और पीट रहे थे. कुछ देर बाद ही मुझे छुड़वाने के लिए आंदोलनरत छात्रों के मां-बाप थाने पहुंच गए. काफी मशक्कत के बाद उन्होंने मुझे वहां से छुड़वाया और मेरा सामान वापस दिलवाया. पुलिस वालों ने मेरे कैमरे और माइक को तोड़ने की कोशिश भी की.”
अनशन पर बैठे छात्र बताते हैं कि जब भी कोई मीडिया वाला धरना स्थल पर आता है तो पुलिस वाले आकर उसे तंग करने लगते हैं. इस मामले में हमने प्रशासन का पक्ष जानने के लिए झज्जर जिले के डीसी संजय जून से भी बात की. उन्होंने बताया, “देखिए हमने हर संभव मदद करने की कोशिश की है. अभी स्टाफ की कमी को पूरा कर लिया जाएगा. जिनको पढ़ना है वो आकर पढ़ सकते हैं. बाकि जो अपना ट्रांसफर चाहता है तो दूसरे कॉलेज से लिखवा लाए कि वो उस छात्र को लेने के लिए तैयार है, तो हम ट्रांसफर करने में हर संभव मदद कर देंगे. बाकि जहां तक पत्रकार की गिरफ्तारी की बात है, वह मेरे नॉलेज में नहीं है.”
हमने मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन का पक्ष जानने की भी कोशिश की, लेकिन उन्होंने न फोन उठाया है और न ही हमारे संदेश का जवाब दिया है. छात्र साहिल सैनी बताते हैं, “हम भी चेयरमैन सर से मिलने गए थे. उन्होंने बड़ी ही तल्ख जुबान में हमसे कहा कि ज्यादा नेता मत बनो. तुम लोगों की नीयत को मैं जानता हूं. तुम इस आंदोलन की आड़ में अपनी बकाया फीस ही नहीं भरना चाहते. इतना कहकर उन्होंने हमें अपने गार्डों से धक्के मरवा दिए थे.”
इस मेडिकल कॉलेज को एमसीआई द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बाद ‘डिग्री’ की मान्यता से निराश छात्र पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, चंडीगढ़ में भी न्याय की अपील कर चुके हैं, लेकिन उच्च न्यायालय ने अभी भी केस को लटका रखा है. हजारों ट्वीट्स, सैकड़ों आधिकारिक पत्र, कई बैठकों के बाद भी अभी तक सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई हैं.