इस वित्त वर्ष में सबसे ज़रूरी है की सरकार पैसा सोच समझ कर खर्च करें और सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों पर इसे बर्बाद न करे.
भारत में आर्थिक सुस्ती आ गयी है लेकिन सरकार इस बात को मानने से कतरा रही है और देश को ये समझाने में लगी है कि ये सबकुछ कुछेक मिलेनियल्स की कारस्तानी है.
अगर सरकार (वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन) और व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स की माने तो मिलेनियल्स पीढ़ी नई गाड़ी खरीदना नहीं पसंद करती है और उबेर-ओला के चक्कर में फंसी हुई है. अब यहां पर दो किस्म के बातें मन में उठती हैं. क्या सरकार ने इस मसले पर कोई अध्ययन कराया है, या फिर उसकी इस जानकारी का स्रोत देश की उन लाखों-करोड़ों जनता की तरह ही व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स हैं? फिलहाल अभी तक सरकार ने इस पर किसी भी प्रकार के अध्ययन को सामने नहीं रखा है. तो क्या हम ये मान लें कि देश की आर्थिक नीतियों का एक आधार अब व्हाट्सएप फारवर्ड्स भी होने लगे हैं?
दूसरी बात ये है कि केवल कारों की बिक्री नहीं गिर रही है. दो पहिया वाहनों (स्कूटर और मोटरसाइकिल) की बिक्री भी गिरी है. यहां तक की मोपेड की भी बिक्री गिरी है. ट्रैक्टर भी पहले की तरह नहीं बिक रहे है. वाणिज्यिक वाहनों (ट्रक, बस) का भी वही हाल है.
इसके अलावा गैर तेल, गैर सोना, गैर चांदी आयात भी पिछले कई महीनों से गिर रहा है. यह उपभोक्ताओं की मांग का एक बहुत ही अच्छा सूचक है. अब इन सब चीज़ों का मिलेनियल्स और उनके उबेर-ओला इस्तेमाल करने से क्या लेना देना है?
बात बस इतनी सी है की सरकार ये मानने को तैयार नहीं है की देश एक गंभीर आर्थिक सुस्ती में फंस चुका है. किसी समस्या से निपटने और उससे पार पाने की पहली शर्त है कि उस समस्या को स्वीकार किया जाए. फिलहाल सरकार के स्तर पर ऐसा नहीं दिख रहा. इससे उबरने के लिए और सामान्य आर्थिक विकास की गाड़ी को पटरी पर बनाए रखने के लिए सरकार को क्या करना चाहिए. आइये इस पर नज़र डालते हैं. हालांकि सलाह बिन मांगी है पर बतौर भारत के नागरिक, यह करना जरूरी है.
1- सबसे पहले ये ज़रूरी हो गया है कि माल और सेवाकर की पेंचीदगी को ख़त्म किया जाए. इससे छोटे व्यापारियों को बहुत फायदा होगा और सरकार के कर संग्रह में इज़ाफ़ा होगा, जिसकी अभी बहुत ज़्यादा ज़रुरत दिख रही है. इसकी फिलहाल बहुत ज़्यादा ज़रुरत है, लेकिन कहीं से भी यह होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है.
2- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने हाल फ़िलहाल में देश के विभिन्न हिस्सों में शॉपिंग फेस्टिवल्स आयोजित करने की घोषणा की है. ये तो जब होगा तब होगा, इससे पहले ये ज़रूरी है की देश की जनता को खरीददारी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए. ये तभी संभव है जब जनता के हाथों में थोड़ा बहुत पैसा आए. यह काम आयकर की दरों को घटा कर किया जा सकता है.
3- अगस्त के महीने में माल निर्यात में भी गिरावट आयी है. निर्यातकों की मदद करने के लिए ज़रूरी है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट (माल और सेवा कर पर) की एक स्वचालित वापसी हो. इससे निर्यातक जो कार्यशील पूंजी संकट का सामना कर रहे थे, वो कम होगा.
4- पिछले कुछ सालों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा है. अब धीरे-धीरे ये लग रहा है की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की हालत भी कुछ ठीक नहीं है. इसलिए ये ज़रूरी हो गया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक इन कंपनियों का एसेट क्वालिटी रिव्यु करे. रिज़र्व बैंक ने ऐसा ही कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ 2015 में किया था और तब जाकर इन बैंकों की ख़राब ऋण की समस्या की असली तस्वीर सामने आयी थी.
5- सरकार कर की कमी का सामना कर रही है. इसलिए इस वित्त वर्ष में ये बहुत ज़रूरी है की सरकार पैसा सोच समझ कर खर्च करें और सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों पर इसे बर्बाद न करे. इसके अलावा जिन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचा जा सकता है, उन्हें बेचा जाए. इससे मिलने वाली राशि राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढांचा कोष (नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फण्ड) में जानी चाहिए.
ये वो क़दम है जिन्हें सरकार को तात्कालिक उपाय के तौर पर उठाने चाहिए. इससे लड़खड़ाती हुई अर्थव्यवस्था थोड़ी बहुत पटरी पर वापस आएगी और आर्थिक सुस्ती के और गहरा होने का खतरा टल जायेगा. इसके बाद मंदी से निपटने के उन दीर्घकालिक उपायों पर विचार होना चाहिए जो एक स्थायी समाधान की दिशा प्रशस्त करें.
(विवेक कौल इजी मनी ट्राइलॉजी के लेखक हैं.)