प्राख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की नज़र से देखिए इस बार शिक्षक दिवस.
साधो, एक भाई ने बताया- मेरे पड़ोस में एक रिटायर्ड शिक्षक रहते हैं. 5 सितम्बर को मैंने देखा, वे एक हाथ में माला और दूसरे में नारियल लिए चले आ रहे हैं. कपाल पर लाल तिलक भी है. वे मजे के विनोदी स्वभाव के बुजुर्ग हैं. मैंने पूछा-कहां से आ रहे हैं पंडितजी? उन्होंने कहा-आज नागपंचमी है न? कुश्ती जीतकर आ रहे हैं. मैंने कहा- नागपंचमी तो पिछले महीने हो गई, पंडितजी. आज तो पांच सितम्बर है, ‘शिक्षक दिवस’. पंडितजी हंसकर बोले- वही शिक्षक कुश्ती जीतकर आ रहा हूं. रोटरी क्लब में सम्मान कराके आ रहा हूं. देखो, साल-भर सांप दिखे तो उसे भगाते हैं. मारते हैं. मगर नागपंचमी को सांप की तलाश होती है, दूध पिलाने और पूजा करने के लिए. सांप की तरह ही शिक्षक दिवस पर रिटायर्ड शिक्षक की तलाश होती है, सम्मान करने के लिए.
साधो, वे दोनों शाम को बात करते-करते मेरे पास आ गए. शिक्षक बुजुर्ग बोले जा रहे थे- तो हम शिक्षक-दिवस के नाग-देवता हैं. पहली सितम्बर से हमारी तलाश शुरू हो जाती है. कितनी संस्थाएं हैं, शिक्षक का सम्मान करने वाली- रोटरी क्लब, रोटरेक्ट क्लब, लायन्स क्लब, लायनेस क्लब (शेरनियों का). कई चैम्बर हैं- चैम्बर ऑफ कामर्स, जूनियर चैम्बर, जेसीज़, वस्त्र-विक्रेता संघ- 25-30 संस्थाएं हैं बड़े आदमियों की.
5 सितम्बर आते-आते इन पर शिक्षक की गरिमा सवार हो जाती है. वैसे इन्हें बीच में मानवीयता के ‘फिट्स’ आते रहते हैं, जब ये गरीबों के लिए मुफ्त ‘आई कैम्प’ खोलते हैं, बस स्टेशन पर प्याऊ खुलवाते हैं, अनाथालय के बच्चों को मिठाई बांटते हैं. ये रोटरी, लायन्स वाले अच्छे ही लोग हैं. व्यापारी, बड़े वकील, बड़े ठेकेदार, अफसर, बड़े डॉक्टर. इन्हें धन्धा बढ़ाना होता है. प्रतिष्ठा बढ़ानी होती है. साथ ही समाज के हितकारी की छवि बढ़ानी होती है. ये देखते रहते हैं कि कौन-सा शेयर मार्केट में कब चलता है. वह शेयर ये ले लेते हैं. ये समझते हैं कि देश में 5 सितम्बर को शिक्षक का सम्मान करने का फैशन चल पड़ा है. राष्ट्रपति शिक्षकों को सम्मानित करते हैं, तो ये भी सोचते हैं कि यह कार्यक्रम अच्छा रहेगा. अखबारों में समाचार छपेगा. लोग जानेंगे कि हम सिर्फ पैसा पीटनेवाले लोग नहीं हैं. हम गुरु की महिमा जानते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं.
अब आप समझ लीजिए कि अगर डाकुओं का इसी तरह शान से आत्मसमर्पण होता रहा और ऐसी ही गरिमापूर्ण फिल्में बनती गईं, तो आगे चलकर डाकू-सम्राट मानसिंह का जन्म-दिन ‘दस्यु दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा. मानसिंह अपने क्षेत्र में डॉ. राधाकृष्णन से कम योग्य और सम्मानित नहीं था. फिर एक ‘मिलावटी दिवस’ होगा, ‘कालाबाजारी दिवस’ होगा, ‘तस्करी दिवस’ होगा, ‘घूसखोर दिवस’ होगा. ये चलेंगे. शिक्षक दिवस तो इसलिए चल रहा है जबरदस्ती कि डॉ. राधाकृष्णन राष्ट्रपति रहे. अगर वे सिर्फ महान् अध्यापक मात्र रहते, तो शिक्षक दिवस नहीं मनाया जाता.
साधो, ये रिटायर्ड गुरुजी काफी मुंहफट किस्म के आदमी हैं. रोटरीवालों ने गलत नाग बुला लिया था-ऐसा नाग जिसके दांत हैं और ज़हर भी है. इन गुरुजी ने कहा-भैया, ये बड़े-बड़े रोटेरियन जिस तरह मेरा बढ़-चढ़कर सम्मान कर रहे थे, उसी से मुझे समझ में आ रहा था कि ये मुझे बहुत तुच्छ समझते हैं. पर एक तुच्छ का सम्मान करना जरूरी था, क्योंकि उन्हें एक सफल कार्यक्रम करना था. सफल कार्यक्रम तो बन्दर का खेल दिखाना भी होता है- जिसमें बन्दर लाठी लेकर ससुराल अपनी दुलहन बंदरिया को लेने जाता है. बन्दर के बंदरिया दुलहन लाने और शिक्षक के सम्मान में कोई फर्क नहीं है. न कोई बन्दर की शादी को गम्भीरता से लेता है और न शिक्षक को. दोनों ही खेल हैं. बन्दर, बन्दर ही है. और गुरु वही दो कौड़ी का ‘मास्टर-वास्टर’ है.
साधो, हमने पूछा- तो गुरुजी, आपने सम्मान के जवाब में भाषण दिया होगा. क्या बोले आप? गुरुजी ने कहा कि मैं तो घोर त्रास में था. मुझे रोटरी क्लब के उन कीमती गुड्डे-गुड्डियों पर हंसी भी आ रही थी. मैं नौकरी में था, तब भी साफ बोल देता था. बदनाम था. अब तो कोई मेरी नौकरी भी नहीं ले सकता. मैंने कहा- मैं सम्मान के लायक नहीं हूं. मैंने किसी पीढ़ी का निर्माण नहीं किया. मैं राष्ट्र-निर्माण नहीं कर सका क्योंकि राष्ट्र को नष्ट करनेवाले मुझसे ज्यादा ताकतवर हैं. मैं अपने छात्रों का चरित्र-निर्माण भी नहीं कर सका. मैं कई अपने प्रिय छात्रों को जानता हूं, जो दो नम्बरी धन्धेवाले हैं, या घूसखोर सरकारी कर्मचारी हैं. मेरे सब छात्र चरित्रहीन और भ्रष्ट निकले. जिस व्यवस्था में बेईमानी उत्तम गुण मान लिया गया हो, उसमें आचार्य बृहस्पति भी किसी को ईमानदार नहीं बना सकते. आप बड़े-बड़े लोग भी ईमानदार कतई न बनें. अगर ईमानदार बन गए तो धन्धा चौपट हो जाएगा, प्रैक्टिस कम हो जाएगी. घूस का धन चला जाएगा. ईमानदारी और चरित्र की इस व्यवस्था में कोई जरूरत नहीं है.
साधो, गुरुजी अपना रोटरी क्लब का भाषण सुनाए जा रहे थे- कहा, यह झूठ है कि आप लोग शिक्षक का सम्मान करते हैं. आप एक पर्व का निर्वाह कर रहे हैं. मुझे रिटायर हुए दो साल हो गए, पर मुझे अभी तक पेन्शन मिलना शुरू नहीं हुआ. उसमें घूस देनी पड़ती है दफ्तर में. मेरे सम्मान-अम्मान को आप लोग जाने दें भाड़ में. आप बड़े-बड़े लोग दबाव डालकर मेरी पेन्शन चालू करा दें. वे मेरे दाहिने तरफ शिक्षा विभाग के ऊंचे अफसर बैठे हैं. इन्होंने मुझे तिलक किया है, मगर इन्हीं के दफ्तर से मेरी पेन्शन का आदेश जारी नहीं हुआ अभी तक!
साधो, गुरुदेव ने कहा- वहां सन्नाटा छा गया. उन अफसर ने नीचा माथा कर लिया. मैंने कहा- हमारी क्या प्रतिष्ठा है? एक बार अफसर आकर तीन दिन शहर में ठहर गए. उनके साथ 4-5 आदमी और थे. हम शिक्षकों को चन्दा करके उनके तथा उनके चमचों के लिए मुर्गा और शराब का इन्तजाम करना पड़ा. यह गुरु की महिमा है. गुरु अब वह काम का है जो ट्यूशन करे, पेपर आउट कराए, नकल कराए और नम्बर बढ़ाए. आप लोग इनकम टैक्स और सेल्स टैक्स के क्लर्क का सम्मान दिवस मनाया कीजिए. अध्यापकों का नहीं. हमारा क्या दम है? प्राइवेट स्कूलों के मालिक शिक्षक का आधा वेतन खाते रहे हैं, और हम उनमें से एक की भी हत्या नहीं कर सके इतने सालों में.
साधो, इन गुरुजी का कहना है कि 5 सितम्बर शिक्षकों का अपमान दिवस है. झूठ है. पाखंड है. गरीब अध्यापक का उपहास है. प्रहसन है. वेतन ठीक नहीं देंगे. सुभीते नहीं देंगे. सम्मान करके उल्लू बनाएंगे. यह शिक्षक दिवस उपहास दिवस है. इस देश के शिक्षकों को 5 सितम्बर को सम्मान कराने से इनकार कर देना चाहिए. लोग बुलाएं तो शिक्षक कह दें- हमें अपना सम्मान नहीं कराना. आप जबरदस्ती करेंगे तो हम पुलिस में रिपोर्ट करेंगे.
किताब का नाम – परसाई रचनावली
लेखक – हरिशंकर परसाई
प्रकाशन – राजकमल प्रकाशन