पहली किस्त: ‘सन्नाटा इतना घना है कि घरों के भीतर से ड्रोन के पंखों की आवाज़ सुनी जा सकती है’

इंटरनेट, मोबाइल, फोन, अख़बार की पहुंच से बाहर कश्मीर में बीते दो दिनों के हाल पर पहली ग्राउंड रिपोर्ट.

WrittenBy:राहुल कोटियाल
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प्रतीकात्मक तस्वीर

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शुक्रवार का दिन है. श्रीनगर एयरपोर्ट पर दोपहर की नमाज़ पढ़ी जा रही है. इसमें अधिकतर एयरपोर्ट के कर्मचारी और कुछ यात्री शामिल हैं. इनसे कुछ ही दूरी पर दर्जनों लोग अपने सामान के साथ वैसे ही बैठे हुए है जैसे अक्सर हम देश के तमाम रेलवे स्टेशनों पर देखते आए हैं. इसमें से ज्यादतर गैरकश्मीरी लोग हैं जो जल्द से जल्द कश्मीर से बाहर जाना चाह रहे हैं. आज पांचवां दिन है जब कश्मीर का सम्पर्क बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ है. इंटरनेट, मोबाईल और लैंडलाइन सब ठप पड़े हुए है. एयरपोर्ट पर जो लोग किसी अपने का इंतजार कर रहे हैं वो आने वाले यात्रियों से पूछ रहे है कि आपकी फ्लाइट दिल्ली से कितने बजे निकली थी. इससे वे अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके लोग कश्मीर कितनी देर में पहुंच रहे होंगे.

इस आकलन के अलावा यहां के लोगों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है कि वो अपने परिजनों, रिश्तेदारों से सम्पर्क साध सके. उन्हें बस इतना पता है कि वे जिनको लेने आए है वो अमुख फ्लाइट से आने वाला था. ये सूचना उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति से मिली है जो एक-दो दिन पहले ही वहां से लौटा है जहां से इनके लोग आज लौट रहे हैं.

कश्मीर से निकल रहे लोगों के एयर टिकट बुक करने का एक मात्र तरीका विमान कंपनियों के दो काउन्टर हैं जो एयरपोर्ट पर खुले हैं. यहां पर टिकट सिर्फ नकद पैसे लेकर बुक हो रही है. कैशलेस भारत के इस हिस्से में फ़िलहाल बिना कैश के कुछ भी संभव नहीं है और कैश बहुत तेजी से खत्म हो रहा है. लेकिन एयरपोर्ट पर लगी एक एटीएम से फिलहाल कैश निकल रहा है और यहां मौजूद लोगों के लिए यह एक बड़ी राहत की बात है.

एयरपोर्ट के भीतर की ये चहल पहल बाहर निकलते ही पूरी तरह थम जाती है. एयरपोर्ट परिसर से निकलते ही वो छवि आंखों से सामने दिखती है जो कर्फ्यू का नाम सुनते के बाद किसी के भी दिमाग में बनती है. खाली सड़कें, बंद दुकानें, दूर तक फैला सन्नाटा और चप्पे-चप्पे पर तैनात सुरक्षा बल. बंदूक ताने एक जवान की दूसरे जवान के बीच की दूरी बमुश्किल 20 फीट है और ये जवान सड़क के दोनों ही तरफ तैनात हैं. ऐसे कई जवानों को पार करने पर इक्का दुक्का गाड़ियां सड़क पर नज़र आती है.

एयरपोर्ट से थोड़ा ही आगे बढ़ने पर ये तनाव और बढ़ता नजर आता है. यह हैदरपुरा है, यहां सुरक्षा बल ज्यादा संख्या में तैनात किए गए हैं. सड़क से लगती गलियों को कटीली तारों से बंद कर दिया गया है और ऐसी हर गली के बाहर सुरक्षा बलों के बंकर बनाए गए है. यह जुमे का दिन है लिहाजा दोपहर के नमाज़ के लिए इक्का दुक्का लोग मस्जिदों में पहुंचे हैं. लेकिन ये वही लोग हैं जिनके घर मस्जिदों से बेहद करीब हैं. मस्जिद वाली कुछ गलियों से पत्थरबाजी भी हो रही है लिहाजा यहां किसी भी गाड़ी को रुकने की अनुमति नहीं है.

कुछ आगे बढ़ने पर सड़क किनारे ऐसी गाड़ियां खड़ी दिखती हैं जिनमें सब्जी लादकर लाई गई है. ऐसी ही कुछ गाड़ियों में भेड़ें भी भरकर लाई गई हैं क्योंकि तीन दिन बाद ही ईद का त्यौहार आने वाला है. लेकिन इन गाड़ियों के आसपास ग्राहक नज़र नहीं आए, और सुरक्षा बल बेहद ज्यादा. इसी हाई-वे पर कुछ आगे बढ़ने पर पारिमपोरा क्रॉसिंग आती है, यहां से एक सड़क लाल चौक को कटती है जबकि एक सड़क सोपोर, बारामुला और उरी की तरफ निकलती है. अमूमन श्रीनगर से बारामुला तक का किराया सौ रुपया प्रति सवारी होता है, लेकिन आज एयरपोर्ट से क्रासिंग तक का किराया ही तीन सौ रुपए प्रति व्यक्ति वसूला जा रहा है. इस पर स्थानीय निवासी टैक्सी वालों को कोस भी रहे है कि इन हालात में भी टैक्सीवाले अपने ही लोगों को लूटने से बाज नहीं आ रहे हैं.

इस क्रॉसिंग से बारामुला की तरफ जाने वाले लोग बेहद कम हैं और गाड़ियां उनसे भी कम. यहां मौजूद लोग एक टैक्सी वाले को बारामुला चलने के लिए मना रहे हैं. काफी देर मनाने के बाद सात सौ रुपए प्रति सवारी के किराए पर टैक्सी वाला सौदा तय करता है लेकिन साथ भी वो ये शर्त भी रखता है कि वो किसी भी हाल में सोपोर नहीं जाएगा क्योंकि वहां हालात कभी भी ख़राब हो सकते हैं.

एयरपोर्ट से अब तक किसी भी सुरक्षा बल ने गाड़ियों को रोका नहीं है. बारामुला की तरफ बढ़ते ही पहली बार हमें रोक लिया जाता है. एयर टिकट दिखाने पर सुरक्षा बल ज्यादा सवाल नहीं करते और आगे जाने का रास्ता खोल देते हैं लेकिन यहां से बारामुला तक रास्ते में बार-बार इसी तरह हमारी गाड़ी को रोका जाता है.

इस हाई-वे पर इक्का दुक्का दुकानें खुली दिखती हैं. जिसके नजदीक सुरक्षा बलों की संख्या काफी ज्यादा है. लेकिन बारामुला पहुंचते ही सन्नाटा फिर अपनी जगह तैनात दिखता है. बाज़ार पूरी तरह बंद हैं. सड़कें खाली हैं और आम शहरियों से कई-कई गुना ज्यादा फौजी लश्कर यहां मौजूद है. एसएसपी ऑफिस बारामुला में कुछ हलचल दिखती है. यहां पुलिस के साथ-साथ कुछ स्थानीय लोग भी मौजूद हैं. उनमें से एक है मंज़ूर हसन बुखारी. इनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं और माथे पर पसीना है. मंज़ूर जम्मू कश्मीर सरकार में तीस साल की नौकरी के बाद अब रिटायर हो चुके हैं. थोड़ी देर पहले एसएसपी ऑफिस का एक अरदली उन्हें उनके घर से बुलाकर लाया है. मंज़ूर हसन समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्होंने ऐसा क्या किया कि उन्हें इस कर्फ्यू के दौरान घर से यहां बुला लिया गया है.

मंज़ूर के दो बेटे हैं और दोनों ही विदेश में रहते हैं. कश्मीर के हालात की कोई जानकारी न मिलने पर उनके बेटों ने किसी तरह एसएसपी बारामुला से संपर्क किया. ताकि वो अपने पिता का हाल जान सके. मंज़ूर को यही जानकारी देने और उनके बेटों से बात कराने के लिए एसएसपी ने उन्हें अपने दफ्तर बुलवाया था. लेकिन कर्फ्यू के इस हालत में पुलिस का बुलावा आना मंज़ूर को तब तक परेशान रखता है जब तक पुलिस उनको आश्वस्त नहीं करती की सब कुछ ठीक है. बेटों की फोन की ख़बर मिलने के बाद मंज़ूर को वापस घर लौट जाने की जल्दी है क्योंकि उनके पीछे उनकी पत्नी और बेटी भी उनके मुताबिक परेशान हो रही होंगी कि पुलिस न जाने क्यों साथ ले गई.

बारामुला में ऐसी कई गिरफ्तारियां बीते तीन चार दिनों में हो चुकी हैं जहां सुरक्षा व्यवस्था का हवाला देकर लोगों को पुलिस ने उठा लिया है. एसएसपी बारामुला के पीए वाहिद अजीज बताते हैं, ‘‘कश्मीर के आम लोगों का सम्पर्क बाहर के लोगों से पूरी तरह कटा हुआ है. इस जिले में अब तक हिंसा की कोई घटना नहीं हुई है. सब नियंत्रण में है लेकिन जो कश्मीर से बाहर हैं वे अभी काफी परेशान हो रहे हैं. हमारे पास न जाने कितने फोन आ रहे हैं. क्योंकि कोई भी अपने रिश्तेदार से बात नहीं कर पा रहा है.’’

सूचना क्रन्ति के इस दौर में जब लोग सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल देखते हैं. और रात को सोते हुए आखिरी गुड नाईट भी मोबाइल पर ही टाइप करते हैं, ऐसे में इतने दिनों तक सूचना के सभी माध्यमों से पूरी तरह कट जाना कई तरह की परेशानियां उन लोगों के लिए पैदा कर रहा है जिन्हें अब आज़ाद बुलाया जा रहा है.

बारामुला में आवाजाही के दौरान हमने पाया कि स्कूल कॉलेज और कई सरकारी दफ्तर अभी पूरी तरह से बंद हैं. कुछ विभाग आंशिक तौर पर खुले हैं. जहां कुछ कर्मचारी और अधिकारी जैसे-तैसे पहुंचकर ज़रूरी काम निपटा रहे हैं. इसमें स्वास्थ्य विभाग भी शामिल है. जहां कुछ कर्मचारी और डॉक्टर पहुंचकर और अपना दायित्व निभा रहे हैं. अपना काम निपटाकर लौट रहे एक डॉक्टर, जो अपना नाम नहीं छापने की गुजारिश करते हैं, मौजूदा हालात के बारे में कहते हैं, ‘‘भारत कश्मीर को अपना कहता है लेकिन क्या उसने अपनों के जैसा बर्ताव किया है. कोई बच्चा अगर हाथ में टॉफी पकड़े हुए चॉकलेट की जिद करता है तो क्या उस बच्चे को चुप कराने के लिए उसके पिता को उसके हाथ में पड़ी टॉफी भी छीन लेनी चाहिए? ऐसा वही पिता कर सकता है जो क्रूर हो, बच्चे से प्यार न करता हो या फिर उसका बेटा सौतेला हो. भारत ने 370 छीनकर कश्मीर के साथ ऐसा ही किया है.’’

डबडबाई आंखों और रुंधे हुए गले के साथ डॉक्टर आगे कहते हैं, “मैं ज्यादा कुछ बोलना नहीं चाहता. क्योंकि यहां जिसने भी ज्यादा बोला है वो फिर कभी बोल नहीं पाया. आस पास तैनात बंदूकें आप देख ही रहे हैं. ये इतनी है कि अभी गिना भी नहीं जा सकता है. ऐसे में कोई कैसे बोलेगा कि उसे क्या महसूस हो रहा है. लेकिन इन फिजाओं में जो डर है उसे आप भी महसूस कर सकते है. अब हमें इसी डर के साये में जिंदगी गुजारनी है. मुझे इसी महीने के आखिर में पेपर प्रजेंट करने स्पेन जाना था लेकिन इस हालात में घर वालों को छोड़कर कैसे जाऊं. कई बार मन होता है कि कश्मीर छोड़कर विदेश जाकर बस जाऊं लेकिन फिर पिताजी-चाचा का ख्याल आता है. मैं तो विदेश जाकर बसने में सक्षम हूं लेकिन मेरे बाकी लोग क्या करेंगे. अब जो भी है हम एक-दूसरे के साथ रहकर झेलना चाहते हैं.’’

शाम के छह बजे तक बारामुला बाज़ार की तस्वीर में थोड़ा सा बदलाव दिखता है. लोगों के बाहर निकलने पर थोड़ी ढील दी गई है और कुछ दुकानें भी अब खुलने लगी है. इनमें मुख्यत: बेकरी हैं जो आने वाली ईद के कारण खुल रही है. बेकरी मालिकों ने सामान ईद को ध्यान में रखकर खरीदा था जिसके ख़राब होने की स्थिति अब बन गई है. यही लोग दुकानें खोल रहे हैं ताकि होने वाले नुकसान को कुछ हद तक ही सही कम किया जा सके. इन दुकानों के बाहर कुछ स्थानीय लोग भी इकठ्ठा हो गए है जो 370 के हटने पर चर्चा कर रहे हैं. इनमें से रियाज नागो भी है जो एक सरेंडर कर चुके मिलिटेंट हैं लेकिन पिछले तीन सालों से सक्रिय राजनीति में हैं. रियाज कुछ समय पहले बारामुला में मेयर भी रह चुके हैं. इस चर्चा में वे कहते हैं, ‘‘भाजपा का ये कदम कश्मीर के लिए ही नहीं बल्कि भारत के लिए है. उन्हें यहां से कोई मतलब नहीं बाकी जगह चुनाव जीतने से मतलब है. वो भी जानते है कि इस कदम से यहां अलगाव बढ़ेगा लेकिन उन्हें इसकी फ़िक्र नहीं है. ये भी हो सकता है कि अभी सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को निरस्त कर दिया जाए ऐसे में बीजेपी का काम फंस जाए तब भी वो कह सकती है कि देखो हमने तो अपना वादा पूरा कर दिया था लेकिन कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया.’’

अनुच्छेद 370 के हटने से बाहरी लोग कश्मीर में आकर बस जाएंगे, इसकी चिंता चर्चा में शामिल किसी भी व्यक्ति को नहीं है. बारामुला कोर्ट में कार्यरत एक कर्मचारी ये सवाल उठाने पर कहते हैं, ‘‘यहां हम लोग ही सुरक्षित नहीं है. पता नहीं कब गोली चल जाए और ब्लास्ट हो जाए. ऐसे में कोई बाहर वाला यहां आकर क्यों बसेगा. बाहर वालों को जमीन खरीदने का अधिकार अब मिला होगा लेकिन जम्मू वालों को तो ये अधिकार पहले से था. मैंने अपने जीवन में आजतक किसी जम्मूवाले यहां कश्मीर में जमीन लेते या बसते नहीं देखा है. यहां डर और बंदूक के महौल में आखिर कौन आकर रहना चाहेगा.’’

बाज़ार में बतकही कर रही ऐसी दो-तीन टुकडियां नज़र आती हैं लेकिन सुरक्षा बलों की तैनाती में अब भी कोई कमी नहीं आई है. सैकड़ों हथियारबंद जवान बाज़ारों में घूम रहे हैं. दिलचस्प ये भी है कि जम्मू कश्मीर पुलिस के जवानों को हथियार नहीं दिए गए हैं. उनके पास सिर्फ लाठियां हैं जबकि सीआरपीएफ और अन्य सुरक्षाबल के जवान ऑटोमेटिक बंदूक लटकाए हुए है. ऐसे में पुलिस के जवानों का मुख्य काम हथियारबंद जवानों को इलाके की ख़बर देना ही रह गया है. इसकी एक वजह देखी जा रही है उस एहतियाती उपाय में जिसके मुताबिक 370 हटाने की घोषणा के बाद अंदरूनी तौर पर आशंका थी कि जम्मू कश्मीर पुलिस के कुछ लोग विद्रोह कर सकते हैं.

सुरक्षा बलों की एक ऐसी भी गाड़ी बाज़ार में घूम रही है जिसके छत से बाहर निकलकर एक सिपाही हर उस दुकान का वीडियो बना रहा है जो अभी खुली हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि ये सब सरकार की इशारे पर हो रहा है ताकि दुनिया को दिखाए की कश्मीर के हालात समान्य हो गए हैं.

अंधेरा होने के साथ ही बारामुला में हल्की बारिश शुरू हो गई है. इस बारिश में सड़क किनारे खड़े एक ट्रक के ऊपर दो लोग जल्दी-जल्दी तिरपाल कस रहे हैं और इस ट्रक के पीछे दस बारह लोग सवार हैं. इन लोगों में अधिकतर चौदह-पन्द्रह साल के बच्चे हैं. ये लोग हर साल ईद के मौके पर पंजाब से यहां गुब्बारे और अन्य प्लास्टिक का समान बेचने आते हैं इस बार भी यही सोचकर आए थे लेकिन हालात ख़राब होने के कारण अब लौट रहे हैं. लौटने के लिए सार्वजनिक यातायात उपलब्ध नहीं है लेकिन किसी तरह से ये ट्रक इन्हें मिल गया हैं. ये ट्रक सिंघारा सिंह का है. सिंघारा सिंह पंजाब के होशियारपुर के रहने वाले हैं. और अक्सर माल लेकर कश्मीर आते रहते हैं. इस बार भी अपने ट्रक में वे कुरकुरे भरकर लाए थे. लेकिन जिस रात वे बारामुला पहुंचे उसी रात कर्फ्यू लागू हो गया और सारा नेटवर्क ठप हो गया. ऐसे में सिंघारा सिंह के पिछले पांच दिन उस व्यापारी को खोजने में ही गुजर गए जिसके गोदाम पर उन्हें माल पहुंचाना था. आज सुबह किसी तरह उन्हें उस व्यापारी का पता मिला तब उन्होंने माल उतारा. लेकिन उन्हें अपने माल के पैसे अभी तक नहीं मिले हैं क्योंकि व्यापारी ने कैश नहीं होने की बात कही है. और अन्य किसी माध्यम से फिलहाल पैसे ट्रांसफर हो नहीं सकते हैं.

सिंघारा सिंह बताते हैं कि कश्मीर से लौटते हुए वे अक्सर चेरी या अन्य फल आदि ले जाते थे जिससे उनका काम चलता था लेकिन इस बार सब कुछ बंद है. वे अपना ट्रक बाहर निकाल कर ले जाना भी एक चुनौती समझ रहे है. चार दिन तक उनका ट्रक खड़ा रहा जब वो व्यापारी को तलाश रहे थे और अभी भी वे नहीं जानते कि कश्मीर से निकलने में उन्हें कितने दिन और लग सकते है. बारामुला से पंजाब माल ले जाने का वे 30 हज़ार रुपए लेते हैं. इस बार वो फल की जगह गुब्बारे बेचने वाले पन्द्रह लोगों को भरकर ले जा रहे हैं. जिनसे उनका सौदा दस हज़ार में तय हुआ है.

अंधेरा होने पर सड़कों पर गाड़ियों की संख्या कुछ बढ़ गई है. लेकिन ये सभी निजी गाड़ियां हैं. सार्वजनिक वाहनों की सड़कों पर संख्या अब भी शून्य है. हर गाड़ी वाले को केबिन के अंदर की लाइट लगातार ऑन रखने के सख्त निर्देश दिए गए है. जमीन में तैनात जवान ही नहीं बल्कि आसमान से उड़ने वाले यंत्र भी कश्मीर की निगरानी में मुस्तैद हैं. दोपहर में जहां बेहद नीचे उड़ान भरते हेलीकॉप्टरों से निगरानी की जा रही थी, वहीं अब ये काम ड्रोन कैमरों की मदद से किया जा रहा है. नाईट विजन वाले ड्रोन कैमरे लगभग हर मुहल्ले का चक्कर लगा रहे हैं. रात के दस बजे तक महौल वापस वैसा ही हो चुका है जैसा दोपहर में था. कर्फ्यू में दी गई ढील वापस ली जा चुकी है. सड़कें, गलियां फिर से सुनसान हो गई हैं. वैसे थोड़ी चहल पहल शाम के वक़्त हुई थी वो भी सिर्फ मुख्य बाज़ार, हाई-वे और पॉश कोलोनियों तक ही सीमित थी. ओल्ड टाउन बारामुला जिसे काफी संवेदनशील माना जाता है, वहां इस तरह की कोई रियायत नहीं दी गई.

ईद के आसपास बारामुला का बाज़ार देर रात तक गुलजार रहा करता था. लेकिन आज यहां महौल में इतना सन्नाटा पसरा गया है कि ड्रोन कैमरों में लगे छोटे-छोटे पंखों की आवाज़ भी आसानी से घरों के भीतर सुनी जा सकती है. चर्चा है कि ईद के चलते कल कर्फ्यू में थोड़ी रियायत मिलेगी और बाज़ार कुछ ज्यादा देर तक खुल सकेगा. कल शायद यहां के निवासियों के पास अपने ही शहर में निकलने की आज़ादी थोड़ी ज्यादा होगी, ईद की तैयारी का मौका थोड़ा ज्यादा मिलेगा. और सब कुछ ठीक रहा तो ईद का जश्न भी मानाने दिया जाएगा. लेकिन ये सब होगा बंदूक के साये में ही.

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