चर्चित और राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'विवेक' पर केरल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की लगायी रोक हटाकर प्रदर्शन की अनुमति दे दी है.
केरल के अंतर्राष्ट्रीय डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में चर्चित डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘विवेक’ के प्रदर्शन पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने रोक लगा दी थी. इसके बाद आनंद पटवर्धन ने केरल हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था, जिसके बाद कोर्ट ने फेस्टिवल में फिल्म दिखाने की अनुमति दे दी है.
द वायर की ख़बर के अनुसार, आदेश को पारित करने वाले जस्टिस शाजी पी. चाली ने ये स्पष्ट किया कि फिल्म की स्क्रीनिंग से कानून-व्यवस्था बिगड़ने का केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का तर्क सही नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा कि डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग कहीं और नहीं होनी चाहिए.
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फिल्म दिखाने पर लगायी गयी रोक के ख़िलाफ़ फिल्म फेस्टिवल के आयोजक और केरल राज्य चलचित्र अकादमी ने हाईकोर्ट में याचिका लगायी थी. आनंद पटवर्धन इस मामले में दूसरे नंबर के याचिकाकर्ता थे, जिसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फिल्म से रोक हटा दी है.
फिल्म से प्रतिबंध हटने के बाद आनंद पटवर्धन से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की. उन्होंने बताया कि ‘इस फिल्म को बैन करने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी. ये फिल्म महात्मा गांधी की विचारधारा के साथ बनायी गयी है. फिल्म पर प्रतिबंध वो लोग ही लगा सकते हैं, जिन्होंने महात्मा गांधी को मार डाला है और उन्हें व उनकी विचारधारा को रोज़ मार रहे हैं. उनके लिए इस फिल्म को पचा पाना थोड़ा मुश्किल है.’
आनंद पटवर्धन आगे कहते हैं, ‘केरल हाईकोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दे दिया है. अब फिल्म फेस्टिवल में फिल्म दिखायी जायेगी. ये हमारी जीत है और केंद्र सरकार की हार है.’
क्या है इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में?
लगभग साढ़े 4 घंटे लंबी यह डॉक्यूमेंट्री हालिया दशकों में देश में बढ़ी दक्षिणपंथी उग्रवादी हिंसा के निशानों की शिनाख्त और पड़ताल करती है. डॉक्यूमेंट्री की शुरुआत महाराष्ट्र में अंधविश्वास के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ने वाले नरेंद्र दाभोलकर और जननेता माने जाने वाले गोविंद पानसरे की हत्याओं की पृष्ठभूमि दिखाने से होती है. इन सबके बीच सनातन संस्था की भूमिका की पड़ताल करने की कोशिश भी डॉक्यूमेंट्री करती है. फिल्म में गुजरात के ऊना में हुए दलित आंदोलन और दलित नेताओं के उभार, एफटीआईआई, एचसीयू से लेकर जेएनयू में हुए छात्र आंदोलनों को भी दिखाया गया है. फिल्म का अंत उत्तर प्रदेश के दादरी गांव में मोहम्मद अख़लाक़ की गोहत्या के शक में हुई हत्या की कहानी के साथ होता है.
इस फ़िल्म के लिए आनंद पटवर्धन को कई बड़े अवार्ड मिल चुके हैं. आनंद अपनी सामाजिक-राजनैतिक और मानवाधिकार से जुड़े विषयों पर फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं. इससे पहले आनंद जय भीम कॉमरेड, राम के नाम, ‘फादर, सन एंड होली वार’, नर्मदा डायरी जैसी कई चर्चित एवं महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट्री फिल्में बना चुके हैं.