अपनी मां कृष्णा पटेल, कांग्रेस के ललितेश त्रिपाठी और पूर्व सहयोगी राम चरित्र निषाद द्वारा गठबंधन के टिकट से दी जा रही चुनौती ने अनुप्रिया पटेल को संकट में डाला.
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी हैं, इस बार अपनी सीट को बचाये रखने के लिए कड़ी जद्दोजहद का सामना कर रही है. पटेल के अपना दल वाले धड़े ने 2014 में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया था. बीते रविवार को भाजपा को उस समय तगड़ा झटका लगा, जब सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जो कि भाजपा की सहयोगी पार्टी थी, ने उसे झटकते हुए कांग्रेस का साथ देने की घोषणा कर दी.
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Contributeएसबीएसपी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने पिछले महीने ही योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था. इसके बाद उन्होंने 39 लोकसभा सीटों से अपने उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, सीएम योगी आदित्यनाथ ने आम चुनावों के बीच भाजपा को शर्मिंदगी से बचाने के लिए अभी तक उनका इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया है.
वहीं दूसरी तरफ अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल ने कांग्रेस को सर्मथन देने की घोषणा की है. कांग्रेस ने पूर्व विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री कमला त्रिपाठी के परपोते ललितेश पति त्रिपाठी (41) को मैदान में उतारा है. अनुप्रिया के लिए मामला और बदतर बनाने के लिए सपा -बसपा और आरएलडी गठबंधन ने राम चरित्र निषाद को उम्मीदवार बनाया है जो कि पूर्व में पड़ोसी निर्वाचन क्षेत्र मछलीशहर (एससी) से भाजपा के सांसद थे.
गठबंधन के उम्मीदवार के चयन की प्रक्रिया भी कम नाटकीय नहीं रही. सपा ने आख़िरी समय में राजेंद्र बिंद का टिकट कैंसल करके राम चरित्र निषाद को उम्मीदवार घोषित किया. बिंद ऐसा समुदाय है जिसे सपा अपने साथ लाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे ज़्यादा सफलता नहीं मिली. उधर मछलीशहर से भाजपा का टिकट पाने में असफल रहे राम चरित्र निषाद ने सपा का दामन थाम लिया. 2009 में राम चरित्र निषाद अपना दल के टिकट से चुनाव लड़कर हार चुके हैं.
दिलचस्प बात यह है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दो दिन पहले यहां एक रैली की, जिसमें महज़ 6000 से 7000 लोगों ने भाग लिया जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने कई प्रतिक्रिया दी थी. मिर्जापुर में 19 मई को अंतिम चरण के लिए चुनाव होने हैं, जिसमें 18 लाख से अधिक मतदाता हिस्सा लेंगे.
हालांकि भाजपा यहां सीधे मैदान में नहीं है, लेकिन उसने अनुप्रिया पटेल के इशारे पर अपने जिला अध्यक्ष बालेंदु मणि त्रिपाठी को बदल कर बृजभूषण सिंह को नया जिलाध्यक्ष बना दिया है. इससे पार्टी के मुख्य वोटबैंक ब्राह्मणों में नाराज़गी है.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का दावा करते हैं, “पटेल ने अमित शाह से संपर्क कर त्रिपाठी को हटाने और सिंह को नियुक्त करने की मांग की थी. इसके कारण भाजपा के भीतर भी असंतोष पैदा हो गया है. त्रिपाठी ने पटेल द्वारा जिले में भाजपा को नुकसान पहुंचाने के प्रयासों का विरोध किया हैं.” इन घटनाक्रमों से कांग्रेस के ललितेशपति त्रिपाठी के चुनाव अभियान को मजबूती मिली है, जिन्हें पिछले सप्ताह तक एक “कमजोर उम्मीदवार” के रूप में देखा जा रहा था. त्रिपाठी 2014 में चुनाव हार गये थे और 1.52 लाख वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थे. वहीं अनुप्रिया को 4.3 लाख और बसपा के समुंद्र बिंद को 2.2 लाख वोट मिले थे. कांग्रेस इस सीट पर 1984 के बाद से कभी नहीं जीती है.
1998 के बाद से भाजपा ने मिर्जापुर को नहीं जीता है, यही वजह है कि इसने सपा और बसपा के पक्ष में रहने वाले जातीय समीकरणों को तोड़ने की उम्मीद करते हुए पहली बार अपना दल से हाथ मिलाया था. बीजेपी के नेताओं का दावा है कि अनुप्रिया यहां से एक और बार जीत दर्ज़ करेंगी.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, “2016 में केंद्रीय मंत्री के रूप में शामिल होने के बाद अनुप्रिया यूपी में एक बड़ी कुर्मी नेता के रूप में उभरी हैं. उनकी दूसरी जीत राज्य में उनकी स्थिति को और मजबूत करेगी. लेकिन ये भाजपा के पक्ष में नहीं होगा. हम पहले ही ओम प्रकाश राजभर के नखरों से जूझ रहे हैं.”
इस समय राजभर समुदाय पूर्वी यूपी में 10 सीटों पर परिणाम को प्रभावित करने की स्थिति में हैं. इतिहास पर नज़र डालें तो कांग्रेस ने मिर्जापुर से पांच बार, सपा ने चार बार, भाजपा ने दो बार और बसपा ने दो बार जीत हासिल की है.
मिर्जापुर ने 1996 में राष्ट्रीय राजनीति में तब चर्चा बटोरी, जब फूलन देवी ने सपा के टिकट से यहां की लोकसभा सीट जीती. उनके ख़िलाफ़ सभी मामलों को रद्द कर, उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया था. फूलन, जो पिछड़ी मल्लाह जाति से थीं, 1998 में हुए मध्यावधि चुनाव में यह सीट हार गयीं और 1999 में फिर से जीतीं. 2001 में उनकी हत्या हो गयी. 2004 से 2014 तक डकैत ददुआ के भाई बलराम पटेल (सपा) इस सीट से सांसद रहे.
जाति, मोदी और प्रमुख मुद्दे
मिर्जापुर भारत के 250 सबसे पिछड़े जिलों में से एक है, हालांकि विकास के मुद्दे ने यहां के चुनावी परिदृश्य में वापसी की है, और केंद्र से भी इस जिले को काफ़ी धन प्राप्त हो रहा है. लेकिन उसके बाद भी यहां समस्याएं बनी हुई हैं. सोनभद्र को अलग जिला बनाने के बाद भी स्थितियां बदली नहीं हैं. यह जिला पथरीली ज़मीन और पानी की कमी वाला है. कई गांव अभी भी बाकी हिस्सों से कटे हुए हैं और केवल खेत और वन उपज पर निर्भर हैं.
दिव्यांशु उपाध्याय होप नामक एक गैर सरकारी संस्था चलाते हैं, जिसने ग्रीन गैंग की स्थापना की. यह ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने का अभियान है. वे कहते हैं, “108 से अधिक गांव जो नक्सल प्रभावित थे वह ख़राब स्थिति में हैं. उज्जवला योजना, पीएम आवास योजना, स्वच्छ शौचालय और विधवा पेंशन की कल्याणकारी योजनाएं अधिकांश निवासियों तक नहीं पहुंची हैं. स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों की कमी है. अनुप्रिया, बुरी तरह से असफल सिद्ध हुई हैं.”
राजनीतिक विश्लेषक और मिर्जापुर कॉलेज के प्रोफेसर शरद मेहरोत्रा कहते हैं, “जातिगत गणना और पीएम मोदी को वोट देने की लोकप्रिय भावना यहां मुख्य चुनावी मुद्दा है, विकास नहीं.”
कांग्रेस के उम्मीदवार ललितेश पति त्रिपाठी ने आरोप लगाया कि पटेल ने अपने सांसद निधि से स्थानीय क्षेत्र में विकास योजना के लिए आवंटित 2.5 करोड़ रुपये की राशि भी खर्च नहीं की है. लेकिन भाजपा नेताओं का दावा है कि पिछले पांच वर्षों में, रेलवे स्टेशन में सुधार किया गया है, मिर्जापुर को वाराणसी से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग का काम पूरा हो चुका है, एक मेडिकल कॉ लेज और केंद्रीय विद्यालय को मंजूरी दी गयी, बनारस हिंदू विश्वविधालय के दक्षिणी परिसर में एक आउटर पेशेंट विभाग शुरू किया गया है.
वोट का गणित
मिर्जापुर में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं- छांबे, मिर्जापुर, मझवां, चुनार और मड़िहान. कुर्मी, मौर्य, निषाद, बिंद और मल्लाह यहां संख्या के लिहाज़ से प्रभावशाली जातियां हैं. राजभर यहां ज़्यादा संख्या में नहीं हैं. ओबीसी जातियों का प्रभुत्व है. इसके अलावा चार लाख दलित, 1.9 लाख ब्राहाण, 1.9 लाख वैश्य, 90 हजार ठाकुर और 1.2 लाख मुस्लिम हैं.
अनुप्रिया पटेल कुर्मी समुदाय से हैं जिसकी संख्या करीब 2.5 लाख है. इसके अलावा भाजपा की परंपरागत ऊंची जातियों का समर्थन भी उन्हें मिलेगा. दूसरी तरफ निषाद को पिछड़े, दलित और मुसलमान वोटों का भरोसा है.
कांग्रेस, भाजपा और महागठबंधन के वोटों पर सेंध लगायेगी. प्रिंयका गांधी ने कांग्रेस के पक्ष में ब्राहाण, निषाद, मल्लाह, केवट के वोट को जुटाने के लिए पिछले महीने मिर्जापुर के विंध्याचल में गंगा में नाव पर सवारी की और प्रार्थना की.
ललितेश का दावा है, “मैं जातिगत वोट का पीछा नहीं करता हूं और सभी समुदाय के लोगों से वोट मांगता हूं.” वह 17 मई को प्रिंयका की रैली से उम्मीद जता रहे हैं, जबकि एनडीए का मानना है कि 16 मई की मोदी की रैली पटेल के लिए जीत पुख्ता कर देगी.
प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक मेहरोत्रा कहते हैं, “अभी तक पटेल को अपनी स्वच्छ छवि, शिक्षा और मध्यम वर्ग के बीच लोकप्रियता के कारण बढ़त हासिल है. दलित और यादवों का वोट निषाद की तरफ नहीं हो सकता. त्रिपाठी को फायदा हो सकता है, अगर वह ब्राह्मणों के वोटों और अल्पसंख्यकों के एक वर्ग, राजभर की पार्टी और अपना दल के वोटों को आकर्षित करते हैं.”
राजनीतिक विश्लेषक शैलेंद्र अग्रहरी कहते हैं, “पार्टी लाइन और उनके सर्मथक के आधार पर ध्रुवीकृत चुनावी परिदृश्य तैयार किया गया है. सभी समुदायों के अस्थायी वोट परिणाम तय करेंगे. बीजेपी और अपना दल ने अपना सबसे अच्छा उम्मीदवार खड़ा किया है. बड़े नेता उनके लिए प्रचार कर रहे हैं. स्थानीय लोगों से, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा नेताओं के साथ संपर्क का अभाव, पटेल के ख़िलाफ़ जायेगा. हालांकि उनका काम, ग्लैमर और मोदी की लोकप्रियता उनकी मदद कर सकती है.
इसी बीच राजभर की स्थिति के बारे में पूछने पर भाजपा के प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव का कहते हैं, “उन्होंने इस्तीफा दे दिया था लेकिन अभी भी अपने आधिकारिक वाहन और अन्य सुविधाओं का प्रयोग कर रहे हैं. 2014 के किसी भी सहयोगी ने हमें नहीं छोड़ा. 2017 के विधानसभा चुनाव में एसबीएसपी के साथ गठबंधन किया गया था. और हमें विश्वास हैं कि राजभर अभी भी हमारे साथ हैं. पटेल सीट जीतेंगी, क्योंकि न तो राजभर और न ही कृष्णा पटेल का मिर्जापुर पर कोई प्रभाव है.”
राम चरित्र निषाद के सपा के प्रति झुकाव पर श्रीवास्तव कहते हैं, “निषाद को भाजपा ने टिकट देने से इंकार कर दिया था, क्योंकि वह अपनी जाति से संबंधित एक अदालती मामले का सामना कर रहे थे. उन्होंने दलित होने का दावा किया. निषाद को दिल्ली में एससी माना जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में वो ओबीसी हैं. उनका दलबदल मिर्जापुर में लड़ाई को प्रभावित नहीं करेगा.”
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