36 बिरादरी वाले हरियाणा में 35 बनाम 1(जाट) जाति के कुशल बंटवारे पर टिकी है भाजपा की चुनावी उड़ान.
साल 2019, तारीख़ 13 अप्रैल. हरियाणा के लोहारू कस्बे के रेलवे स्टेशन के सामने डॉ भीमराव आंबेडकर की मूर्ति पर तीन लोगों ने कालिख पोतकर एक पर्चा मूर्ति पर चिपका दिया. उस पर लिखा था- ‘जाट राज आयेगा’. उपद्रवियों ने दंगा-फसाद की नीयत से पास में मौजूद दो गुमटीनुमा दुकानों को भी आग लगा दी.
घटना के बाद सामाजिक कार्यकर्ता विजय गुरावा ने एफआईआर दर्ज़ करवायी. पुलिस ने सीसीटीवी की मदद से तीन लोगों को गिरफ़्तार किया. गिरफ़्तार किये गये तीनों आरोपी गैर-जाट निकले. नाम न छापने की शर्त पर पुलिस के एक अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “ये तीनों तो बस मोहरे हैं. इनके पीछे असली दिमाग किसी और का है. गिरफ़्तार लड़कों ने हमें उस नेता का नाम भी बता दिया है. ये लड़के जाट-गैर जाट राजनीति के मोहरे हैं. सबके ऊपर इस बात का दबाव है कि इलेक्शन तक इस मामले को तूल न दिया जाये. जांच को लटकाये रखा जाये. नेता और उसकी पार्टी का नाम दबाया जा रहा है.” इस पर हमने पुलिस अधिकारी से पूछा कि क्या इस घटना के पीछे बीजेपी के लोग शामिल हैं? हमारा सवाल सुन वह सिर्फ़ मुस्कुराकर बोले, “भाईसाब आप मीडिया वाले हो. आप खुद समझदार हो. हमारी मज़बूरी समझो.”
इस घटना का ज़िक्र यहां इसलिए जरूरी था, क्योंकि हरियाणा में साल 2016 में कई इलाकों में महापुरुषों की मूर्तियां तोड़ी गयीं. मूर्तियां टूटने की प्रतिक्रिया में जातीय समूहों ने प्रदर्शन किया और हर घटना को जाट बनाम गैर जाट का एंगल दिया गया.
हरियाणा की राजनीति में 2016 के बाद पहली बार बीजेपी के कुरुक्षेत्र के सांसद राजकुमार सैनी ने खुलकर जाटों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलायी और जाटों को बंदर तक कहा. इसकी प्रतिक्रिया में जाट समाज से भी राजकुमार सैनी के ऊपर खूब ज़ुबानी हमले हुए.
हरियाणा 36 बिरादरियों के सूबे के रूप में मशहूर है. इसी आधार पर बीजेपी के सभी गैर जाट सांसद 35 बनाम 1 बिरादरी का नारा देते आ रहे हैं. इस अभियान में बीजेपी ने जाटों को लगभग उसी तरह से अलग-थलग करने की रणनीति बनायी है, जैसे वे देश के बाक़ी हिस्सों में मुसलमानों के साथ करती है. यानी उनका बहिष्कार, उन्हें टिकट नहीं देना आदि.
कुछ ही समय पहले की बात है जब हरियाणा बीजेपी इकाई के वरिष्ठ नेता रोशनलाल आर्य का एक वीडियो वायरल हुआ था. उस वीडियो में आर्य साफ़ तौर पर लोगों को इकट्ठा करके जाटों का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बहिष्कार करने की शपथ दिलाते दिखायी दे रहे थे.
इस लोकसभा चुनाव में जाट बनाम गैर जाट की रणनीति ही भाजपा के अभियान का मुख्य औजार है. हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी बताते हैं, “बीजेपी का यह गुजरात मॉडल था जिसे हरियाणा में थोड़े अलग तरीके से लागू किया गया. गुजरात में बीजेपी ने मुसलमान और हरियाणा में जाट समुदाय को पूरी तरह से अलग-थलग करने की रणनीति पर काम किया और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी. मनोहरलाल खट्टर और बीजेपी के नेताओं के पिछले 3 सालों के भाषणों की भाषा का विश्लेषण करेंगे तो आप पायेंगे कि प्रदेश की 75 प्रतिशत गैर जाट जनसंख्या को बची 25 प्रतिशत जनसंख्या यानी जाटों से भयाक्रांत कर दिया गया है. इस डर की राजनीति ने गैर जाट जातियों को बीजेपी के बैनर तले इकट्ठा करने में अहम भूमिका अदा की. संघ का अघोषित 35 बिरादरी संगठन लगातार इस पर काम कर रहा है. जिस तरह गुजरात के बाकी समुदायों को मुसलमानों से डराकर वहां बीजेपी ने वोट बटोरे थे, ठीक उसी तरह हरियाणा में जाटों का डर दिखाकर बीजेपी गैर जाटों का वोट बटोरना चाह रही है.”
भाजपा की इस रणनीति की जीती-जागती सफलता वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ख़ुद हैं. फरवरी 2016 में हुए जाट आरक्षण आंदोलन के बाद समयांतर पत्रिका में पत्रकार धीरेश सैनी की ‘हरियाणा में गुजरात मॉडल’ नाम की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने बीजेपी की गैर जाट बनाम जाट की रणनीति पर विस्तार से रोशनी डाली थी. रिपोर्ट के अनुसार जाटों के ख़िलाफ़ बोलने वाले राजकुमार सैनी और जाटों को आंदोलन के लिए भड़काने वाले यशपाल मलिक दोनों ही अमित शाह की गुजरात मॉडल स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे. इन दोनों की वजह से ही हरियाणा जला. धीरेश सैनी कहते हैं, “उस वक़्त हरियाणा को जितना नुकसान हो रहा था, बीजेपी को उतना ही फ़ायदा हो रहा था. क्या इस बात में राज्य व केंद्र की बीजेपी सरकारों की उस वक़्त हिंसा रोकने में निष्क्रियता का राज़ नहीं छुपा हुआ है? आख़िर, इस चुनाव में उन दंगों की भरपूर फ़सल बीजेपी ही काटती नज़र आ रही है.”
‘बांटो और राज करो’ की इस रणनीति पर हरियाणा बीजेपी के प्रवक्ता जवाहर यादव से हमने बात की. जाट बनाम गैर जाट राजनीति के सवाल पर वो बस इतना कहते हैं, “हमने तो सिर्फ़ यही कहा है कि ‘रोहतक देगा दंगाइयों को सजा’, इसमें जातिवाद कहां से आ गया. ये बात सबको पता है कि दंगाई कौन थे.”
हमारे बाक़ी सवालों का जवाब यादव ने ये कहकर टाल दिया कि उनकी पार्टी इस मामले में पाक-साफ़ है. वे और ज़्यादा बात नहीं कर सकते.
यादव भले ही अपनी पार्टी को पाक-साफ़ बता रहे हों, लेकिन इस समय बीजेपी नेताओं के चुनावी भाषण सुनें तो उनमें एक सधी हुई रणनीति के तहत 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन और उस दौरान हुई हिंसा का ज़िक्र ज़रूर होता है. वे लगातार यह कहते नज़र आते हैं कि क्या आप उन लोगों को वोट देंगे जिन्होंने हरियाणा को जलाया था. इतना ही नहीं बीजेपी के नेता कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा को दंगों का खलनायक बनाकर और हरियाणा को जलाने वाला बताकर भी वोट मांग रहे हैं.
भाजपा की यह जाट बनाम गैर जाट वाली रणनीतिक लड़ाई चुनाव के मैदान से लेकर सोशल मीडिया और साइबर संसार में भी उतनी ही मुखरता और निर्लज्जता से लड़ी जा रही है. फेसबुक या किसी दूसरे सोशल मीडिया पर जाट-नॉन जाट कीवर्ड से सर्च करने पर हज़ारों ऐसी पोस्ट सामने आयेंगी जो बीजेपी आईटी अथवा उनके मुखौटा संस्थाओं द्वारा दिन-रात फैलायी जा रही हैं. इन पोस्ट का कंटेंट हरियाणा के चुनाव को जातीय रंग देने का है.
हरियाणा में पिछले दिनों ही हुए मेयर के चुनाव में अख़बारों में मुख्यमंत्री की जाति का ज़िक्र करके विज्ञापन भी खूब छपे थे. इसकी शिकायतें भी दर्ज़ हुईं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई घटनाओं की पैरवी कर रहे हाईकोर्ट के वकील रविंदर सिंह ढुल कहते हैं, “जाट आरक्षण आंदोलन के कुछ दिन बाद ही बीजेपी के मंत्री मनीष ग्रोवर ये कहते हैं कि गोधरा के बाद मोदी ने 15 साल राज किया. जाट आंदोलन के बाद भी मनोहरलाल खट्टर 15 साल राज करेंगे. इस स्टेटमेंट का मतलब क्या है, आप ही बताइये. अभी पिछले दिनों ही मनीष ग्रोवर ने दीपेंदर हुड्डा के ख़िलाफ़ यह बयान दिया था कि हरियाणा को जलाने वालों को जनता माफ़ नहीं करेगी. मंत्री महोदय को पता होना चाहिए कि दीपेंदर हुड्डा ने हरियाणा को नहीं जलाया. अगर आप उन दंगों में एफआईआर देखेंगे तो लगभग हर जाति के आरोपी आपको मिलेंगे. बीजेपी के वर्कर भी आरोपी हैं. कुछ लोगों की वजह से पूरी जाति को टारगेट करना उचित नहीं है.”
रविंदर ढुल बीजेपी के नेताओं की जातीय दंगों में भूमिका और सरकार द्वारा बचाये जाने को लेकर बताते हैं, “उस समय सरकार ने दंगों की जांच करने के लिए प्रकाश सिंह कमेटी बनायी थी, जिसकी जांच पर आज तक कार्रवाई नहीं हुई है. कमेटी की रिपोर्ट में बीजेपी के सांसद राजकुमार सैनी को दंगे भड़काने में सक्रिय भूमिका अदा करने वाला बताया गया है, लेकिन आज तक उन पर कोई भी कार्रवाई नहीं हुई है. इसी तरह कमेटी ने दंगों को रोकने में उचित प्रयास न करने के लिए राज्य सरकार व कई आईपीएस अधिकारियों की अक्षमता पर भी सवाल खड़ा किया था, लेकिन किसी पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.”
जाट आंदोलन के बाद अगर आप बीजेपी मंत्री मनीष ग्रोवर और सांसद राजकुमार सैनी के भाषण सुनेंगे, तो आपको उनमें लगातार जातीय घृणा दिखायी देगी.
साल 2016 में बीजेपी के सांसद राजकुमार सैनी पर कुरुक्षेत्र की निवासी डॉ संतोष दहिया ने जातीय घृणा फैलाने की शिकायत दर्ज़ करवायी थी. उस समय कुरुक्षेत्र के जिला न्यायालय ने राजकुमार सैनी की गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया, लेकिन राजकुमार सैनी ने हाइकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. हाइकोर्ट ने हरियाणा सरकार से सांसद पर कार्रवाई करने की परमिशन मांगी, लेकिन आज तक सरकार ने कोई जवाब हाइकोर्ट को नहीं दिया है. इस मामले पर संतोष दहिया कहती हैं, “राजकुमार सैनी लगातार जातीय घृणा फैला रहे थे, इसलिए मैंने शिकायत की थी. लेकिन हाइकोर्ट अभी हरियाणा सरकार की परमिशन का इंतज़ार ही कर रहा है. मैं इस सिलसिले में लोकसभा अध्यक्ष और हमारे प्रधानमंत्री को भी चिट्ठी लिख चुकी हूं, लेकिन आज तक कोई जवाब नहीं आया है.”
आपको याद हो, 2016 में जाट आंदोलन के दौरान क़रीब 30 लोगों की जान गयी थी. हर छोटी-छोटी बात पर ट्वीट करने वाले हमारे प्रधानमंत्री ने एक भी ट्वीट इस मुद्दे को लेकर नहीं किया था और न ही कोई बयान दिया था.