‘मैं हूं असली चौकीदार’ : बनारस में मोदी को चुनौती देने वाले तेज बहादुर यादव

तेज बहादुर यादव की उम्मीदवारी के बाद बनारस का एकतरफा रसहीन चुनाव थोड़ा रोचक हो गया है.

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नाटकीय घटनाक्रम के तहत समाजवादी पार्टी द्वारा शालिनी यादव की जगह सीमा सुरक्षा बल के पूर्व जवान तेज बहादुर यादव को बनारस से उम्मीदवार घोषित करने के बाद नीरस लग रहे बनारस के चुनावी परिदृश्य ने नाटकीय मोड़ ले लिया है. हालांकि इस मुकाम पर अभी भी तेज बहादुर की राह में कुछ रोड़े हैं. चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस जारी कर कहा है कि वे आज यानी बुधवार को ग्यारह बजे तक इस बात का अनापत्ति प्रमाणपत्र आयोग में दाखिल करें जिसमें उन्हें पूर्व की नौकरी में किसी तरह के भ्रष्टाचार अथवा कार्य के प्रति निष्ठाभाव में कमी के चलते बर्खास्त नहीं किया गया है.

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तैंतालिस वर्षीय तेज बहादुर जिन्होंने बीते हफ़्ते प्रधानमंत्री के नामांकन व भव्य रोड शो से कुछ दिनों पहले ही बतौर निर्दलीय उम्मीदवार अपना नामांकन दाख़िल किया था, ने बाद में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर सोमवार की दोपहर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में एक बार फिर से अपना पर्चा दाख़िल किया.

इससे पहले की स्थिति ये थी कि कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुई शालिनी यादव चुनावी जंग में प्रधानमंत्री मोदी के सामने थीं, लेकिन अब ये कयास लगाये जा रहे हैं कि वो अपनी उम्मीदवारी वापस लेंगी.

बनारस में मतदान सातवें चरण में 19 मई को होना है और नामांकन के लिये अंतिम तारीख़ 29 अप्रैल (सोमवार) थी.

समाजवादी पार्टी की तरफ़ नामांकन दाख़िल करने के बाद तेज बहादुर ने कहा, “मैं असली चौकीदार हूं. मैंने 21 सालों तक देश की सीमा पर रखवाली की, लेकिन सेना में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने की वजह से मुझे बर्ख़ास्त कर दिया गया. अपने नाम के पहले ‘चौकीदार’ लगाना प्रधानमंत्री मोदी को शोभा नहीं देता. मैं चुनावी मैदान में उन्हें सबक सिखाना चाहता हूं जो सेना के नाम पर राजनीति करते हैं. मेरा इकलौता मकसद सेना को और मज़बूत करना व सेना में फैले भ्रष्टाचार को ख़त्म करना है.”

भिवानी (महेंद्रगढ़, हरियाणा) के रहने वाले तेज बहादुर ने तक़रीबन महीने भर पहले मार्च में प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा की थी. उनका कहना था कि वे चुनाव इसलिये लड़ रहे क्योंकि उन्हें सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार का ख़ात्मा करना है.

भाजपा समेत सभी दलों व राजनीति में रुचि रखने वालों के लिये सपा से उनकी अचानक उम्मीदवारी चौंकाने वाली है. भले ही चुनावी मैदान में प्रधानमंत्री मोदी के सामने कोई दमदार उम्मीदवार नहीं है लेकिन उनकी टीम कम से कम पिछले चुनावों की जीत का अंतर बरक़रार रखने के लिये जी-जान से लगी हुई है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता लगभग सहमति जताते हुए कहते हैं- “कम अंतर से हासिल जीत प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा दोनों के लिये शर्मिंदगी भरी होगी. अगले 20 दिनों में तेज बहादुर और समाजवादी का चुनाव अभियान इस लिहाज़ से हमारे लिये महत्वपूर्ण होने जा रहा है.”

नौकरी जाने के बाद अपने इकलौते बेटे को भी खो चुके तेज बहादुर अब खेती-किसानी करके घर चलाते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी की ही तरह तेज बहादुर भी अन्य पिछड़ा वर्ग (यादव समुदाय) से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने दसवीं तक पढ़ायी की है और अपने चुनावी हलफ़नामे के रोजगार वाले खाने में उन्होंने खेती-किसानी का उल्लेख किया है, साथ ही इसमें उनकी पत्नी की ग़ैरसरकारी नौकरी का भी ज़िक्र है.

उनके द्वारा दिये गये हलफ़नामे के मुताबिक़ तेज बहादुर और उनकी पत्नी की साझी संपत्ति की कुल कीमत तक़रीबन 20 लाख है जिसमें 30,000 रुपये की नकदी, 2.43 लाख का बैंक बैलेंस, 6 लाख की एनएससी, 80,000 के गहने, लगभग 9 लाख की ज़मीन और एक बजाज बाइक व एक स्कूटी शामिल है.

जनवरी 2019 में तेज बहादुर के किशोरवय बेटे को संदिग्ध हालात में मृत पाया गया. उनकी उम्मीदवारी से समाजवादी पार्टी ने ‘जैसे को तैसा’ की तर्ज़ पर भाजपा की ही चाल उसके ख़िलाफ़ चलते हुए राष्ट्रवाद व देशभक्ति के अस्त्र का प्रयोग कर चुनावी बिसात पर मोदी को घेरने का प्रयास किया है. आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल समेत तमाम हस्तियों ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ सेना के जवान को उतारने के अखिलेश यादव के फैसले की सराहना की है.

क्या थी 2017 की घटना?

2017 में सेना की वर्दी में तेज बहादुर की एक वीडियो क्लिप वायरल हुई जिसमें उन्होंने सेना के जवानों को खाने में पनीली दाल व जली हुई रोटियां मिलने के बाबत शिकायत दर्ज़ की थी. सोशल मीडिया पर साझा किये गये इस वीडियो को सत्तर लाख से भी ज़्यादा लोगों ने देखा था, इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय इस पर रिपोर्ट तलब करने को मजबूर हुआ.

तेज बहादुर तब सीमा सुरक्षा बल की 29वीं बटालियन के मंडी मंदिर स्थित हेडक्वार्टर में बतौर कॉन्स्टेबल तैनात थे. उनकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में भारत-पाक सीमा के पास स्थित पूंछ ज़िले में नियंत्रण रेखा के क़रीब एडमिनिस्ट्रेशन बेस में हुई थी. तेज बहादुर ने बाद में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जवानों को उपलब्ध करायी जाने वाली खाद्य सामग्रियों के बेचे जाने का आरोप भी लगाया था. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, साथ ही उन्हें डर भी था कि सीमा पर तैनात जवान जिन हालात में रह रहे हैं, उसका खुलासा करने की वजह से वरिष्ठ अधिकारी उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकते हैं.

तेज बहादुर के वीडियो ने देश भर में सनसनी पैदा कर दी थी लेकिन बीएसएफ ने आरोपों से पल्ला झाड़ लिया था. सेना के नियम-क़ायदों का उल्लंघन करने का दोषी पाये जाने के बाद तेज बहादुर को कश्मीर के संबा ज़िले में सेना की अदालत में सुनवायी के बाद नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया. उन पर ड्यूटी के वक़्त दो मोबाइल फ़ोन रखने व वर्दी में अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के संदर्भ में भी धाराएं लगायी गयीं.

बर्ख़ास्तगी के बाद तेज बहादुर ने यह दावा किया कि उन्हें रिटायरमेंट लेने को कहा गया था और यह सब पूर्व नियोजित था. उन्होंने कहा- “मैं सेना के अपने साथियों को गवाह के तौर पर बुलाना चाहता था लेकिन मुझे इस बात की आज़ादी नहीं दी गयी. कोर्ट मार्शल की पूरी की पूरी सुनवायी महज़ ढकोसला थी.”

चुनावी मैदान में तेज बहादुर के उतरने के बाद नीरस होता चुनाव तनिक रोमांचक हो गया है.

2004 के चुनावों को छोड़ दें तो पिछले 25 सालों से बनारस भाजपा का गढ़ रहा है और चुनावी जंग में यहां कांटे की टक्कर देखने को मिलती रही है जिसमें कभी-कभार मामूली अंतर से जीत-हार हुई है. इस बार लड़ाई नीरस व एकतरफ़ा करार दी जा रही थी क्योंकि दोनों ही विरोधी दलों ने प्रधानमंत्री को एक तरह से वॉक ओवर देते उनके ख़िलाफ़ कमज़ोर उम्मीदवार खड़े किये थे. ऐसे में तेज बहादुर का इस तरह चुनावी अखाड़े में आना न केवल चौंकाने वाला है बल्कि अब मामला रोचक भी हो गया है.

राष्ट्रीय स्तर के एक दैनिक अख़बार से जुड़े वरिष्ठ व स्थानीय पत्रकार दिनेश चंद्र मिश्र कहते हैं- “शालिनी यादव की तुलना में तेज बहादुर कहीं बेहतर उम्मीदवार हैं. नामांकन के बाद उन्होंने जिस तरह से ख़ुद को असली चौकीदार के रूप में प्रोज़ेक्ट किया है और मोदी के चौकीदार वाले दावे का पर्दाफ़ाश किया है, इससे चुनाव अभियान निःसंदेह रोमांचक होने वाला है.”

नाम न बताने की शर्त पर एक सरकारी अफ़सर ने कहा- “अपने भावनात्मक चुनाव अभियान से तेज बहादुर को भाजपा व कांग्रेस दोनों ही के वोट बैंक में सेंध लगाने में मदद मिल सकती है. फिर भी वे इस हाल में न होंगे कि मोदी व भाजपा को पटखनी दे पायें, जिनकी तरफ़ से चुनाव अभियान में पानी की तरह करोड़ों रुपये बहाये गये हैं.”

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के समाजशात्र विभाग के प्रोफ़ेसर एके जोशी के कहते हैं, “तेज बहादुर जैसे बाहरी उम्मीदवार को उतार कर समाजवादी पार्टी ने मोदी की उम्मेदवारी को और मज़बूत ही किया है. यदि कांग्रेस की तरफ़ से प्रियंका मैदान में होती तो संभव था कि मामला कुछ और होता क्योंकि मुस्लिम, ब्राह्मण, महिला व युवा मतदाता सब इन्हें वोट करते.”

मतदातों में चुनाव को लेकर कोई ख़ास उत्साह न होने की वजह से प्रोफ़ेसर जोशी को इस बात की आशंका है कि बनारस में इस बार वोटिंग प्रतिशत में गिरावट हो सकती है. कुछ हद तक विपक्षी दल भी इसके लिए जवाबदेह हैं.

आईआईटी बीएचयू में इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रोफ़ेसर विश्वंभर नाथ मिश्रा और संकट मोचन मंदिर के महंत के अनुसार- “इससे कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ने वाला. हालांकि तेज बहादुर के आने से यह ज़रूर लग रहा है कि सपा-बसपा गठबंधन को रेस में दूसरा स्थान हासिल हो जाएगा. बनारस के चुनाव में लोगों की रुचि नहीं रह गयी है.”

इसी कड़ी में वो आगे कहते हैं, “एक तरह से यह चुनाव महज़ ढकोसला भर है. जनसभाओं में कहीं भी असल मुद्दों की बात नहीं हो रही. हर किसी की ज़बान पर सिर्फ़ देशभक्ति का नारा दर्ज़ है. महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार देखते रहे अधिकांश मंत्री चुनाव मैदान में हैं ही नहीं. यह सोचने वाली बात नहीं है?”

माफ़िया डॉन व पूर्व सपा नेता अतीक़ अहमद व तेलंगाना और तमिलनाडु से आये किसानों से लेकर अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों को शामिल कर लें तो प्रधानमंत्री मोदी समेत कुल 102 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है. इसमें से करीब 37 मैदान में रह गए हैं, बाकी सबका पर्चा खारिज हो चुका है. पिछली बार मोदी के ख़िलाफ़ 62 उम्मीदवार मैदान में थे. चुनाव में उतरे हर उम्मीदवार से जुड़ी जानकारी भी अनुपलब्ध है. तेलंगाना व तमिलनाडु के किसानों ने बहुत दिन पहले ही सरकार की किसान-विरोधी नीतियों के प्रतीकात्मक विरोध के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी. हालांकि अतीक़ अहमद अभी जेल में हैं और विशेष अदालत ने उनकी जमानत की अर्ज़ी खारिज़ कर दी है फिर भी उनके नुमाइन्दों ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उनका नामांकन दाख़िल कर दिया है. देर रात सवा ग्यारह बजे तक चलने के बाद नामांकन प्रक्रिया ने भी रिकॉर्ड ही बनाया है. नामांकन दाख़िल करने की डेडलाइन सोमवार दोपहर साढ़े तीन बजे तक थी. जो भी उम्मीदवार समय रहते कलेक्ट्रेट भवन पहुंचा उसे नामांकन दाख़िल करने की इजाज़त दी गयी.

क्या है सीट का ‘वोट-गणित’ ?

भाजपा को परंपरागत रूप से सवर्ण जातियों का अच्छा ख़ासा वोट मिलता रहा है. बनारस संसदीय क्षेत्र में तक़रीबन 18 लाख मतदाता हैं. इनमें 3.2 लाख के आंकड़े के साथ सबसे ज़्यादा मुस्लिम मतदाता हैं जिनके बाद 3 लाख के आसपास ब्राह्मण तबका आता है. साथ ही यहां की आबादी में ओबीसी, कायस्थ, वैश्य आदि जातियों का भी ठीक-ठाक वोट है.

2014 में मोदी ने दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री व आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल को 3.37 लाख मतों के भारी अंतर से शिकस्त दी थी.

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