हरीश चटर्जी स्ट्रीट जहां गूंजती है ममता की तूती

जो गली पचास साल से दीदी का घर है, उस गली में लंबे समय से रहनेवाले निवासियों की उनके बारे में राय.

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के घर- 30 बी, हरीश चटर्जी स्ट्रीट, कोलकाता- से कुछ गज की दूरी पर सादी वर्दी में एक पुलिसवाले ने मुझे एक पेन और नोटबुक के साथ एक स्थानीय निवासी से बातचीत करते देखा. यह बताने के बाद कि मैं एक स्वतंत्र पत्रकार हूं, उसने कहा, “रिपोर्टर्स को यहां आने की अनुमति नहीं है.”

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मैंने सादी वर्दी में खड़े पुलिसकर्मियों को बताया कि उन्हें मुझसे कोई नुकसान नहीं होगा और मैं सिर्फ गली में रहनेवाले लोगों के साथ बातचीत कर रहा हूं और उनकी बताई हुई बातों को नोट कर रहा हूं, लेकिन उन्होंने मेरा अनुरोध मानने से इंकार कर दिया. किस्मत से, पुलिस ने दूसरे निवासियों से बात करते हुए मुझे देखा नहीं या मुझमें दिलचस्पी नहीं दिखाई. जिस स्थानीय नागरिक से मैं बात कर रहा था, वह गली के दक्षिण हिस्से में रहनेवाला अंतिम व्यक्ति था. हरीश चटर्जी स्ट्रीट का दक्षिणी हिस्सा वह क्षेत्र है, जहां पुलिसवाले वर्दी में और सादे कपड़ों में भी घूमते रहते हैं, पुलिस की गाड़ियां दस-दस मीटर की दूरी पर खड़ी रहती हैं.

जब आप हरीश चटर्जी स्ट्रीट में उत्तर की ओर से प्रवेश करते हैं, तो यह शहर के दक्षिणी इलाके की किसी अन्य सड़क जैसी ही लगती है. इस गली में ज़्यादातर निम्न-मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं, जहां चाय, बिस्कुट और सिगरेट की दुकानें हैं, कुछ गैरेज, दो-तीन मंजिला अपार्टमेंट, आधुनिक झोपड़ियां, ममता बनर्जी की कुछ ग्रैफिटी और तृणमूल कांग्रेस के झंडे हैं. हालांकि, इस सड़क पर दो अलग चीजें भी हैं. उसमें से एक है साढ़े पंद्रह किलोमीटर लंबी नहर, जिसे आदि गंगा या टोली का नाला कहते हैं, जो हरीश चटर्जी स्ट्रीट के साथ-साथ बह रही है, उसमें शहर का कूड़ा भरा हुआ है और बदबू आ रही है. दूसरा, जैसे-जैसे कोई इस गली के दक्षिण हिस्से की तरफ बढ़ता है, तो लगातार भारी पुलिस बल की मौजूदगी दिखायी देने लगती है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री गली के दक्षिणी हिस्से में रहती हैं. यह कालीघाट गेट की ओर है और टोली के नाले के ठीक पीछे है. तृणमूल कांग्रेस का केंद्रीय पार्टी कार्यालय भी यहीं स्थित है. मई 2011 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद, ममता बनर्जी अपने आवास से कभी भी शिफ्ट नहीं हुईं. वह लगभग 50 वर्षों से उसी एक-मंजिला घर में रह रही हैं. साल 2000 में जब ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं, उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यात्रा से लेकर साल 2017 में ममता बनर्जी के घर के सामने सशस्त्र माओवादियों के आत्मसमर्पण तक, इस गली ने बहुत कुछ देखा है.

मुख्यमंत्री के लिए यह साल 2019 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर काफी व्यस्त रहा है. 19 जनवरी को बनर्जी ने विपक्ष की एक विशाल सभा का आयोजन किया था, जिसमें अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, मल्लिकार्जुन खड़गे और जिग्नेश मेवानी जैसे प्रमुख नेताओं ने शिरकत की थी. पश्चिम बंगाल और देश के बाकी हिस्सों में भाजपा की राजनीति का उनका सक्रिय विरोध- विशेष तौर पर सीबीआई के साथ उनके हालिया रुख के बाद, जो कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से शारदा चिट फंड और रोज वैली घोटाले में सबूतों को मिटाने के आरोप में पूछताछ करना चाहती थी- कई लोग मानने लगे हैं कि उनकी महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है.

लेकिन, क्या दीदी की गली में रहनेवाले लोग उन्हें नया प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं? वे नरेंद्र मोदी के बारे में क्या सोचते हैं?

गली के उत्तरी भाग में रहनेवाले 40 वर्षीय प्रशांत झा एक छोटी सी दुकान चलाते हैं. उनके पिता बिहार के पटना जिले से हैं, लेकिन झा कोलकाता में ही पैदा हुए और यहीं पले-बढ़े हैं. उनकी पत्नी अपनी शादी के बाद पटना से यहीं आ गईं. वह मुझसे कहते हैं, ”मोदी केंद्र में ठीक हैं.” लेकिन उनकी पत्नी बीच में टोक कर कहती हैं, “जो यहां है, उनको हम सपोर्ट करेंगे… पहले दीदी, बाद में मोदी… हम लोग शुरू से दीदी को वोट देते आ रहे हैं.” झा मानते हैं कि अगर उनकी गली का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बन जाता है, तो यह गर्व की बात होगी. लेकिन, वे यह अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि बनर्जी तीन महीने से भी कम समय में भारत की सबसे शक्तिशाली इंसान बन सकती हैं.

सड़क से नीचे उतरते हुए, मैंने तीन महिलाओं के बीच चल रही बातचीत में खलल डाला. उनमें से दो अपनी उम्र के बीसवें पड़ाव पर थीं और एक अधेड़ उम्र की थीं. सभी बंगाली थीं और उसी गली में पली-बढ़ी थीं. उनके पास दीदी के बारे में बताने के लिए केवल अच्छी बातें ही हैं. कम उम्र वाली एक महिला, शिप्रा (बदला हुआ नाम) कहती है, “दीदी हमारी गली से हैं. हम उन्हें देखकर बड़े हुए हैं. हम उनसे बेहद प्यार करते हैं.”

पूछने पर कि वह मोदी के बारे में क्या सोचती है? वह बोली, “मैं चिकन बेचने का काम करती हूं और उत्तर प्रदेश में क्या किया जा रहा है, हम इसके बारे में सुनते रहते हैं. वहां पर वे लोगों को रातों-रात बेरोजगार बना रहे हैं. अगर इस तरह की चीजें यहां होती हैं, तो मैं क्या खाउंगी?” वह आगे कहती है- “हम सुनते हैं कि केंद्र सरकार ग्रामीण इलाकों में कुछ काम कर रही है. लेकिन यहां कोलकाता में नहीं.”

हालांकि, दूसरी युवती, दामिनी (बदला हुआ नाम) के पास मोदी के बारे में कहने के लिए केवल नकारात्मक बातें हैं, जैसे कि लोगों की खाने-पीने की आदतों में भाजपा का हस्तक्षेप, कथित सांप्रदायिक राजनीति, जीएसटी और नोटबंदी. वह कहती है, ”इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे लोगों ने कभी इस तरह के (नोटबंदी) कदम क्यों नहीं उठाए? क्योंकि वे जानते थे कि भारत जैसे गरीब देश में कोई ऐसा नहीं कर सकता.”

हालांकि, तीनों यह मानती हैं कि ममता का प्रधानमंत्री बनना उनके “भाग्य” पर निर्भर करता है, और उनकी गली के कुछ वोटों से बहुत फर्क नहीं पड़ेगा. उन्होंने यह भी बताने से मना कर दिया कि वे किसको वोट देंगी, लेकिन संभवतः भाजपा को नहीं ही देंगी.

हरीश चटर्जी स्ट्रीट भबानीपुर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जहां से ममता बनर्जी 2011 से विधायक हैं. इसके अलावा, यह साउथ कोलकाता संसदीय सीट में आता है. यहां लोकसभा चुनाव के सातवें और आखिरी चरण में 19 मई को वोटिंग होगी. हरीश चटर्जी स्ट्रीट पर दीदी की लोकप्रियता स्पष्ट है, लेकिन कुछ लोग विशेष रूप से उनके आभारी हैं. मुख्यमंत्री के आवास से कुछ मीटर की दूरी पर गैरेज में काम करने वाले गोपाल घोष (63) ममता के समर्थक लगते हैं. वे 30 से अधिक वर्षों से इस सड़क पर रह रहे हैं. वह कहते हैं, “अगर मैं दीदी के बारे में कुछ भी बुरा कहूंगा तो यह ठीक नहीं होगा, उन्होंने ही मेरे बेटे को नौकरी दिलायी है.”

इसी गली में रहने वाले दूसरे लोगों में ऐसी ही भावना देखी जा सकती है, इनमें तृणमूल कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता भी शामिल हैं, जो सरकारी नौकरी मिलने का दावा करते हैं. एक 60 वर्षीय महिला, जो 40 वर्षों से यहां की निवासी हैं, कहती हैं: “मैं झूठ नहीं बोलूंगी, दीदी ने बहुत अच्छा काम किया है… मेरी बेटी पार्टी का काम करती है… कार्तिक बनर्जी (ममता के एक भाई, जो उनके बगल में रहते हैं) ने उसे नौकरी दिलाने में मदद की. परिवार अब उसकी कमाई पर चलता है.” 38 वर्षीय टीएमसी कार्यकर्ता सत्यजीत (बदला हुआ नाम) की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. “मेरे पास दीदी की वजह से नौकरी है…कार्तिक बनर्जी ने मेरे बड़े भाई को पिछले साल नौकरी दिलाने में मदद की.” वह 1998 से हजरा के पास चित्तरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट में काम कर रहे हैं.

ममता के घर से थोड़ी-सी दूरी पर, कचरा इकट्ठा करनेवाला एक आदमी मुझसे कहता है, “दीदी गरीबों के लिए काम करती हैं…हमें उनका आशीर्वाद मिला हुआ है.” उसका कहना है कि ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद ही उसे यह नौकरी मिली थी. वह कहता है कि वह अपनी कमाई बढ़ाने के लिए रात में हाथ-रिक्शा भी खींचता है.

1991 से जब ममता बनर्जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में थीं और चुनाव लड़ा था, तबसे साउथ कोलकाता संसदीय क्षेत्र उन पर मेहरबान रहा है. उन्होंने तब से 2011 तक इस सीट को अपने पास बरकरार रखा था. 2011 में उन्होंने स्वेच्छा से भबानीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया. ममता बनर्जी और उनकी पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के दौरान इस निर्वाचन क्षेत्र में पहली बार झटका लगा था. तब भाजपा के उम्मीदवार तथागत रॉय 185 वोटों की छोटी-सी बढ़त के साथ भबानीपुर विधानसभा क्षेत्र में पहले स्थान पर रहे, हालांकि वह तृणमूल के उम्मीदवार से चुनाव हार गए थे.

हरीश चटर्जी स्ट्रीट के अधिकांश निवासियों का कहना है कि बनर्जी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की तुलना में बेहतर काम किया है,लेकिन कुछ कहते हैं कि वे उन्हें वोट नहीं देंगे. बिहार के रहनेवाले एक 60 वर्षीय व्यक्ति, जो मजदूरी का काम करते थे, कहते हैं, “सीपीएम, तृणमूल, भाजपा, सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं…वे हमारा वोट लेंगे और बाद में हमें लात मार देंगे.”

वे अपनी पहचान बताने से मना कर देते हैं. “मैं इस उम्र में क्यों पिटना चाहूंगा?” हालांकि उन्होंने बनर्जी की अलग से कोई बुराई नहीं की, लेकिन मोदी की तारीफ जरूर की: “मोदी ने पुलवामा के बाद एक जवाब दिया है. यह आजादी के बाद पहली बार हुआ है.” उन्होंने यह बताने से मना कर दिया कि वो किस पार्टी को वोट देंगे.

बिहार के एक अन्य व्यक्ति 1983 से ही कोलकाता में एक निजी ड्राइवर के रूप में काम करते हैं. चूंकि वह शहर के चारों ओर ड्राइविंग करके अपना पेट पालते हैं, इसलिए वे इस बात के गवाह हैं कि ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद से शहर में क्या-क्या बदलाव आये हैं. “दीदी के कारण ही शहर जगमगा उठा है. इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. हालांकि, उनका मानना है कि सिर्फ इसी वजह से दीदी को मोदी के ऊपर रखने का कोई कारण नहीं है. उनके पास मतदाता पहचानपत्र नहीं है. अगर होता, तो वे मोदी को ही वोट देते क्योंकि उन्हें लगता है कि मोदी ने उनके गृहराज्य बिहार में अच्छा काम किया है. वह उम्मीद करते हैं कि मोदी प्रधानमंत्री बने रहेंगे.

मैंने एक सामान्य प्रवृत्ति देखी, वह यह है कि मुख्य रूप से हिंदी पट्टी के लोग- जो खुद को “हिंदुस्तानी” के रूप में देखते हैं- मोदी के पक्ष में लगते हैं, भले ही वे ममता बनर्जी को पसंद करें या नहीं. मूलतः उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक दुकानदार हरचंद त्रिपाठी (बदला हुआ नाम) 30 से अधिक वर्षों से सड़क पर ही रहकर काम कर रहे हैं. वह कहते हैं कि भाजपा को वोट देने जा रहे हैं: “मैं भाजपा का समर्थन करता हूं … मैं एक ब्राह्मण हूं. मैं ईश्वर पर विश्वास करता हूं.” वह कहते हैं कि भाजपा के समर्थक कभी-भी हरीश चटर्जी स्ट्रीट पर खुलेआम ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि उन्हें टीएमसी कार्यकर्ताओं का डर रहता है. बातचीत शुरू होने से पहले ही उन्होंने पूछा था, “फोटो-वोटो तो नहीं छपेगा न?”

फिर भी, वह बनर्जी की प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि उन्होंने सीपीएम से बेहतर काम किया है. हरीश चटर्जी स्ट्रीट के एक हिस्से से लेकर बालाराम बोस घाट- जो कि टोली के नाला के गंदे पानी की एक बड़ी तस्वीर दिखाता है- और कालीघाट गेट तक जाती हुई सड़क तक बढ़ी हुई सुरक्षा व्यवस्था से वे काफी खुश हैं. वे बताते हैं कि “बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने से पहले कोई भी, सामान बाहर खुला छोड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकता था. लेकिन अब इस इलाके में गुंडागर्दी ख़त्म हो गई है…अगर कोई साइकिल बाहर खड़ी है, तब भी कोई डर नहीं है.”

जब दीदी के इलाके में बहुत सारे लोग उन्हें नौकरियां मिलने का क्रेडिट देते हैं और उनके लिए वोट करने को तैयार दिखते हैं, तो क्या ऐसे में हरचंद त्रिपाठी जैसे लोग पर्याप्त मात्रा में हैं, जो उनके वोट काट सकें? यह देखना बाकी है.

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