फेसबुक की विज्ञापन लाइब्रेरी रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक महीने में भाजपा और उसके अज्ञात समर्थक उसके सबसे बड़े विज्ञापनकर्ता रहे.
ऐसा लगता है कि फेसबुक जो एक समय कथित तौर पर डाटा की गोपनीयता के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने की वजह से घुटनों पर आ गया था अब वह अपने इस नुकसान की क्षतिपूर्ति करने में लगा हुआ है.
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Contribute“विज्ञापन में पारदर्शिता बढ़ाने” के अपने ताजा प्रयासों के तहत सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी (फेसबुक) ने लोगों को जानकारी देने के लिए एक विज्ञापन (एड) आर्काइव बनाया है जो उनके द्वारा देखे जाने वाले कुछ विज्ञापनों और उन विज्ञापनों का खर्च उठाने वाले विज्ञापनदाताओं के बारे में विस्तृत जानकारी देता है. आर्काइव में निर्वाचित अधिकारियों, सार्वजनिक कार्यालय के उम्मीदवारों और शिक्षा या आव्रजन जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विज्ञापन शामिल हैं. फेसबुक ने 7 मई, 2018 को या उसके बाद लॉन्च किए गए विज्ञापनों का आंकड़ा इकट्ठा करना शुरू किया था. फेसबुक का दावा है कि ये सभी विज्ञापन संबंधी आंकड़े उसके प्लेटफॉर्म पर सात साल तक संग्रहीत किये जायेंगे.
इसके साथ ही, फेसबुक ने 4 मार्च, 2019 को भारत के लिए अपनी विज्ञापन (एड) आर्काइव रिपोर्ट भी जारी की, जिसमें राजनीति और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से जुड़े विज्ञापन शामिल होते हैं. ये वो विज्ञापन हैं जो फेसबुक या इंस्टाग्राम पर चल रहे हैं. रिपोर्ट में विज्ञापन लाइब्रेरी के साप्ताहिक आंकड़े और इसमें उन विज्ञापनों पर खर्च हुए पैसे का आंकड़ा भी शामिल होता है जिन्हें एक निश्चित समय अवधि के बीच भारतीयों द्वारा देखा जाता है. इस रिपोर्ट के ऑनलाइन संस्करण में इस प्लेटफार्म पर सबसे अधिक खर्च करने वाले विज्ञापनदाताओं की सूची भी है. फरवरी 2019 से 2 मार्च तक की अवधि का डाटा हाल ही में जारी किया गया है.
इन आंकड़ों से कुछ दिलचस्प तस्वीरें उभर कर सामने आई हैं- पहला तो यह कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, हफ्ते दर हफ्ते विज्ञापन देने का तरीका आक्रामक होता जा रहा है और उस पर बहुत ज्यादा धन खर्च किया जा रहा है.
फेसबुक की विज्ञापन लाइब्रेरी में कुल 16,556 विज्ञापन हैं जो कि “राजनीति और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से जुड़े हुए हैं और यह दिखाया गया है कि उन पर विज्ञापनदाताओं ने फरवरी 2019 के बाद से कितना खर्च किया गया है.” इन विज्ञापनों पर कुल 4,13,88,087 रुपया खर्च हुआ है.
फेसबुक और इंस्टाग्राम पर जिन पेजों ने सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया है वो किसी और के नहीं बल्कि भाजपा या उन अज्ञात विज्ञापनदाताओं के हैं जो भाजपा के समर्थक हैं और जो हर क्लिक के साथ कमल का फूल खिलाना चाह रहे हैं. (फेसबुक ने 7 मई, 2018 को या उसके बाद लांच किये गए विज्ञापनों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया है.)
2019 लोकसभा चुनाव से बमुश्किल एक महीने पहले, भाजपा और भाजपा समर्थक विज्ञापनदाताओं द्वारा विज्ञापन पर खर्च की जा रही राशि करोड़ों में है. फरवरी 2019 से 2 मार्च 2019 तक, “भारत की मन की बात” नामक पेज ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर दिए गए 1,168 विज्ञापनों पर 1,01,60,240 रुपए खर्च किये. दूसरे नंबर पर “नेशन विद नमो” नामक एक पेज है, जिसने उसी दौरान दिए गए 631 विज्ञापनों पर 52,24,296 रुपए खर्च किये. तीसरे स्थान पर “मायगव इंडिया”नाम का पेज है जिसने 25,27,349 रुपए अपने 114 विज्ञापनों पर खर्च किए हैं.
इन तीनों पेजों ने बिना किसी डिस्क्लेमर के विज्ञापन चलाए- जिससे कि वो अज्ञात विज्ञापनदाता बन गए. फेसबुक की रिपोर्ट में बिना डिस्क्लेमर के चलने वाले विज्ञापनों का वर्णन ऐसे किया गया है: “जब एक विज्ञापनदाता राजनीति से संबंधित या राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से संबंधित अपने विज्ञापन को वर्गीकृत करता है, तो उन्हें इस बात का खुलासा करने की आवश्यकता होती है कि विज्ञापन के लिए भुगतान किसने किया है. यदि कोई विज्ञापन डिस्क्लेमर के बिना चलता है, तो यह कॉलम बताएगा कि ‘ये विज्ञापन बिना डिस्क्लेमर के चल रहे हैं’, जिसका अर्थ है कि विज्ञापन चलने के बाद, फेसबुक ने निर्धारित किया कि यह राजनीति और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से संबंधित है और इसलिए, लेबल की आवश्यकता है. विज्ञापन को बाद में हटा लिया जाता है.”
जो विज्ञापन डिस्क्लेमर के साथ चलते थे- उनका भुगतान भाजपा के कोष से किया गया था. हालांकि ये भी बिना डिस्क्लेमर वाले विज्ञापनों से ज्यादा पीछे नहीं थे जिन पर भारी खर्चा किया गया था. उदाहरण के लिए, डिस्क्लेमर के साथ चलने वाले “भारत के मन की बात” के समान नाम वाला एक अन्य पेज फरवरी 2019 से 2 मार्च, 2019 की मासिक तालिका में पांचवें स्थान पर था, जो विज्ञापन पर खर्च के मामले में अपने अज्ञात समकक्ष से सिर्फ चार स्थान पीछे था. इसने 388 विज्ञापनों पर कुल 18,47,555 रुपए खर्च किए. एक और पेज जो छठे स्थान पर था, “नेशन विद नमो” के समान नाम से है. इसने डिस्क्लेमर के साथ 443 विज्ञापन चलाये जिस पर 11,86,079 रुपए खर्च किये.
स्वयं भाजपा ने, अपने खुद के पेज के नाम के तहत, उसी दौरान डिस्क्लेमर के साथ चलाये गए सिर्फ दो विज्ञापनों के लिए 6,60,404 रुपए खर्च किये.
“नमो मर्केंडाइज” और “अमित शाह” जैसे पेज के लिए भी अज्ञात विज्ञापनदाता थे जिन्होंने अपने विज्ञापनों को बिना डिस्क्लेमर के साथ चलाने के लिए भारी खर्चा किया. पिछले महीने, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इन दोनों ने क्रमशः 2,12,071 और, 3,17,852 रुपए खर्च किये. यहां तक कि “नमो मर्केंडाइज” पेज को इंस्टाग्राम पर ब्लू टिक भी मिला हुआ है जबकि उसके फॉलोवर्स आठ हज़ार से कुछ ही ज्यादा हैं. हालांकि, ये पेज इंस्टाग्राम पर सिर्फ एक पेज को फॉलो करता है वो है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आधिकारिक पेज.
24 फरवरी, 2019 से शुरू होकर 2 मार्च, 2019 तक के साप्ताहिक आंकड़ों पर करीब से नज़र डालने पर पता चलता है कि जैसे जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, अज्ञात विज्ञापनदाताओं द्वारा खर्च की जाने वाली राशि हफ्ते दर हफ्ते बढ़ती जा रही है. उदाहरण के लिए, “भारत के मन की बात” ने फरवरी 2019 से 2 मार्च 2019 तक अज्ञात विज्ञापन पर कुल 1,01,60,240 रुपए खर्च किए थे. 24 फरवरी से 2 मार्च तक की साप्ताहिक अवधि के दौरान यह पहले स्थान पर था, जब इसने 20,16,692 रुपए खर्च किये जो कि इसके कुल मासिक खर्च के पांचवे भाग से भी अधिक है.
इस साप्ताहिक चार्ट में दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर इसी तरह के नाम वाले पेज हैं जैसे “भारत के मन की बात”, “नेशन विद नमो” और “मायगव इंडिया” जो एक डिस्क्लेमर के साथ अपने विज्ञापन चलाते थे (जो यह खुलासा करने के लिए तैयार थे कि विज्ञापनों के लिए भुगतान किसने किया). इन तीनों ने अपनी पूरी मासिक विज्ञापन राशि इस अवधि में ही खर्च कर दी जो कि क्रमशः 18,47,555 रुपए, 11,86,079 रुपए और 9,13,786 रुपए थी.
तो, आपके सामने सिर्फ भाजपा नहीं है जो आक्रामक तरीके से फेसबुक और इंस्टाग्राम पर विज्ञापन चला रही है बल्कि अज्ञात विज्ञापनकर्ता भी हैं जो भाजपा के प्रचार के लिए भारी मात्रा में धन खर्च करने को तैयार हैं. यह विज्ञापन कुछ सवाल भी उठाते हैं. उदहारण के तौर पर, क्या चुनाव आयोग इन अज्ञात विज्ञापनदाताओं द्वारा विज्ञापनों पर खर्च की जा रही भारी धन राशि पर ध्यान देगा? क्या इस प्रकार के ऑनलाइन विज्ञापन की लोकसभा 2019 के चुनाव से पहले तक कोई जवाबदेही तय होगी?
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