बालाकोट को लेकर पाकिस्तान के सिर पर मंडराते कुछ सवाल

सीमा पर हवाई हमलों का जुनून छंट रहा है, ऐसे में कुछ जरूरी सवाल जिनके उत्तर पाकिस्तान के लिए फजीहत का सबब बन सकते हैं.

WrittenBy:राहुल कोटियाल
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25-26 फ़रवरी की रात पाकिस्तान के बालाकोट में जो हुआ, उसे लेकर अब भी तस्वीर साफ़ नहीं हुई है. बल्कि वक़्त बीतने के साथ यह तस्वीर पहले से ज़्यादा धुंधली ही हुई है. जो तथ्य सभी पक्षों को स्वीकार्य हैं वो इतना ही बताते हैं कि इस रोज़ भारतीय वायुसेना के विमानों ने एलओसी पार की, पाकिस्तान के बालाकोट में बम गिराए और सभी विमान पाकिस्तान की नाक के नीचे यह कार्रवाई पूरी कर सुरक्षित लौट भी आए.

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भारतीय वायुसेना की यह कार्रवाई बेहद साहसिक थी और कई मायनों में यह पुराने भ्रम को तोड़ने वाली भी थी. इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है. लेकिन विरोधाभास इससे आगे के तथ्यों को लेकर शुरू होता है. एक तरफ़ भारतीय पक्ष है जिसके अनुसार इस कार्रवाई में बालाकोट में चल रहे जैश-ए-मोहम्मद के कैम्प को निशाना बनाया गया और जैश के कई कमांडर, लड़ाके और फ़िदायीन मार गिराए गए. अनधिकृत सरकारी स्रोतों के हवालों से भारतीय मीडिया ने यह भी दावा किया कि मारे गए आतंकियों की संख्या तीन सौ से भी ज़्यादा है. हालांकि आधिकारिक तौर पर भारत सरकार ने मारे गए आतंकियों का कोई भी आंकड़ा नहीं दिया था. यह आंकड़ा देना संभव भी नहीं था और ज़रूरी भी नहीं. लेकिन भारतीय मीडिया ने कथित सूत्रों के हवाले से तीन सौ आतंकियों के मारे जाने का एक मोटा आंकड़ा निकाल लिया और सारा दिन इस आंकड़े का ढोल फट जाने की हद तक पीटते रहे.

दूसरी तरफ़ इन दावों से ठीक उलट पाकिस्तान ने दावा किया कि भारत ने उसकी सीमा में घुसकर बम ज़रूर गिराए हैं लेकिन इससे न तो कोई कैम्प ध्वस्त हुआ और न ही कोई व्यक्ति मारा गया. पाकिस्तान का कहना है कि भारतीय हमले में सिर्फ़ कुछ पेड़ गिरे हैं और कुछ घरों की दीवारों में दरार आई है. पाकिस्तान के इस दावे को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छपी कुछ रिपोर्ट्स से भी बल मिला. अल-जज़ीरा, रॉयटर्स और बीबीसी के जो पत्रकार मौक़े पर पहुंचे उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यही बताया है कि हमले में किसी भी व्यक्ति के मारे जाने के कोई भी निशान उन्हें वहां नहीं मिले.

इन रिपोर्ट्स के प्रकाशित होने के बाद भारत का यह दावा काफ़ी कमज़ोर लगने लगा कि उसने बालाकोट में ‘बड़ी संख्या में’ आतंकवादियों को मार गिराया था. मौक़े से जो तस्वीरें सामने आईं, वह भी भारतीय दावों से उलट कहानी बयान कर रही थी. यह तस्वीरें और अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट्स मिलकर पाकिस्तान के दावे को ही मज़बूत करती हैं. लेकिन इन्हीं रिपोर्ट्स में कई ऐसे तथ्य भी छिपे हैं जो पाकिस्तान पर कई सवाल खड़े करते हैं. ऐसे गम्भीर सवाल जिन पर उतनी चर्चा नहीं हो सकी जितनी होनी चाहिए.

सबसे अहम सवाल तो यही है कि अगर भारतीय हमले में कोई नुक़सान नहीं हुआ और मौक़े पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे पाकिस्तान छिपाना चाहता है तो किसी भी पत्रकार को उस परिसर में जाने की अनुमति क्यों नहीं दी गई जिसे जैश-ए-मोहम्मद का प्रशिक्षण शिविर बताया जाता है. बालाकोट के जाबा में जहां यह हमला किया गया, पाकिस्तानी सेना अपनी निगरानी में ही पत्रकारों को लेकर पहुंची. ऐसा भी हमले के काफ़ी समय बाद किया गया और सिर्फ़ कुछ सीमित जगहों पर ही उन्हें जाने की अनुमति दी गई.

अल-जज़ीरा की ग्राउंड रिपोर्ट में ज़िक्र है कि जिस जगह पर बम गिराए गए वहां से कुछ ही दूरी पर एक मदरसा है जिसे जैश-ए-मोहम्मद चलाता है. इस जगह के पास ही एक साइनबोर्ड भी लगा मिला जिस पर लिखा था कि इस तालीम-उल-क़ुरान मदरसे का प्रमुख मसूद अज़हर है और इसका प्रशासक यूसुफ़ अज़हर. इस साइनबोर्ड को कुछ समय बाद ही वहां से हटा दिया गया. स्थानीय लोगों के हवाले से इन रिपोर्ट्स में यह भी बताया गया है कि यह मदरसा सशस्त्र समूहों द्वारा चलाया जाता था और यहां जैश के लड़ाकों को प्रशिक्षण दिया जाता था. यह एक स्थापित तथ्य है कि बालाकोट का यह इलाक़ा जैश के पुराने ठिकानों में शामिल रहा है. 2004 में विकीलीक्स ने भी यह ख़ुलासा किया था कि जाबा के पास जैश-ए-मोहम्मद का एक प्रशिक्षण शिविर है जहां हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता है.

इन सब तथ्यों के बाद जब पाकिस्तानी सेना पत्रकारों को तालीम-उल-क़ुरान मदरसे के आस-पास फटकने नहीं देती तो इससे स्वाभाविक तौर पर कई सवाल खड़े होते हैं. पाकिस्तानी सेना ने पत्रकारों को सिर्फ़ वहां तक ही जाने दिया जहां भारतीय सेना द्वारा गिराए गए बमों के कुछ निशान थे. इस जगह पर बड़े-बड़े गड्ढे बन पड़े हैं और यहीं के फ़ोटो-वीडियो मीडिया में सार्वजनिक किए गए हैं. जबकि तालीम-उल-क़ुरान मदरसा, जिसे जैश के लड़ाकों का गढ़ बताया जा रहा है, इससे कुछ दूरी पर है. पत्रकारों ने यह दावा किया है कि नीचे से देखने पर मदरसे का ढांचा बिलकुल ठीक लग रहा है और ऐसा नहीं लगता कि उसे कोई नुक़सान पहुंचा है. लेकिन अगर यह मदरसा जैश के आतंकियों का प्रशिक्षण शिविर नहीं है और इसे कोई नुक़सान भी नहीं हुआ है तो पत्रकारों को यहां क्यों नहीं जाने दिया गया, इसका कोई भी जवाब पाकिस्तान की ओर से नहीं आया है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट इस संदर्भ में काफ़ी महत्वपूर्ण है. इस रिपोर्ट में बताया गया है भारतीय वायुसेना ने उस रात दो तरह के बमों का इस्तेमाल किया था. एक वो जिनके गिरने से वो गड्ढे बने हैं जिनकी तस्वीरें पाकिस्तान ख़ुद पत्रकारों के माध्यम से सार्वजनिक कर रहा है और दूसरे इज़राइली एस-2000 बम. इस रिपोर्ट में इन बमों की मारक क्षमता के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से बताया गया है कि यह बम लक्ष्य पर अचूक वार करते हैं और सतह के नीचे पहुंचने पर ही असर करते हैं. लिहाज़ा जब ऐसे बम किसी बिल्डिंग पर गिराए जाते हैं तो इनसे पूरी बिल्डिंग ध्वस्त नहीं होती और सिर्फ़ एक सुराख़ बनता है जिससे यह बम बिल्डिंग के अंदर पहुंच जाते हैं. इन बमों का उद्देश्य कमांड और कंट्रोल सेंटर को नष्ट करना होता है, पूरी बिल्डिंग को ध्वस्त कर देना नहीं.

इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है भारतीय ऐजेंसियों ने सरकार को बालाकोट की कुछ सैटलाइट तस्वीरें भी सौंपी हैं जिनमे देखा जा सकता है कि हमले के बाद मदरसे की कई बिल्डिंगों की टिन की छतें ग़ायब थी और दो दिन बाद उन्हें वापस लगाया गया.

इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट से इतर इटली की एक पत्रकार फ्रांचेस्‍का मरीनो ने भी एक रिपोर्ट की है जिसमें उन्होंने दावा किया है कि इस हमले में कई आतंकी मारे गए हैं. इस रिपोर्ट में फ्रांचेस्‍का मरीनो ने पाकिस्तान में मौजूद अपने सूत्रों के हवाले से बताया है कि इस हमले में 40 से ज़्यादा आतंकी मारे गए हैं जिनमें जैश के लड़ाकों को प्रशिक्षण देने वाले मुफ़्ती मोईन और बम बनाने के माहिर उस्मान घानी समेत आईएसआई के वह पूर्व अफ़सर भी शामिल हैं जिन्हें यहां कर्नल सलीम के नाम से जाना जाता था.

फ्रांचेस्‍का मरीनो ने अपनी रिपोर्ट में हमले के कुछ चश्मदीदों के हवाले से यह भी बताया है कि कैसे पाकिस्तान की फ़ौज ने मारे गए आतंकियों की ख़बर को दबाने का काम किया. मरीनो पाकिस्तान पर काफ़ी समय से खुलकर लिखती रही हैं और साल 2011 में पाकिस्तान ने उन्हें बलोच नेताओं से नज़दीकी के चलते ब्लैकलिस्ट भी कर दिया था. काफ़ी सम्भव है कि मरीनो की इस रिपोर्ट को पाकिस्तान इसी वजह से ख़ारिज भी कर दे. लेकिन बालाकोट में पाकिस्तान का जो रूख रहा है उससे यह तो साफ़ है कि पाकिस्तान यहां पत्रकारों को जितनी चीज़ें दिखा रहा है उससे कहीं ज़्यादा छिपा रहा है.

भारत-पाकिस्तान के बीच बीते एक पखवाड़े में जो कुछ भी हुआ है उससे जैसे-जैसे पर्दा उठ रहा है, पाकिस्तान की फ़ज़ीहत भी वैसे-वैसे बढ़ रही है. पाकिस्तान की तब भी फ़ज़ीहत हुई जब उसने झूठा दावा किया कि उनकी ओर से दो भारतीय विमानों को मार गिराया गया है, तब भी हुई जब ऐसा ही झूठा दावा दो भारतीय पायलटों के उसकी क़ैद में होने का किया, इसलिए भी फ़ज़ीहत हुई कि अपने एफ-16 विमान के ध्वस्त होने को स्वीकार ही नहीं किया, इसलिए भी हुई कि इस एफ-16 विमान को उड़ाने वाले जिन विंग कमांडर शहाजुद्दीन ने पाकिस्तान के लिए अपने प्राण त्याग दिए. उनकी शहादत को भी मान्यता देने की स्थिति में पाकिस्तान नहीं रहा और विंग कमांडर अभिनंदन को भारत को सौंपने से पहले उनका वीडियो प्रॉपगैंडा के लिए बना कर भी पाकिस्तान की फ़ज़ीहत ही हुई. अब बालाकोट पर जैसे-जैसे बातें साफ़ हो रही हैं, पाकिस्तान की यह फ़ज़ीहत और बढ़ने ही वाली है.

इस बीच मसूद अज़हर की मौत की ख़बर भी उड़ती-उड़ती आ रही है. यदि यह ख़बर सच हुई तो पाकिस्तान की और भी ज़्यादा फ़ज़ीहत होना तय है. क्योंकि तब मसूद अज़हर की मौत का बालाकोट हमले से कोई सीधा संबंध हो या न हो लेकिन इससे उसी से जोड़ कर देखा जाएगा और पहले ही सौ झूठ बोल चुका पाकिस्तान इस दशा में ‘भेड़िया आया-भेड़िया आया’ वाली कहावत का भोगी बनेगा.

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