पत्रकारों पर बढ़ता हमला और ‘पत्रकार सुरक्षा क़ानून’ का मसला

रायपुर में कमेटी अगेन्स्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स उठाएगा पत्रकारों की सुरक्षा संबंधी क़ानून की मांग.

WrittenBy:मनदीप पुनिया
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5 फरवरी को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित भाजपा मुख्यालय में एक विचित्र दृश्य निर्मित हुआ. पत्रकारों ने विरोध स्वरूप हेलमेट पहनकर भाजपा नेताओं के बयान लिए. उनके कॉन्फ्रेंस के दौरान तमाम पत्रकारों ने हेलमेट पहले रखा. पत्रकारों के इस एक क़दम से दो काज सिद्ध हो रहे थे. पहली सुरक्षा और दूसरा प्रतिरोध. इस प्रतिरोध की पृष्ठभूमि को जानना जरूरी है.

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इस घटना से 3 दिन पहले 2 फरवरी की दोपहर को रायपुर के स्थानीय पत्रकार सुमन पांडे अपने दफ्तर में बैठकर अपनी वेबसाइट के लिए कोई खबर लिख रहे थे. करीब 4 बजे उन्हें व्हाट्सएप के माध्यम से सूचना मिली कि भाजपा के जिला कार्यालय में नेताओं के बीच झगड़ा हो गया है. आनन-फानन में सुमन भाजपा कार्यालय की ओर लपके. इसकी एक वजह यह रही कि उनका कार्यालय भाजपा के दफ्तर से सिर्फ 100 गज की दूरी पर स्थित है.

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जब वह भाजपा दफ्तर में अंदर घुसे तो उन्होंने पाया कि रायपुर ग्रामीण से पूर्व विधायक नंदे साहू को स्टेज पर न बैठाए जाने के कारण उनके समर्थक हंगामा कर रहे थे. वहां मौजूद लोगों से पूछने के बाद उन्हें पता चला कि चुनाव में भाजपा की हार पर समीक्षा के लिए जिले के सभी कार्यकर्ता वहां इकट्ठा हुए थे. इसी बीच वहां भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया. लड़ाई होते देख सुमन ने अपना मोबाइल निकाला और वीडियो बनाने लगे.

भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें वीडियो बनाते देखा तो घेर लिया. उग्र कार्यकर्ता उन्हें धमकाते हुए उनका फोन छीनने की कोशिश करने लगे. सुमन के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देख भाजपा जिला अध्यक्ष राजीव अग्रवाल वहां आए और वीडियो बनाने का कारण पूछा. सुमन ने कहा कि वे पत्रकार हैं और खबर के लिए वीडियो बना रहे थे. लेकिन सुमन की बात को वहां मौजूद भीड़ ने अनसुना कर दिया. सुमन के मुताबिक इसी दौरान राजीव अग्रवाल ने गाली देते हुए कहा,
“कांग्रेसी है यह साला, मारो इसको.”

अग्रवाल के इतना कहते ही कार्यकर्ता सुमन पर टूट पड़े और बुरी तरह से मारने लगे. उस घटना को याद करते हुए सुमन बताते हैं, “अग्रवाल के इशारे पर जब कार्यकर्ता मुझे पीट रहे थे तब मैंने उन लोगों से विनती की कि भाजपा के मीडिया कॉर्डिनेटर को बुला लें. लेकिन उन लोगों ने मेरी एक न सुनी. कोई मुझे मार रहा था तो कोई मेरा मोबाइल छीनने की कोशिश कर रहा था. वहां एक किस्म का मॉब लिंचिंग जैसा दृश्य था. मैंने मजबूरन इतने सारे लोगों के सामने समर्पण कर दिया.”

इतना बताकर सुमन एक दम खामोश हो गए. फिर वे कहते हैं, “मुझे पिटते देख वहां खड़े कुछ बुजुर्ग नेताओं ने बीच-बचाव करने की कोशिश भी की लेकिन हमलावरों ने उनकी भी नहीं सुनी. वे बार-बार कह रहे थे, कि  वीडियो बनाकर ज्यादा पत्रकार बनते हो. वो मुझे तब तक मारते रहे, जब तक मैंने उनके सामने वह वीडियो डिलीट नहीं किया. इसके बाद बड़ी मुश्किल से मैं बाहर निकला.”

एक पत्रकार पर हमले की खबर रायपुर के पत्रकारों में फैल गई. तमाम पत्रकार शाम होते-होते भाजपा कार्यालय में जमा होने लगे. पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के कहने पर सुमन ने पास के माधोपारा थाने में भाजपा जिला अध्यक्ष राजीव अग्रवाल और उनके कार्यकर्ताओं पर एफआइआर दर्ज करवाई. एफआइआर दर्ज होने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार भी किया लेकिन एक घण्टे बाद ही मुचलका भरवाकर छोड़ दिया. थाने से छूटने के तुरन्त बाद भाजपा के लोग बाहर खड़े पत्रकारों को मारने के लिए दौड़े. पत्रकार जैसे-तैसे वहां से भागे. इस दौरान वे लगातार धमकियां देते रहे कि कि पत्रकारों को उनकी औकात दिखाएंगे.

कई पत्रकार एक बार फिर से भाजपा कार्यालय के बाहर जमा हुए. उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से मारपीट करने वाले कार्यकर्ताओं को निलंबित करने की मांग की. लेकिन वो लोग उन्हें निलंबित करने के पक्ष में नहीं थे इसलिए उस असफल बातचीत ने पत्रकारों के धरने का रूप ले लिए. हमलावर भाजपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ धरना देते हुए पत्रकारों को आज 11 दिन हो चुके हैं. इतना ही नहीं पत्रकार भाजपा के कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग और भाजपा नेताओं से बातचीत करते वक़्त हेलमेट पहन लेते हैं. पत्रकारों की मांग है कि हमलावर कार्यकर्ताओं को पार्टी से निलंबित किया जाए और छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून को लागू किया जाए.

इससे पहले भी छत्तीसगढ़ के पत्रकार ‘पत्रकार सुरक्षा कानून’ को लागू करने की मांग समय-समय पर उठाते रहे हैं. जिसकी मुख्य वजह छत्तीसगढ़ में पिछले 2 दशक से पत्रकारों पर हो रहे लगातार हमले हैं.  2018 के विधानसभा चुनाव में जीतकर सत्ता में आई कांग्रेस के घोषणापत्र में भी इस मांग का जिक्र था कि उनकी सरकार आने पर तुरन्त प्रभाव से छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा को लागू करेगी.

‘छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा’ के ड्राफ्ट की अवधारणा सबसे पहले 2016 में पेश की गयी थी जिसके अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना का प्रसारण,संपादन, टिप्पणी करना, समीक्षा करना, या कोई भी व्यक्ति जिसका पत्रकारिता प्राथमिक अथवा मुख्य पेशा है, चाहे वह किसी भी संस्था या यूनियन से पंजीकृत हो या न हो. अगर उस व्यक्ति पर या उसके परिवार की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक सुरक्षा व अधिकारों का किसी भी तरीके से उल्लंघन पर ‘छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा’ कानून के तहत कार्रवाई हो. इस कानून के अंतर्गत पत्रकारों की सुरक्षा के लिए छत्तीसगढ़ सरकार एक स्वायत राज्य आयोग का गठन करे, जिसका एक कानूनी इकाई के रूप में अस्तित्व होगा और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अर्ध-न्यायिक अधिकार होंगे.

इस कानून को लागू करवाने के लिए ‘पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (सीएएजे), ‘छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून संघर्ष समिति’ और लोक स्वातंत्र्य संगठन मिलकर आंदोलन कर रहे हैं. इस ताजा हमले के मद्देनजर इन संगठनों ने 17 फरवरी को रायपुर के गास मेमोरियल हॉल में ‘छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून’ पर एक दिवसीय कॉन्प्रेंस का आयोजन किया है. इस आयोजन में तमाम वरिष्ठ पत्रकार, देशी-विदेशी मीडिया से जुड़े विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता हिस्सा लेंगे.

पत्रकारों पर हो रहा लगातार हमला एक लगातार अस्वस्थ होते जा रहे लोकतंत्र के शुरुआती लक्षण हैं. आज उन पत्रकारों के सामने अत्यंत खतरनाक स्थितियां पैदा हो गई हैं जो न्यूनत संसाधनों और बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के, जान जोखिम में डाल कर खबरों को सामने लाने का काम कर रहे हैं.

नेता-माफिया-पुलिस का बदसूरत गठजोड़ छोटे शहरों, कस्बों और सुदूर इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों के लिए विशेष रूप से खतरनाक स्थिति है, इसलिए पत्रकारों को इस विशेष कानून जरूरत आज किसी भी समय के मुकाबले सबसे ज्यादा है.

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