कोबरापोस्ट एक्सक्लूज़िव: डीएचएफएल के मालिकों ने किया 31,000 करोड़ का घोटाला

डीएचएफएल के मालिकों ने कथित रूप से भारी-भरकम सार्वजनिक धन का हेरफेर किया और इसका एक हिस्सा भाजपा को चंदे के बतौर दिया.

WrittenBy:गौरव सरकार
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पिछले साल प्रसारित स्टिंग ऑपरेशन के बाद, जिसमें दिखाया गया था कि कैसे बड़े-बड़े मीडिया हाउस हिंदुत्व के प्रचार को “समाचार” के रूप में दिखाने के लिए तैयार बैठे हैं, कोबरापोस्ट अब एक और खुलासा लेकर  सामने आया है. वेबसाइट का दावा है कि यह अब तक के भारत के कुछेक सबसे बड़े वित्त घोटालों में से एक है.

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29 जनवरी, 2019 को वेबसाइट द्वारा प्रकाशित की गई स्टोरी के मुताबिक, दीवान हाउसिंग फाइनेंशियल लिमिटेड (डीएचएफएल) नामक एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) के मालिकों (प्राइमरी प्रमोटर) ने 31,000 करोड़ रुपये से अधिक के सार्वजनिक धन की हेराफेरी की. स्टोरी में आरोप लगाया गया है कि इस घोटाले को अंजाम देने के लिए शेल कंपनियों को मोहरा बनाया गया और उन्हें ऋण और अग्रिम भुगतान के नाम पर सारा पैसा दिया गया. इसके बाद इन संदिग्ध कंपनियों के माध्यम से यही पैसा विदेशों में पहुंचाया गया और फिर उनसे निजी संपत्तियों की खरीददारी की गई.

कोबरापोस्ट कहता है, “कोबरापोस्ट ने इस घोटाले का खुलासा सार्वजानिक प्राधिकरणों के पास उपलब्ध दस्तावेजों की बारीकी से जांच करके और पब्लिक डोमेन में उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर किया है.”

लेकिन इतने बड़े घोटाले को, जिम्मेवार संस्थाओं और एजेंसियों की निगाह में आए बिना कैसे अंजाम दिया जा सकता है? कोबरापोस्ट के अनुसार, इस घोटाले को संदिग्ध शेल कंपनियों/पास-थ्रू कंपनियों को बहुत बड़ी रकम का जमानती और गैर जमानती कर्ज देकर अंजाम दिया गया. ये सभी शेल कंपनियां डीएचएफएल के मालिकों: कपिल वधावन, अरुणा वधावन और धीरज वधावन से संबंधित हैं.

स्टोरी में आरोप लगाया गया है कि वधावन परिवार ने अपने करीबी और सहयोगियों के माध्यम से उनके द्वारा चलाई जा रही कंपनियों को पैसा दिया. कोबरापोस्ट ने आरोप लगाया है कि इस पैसे का इस्तेमाल भारत के अलावा यूके, दुबई, श्रीलंका और मॉरिशस जैसे देशों में शेयर/ इक्विटी के साथ साथ निजी संपत्तियों को खरीदने में किया गया.

स्टोरी बताती है कि, कपिल और धीरज वधावन ने इस घोटाले को अंजाम देने के लिए अपनी शक्तियों और प्रभाव का इस्तेमाल किया जो कि उन्हें डीएचएफएल की वित्त समिति का बहुमत से सदस्य बनने के बाद हासिल हुई थीं. डीएचएफएल की वित्त समिति 200 करोड़ से अधिक के कर्जे की मंजूरी देती है. स्टोरी में यह आरोप लगाया गया है कि वधावन परिवार ने यह सुनिश्चित किया कि “शेल / पास थ्रू कंपनियों को कर्जा मिल जाए और चूंकि वो कंपनियां वधावन परिवार की ही मोहरा कंपनियां थी लिहाजा सारा पैसा वधावन परिवार को ही मिलता गया.”

इस स्टोरी में यह भी आरोप लगाया गया है कि डीएचएफएल और उसके मुख्य मालिकों (प्रमोटरों) ने एक लाख रुपये की मामूली पूंजी से दर्जनों शेल कंपनियां बनाई और उन्हें दो-चार कंपनियों के छोटे छोटे समूहों में विभाजित किया है. इनमें से बहुत सारी कंपनियों के पते एक ही हैं या एक जैसे हैं और इनके निदेशक भी एक ही हैं. यहां तक कि इन कंपनियों के वित्तीय विवरणों का ब्यौरा रखने के लिए ऑडिटरों का समूह भी एक ही है.

आरोप यह भी है कि डीएचएफएल के मुख्य मालिकों ने इन शेल कंपनियों को इतनी बड़ी-बड़ी लोन राशि बिना किसी जमानत के ही जारी कर दी. और इस धन का इस्तेमाल “भारत और विदेशों में निजी संपत्ति खरीदने के लिए किया गया.”

इस स्टोरी में यह आरोप भी लगाया है कि डीएचएफएल के मुख्य मालिकों (प्रमोटरों) ने स्लम डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के नाम पर कथित रूप से हजारो करोड़ रुपए का जमानती कर्ज दिया वो भी बिना किसी जांच या इक्विटी अनुपात का ध्यान रखे.

इन अनियमितताओं के अलावा कोबरापोस्ट की स्टोरी में कुछ और भी आरोप लगाए गए हैं मसलन इतने बड़े-बड़े कर्ज एक ही किश्त में दिए गए जबकि आमतौर पर किसी प्रोजेक्ट को दिया जाने वाला कर्ज अलग-अलग चरणों में प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस के आधार पर जारी होता है. अंत में, कोबरापोस्ट ने अपनी स्टोरी में यह भी बताया है कि वधावन परिवार ने संदिग्ध रूप से दिए गए कर्जे के पैसे से श्रीलंकाई प्रीमियर लीग की एक क्रिकेट टीम भी खरीदी.

पाठकों को इस घोटाले की व्यापकता समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि 2017-18 में ऑडिट की गई वित्तीय रिपोर्ट के अनुसार डीएचएफएल की कुल संपत्ति 8,795 करोड़ रुपये है. हालांकि, कंपनी ने बैंकों (भारतीय और विदेशी दोनों) के साथ-साथ वित्तीय संस्थानों से 96,880 करोड़ रुपये का कर्जा ले रखा है. इसमें से 31,312 करोड़ रुपये मूल्य के गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी), 36,963 करोड़ रुपये का बैंक कर्ज, 2,965 करोड़ रुपये के एक्सटर्नल कमर्शियल बॉरोइंगस (ईसीबी), 2,848 करोड़ रुपये का राष्ट्रीय आवास बोर्ड (एनएचबी) से कर्जा, 9,225 करोड़ रुपये का पब्लिक और कुल 13,567 करोड़ रुपये का अन्य कर्जा शामिल है.

उल्लेखनीय है कि, डीएचएफएल की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी ने कम से कम 36 बैंकों से कर्जा लिया है- जिसमें 32 राष्ट्रीयकृत और निजी बैंकों के साथ-साथ छह विदेशी बैंक भी शामिल हैं. 32 राष्ट्रीयकृत बैंकों में, भारतीय स्टेट बैंक ने 6-4-2018 तक डीएचएफएल को सबसे ज्यादा 12,000 करोड़ रुपये का कर्जा स्वीकृत किया था. इसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा (4,396 करोड़), बैंक ऑफ इंडिया (4,150 करोड़) और केनरा बैंक (3,100 करोड़) का नंबर आता है.

अगर विदेशी बैंकों की बात करें, तो कुल छह ऐसे बैंक थे, जिन्होंने डीएचएफएल को कर्जा दिया था. इनमें सीटीबीसी बैंक कंपनी लिमिटेड शामिल था, जिसने डीएचएफएल को 10,000,000 अमेरिकी डॉलर, ताइवान बिज़नेस ने 5,000,000 अमेरिकी डॉलर और बार्कलेज बैंक पीएलसी ने 30,000,000 अमेरिकी डॉलर का कर्ज दे रखा है.

ये आंकड़े डीएचएफएल द्वारा एमसीए की वेबसाइट पर दर्ज कराए गए हैं.

कोबरापोस्ट की जांच में आगे आरोप लगाया गया है कि डीएचएफएल द्वारा शेल कंपनियों (ज्यादातर कंपनियों में कपिल वधावन, अरुणा वधावन और धीरज वधावन व्यक्तिगत रूप से जुड़े हैं) को स्थापित करने एकमात्र उद्देश्य यह था कि डीएचएफएल से पैसा निकाल कर कहीं और लगाया जाय, और उनको पर्याप्त मात्रा में कर्जा दिया गया है.

“डीएचएफएल के नियमों के उल्लंघन की सूची, जैसा की ऊपर बताया गया है, इतनी व्यापक और बड़े पैमाने पर है कि यह किसी भी दूसरे घोटाले को पानी पिला दे. इसकी तुलना में, शारदा, नीरव मोदी / पीएनबी घोटाला बच्चों का काम लगता है.”

यहां सबसे महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि यह सारा पैसा गया कहां? कोबरापोस्ट की जांच के मुताबिक लंबे समय से जारी इस घोटाले में जमानती और गैरजमानती ऋण को संदिग्ध शेल कंपनियों को दिया गया, इसके जरिए अवैध इनसाइडर ट्रेडिंग की गई, इसके जरिएए विदेशों में निजी संपत्तियां खड़ी की गईं, और टैक्स चोरी की गई. इसके अलावा सरकारी धन को निजी संपत्ति में तब्दील किया गया और इस पूरे योजनाबद्ध घोटाले का मुख्य लाभार्थी बधावन समूह रहा.

स्टोरी के मुताबिक कुल 34 शेल कंपनियों का निर्माण हुआ जिनके परोक्ष संबंध या हित बधावन समूह और डीएचएफएल के प्रमोटरों के साथ जुड़े हुए हैं. इसने 10,493 करोड़ के बिना जमानत का लोन दिया. इसके अलावा 11 अन्य कंपनियों, जिनके संबंध शहाना समूह के साथ हैं, को 3,789 करोड़ रुपए का लोन दिया. और इन शेल कंपनियों ने इस पैसे का इस्तेमाल बधावन समूह और शहाना समूह के हित में सरकारी धन को निजी संपत्ति में बदलने के लिए किया. उपरोक्त 34 शेल कंपनियों में से अधिकांश का कोई आय या व्यापार नहीं है. ज्यादातर मामलों में इन कंपनियों की ऑडिटिंग एक ही संस्था थार एंड कंपनी ने की है. जाहिर है यह यह संस्था इस घोटाले में भागीदार है.

दिलचस्प बात है कि ऊपर बताई गई कुल 45 कंपनीयों में से 6 कंपनियों के आधिकरिक मेल एड्रेस inform2co@gmail.com है. 4 कंपनियां inform2ca@gmail.com मेल एड्रेस का इस्तेमाल कर रही हैं. 3 अन्य कंपनियां inform12com@gmail.com मेल आईडी का इस्तेमाल कर रही हैं. 10 कंपनियां sayalihs2102@gmail.com मेल आईडी का इस्तेमाल करती हैं.

एक और ध्यान देने वाली बात है कि 35 शेलल कंपनियों ने अपने लोन के संबंध में कोई भी विवरण एमसीए की वेबसाइट पर दर्ज नहीं करवाया है. जबकि यह अनिवार्य शर्त है. इनमें से अधिकतर कंपनियों ने अपनी ऋणदाता कंपनी (डीएचएफएल) के नाम को पूरी सतर्कता से छुपा लिया है.

कोबरापोस्ट के मुताबिक डीएचएफएल ने खुद भी इन सारे लोन का कार्यकाल और इनके भुगतान की शर्तों को छुपा लिया है. इससे भी ज्यादा मानीखेज बात यह है कि इन सभी कंपनियों की आय और व्यापारिक लेनदेन इनकी स्थापना के बाद से ही लगभग शून्य या नकारात्मक है. इसके अलावा इनमें से दर्जन भर से ज्यादा कंपनियों ने 2017-18 वित्त वर्ष की बैलेंस शीट अभी तक (26-1-2019) रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ के पास जमा नहीं किया है.

स्टोरी के मुताबिक, “यह घोटाला न केवल एनबीएफसी के नकारा कॉरपोरेट गवर्नेंस पर ऊंगली उठाता है बल्कि ये सार्वजनिक निकायों की लापरवाही या कहें मिलीभगत पर भी गंभीर खड़ा कर देता है. यह साफ़ तौर पर सरकारी यानी जनता के पैसे का प्राइवेट लोगों द्वारा दुरुपयोग और गैरकानूनी रूप से इस्तेमाल करने का मामला है.”

कोबरापोस्ट द्वारा उजागर किए गए इस कथित घोटाले का एक दिलचस्प हिस्सा और भी है कि 2014-15 और 2016-17 के बीच तीन डेवलपर्स द्वारा 19.5 करोड़ रुपये का चंदा सत्ता पर काबिज भाजपा को दिया गया. ये तीनों डेवलपर वधावन से जुड़े हुए हैं. ये डेवलपर्स हैं- आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, स्किल रियल्टर्स और दर्शन डेवलपर्स.

उपरोक्त तीनों कंपनियां वो हैं जिनके नाम कोबरापोस्ट की छानबीन के दौरान कई बार सामने आए. “जैसे कि वे सभी कपिल और धीरज बधावन द्वारा संचालित हैं.”

जब राजनीतिक चंदे की बात आती है तो सबसे ज्यादा चंदा देने वाली इन तीन कंपनियों में से आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स (आरकेडब्ल्यू) और दर्शन डेवलपर्स (दर्शन) इस सूची में शीर्ष पर हैं. आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स ने 2014-15 में कथित तौर पर 10 करोड़ रुपये का चंदा दिया था जबकि दर्शन डेवलपर्स ने 2016-17 में 7.5 करोड़ रुपये का चंदा दिया था. स्किल रियल्टर्स ने 2014-15 में कथित रूप से 2 करोड़ रुपये का चंदा दिया था, लेकिन आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स की तरह, इसने भी वित्तीय वर्ष 2014-15 के लिए अपनी बैलेंस शीट में कोई चंदा नहीं दिखाया था.

इन सभी स्रोतों से प्राप्त चंदे को लेने और बताने के दौरा सत्तारूढ़ भाजपा इन विशेष दानदाता कंपनियों के पैन नंबर का विवरण नहीं दे पायी. कोबरापोस्ट की स्टोरी में कहा गया है, “ये सभी चंदे, कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 182 के प्रावधानों की धज्जियां उड़ाते हैं, जिसके तहत राजनीतिक दलों को मिली कॉर्पोरेट फंडिंग की निगरानी होती है.”

एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि आरकेडब्ल्यू ने 2012-13 की बैलेंस शीट में 8,284,772 रुपये का नुकसान दिखाया था, लेकिन 2014-15 में भाजपा के कोष में 10 करोड़ रुपये का चंदा दे दिया. ये संसाधन उसके पास कहां से आए. इसके बाद स्टोरी में यह आरोप है कि स्किल रियल्टर्स ने अपनी बैलेंस शीट में 2 करोड़ रुपये के चंदे का कोई उल्लेख ही नहीं किया और आरओसी में प्रॉफिट और लॉस खाते को भी दर्ज करने में विफल रही. दिलचस्प बात यह है कि मुंबई स्थित निर्माण कंपनी ने मात्र 26,914 रुपए के लाभ में से इतनी बड़ी रकम चंदे के रूप में दे दी.

आखिर में, दर्शन डेवलपर्स, जिसने 2016-17 में भाजपा को 7.5 करोड़ रुपये का चंदा दिया, ने 2013-14 के वित्तीय वर्ष में इस कंपनी को 5,13,406 रुपये का नुकसान हुआ था.

यह सभी कंपनियां किसी भी पार्टी को चंदा देने के लिए पूर्णतयः अयोग्य हैं क्योंकि कानूनन चंदे में दी गई रकम निर्धारित लाभ की सीमा, जो कि 7.5 प्रतिशत है, से कहीं अधिक है. अधिनियम के अनुसार, कंपनी का प्रत्येक अधिकारी, जिसकी गलती है, को कानून छह महीने के कारावास का दंड तय है और साथ ही चंदे की राशि से पांच गुना तक जुर्माना लगाया जा सकता है.

यहां इससे भी बड़ा सवाल यह उठता है कि इन लोगों ने यह सब किया कैसे? स्टोरी के अनुसार, डीएचएफएल के कामकाज का तरीका यह है कि वो बिना किसी आधार वाली कंपनी को विभिन्न प्रोजेक्ट्स हेड्स के तहत बड़ी रकम का लोन देती है. शेल कंपनियों के छह समूहों को कर्ज देते समय इसी तरह के लेनदेन को कई बार दोहराया गया है. इसके अलावा, सभी कंपनियों के प्रारंभिक निदेशक एक ही हैं, जिनके नाम हैं अपर्णा, सचिन भाटूसे और संतोष कृष्णा आचार्य, और साथ में ऐसे शेयरधारक जिनकी कोई वित्तीय पृष्ठभूमि नहीं है. कोबरापोस्ट की जांच के अनुसार, “एक एनबीएफसी कंपनी ऐसी संस्थाओं को पृष्ठभूमि की जांच किये बिना कर्जा नहीं दे सकती.”

स्टोरी में यह भी आरोप लगाया कि डीएचएफएल ने गुजरात और कर्नाटक में कुछ कंपनियों को वहां के विधानसभा चुनावों के दौरान कर्जा दिया. गुजरात में, डीएचएफएल ने कथित तौर पर कई योजनाओं और परियोजनाओं के तहत गुजरात स्थित विभिन्न कंपनियों को कुल 1,160 करोड़ रुपये के कर्ज को मंजूर किया और वितरित किया. वर्तमान में वो सभी परियोजनाएं नगर निगम द्वारा लंबित हैं और अधिकांश परियोजनाएं निलंबित होने की स्थिति है- इसके चलते स्वत: ही सभी स्वीकृत कर्ज बैड लोन में बदल गए.

सभी लोन बिना किसी इक्विटी के मंजूर किए गए हैं और इसमें शामिल कंपनियों ने कोई वार्षिक रिटर्न दाखिल नहीं किया है. स्टोरी में बताया गया है- “दिलचस्प बात यह है कि कर्जे की राशि गुजरात चुनावों के समय दी गई है जो कि एक ऐसा संयोग है जिसको पूरी तरह से अनदेखा नहीं किया जा सकता है.”

कोबरापोस्ट के आखिरी धमाके के मुताबिक डीएचएफएल ने बधावन क्रिकेट लंका प्राइवेट लिमिटेड को अपरोक्ष तरीके से फंड मुहैया करवाया. यह श्रीलंका प्रीमियर लीग की एक क्रिकेट टीम है जिसका मालिक बधावन समूह है और इसकी मुखौटा कंपनी है आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स.

आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स की कहानी भी मजेदार है. इनकी आय का प्राथमिक स्रोत यह है कि इसके शेयर भारी संख्या में, भारी-भरकम कीमतों पर उन शेल कंपनियों द्वारा खरीदे गए जिन्हें डीएचएफएल ने कर्जा दिया था.

डीएचएफएल का जवाब

DHFL is a publicly listed Housing Finance Company and is regulated by the National Housing Bank and the Securities and Exchange Board of India, amongst other regulators. This mischievous misadventure by CobraPost appears to have been done with a mala fide intent to cause damage to the goodwill and reputation of DHFL and resulting in erosion in shareholder value.

DHFL today received an email at 8.44 a.m. in the morning, with a follow-up reminder one hour later, seeking answers to 64 questions from Cobra Post, many of which were laced with political innuendos. We are shocked and surprised to receive this inquiry this morning, although Cobra Post had announced its press conference last Friday, i.e. 25 January 2019, to disclose an alleged financial scam. One would have expected as a responsible media house CobraPost would have asked these questions during their investigations and not on the day of the press conference.

Their entire approach raises serious concerns about the motivation of this so-called expose. It is necessary in public interest that if they believed in the genuineness of their issues to have given DHFL an opportunity to explain the facts that are in any case available in the public domain.

DHFL is one of the leading and most respected housing finance companies in India with over ₹1,11,000 crores of assets under management and a large customer based across the country. Despite the recent liquidity regime, DHFL as a responsible corporate has met all its obligations to the lenders and has paid back to them in excess of ₹17,000 crores in the last three months. DHFL has a strong corporate governance regime and has received AAA credit rating from leading credit agencies. The company is fully tax compliant and its books are audited by global auditors.

We understand, for the last several weeks, an anonymous note has been making the rounds with similar defamatory and scurrilous allegations. The real intent of this exercise appears to be to destabilize the company and the market equilibrium besides hampering our meeting the on-going obligations. We are also concerned about the timing and the holding of the press conference before the stock market close and days before the interim budget.

DHFL is a responsible and law-abiding corporate citizen and all loans are disbursed in the normal course of business in accordance with industry best practices and in compliance with all regulatory norms. The company’s financial statements are submitted to the Stock Exchanges and are in the public domain.

DHFL and its group companies are confident of meeting any scrutiny on any aspect of our operations and will pursue these frivolous allegations to its logical conclusion.

Cobrapost reached out to the Wadhwans for their side of the story but they have not responded to any of the specific questions, according to Aniruddha Bahal. Newslaundry will independently reach out to them and update the copy as and when we recieve a response.

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