हत्या और ऑनर किलिंग की उलझी गुत्थी

बिहार के गया में हुई लड़की की नृशंस हत्या को पुलिस ऑनर किंलिग बता रही है लेकिन केस की गुत्थियां इसे मानने से रोकती हैं.

WrittenBy:रितिका
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चारों तरफ कपड़ा बनाने वाली मशीनों से घर्र-घर्र की आवाज़ें आ रही थी. गलियों की नालियों में कपड़ों के रंग बह रहे थे. हम बिहार के गया जिले की मशहूर पटवा टोली में थे. पटवा टोली हथकरघों और हैडलूम के जरिए कपड़ा बनाने के केंद्र और यहां के लड़कों द्वारा हर साल आईआईटी की परीक्षा पास करने के लिए मशहूर है.

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जिस समय हम पटवा टोली में पहुंचे, वहां का मिजाज़ बदला-बदला सा था. लोगों के मुताबिक मशीनों की आवाज़ें पहले के मुकाबले कुछ दब सी गई हैं. इन दबी हुई आवाजों की वजह पटवा टोली की बेटी नीलम (बदला हुआ नाम) की कथित रूप से बलात्कार के बाद की गई निर्मम हत्या है. पटवा समुदाय, नीलम का परिवार और पुलिस इस हत्याकांड को लेकर 2 अलग-अलग कहानियों पर टिके हुए हैं. एक तरफ पटवा टोली के लोग इसे रेप और हत्या का केस बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुलिस इसे ऑनर किलिंग मान कर अपनी जांच आगे बढ़ा रही है.

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19 जनवरी की सुबह पटवा टोली के एक निवासी के साथ मैं नीलम के घर पहुंची. नीलम के घर जाने वाली गली इतनी पतली है कि एक बार में उसमें एक ही इंसान आ या जा सकता है. उस गली के अंत में 8 गुणा 8 के एक कमरे में एक औरत शॉल से मुंह ढंके बैठी थी. पास में ही उसकी 3 बेटियां चुपचाप बैठी थी. मुझे देखते ही नीलम की बड़ी बहन भारती ने तुंरत चटाई बिछा दी. कमरे में बिल्कुल अंधेरा था. 5 लोगों के लिए एक साथ बैठना भी मुश्किल था. सामान के नाम पर एक पुराना टीवी, कुछ किताबें, डिब्बे और कबाड़ पड़ा था. इधर-उधर दौड़ते चूहे घर की बची-खुची चीजों को भी कुतरने में लगे थे. कमरे की हालत नीलम के परिवार की स्थिति को बयान करने के लिए काफी थी.

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हम कुछ पूछते, उससे पहले ही नीलम की बड़ी बहन भारती बोल पड़ी, “मेरी बहन 28 के बाद कभी नहीं लौटी.” ऐसा लगा जैसे उसे पता था कि मैं उससे क्या पूछने वाली हूं. “मेरी बहन 28 दिसंबर के बाद कभी नहीं लौटी. घर से 5 रुपये लेकर वह कुछ सामान लाने गई थी. पुलिस ने हमसे झूठा बयान लिया है कि वह 31 दिसंबर को लौटी थी.” ये बताते हुए भारती एकबार भी नहीं रोई लेकिन उसके चेहरे पर सूखे हुए आंसुओं का दाग मौजूद था.

बता दें कि पटवा टोली के निवासी तुराज प्रसाद और आशा देवी की 15 साल की बेटी नीलम 28 दिसंबर को लापता हो गई थी. परिवार ने नीलम को बहुत खोजा लेकिन वह नहीं मिली. थककर 4 जनवरी को नीलम के पिता ने स्थानीय बुनियादगंज थाने में अपनी बेटी की गुमशुगदी की रिपोर्ट लिखवाई. ठीक 2 दिन बाद 6 जनवरी को पुलिस को उसी इलाके में एक क्षत-विक्षत लाश मिली.

शिनाख्त के लिए बुलाए जाने पर नीलम के पिता ने अपनी बेटी के पायल और कपड़ों के आधार पर उसकी लाश को पहचान लिया. नीलम का सिर धड़ से अलग था. उसका एक बाजू भी काट दिया गया था. धड़ को एसिड डालकर जलाया गया था और दोनों स्तनों को भी काट दिया गया था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार नीलम की सांस की नली, फेफड़े और दिल भी गायब थे. प्रथमदृष्ट्या यह मामला रेप के बाद हत्या का था. लेकिन 10 जनवरी को गया के एसएसपी राजीव मिश्रा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मामले को ऑनर किलिंग से जोड़ा.

मिश्रा ने दावा किया कि नीलम 31 दिसंबर को घर लौटी थी, जिसके बाद उसके पिता तुराज ने अपने दोस्त लीला के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी. पुलिस ने नीलम की हत्या के आरोप में उसके पिता तुराज प्रसाद और लीला पटवा को गिरफ्तार कर लिया. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद से ही पटवा समुदाय में नाराज़गी है. पूरे पटवा टोली में कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं कि नीलम की हत्या उसके परिवार ने की है.

परिवार का दावा

“हमर बेटिया जे गेल 28 के से कभी न लौटलो. हम कहित-कहित मर गेलो कोई न सुनत हई.” (मेरी बेटी जो 28 दिसंबर को गई वह कभी नहीं लौटी. मैं चिल्लाते-चिल्लाते थक चुकी हूं लेकिन कोई इस बात को मानने को तैयार ही नहीं). यह कहते हुए नीलम की मां आशा अपनी सबसे छोटी बेटी सिमरन को पकड़कर रोने लगती हैं. इस बीच भारती मेरे सामने वह परचा ले आई जो उन्होंने नीलम की गुमशुगदी पर छपवाया था.

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नीलम के पिता ने 4 जनवरी को थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करवाई थी जिसमें उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया था कि उनकी बेटी 28 दिसंबर को लापता हुई थी. परिवार ने नीलम को बहुत खोजने की कोशिश की थी लेकिन वह नहीं मिली.

बुनियादगंज थाने में आईपीसी की धारा 363 और 365 के अंतर्गत एफआईआर दर्ज की गई थी. सब इंस्पेक्टर उमेश कुमार सिंह को इस केस का इंवेस्टिगेटिंग अफ़सर (आईओ) नियुक्त किया गया.

नीलम की बहन भारती ने हमें बताया, “6 जनवरी, जिस दिन नीलम की लाश मिली थी हमने उसे आखिरी बार देखा भी नहीं था. पापा ने जाकर लाश को पहचाना और पुलिस तुरंत उसे लेकर चली गई. पुलिस ने लाश का अंतिम संस्कार भी जल्द से जल्द करने को कहा. फिर पुलिस हमारे घर आई और हम सबसे कहा कि पूछताछ के लिए थाने जाना है शाम तक घर भेज दिया जाएगा. लेकिन हम थाने से 2 दिन बाद लौटे और मां 3 दिन बाद.”

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पुलिस का दावा

बुनियादगंज थाना, जहां यह केस दर्ज हुआ है, वहां के थाना प्रभारी मनोज सिंह ने बताया कि लड़की की लाश मिलने के बाद गुमशुदगी की पहली एफआईआर में ही आईपीसी की धारा 302, 201 और 120बी जोड़ा गया. इसमें हत्या, पुलिस से बात छिपाने और योजना बनाकर हत्या करने की धाराएं जोड़ी गईं. थाना प्रभारी ने स्पष्ट किया कि यही एकमात्र एफआईआर है, “गुमशुदगी और लाश मिलने पर कोई दो एफआईआर नहीं दर्ज की गई. पुलिस की जांच जिस दिशा में बढ़ रही है, उसके मुताबिक आईपीसी की धाराएं जोड़ी गई हैं.” न्यूज़लॉन्ड्री के पास उस एफआईआर की कॉपी है.

थाना प्रभारी मनोज सिंह ने जो हमें बताया उससे इस केस में एक नया कोण जुड़ता दिख रहा है. उन्होंने बताया कि सोमवार को पुलिस ने एक महिला को गिरफ्तार किया है, जिसने यह कबूल किया है कि उसके सामने ही नीलम का मर्डर किया गया था. इस महिला का नाम कुलेश्वरी देवी बताया गया है. वह भी पटवा टोली से ही है.

परिवार के दावे के उलट थाना प्रभारी कहते हैं, “जांच में यह बात सामने आई कि नीलम 31 दिसंबर को घर लौटी थी. लड़की 28 के बाद  घर नहीं लौटी, यह झूठ उसके पिता ने गढ़ा है.” थाना प्रभारी दावा करते हैं- “नीलम के पिता और उनके मित्र हत्या में शामिल हैं. अबतक पुलिस अनुसंधान में हमने लड़की के पिता की भूमिका संदिग्ध ही पाई है.”

पुलिस ने नीलम की हत्या की कहानी में एक और कोण जोड़ते हुए बताया कि नीलम के पिता तुराज और उनके मित्र लीला का कुलेश्वरी देवी के साथ कथित तौर पर नाज़ायज रिश्ता था. यह बात नीलम को पता चल गई थी. शायद यही उसकी हत्या का कारण बना. पुलिस अब इसी नजरिए से अपनी जांच आगे बढ़ा रही है.

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यहां यह गौर करना जरूरी है कि पुलिस ने पहले लड़की के साथ रेप की आशंका जताई थी, लेकिन जांच और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में इसकी पुष्टि नहीं हो सकी. फिर पुलिस ने अपनी जाच को ऑनर किलिंग की तरफ मोड़ दिया. अब पुलिस लड़की के पिता के महिला के साथ कथित नाज़ायज संबंध और हत्या की संभावनाओं पर जांच आगे बढ़ा रही है.

पुलिस के जांच की दिशा बदलने पर एसएसपी राजीव मिश्रा ने किसी भी तरह की टिप्पणी से इनकार कर दिया. उन्होंने बस इतना कहा कि पुलिस सिर्फ ऑनर किलिंग नहीं बल्कि दूसरे ऐंगल के साथ केस की जांच आगे बढ़ा रही हैं. वही थाना प्रभारी कहते हैं, “जैसे-जैसे अनुसंधान में पुलिस को नई जानकारियां मिल रही हैं, हम उसी मुताबिक काम कर रहे हैं.” उन्होंने पुलिस पर किसी भी तरह के दबाव की बात से इनकार किया.

कथित ऑनर किलिंग वाली थ्योरी के संबंध में भारती कहती हैं, “पुलिस ने मुझसे कहा कि अगर मैं नहीं बोलूंगी कि नीलम 31 को घर आई थी तो वे मेरे मां-पापा को लटकाकर मारेंगे.”  भारती ने एक महिला पुलिसकर्मी, डीएसपी और एक अन्य बुज़ुर्ग पुलिसकर्मी पर मारपीट का आरोप भी लगाया. उसने अपने हाथ की चोट दिखाते हुए कहा कि देखिए दीदी पुलिस ने कितना मारा था.

भारती ने कहा कि जब पुलिस ने मारना शुरू किया तो डर लगने लगा लेकिन मैं फिर भी कहूंगी पापा ने नीलम को नहीं मारा, यह कहते हुए भारती रो पड़ी. भारती ने बताया कि पुलिस ने उसके परिवार को पूछताछ के दौरान काफी प्रताड़ित किया. खाना मांगने पर उसकी मां को पुलिस ने कहा कि कैसी मां हो जो बेटी की हत्या कर खाना खा रही हो.

पास ही बैठकर रो रही नीलम की मां कहने लगी, “हमने कभी लड़कियों को बेटे से कम नहीं समझा. नीलम मेरे साथ ही कपड़ा बुनाई के लिए जाती और साथ ही लौटती थी. उस दिन वह मुझसे पहले निकल गई और कभी लौटकर नहीं आई.” वह मुझसे पूछते हुए बोली आप बताइए कौन मां अपनी बेटी के स्तनों को काटेगी. नीलम के पिता उसे बहुत मानते थे. कमरे की तऱफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा इसी छोटे कमरे में हम छह लोग साथ सोते थे. जिस ऑनर किलिंग की बात पुलिस कह रही है वह झूठी है क्योंकि नीलम न बाहर जाती थी न उसका कोई दोस्त है. पैसे की तंगी के कारण 2 बेटियों की पढ़ाई हमने रुकवा दी. मेरे पति को फंसा दिया पुलिस ने. सब खत्म हो गया.” आशा का रोना सुन उनके घर के बाहर कुछ लोग इकट्ठा हो गए.

जिस 5 रुपये की बात लगभग हर मीडिया रिपोर्ट में की गई है उसके पीछे की कहानी बेहद मार्मिक है. आशा देवी ने बताया कि काम से लौटने के बाद नीलम के पिता अपनी चारों बेटियों को हर रोज़ 5-5 रुपये देते थे. नीलम को दाल, सब्ज़ी उतनी अच्छी नहीं लगती थी. वह हर दिन 5 रुपये का हॉर्लिक्स का पैकेट लाती ताकि उसके साथ रोटी खा सके. उस दिन भी वह शाम को उन 5 रुपयों से हॉर्लिक्स लाने ही निकली थी.

इसी बीच नीलम की सबसे छोटी बहन सिमरन जिसकी उम्र 6-7 साल के करीब है चहककर बोली, “नीलम दीदी अपने हिस्से के पैसे से मुझे भी चीज़ें देती थी.” बता दें कि सिमरन के ही बयान को आधार बनाकर पुलिस ने इस केस को ऑनर किलिंग का केस बना दिया है. आशा देवी ने हमें बताया कि नीलम के जाने का सबसे बड़ा सदमा सिमरन को ही लगा है. भारती ने हमें यह भी बताया कि अगर नीलम आई होती तो सीसीटीवी कैमरे में कुछ न कुछ ज़रूर मिलता. बता दें कि जिस जगह नीलम सामान लाने निकली थी वहां कुछ सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं.

पुलिस ने नीलम की मां और बड़ी बहन के नार्को टेस्ट की भी बात की थी लेकिन परिवारवालों ने नार्को टेस्ट से साफ इनकार कर दिया था. नीलम के पिता और उनके दोस्त फिलहाल पुलिस की रिमांड पर हैं. पुलिस पटवा टोली के कई अन्य लोगों से भी पूछताछ कर रही है.

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नीलम के परिवार से मिलने के बाद मैं पटवा समुदाय के सामुदायिक भवन पहुंची जिसे दुर्गा स्थान के नाम से जाना जाता है. वहां मेरे आने की ख़बर सुन पहले से ही काफी लोग जमा थे. जब मैं अंदर पहुंची तो मेरी नज़र सबसे पहले नीलम को इंसाफ दिलाने की मांग करते एक बड़े बैनर पर गई. पटवा समुदाय के नेता प्रेम नारायण ने बताया कि पुलिस रोज़-रोज़ बयान बदलकर केस को घुमा रही है. पहले एसएसपी ने कहा ऑनर किलिंग का केस है, फिर डीएसपी कहते हैं ऑनर किलिंग नहीं है, फिर एडीजी कहते हैं यह तो ब्लाइंड केस है.

“नीलम का दोषी कौन है हमें नहीं पता पर इतना ज़रूर पता है कि नीलम के पिता ने उसे नहीं मारा. हमारे समुदाय में ऐसा कभी नहीं हुआ,” प्रेम नारायण कहते हैं. पोस्टमॉर्टम की बात पूछने पर वह बताते हैं कि नीलम के अंगों को जानवरों द्वारा खाए जाने की बात पूरी तरह बेबुनियाद है. पोस्टमॉर्टम में रेप की पुष्टि न होने को भी प्रेम नारायण पटवा ने खारिज किया. पुलिस असली अपराधियों को पकड़ने की जगह हमारे लोगों को दोषी बनाकर केस बंद करना चाहती है.

दुर्गा स्थान में मौजूद हर शख्स के फोन में इस केस से जुड़ी खबरें, वीडियो मौजूद थे जिन्हें दिखाकर वे अपने पक्ष को और मजबूत करने की कोशिश करते नज़र आए. पटवा टोली के लोगों में पुलिस को लेकर गुस्सा और नाराज़गी थी. लोगों का आरोप है कि डीएसपी अभिजीत कुमार सिंह ने परिवार से जबरन गुनाह कुबूल करवाया है. उनकी मांग है कि नीलम के कथित रेप और हत्या की सीबीआई जांच हो.

नीलम के परिवार से मिलने पहुंची बाल अधिकार संरक्षण की टीम ने भी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं. आयोग का कहना है कि संदेह के आधार पर बच्ची के पिता को जेल भेजना गलत है. बता दें कि नीलम की नृशंस हत्या के बाद विरोध में पटवा समुदाय के लोगों ने कुछ दिनों तक अपना काम भी बंद कर दिया था. साथ ही 9 जनवरी को गया में नीलम को न्याय दिलाने के लिए एक कैंडिल मार्च का भी आयोजन किया गया था.

पटवा टोली से निकलकर हम उस स्पॉट पर पहुंचे जहां नीलम की लाश मिली थी. मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि यह जगह पटवा टोली से 1 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित थी. वह जगह कोई सुनसान जगह नहीं थी. जहां नीलम की लाश को फेंका गया था वह एक खाली पड़ा छोटा सा प्लॉट है. सड़क के दोनों किनारों पर घर हैं. ऐसी स्थिति में अगर कोई लाश फेंककर जाता है तो लोगों की नज़रों में आने की प्रबल संभावना है.

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पटवा की बेटी नीलम को न्याय दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर सक्रिय छात्र रवि राज पटवा पुलिस के रवैये से काफी नाराज़ दिखे. ऑनर किलिंग की बात से साफ इनकार करते हुए राज ने भी सीधा पुलिस पर ही निशाना साधा. राज कहते हैं, “न कोई हथियार मिला, न कोई सबूत पुलिस किस आधार पर नीलम के पिता को ले गई है यह अभी तक हमें पता नहीं. हमें बिहार पुलिस की जांच पर बिल्कुल भरोसा नहीं है, हमें बस सीबीआई जांच चाहिए.” राज का यह भी मानना है कि राज्य में हुई शराबबंदी में गया में होनेवाले अपराधों की एक वजह है. सिर्फ रवि ही नहीं बल्कि पटवा टोली के अन्य छात्र जो आईआईटी से निकलने के बाद बेंगलुरु, कोलकाता जैसे शहरों में नौकरी कर रहे हैं वह भी सोशल मीडिया के ज़रिए नीलम के लिए न्याय की मुहिम चला रहे हैं.

पुलिस के बदलते अनुसंधान की दिशा और नीलम के पिता को निर्दोष बताते पटवा समाज के दावे से यह केस पेचीदा हो गया है.

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