क्या जानबूझकर पीआईबी को कमजोर किया जा रहा है?

बीते दो वर्षों के दौरान एक-एक करके प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की सेवाओं को या तो बंद किया जा रहा है या खत्म किया जा रहा है.

WrittenBy:अनिल चमड़िया
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पीआईबी सरकार का मीडिया संस्थानों के साथ सूचना संबंधी रिश्तों के लिए जिम्मेदार संस्था है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, पहलों एवं उपलब्धियों के बारे में प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सूचना प्रसारित करने वाली सरकारी एजेंसी है. किसी मंत्रालय/विभाग से संबद्ध ब्यूरो का अधिकारी उसका आधिकारिक प्रवक्ता भी होता है. वह मीडिया के समक्ष उस मंत्रालय/विभाग की नीतियों एवं कार्यक्रमों से जुड़ी सूचना, प्रश्नों के उत्तर, स्पष्टीकरण एवं किसी भी किस्म के भ्रम और भ्रांतियों पर सफाई भी देता है.

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इसके अधिकारी मंत्रालयों को मीडिया एवं विज्ञापन संबंधी जरूरतों के बारे में भी सलाह देते हैं. यह अधिकारी मीडिया के संपादकीय लेखों, आलेखों एवं टिप्पणियों के जरिए सामने आने वाले जन रुझानों का आकलन करके उनके अनुरूप मंत्रालय/विभाग को उसकी मीडिया एवं आईईसी नीति बनाने की सलाह भी देते हैं. मीडिया और राजनीति के बीच बदलते संबंधों ने भारत सरकार के सूचना गतिविधियों के लिए स्थापित लगभग सभी संगठनों व संस्थाओं को गहरे स्तर पर प्रभावित किया है. इनमें पीआईबी भी शामिल है.

मीडिया स्टडीज ग्रुप का एक अध्ययन बताता है कि पीआईबी का मीडिया संस्थानों के साथ रिश्ते का दायरा विस्तृत होने के बजाय संकुचित हुआ है. पीआईबी की फीचर सेवा, संपादक सम्मेलन, तथ्य पत्र जारी करने जैसी सेवाएं लगभग ठप्प हो गई हैं. इन सेवाओं के जरिये सरकार का मीडिया के साथ संवाद का सीधा रिश्ता बनता है.

पीआईबी की जिम्मेदारियों में कटौती

फीचर यूनिट द्वारा जारी फीचर, सक्सेस स्टोरीज, बैकग्राउंडर्स, सूचनांश, फोटो फीचरों को प्रादेशिक मीडिया में वितरण के लिए स्थानीय/शाखा कार्यालयों में अनुवाद हेतु भेजा जाता है. पीआईबी की फीचर यूनिट औसतन सालाना 200 फीचर्स जारी करती है. अप्रैल 2015 से अक्तूबर 2015 तक 137 फीचर्स जारी किए गए. इसके लिए केंद्रीय मंत्रियों, सचिवों, वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, विशेष पत्रकारों एवं मुख्यालय, स्थानीय व शाखा कार्यालयों में कार्यरत पीआईबी अधिकारी योगदान करते हैं.

पीआईबी ने 2018 में एक भी फीचर जारी नहीं किया. जनवरी 2017 से अक्टूबर 2017 तक फीचर की संख्या में उतार चढ़ाव दिखाई देता है, लेकिन 2018 में इनकी संख्या शून्य है. पीआईबी की फीचर सेवा ठप्प पड़ी हुई है.

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तथ्य पत्र

सरकार मीडिया का तथ्यों की जानकारी देने के लिए पत्र जारी करती है ताकि आंकड़ों को लेकर अटकलबाजियों के बजाय लोगों को ठीक-ठीक जानकारी दी जा सके. हाल के वर्षों में रोजगार के अवसर बढ़ने को लेकर आंकड़ों संबंधी वाद-विवाद हुए. लेकिन सरकार की ओर से इस संबंध में भी पीआईबी के जरिये कोई तथ्य पत्र जारी नहीं किया गया.

तथ्य पत्रों की संख्या

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संदर्भ सामग्री भी मीडिया के लिए सरकार द्वारा जारी करने की परंपरा रही है ताकि मीडिया सरकारी सूचनाओं के आधार पर अपनी जिम्मेदारियों को सही दिशा में पूरी कर सकें. लेकिन पीआईबी की मौजूदा हालात इस तरह की संदर्भ सामग्री भी जारी करने की इजाजत नहीं देती है.

संदर्भ सामग्री  

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संपादक सम्मेलन

पीआईबी द्वारा प्रत्येक वर्ष सामाजिक और आर्थिक संपादकों के सम्मेलन करने की परंपरा थी. यह सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में सरकार और मीडिया संस्थानों के बीच संवाद का एक महत्वपूर्ण अवसर माना जाता है. लेकिन संपादक सम्मेलन की यह परंपरा भी ठप्प कर दी गई है.

पीआईबी द्वारा आयोजित प्रमुख कार्यक्रम

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न्यूज़लॉन्ड्री ने पीआईबी के वर्तमान महानिदेशक सितांशु आर कार से इन उत्पन्न स्थितियों की जानकारी चाही. उन्होंने कहा कि उन्हें पद पर नियुक्त हुए ज्यादा दिन नही हुआ है इसलिए हम उन्हें इस संबंध में सारे सवाल मेल पर भेज दें. 10 जनवरी, 2019 को कार को भेजे मेल का अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. एक हफ्ता बीच चुका है. उनका जवाब मिलने की स्थिति में हम उसे इस लेख में शामिल करेंगे. 

पीआईबी की कीमत पर मीडिया सलाहकार एवं पीआर एजेंसियां

केन्द्र सरकार की नई नीति में मीडिया सलाहकारों की संख्या का तेजी से विस्तार हुआ है. सरकार के मंत्रालय अपने  स्तर पर मीडिया सलाहकार की नियुक्ति करते हैं. लेकिन मीडिया सलाहकार मंत्रालय के बजाय मंत्री के मीडिया सलाहकार के रूप में सक्रिय रहते हैं. मीडिया सलाहकार मंत्री के कार्यक्रमों व उपलब्धियों के प्रचार के लिए पीआर कंपनियों की मदद लेने पर जोर देता है.

भारत में राजनीतिक क्षेत्र में पीआर एजेसियों के कामकाज का तेजी से विस्तार हुआ है. मंत्री सत्ताधारी पार्टी का सदस्य होता है. मीडिया सलाहकार की नियुक्ति की नीति जहां भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय की शक्ति को कमजोर करता है तो दूसरी तरफ संसदीय लोकतंत्र में सत्ताधारी पार्टी, सरकार, मंत्रालय और मंत्री के बीच जो फासले निर्धारित हैं, मीडिया सलाहकार की नियुक्ति की नीति इनके बीच की रेखा को खत्म करने का काम कर रही है.

प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए पीआईबी की सक्रियता सर्वाधिक दिखती है. लेकिन प्रधानमंत्री के विदेश दौरे के दौरान पीआईबी के अधिकारियों को ले जाने की परंपरा इस दौरान बंद कर दी गई हैं. प्रधानमंत्री के विदेश दौरे के दौरान चुनिंदा पत्रकार ही जाते हैं जिनकी संख्या न्यूनतम होती है.

सरकार के मीडिया संस्थानों का केन्द्रीकरण

सूचना क्षेत्र के लिए पीआईबी के अलावा भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय (आरएनआई) की भी स्थापना की गई है. इसकी स्थापना प्रथम प्रेस आयोग-1953 की सि‍फारि‍श पर प्रेस एवं पुस्तक पंजीयन अधि‍नि‍यम-1867 में संशोधन करके की गई थी.

भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय (आरएनआई) सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का एक संबद्ध कार्यालय है. अपने वैधानिक और व्युत्पन्न कार्यों के तहत यह समाचार पत्रों के नामों को मंजूरी देता और उन्हें सत्यापित करता है, उन्हें पंजीकृत करता है एवं उनके प्रसार के दावों की जांच करता है. आरएनआई के प्रमुख प्रेस पंजीयक होते हैं, जिनकी मदद के लिए दो उप प्रेस पंजीयक और तीन सहायक प्रेस पंजीयक हैं. कार्यालय में शीर्षक सत्यापन, पंजीयन, प्रसार संख्या और प्रशासन के लिए अलग-अलग अनुभाग हैं.

लेकिन मीडिया संगठनों में विकेन्द्रीकरण की नीति को कमजोर किया गया है और केन्द्रीकरण की तरफ इन्हें ले जाने की नीति की तरफ झुकाव दिखाई देता है. 2016-17 की सूचना और प्रसारण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय के पुनर्गठन कार्यक्रम के तहत मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, भोपाल और गुवाहाटी में आरएनआई के क्षेत्रीय कार्यालय बंद कर दिये गये हैं और पत्र सूचना कार्यालय और क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय के सहायक निदेशक स्तर के अधिकारियों को पंजीयन पर्यवेक्षक के रूप में नामित किया गया है.

इसी तरह उप निदेशक/निदेशक/अपर महानिदेशक स्तर के अधिकारियों को क्रमशः सहायक/ उप/अपर प्रेस पंजीयक के रूप में नामित किया गया है जो कि प्रेस पंजीयक के अधीक्षण और निर्देशन में अपने अधिकारों का उपयोग करेंगे.

इस तरह मीडिया में सूचना देने और समाचार पत्रों के प्रसार संख्या की निगरानी का काम पीआईबी के क्षेत्रीय कार्यालयों को दिया गया है. पीआईबी के क्षेत्रीय कार्यालयों में कार्यरत अधिकारियों की जिम्मेदारी के चरित्र पर इसका असर दिखाई देता है.

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