छोटे तानाशाह की रियासत में असहमति और लोकतंत्र का स्वांग

मणिपुर में भाजपा के खिलाफ बोला गया एक भी शब्द आपको रासुका के तहत जेल पहुंचा सकता है.

WrittenBy:Paojel Chaoba
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भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब पहली बार मणिपुर में बनी तो बहुतों के लिए यह अंधेरी सुरंग के मुहाने पर रौशनी दिखने जैसी थी. सरकार ने शुरुआत में कई क़दम उठाए जिससे मणिपुर की जनता में भरोसा पैदा हुआ मसलन भ्रष्टाचार विरोधी इकाई की स्थापना हुई, मुख्यमंत्री महीने में एक बार गरीब, वंचित लोगों से मिलकर उनकी शिकायतें सुनने लगे.

जल्द ही सरकार की पहली नाकामी सामने आ गई जब मणिपुर यूनिवर्सिटी का विवाद शुरू हआ. विरोध प्रदर्शनों के चलते अकादमिक सत्र 4 महीने देर हो गया. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि वीसी एपी पांडेय को बर्खास्त किया जाय. विरोध का दायरा तब बहुत ज्यादा फैल गया जब सरकार ने आधी रात को यूनिवर्सिटी कैंपस में पुलिस को घुसने और कार्रवाई की अनुमति दे दी. छात्रों और शिक्षकों को गिरफ्तार कर लिया गया.

हालांकि यह विवाद आगे नहीं बढ़ा क्योंकि जल्द ही उन्हें रिहा कर दिया गया. यह शांति ज्यादा दिन कायम नहीं रही. जल्द ही टकराव का दूसरा मोर्चा खुल गया जब सरकार ने सोशल मीडिया पर भाजपा और मुख्यमंत्री की आलोचना करने वाली आम जनता को निशाना बनाना शुरू कर दिया. मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वाग्खेम इसका पहला शिकार बने. उन्होंने फेसबुक पर एक रैली की फोटो शेयर करके मणिपुर यूनिवर्सिटी में कथित तौर पर स्थापित हुई शांति व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया. उन्होंने लिखा कि रैली का आयोजन बीजेपी ने किया था. बीजेपी को उन्होंने “बुद्धू जोकर पार्टी” कहा था.

इस मौके पर उन्हें पहली बार उन्हें गिरफ्तार किया गया. मणिपुर के स्थानीय मीडिया ने इसका विरोध किया और मुख्यमंत्री आवास तक एक विरोध मार्च का आयोजन किया. ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष ने किशोरचंद्र की तरफ से मुख्यमंत्री से माफी मांग ली. इसके बाद भी उन्हें पांच दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

शायद इसी वजह से मणिपुर के स्थानीय मीडिया ने जब दूसरी बार किशोरचंद्र को गिरफ्तार किया गया तो, चुप्पी साध ली. ताकतवर सरकारी तंत्र जब किशोरचंद्र को देशद्रोह के मामले में फंसाने की हरचंद कोशिश में लगा हुआ था तब न्याय व्यवस्था में हमारा भरोसा मजबूत हुआ, जज ने उन्हें रिहा कर दिया. हालांकि यह खुशी भी बहुत थोड़े समय की सिद्ध हुई. 24 घंटे की भीतर ही उन्हें तीसरी बार गिरफ्तार कर लिया गया. इस बार उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत गिरफ्तार किया गया था. इसका सीधा अर्थ ये था कि सरकार को अपनी मनमानी करने से कोई नहीं रोक सकता है और अब किशोरचंद को कम से कम 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है. 365 दिन की जेल, यह सज़ा है एक सरकार की आलोचना करने की.

यह पहली बार हुआ है जब भाजपा-नीत मणिपुर की सरकार और उसके मुख्यमंत्री को राष्ट्रीय मीडिया में इतनी सुर्खिया और तवज्जो मिल रही है. स्थानीय मीडिया यहां पर सिर्फ सरकार के बारे में अच्छी-मीठी बातें ही करने को आज़ाद है. राष्ट्रीय मीडिया को सलाम जिसने दूसरे पक्ष को स्थान दिया.

हाल ही में इंडिया टुडे ने एक पोल करवाया जिसमें देश भर के मुख्यमंत्रियों की रैंकिंग तय की गई. इसमें मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को 23 में से तीसरा सबसे अच्छा मुख्यमंत्री घोषित किया गया. मणिपुर के स्थानीय मीडिया ने इसका जश्न इस तरह से मनाया मानो तीसरी रैंकिंग उसे ही मिली हो.

जश्न का यह दौर तब तक चला जब तक कि एन बीरेन सिंह को इस सूची में तीसरे पायदान से हटा नहीं दिया गया. इंडिया टुडे का पोल अभी चल ही रहा था. कार्यक्रम के संचालक राहुल कंवल ने आठवें एपिसोड में घोषणा की कि एन बीरेन सिंह को सूची से हटा दिया गया है क्योंकि बड़े और तुलनात्मक रूप से छोटे राज्यों के मुख्यमंत्रियों की लोकप्रियता की आपस में तुलना नहीं की जा सकती.

यह ख़बर इंफाल फ्री प्रेस में जस की तस छापी गई. और बदले में उसके ऊपर आपराधिक मानहानि का वाद दायर कर दिया गया. यह मामला अदालत में लंबित है.

यह कहना सबसे सुरक्षित है कि सबको पता है मुख्यमंत्री की लोकप्रियता कितनी है. अहम सवाल है कि राज्य सरकार आम लोगों के बोलने और अभिव्यक्त करने के संवैधानिक अधिकारों पर हमला क्यों कर रही है. इसका कोई तार्किक जवाब नहीं है. शायद वे भ्रम में हैं. सत्ता के नशे ने शायद उनका दिमाग भ्रष्ट कर उन्हें बेशर्म बना दिया है. वंचितों को सुरक्षा देने की बजाय खुद ही अत्याचारी बन गए.

साथ ही, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस मुद्दे को कैसे लेगा? इस तरह की मनमानी गिरफ्तारियां क्या उसके हित में हैं? क्या इस क़दम से उसे अगले चुनावों में वोट मिलेंगे? मीडिया का मुंह बंद करने के लिए क्या लोग भाजपा का गुणगान करेंगे? सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने बीरेन सिंह को ‘लिटिल डिक्टेटर’ कहा है. क्या एक पत्रकार पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून थोपना वाजिब है?

इस कृत्य की आलोचना चहुंओर हो रही है कि आम आदमी सोशल मीडिया पर एक शब्द भी बोल, लिख नहीं सकता, गिरफ्तारी संभव है. मुख्यमंत्री को अपना दिमाग चलाने नहीं बल्कि दौड़ाने की जरूरत है ताकि मणणिपुर में लोकतंत्र बढ़ता रहे. किशोरचंद्र का मुद्दा उनका वाटरलू सिद्ध हो सकता है.

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