#राजस्थान चुनाव: मिलिए अलवर की गौरक्षा प्रयोगशाला के शोधार्थी गौरक्षकों से

राजस्थान में विधानसभा चुनाव के चरम दौर में न्यूज़लॉन्ड्री अलवर के उन युवा गौरक्षकों से मिला जिनके ऊपर हाल के महीनों में हिंसा और मॉबलिंचिंग के आरोप लगते रहे हैं.

WrittenBy:अमित भारद्वाज
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अलवर राजस्थान के सिंह द्वार के रूप में जाना जाता है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुनने के लिए इकठ्ठी हुई हज़ारों की भीड़ को यह याद दिलाया था. लेकिन 11 विधानसभा सीटों वाला यह जिला हाल के सालों में भीड़ द्वारा की गयी हत्याओं (मॉब लिंचिंग) के लिए भी बदनाम रहा है. अलवर पिछले दो वर्षों में गौरक्षा दलों का समानार्थी बन गया है. यही वो जिला है जहां पहलू खान को दिन दहाड़े भीड़ ने मार डाला था. यह ही वो जिला है जहां रकबर को गौरक्षा दल के सदस्यों ने जान से मार दिया और बाद में उसे रहस्मय परिस्थितियों में मृत घोषित कर दिया गया.

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अलवर का रामगढ़ प्रशासनिक ब्लॉक विशेष रूप से इस तरह की अवैध गतिविधियों का केंद्र रहा है. यहां आरोप लगता रहा है कि अक्सर पुलिस खुद गौरक्षकों के साथ मिलकर काम करती है. रामगढ में गौरक्षक बेकाबू रहते हैं. रकबर खान की मृत्यु से पहले तक, उन्हें कथित रूप से पुलिस का पूरा समर्थन प्राप्त था. कम से कम गौ रक्षा दल के सदस्यों का यही दावा है.

ये मुद्दे भगवा ब्रिगेड को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के चुनावी अवसरों को मजबूत करने में मदद करते हैं. चुनाव प्रचार के चरम दौर में हमने राजस्थान के युवा गौरक्षकों से मुलाकात की. यह जानने के लिए कि ये लोग कौन हैं जो “गौ माता के लिए अपना प्राण तक न्यौछावर करने या कहें कि दूसरों के प्राण लेने के लिए” तैयार हैं.

गौरक्षकों की युवा ब्रिगेड में एक 18 वर्षीय युवा है जिनकी तमन्ना डब्ल्यूडब्ल्यूई में जाने की है, और इसमें 35 वर्षीय एक हलवाई भी हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ एक दशक से भी ज्यादा समय से जुड़े हुए हैं.

गौ रक्षक दलों की कार्यप्रणाली

वीएचपी के गौ-संरक्षण शाखा से संबद्ध समूहों में कार्यरत गौरक्षक कुछ बुनियादी बातों का पालन करते हैं. वाहन की पहचान कैसे की जाती है? वे उन ट्रक या टैम्पो पर नज़र रखते हैं जिनमें दो रेडिएटर, अतिरिक्त डीजल टैंक, आगे और पीछे गाड़ी की बॉडी विस्तारित हो साथ ही अस्पष्ट या बिना नम्बरों वाली गाड़ियां भी इनके निशाने पर होती हैं.

अलवर में वीएचपी के गौ-संरक्षण इकाई के प्रमुख, नवल किशोर मिश्रा ने बताया, “जो वाहन गायों को ले जाते हैं उनकी गाडी पर मिट्टी और गाय के गोबर के निशान होते हैं. हमारे लड़के ऐसे वाहनों के आने जाने पर नज़र रखते हैं. एक बार ऐसे वाहन दिख जाएं फिर संबंधित टीमों को सूचित किया जाता है.” वाहनों को देखने के बाद, सभी संभावित मार्गों की पहचान की जाती है जहां से वो वाहन जा सकता है और गौ रक्षक दल की टीमों को सतर्क कर दिया जाता है. अकेले रामगढ़ में ऐसी 13-14 इकाइयां हैं- प्रत्येक इकाई में 10 से 20 सदस्य हैं.

42 वर्षीय मिश्रा ने बताया कि इसके बाद पुलिस के साथ तालमेल बिठाने की बारी आती है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि मिश्रा ही वो व्यक्ति हैं जिन्होंने रकबर खान की घटना के दौरान पुलिस और लालवंडी गांव के स्थानीय गौ रक्षक दल के बीच तालमेल बिठाने का काम किया था. गौ रक्षक दलों द्वारा “गौ तस्करों” के आवागमन के बारे में पुलिस को सूचित किया जाता है. लेकिन उनके सटीक स्थान के बारे में छापे से केवल 30 मिनट पहले सूचित किया जाता है. मिश्रा ने कहा, “इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि पुलिस में मौजूद जासूसों द्वारा सूचना लीक ना हो.” पत्थरों, कीलों, फट्टों और मोटरसाइकलों द्वारा रास्ता रोका जाता है. मिश्रा ने बताया, “एक बार गौ-तस्कर पकड़ जाते हैं फिर उनको पुलिस को सौंप दिया जाता है.”

युवा गौ रक्षक दावा करते हैं कि वे हिंदू धर्म और राष्ट्र के लिए लड़ते हैं.

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1: राम खिलाड़ी वर्मा, हलवाई (गौ-रक्षक और अखाडा प्रशिक्षक)

इस संवाददाता ने पूछा, “आपके परिवार में कौन कौन है?” वर्मा ने जवाब दिया, “दो गौ-माता, मां, मेरी पत्नी और दो बच्चे.” 35 वर्षीय वर्मा अलवर के रामगढ़ के छोटी बावरी इलाके के पास रहते हैं. वह एक टेंट हाउस के साथ हलवाई का भी काम करते हैं और बजरंग दल द्वारा प्रबंधित अखाड़े में युवाओं को प्रशिक्षित करते हैं. “मैं बजरंग दल के अखाड़ा विंग का जिला अध्यक्ष हूं. मैं पांच से छह अखाड़ों का प्रबंधन करता हूं,” उन्होंने कहा.

वर्मा युवा भर्तियों को योग और तलवारबाज़ी का प्रशिक्षण देते रहे हैं. जब पूछा गया कि तलवारबाजी का प्रशिक्षण क्यों देते हैं, तो उन्होंने जवाब दिया- सनातन धर्म को बचाने के लिए, हमारे पास एक हाथ में शास्त्र और दूसरे में शस्त्र होना चाहिए.

वर्मा ने 1998 में आरएसएस का साथ पकड़ा था, और 2012 में बजरंग दल में चले गए थे. “पिछले 18 सालों में, मैं 16,000-17,000 गौ वंश को बचाने के लिए पड़ने वाले छापों का हिस्सा रहा हूं.” उन्होंने रामगढ़ पुलिस को चुनौती दी है कि अगर उनमें हिम्मत है तो वे अपने दम पर एक भी “गौ-तस्कर” पकड़ कर दिखाएं. उनके अनुसार वे पुलिस से काफी नाराज़ हैं क्योंकि पुलिस ने रकबर की हत्या मामले में निर्दोष गौ रक्षकों के खिलाफ केस बनाया है.

वर्मा, रोष और क्रोध में, अपने दर्द को साझा करते हैं कि मीडिया गौ रक्षकों का नकारात्मक चित्रण करता है. उन्होंने कहा, “जब मैं छापे के लिए बाहर निकलता हूं तो मेरी 65 वर्षीय मां रात में सोती नहीं है. वह जानती हैं कि शायद मैं जिंदा वापस नहीं आ पाऊंगा. हमारा जीवन ताक पर रहता है, तस्कर बन्दूक का इस्तेमाल भी करते हैं और गोली भी चलाते हैं.” अपने 18 वर्षों के अनुभव में, जब भी उन्होंने वाहन को “बचाव” छापे में पकड़ा है उन्हें अभी तक किसी भी लड़ाई का सामना नहीं करना पड़ा है. वह व्यक्ति जो अपना “जीवन दांव पर लगाता”, पीक सीजन में 10-12 हजार रुपये कमाता है और कुछ महीने ऐसे भी होते हैं जब उन्हें कोई काम नहीं मिलता है. “मैं इस तरह के महीनों में संगठन में अपना ज्यादा से ज्यादा समय समर्पित करता हूं.”

जब पूछा गया कि वह परिवार का खर्च कैसे चलाते हैं. उन्होंने जवाब दिया, “हम खेत में फसलें और सब्जी उगाते हैं, दूध के लिए दो गौ माता हैं. और हमें किसी और चीज के लिए पैसे की ज़रूरत नहीं है.” जब चिकित्सा खर्चों के बारे में पूछा गया, तो उन्होनें कहा,” श्रीमान सुनिए, 35 वर्षों में मैं बीमार नहीं हुआ हूं. यह गौ माता की वजह से जिनमें 33 देवताओं का निवास है.” वर्मा ने दावा किया कि वह केवल गाय का दूध पीते हैं, हर 15 दिनों में गोबरा का उपयोग करते हैं और हर दस दिनों में गौमूत्र का उपभोग करते हैं- और यह उन्हें स्वस्थ रखता है.
हालांकि, वह वसुंधरा राजे की व्यवस्था से भी निराश दिखते हैं, “यह आंतरिक मतभेद हैं और संगठन द्वारा उनको संभाला जायेगा.”

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2: जसपाल सिंह राजपूत, (जिम ट्रेनर)

लालवंडी गांव के प्रवेश द्वार पर, एक जिम पूरे दिन खुला रहता है. कोई ताला या दरवाजा नहीं है. 21 वर्षीय जसपाल सिंह राजपूत यहां एक जिम ट्रेनर है. बीए में स्नातक जसपाल 2013 में आरएसएस से जुड़े. उसके बाद से ही गौरक्षा गतिविधियों में शामिल हैं. राजपूत कहते हैं, “यहां तक कि हमारे बुजुर्ग भी गाय संरक्षण गतिविधियों में शामिल थे.”

जब उनसे पूछा गया कि वह कानून हाथ में क्यों लेते हैं, तो उसकी प्रतिक्रिया थी, “कोई बेटा चुप नहीं रह सकता है, जब कोई उसकी मां को छूता है, उसे मारता है और उसकी चमड़ी निकाल देता है.” उनके अनुसार “गौ तस्करों” को जान से मारने की वाजिब वजह है ताकि उन्हें उपयुक्त सबक सिखाया जा सके और भविष्य में वे गायों की तस्करी के बारे में सोच न सके.”

जसपाल सिंह राजपूत लालवंडी से हैं और गौ रक्षक होने के जोखिम को समझते हैं. “हो सकता है किसी को नौकरी ना मिले क्योंकि उनके खिलाफ गौ रक्षक के नाम पर मुकदमा दर्ज है. लेकिन यह हमारी मां की रक्षा नहीं करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं है.” उन्होंने कहा कि रकबर की हत्या के बाद स्थिति भयानक हो गयी है और रक्षक दलों को थोड़ा शांत होना पड़ा. उन्होंने खुद अपने लिए उत्तरी दिल्ली में नौकरी ढूंढ़ी है, कुछ ही समय के लिए.

चुनाव से उनकी उम्मीदों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, “मैं राजनीति में नहीं पड़ता हूं. मैं बीजेपी से चाहता हूं कि गांव से रकबर मामले में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उन्हें रिहा कर दिया जाना चाहिए. बीजेपी को गाय तस्करों को फांसी देने के लिए कानून लाना चाहिए.”

राजपूत अब तक 50 गौरक्षा छापों का हिस्सा रहे हैं. उनके मुताबिक केवल उन्हीं लोगों को पीटा जाता है जो छापों के दौरान मुसीबत पैदा करते हैं.

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3: रवि कुमार, 12वीं ड्रॉपआउट (डब्ल्यूडब्ल्यूई में जाने ककी हसरत)

रामगढ़ के चिदवाई गांव के निवासी रवि कुमार 12वीं के ड्रॉपआउट है. कुमार 18 साल के हैं और दो साल पहले गौ-रक्षक दल में शामिल हुए थे. कुमार ने कहा, “मैं अभी बेरोजगार हूं. खुद का कुछ शुरू करने की योजना है.” उनके दैनिक दिनचर्या में “शाम को जिम जाता हूं और घर वालों की मदद कर देता हूं.”

कुमार का एकमात्र शौक जिम में कसरत करना है. उनके प्रशिक्षक ने कहा है कि कुमार डब्ल्यूडब्ल्यूई में शामिल होने की इच्छा रखता है और वह जल्द ही ऐसा करेगा. हालांकि, हाल में, उनकी दिलचस्पी कुछ देर रात के छापों तक ही सीमित थी.

गौरक्षा दल के साथ उनकी शुरुआत थोड़ी अलग थी. कुमार ने बताया, “पहली बार मैंने छापे में तब हिस्सा लिया था जब मेरे दोस्तों में से एक ने मुझे बुलाया था. दोस्त बुला लेते हैं.” उन्होंने आगे बताया कि वह छापे के दौरान अपना चेहरा ढक लेता है और इसे अपने परिवार से गुप्त रखने की कोशिश करता है. “मैं केवल कुछ छापों का हिस्सा रहा हूं. अभी तक आरएसएस या बजरंग दल का हिस्सा नहीं हूं.”

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4: सौरभ मिश्रा, (सीए के छात्र)

20 वर्षीय सौरभ मिश्रा ने 2014 में अलवर के कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है, और वर्तमान में चार्टर्ड एकाउंटेंसी (सीए) में ऑडिट की पढ़ाई कर रहा है. चौथी पीढ़ी के गौरक्षक, मिश्रा ने कक्षा 8 से ही आरएसएस शाखाओं में भाग लेना शुरू कर दिया था और स्नातक स्तर के पहले वर्ष तक ऐसा करना जारी रखा था.

बस का इंतजार करते हुए उसने बताया, “मेरा एक भी मुस्लिम मित्र नहीं है. या तो वे मुझे पसंद नहीं करते हैं या मैं उन्हें पसंद नहीं करता. आप उन पर भरोसा नहीं कर सकते.” सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक वह दफ्तर में रहता है. मिश्रा ने स्वीकार किया कि हाल के वर्षों में उसने व्यक्तिगत रूप से गाय ले जा रहे वाहनों को तीन-चार बार रोका है. “मैं पास से किसी को अपने साथ ले जाता हूं और फिर वाहनों को रोकता हूं. हम कागजात की मूल जांच करते हैं और अगर सभी ठीक दिखते हैं तो हम उन्हें जाने देते हैं.” जब पूछा गया कि संदेह के मामले में क्या होता है, “वरिष्ठों को बुलाया जाता है और पुलिस को जानकारी दी जाती है.”

उनके पिता हेथराम मिश्रा एक आर्य समाजी हैं और लालवंडी गांव- जहां रकबर पर हमला किया गया था- के मूल निवासी हैं. हेथराम ने 1991 में अपनी पत्थर की मूर्ति की दुकान खोली थी. रामगढ़ को नियमित आधार पर दो बंद देखने पड़े- एक सिखों द्वारा और एक मेव द्वारा. हिंदुओं को आतंक में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. गर्व करते हुए हेथराम कहते हैं, आज, अगर हम एक मुस्लिम को मारते हैं, तो वह खुद को बचाने के लिए अपना हाथ भी नहीं उठा सकता है, हमारे संगठन ने यहां चीजें बदली हैं.” मिश्रा समेत उनके तीन बेटे गौ-रक्षक हैं.

इस बीच, जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें इस बात का दुख है कि अलवर को भीड़ द्वारा हत्या करने के कारण पूरे देश में बदनाम होना पड़ रहा है, मिश्रा ने जवाब दिया, “गौ तस्करी में अलवर नंबर एक पर है. उसका अफ़सोस है मुझे.” कोई भी आराम से बैठकर इस बात का अंदाजा लगा सकता है कि मिश्रा के भीतर नफरत गहराई तक बसी हुई है. न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे उनके शौक और ख़बरों के प्राथमिक स्रोत के बारे में पूछा. मिश्रा ने कहा, “वह बैडमिंटन और हॉकी खेलना पसंद करते हैं और ज़ी न्यूज देखते हैं. फेसबुक पर, ज्यादातर समय हिंदुत्व से सम्बंधित पृष्ठों और कुछ करियर सम्बंधित पृष्ठों पर खर्च होता है.”

पहलू और रकबर के निरंतर संदर्भ पर, मिश्रा और उनके भाइयों ने कहा, “लोगों की प्रवृत्ति है कि मौजूदा चलन के बारे में बात करें. जब भी बाजार में कोई नया फैशन आएगा तो मैं इस जीन्स को बदल दूंगा. इसी तरह, लोग पहलू और रकबर के बारे में तब तक बात करना बंद नहीं करेंगे जब तक कि कोई नई मौत न हो.”

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5: फूल सिंह चौधरी, (किसान और पूर्णकालिक गौ-रक्षक)

वह खुद की पहचान एक किसान और पूर्णकालिक गौ-रक्षक के रूप में बताते हैं. 32 वर्षीय चौधरी ने कहा, “हम गौरक्षा करते हैं और मरते दम तक करते रहेंगे.” उसने आठ साल की उम्र में ही स्कूल छोड़ दिया था और बाद में उसकी शादी हो गयी. उसके एक बेटे और दो बेटियां हैं. परिवार का खर्च खेती से चलता है. 2003 में चौधरी आरएसएस में शामिल हो गया था और बजरंग दल के साथ काम करना शुरू कर दिया. “मैं प्रवीण तोगड़िया की उपस्थिति में बजरंग दल में शामिल हुआ था. हमारी पीढ़ियां गाय संरक्षण में शामिल रही हैं,” वे कहते हैं. वह अपने बच्चों को यह तय करने देंगे कि क्या वे अपने युवा होने के बाद गौ रक्षक इकाइयों में शामिल होना चाहते हैं या नहीं.

चौधरी का तर्क है कि पुलिस के निष्प्रभावी होने के कारण उन्होंने गौरक्षक के रूप में काम करना शुरू किया. “राजे सरकार ने गाय संरक्षण पुलिस चेकपॉइंट्स की शुरुआत की, लेकिन क्या इससे समस्या खत्म हुई? क्या उन पुलिसकर्मियों के पास ऐसे हथियार हैं जिससे वह तस्करी करने वालों से लड़ सकें?”

उनके अनुसार, “मुस्लिम बल्कि मेव अपने व्यापार के लिए और हिंदुओं को उत्तेजित करने के लिए तस्करी की गतिविधियों में शामिल हैं. वे हमारे धैर्य की परीक्षा लेना चाहते हैं. वे देखना चाहते हैं कि हमारे पास कितनी शक्ति है.”

दिलचस्प बात यह है कि चौधरी मानते हैं कि गौरक्षा सिर्फ हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि देश के लिए भी एक सेवा है. जब उनसे पूछा गया कैसे, तो उन्होंने बताया, “रामायण में कहा गया है कि जिस दिन की गायों का बेहरहमी से वध किया जायेगा, पृथ्वी खतम हो जाएगी.” जब उनसे रामायण की उन चौपाइयों का हवाला देने के लिए कहा गया, तो उन्होंने कहा कि मैं इसे अपने फोन पर दिखा सकता हूं. तुरंत, उन्होंने संवाददाता की पहचान के बारे में पूछताछ शुरू कर दी.

उन्होंने पिछला पंचायत चुनाव लड़ा था और 800 वोटों से चुनाव हार गए थे. चौधरी ने दावा किया कि 2015 में जब उन्हें वीएचपी के धर्म जागरण मंच के रामगढ़ डिवीजन का प्रभारी बनाया गया था, तो टीम ने “2015 में 1200 ईसाई राजपूतों की घर वापसी” सुनिश्चित की. उन्होंने कहा कि गौरक्षा के लिए, संगठन द्वारा कोई पैसा या समर्थन प्रदान नहीं किया जाता है. हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि बीजेपी शासन में, वे अधिक आत्मविश्वास महसूस करते हैं और पुलिस के समन्वय में काम करते हैं. चौधरी, वर्तमान राज्य सरकार के साथ मतभेद होने के बावजूद, कहते हैं, “मैं भाजपा का उत्साही मतदाता हूं. हम क्या कर सकते हैं? हम भाजपा के खिलाफ नहीं जा सकते हैं.”

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