सियासत नहीं संस्थान की लड़ाई के विजेता हैं उर्जित पटेल

जब माना जा रहा था कि उर्जित पटेल या तो समर्पण कर देंगे या इस्तीफा दे देंगे, ऐसे वक्त में उर्जित पटेल संस्थान और अपनी गरिमा बहाल करने में कामयाब रहे.

Article image

फिलहाल भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार के बीच टकराव की खबरों को विराम लग गया है. इसकी वजह चुनाव की खबरों में दब जाना कतई नहीं है. इसकी एकमात्र वजह है कि सही मायने में भारतीय रिजर्व बैंक को एक गवर्नर मिला है, जिसे राजनीति नहीं करनी, सरकार के सामने खुद को हीरो नहीं साबित करना, उसे सिर्फ और सिर्फ भारतीय रिजर्व बैंक के हितों का ख्याल रखना है और भारतीय रिजर्व बैंक के तय अधिकारों का प्रयोग करके भारतीय रिजर्व बैंक के तय कर्तव्यों का निर्वहन करना है.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

मैं बात भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की कर रहा हूं. कल्पना कीजिए कि इस समय रघुराम राजन भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर होते तो क्या होता. दरअसल, इस कल्पना के बिना उर्जित पटेल होने के मतलब समझना बेहद कठिन है. 4 सितम्बर, 2016 को जब उर्जित पटेल ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर की कुर्सी संभाली तो हॉलीवुड हीरो जैसे दिखाने वाले रघुराम राजन की छाया उर्जित पटेल के शर्मीले व्यक्तित्व को ढंक रही थी.

उर्जित, पटेल हैं और कारोबारी गुजराती परिवार की संतान हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजराती हैं, इन दोनों तथ्यों ने उर्जित पटेल के सारे गुणों को इस तरह ढंक लिया जैसे हर बात पर मीडिया से मुखातिब होने वाले सेलिब्रिटी गवर्नर रघुराम राजन की छाया में उर्जित को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर की कुर्सी संभालनी पड़ी थी. राजन के समर्थक और नरेंद्र मोदी के विरोधियों के लिए गवर्नर की कुर्सी पर उर्जित पटेल के बैठने का मतलब था, मोदी सरकार पर रिजर्व बैंक को अपने इशारे पर नचाने के लिए एक गुजराती को स्थापित करना.

इसी में एक और तथ्य आलोचकों के हाथ लग गया कि उर्जित पटेल ने अंबानी परिवार की कंपनी रिलायंस में काम किया है. नरेंद्र मोदी के आलोचकों के लिए तो यह बात सोने पर सुहागा जैसी थी. रिलायंस के हितों को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजराती उर्जित पटेल को भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर बना दिया.

इस आलोचना में मोदी सरकार के घोर आलोचक यह बात भी भूल गए कि उर्जित पटेल गवर्नर बनने से पहले भारतीय रिजर्व बैंक में ही डिप्टी गवर्नर थे. इस सबके बावजूद उर्जित पटेल के गवर्नर होने का अहसास रघुराम राजन के सेलिब्रिटी प्रभाव में फंसे मोदी सरकार के आलोचकों को तब हुआ जब उर्जित पटेल और सरकार के बीच कैश रिजर्व रेशियो सहित कई छोटे-बड़े मुद्दों पर सरकार से मतभेद की खबरें सामने आईं.

इस विवाद को ऐसे भी देखा जा सकता है कि जिस उर्जित पटेल की सारी आलोचना सिर्फ इस बात पर टिकी थी कि एक गुजराती प्रधानमंत्री ने एक गुजराती पटेल को भारतीय रिजर्व बैंक को गवर्नर बना दिया, उस उर्जित पटेल की आज तारीफ ही इसीलिए हो रही है कि गुजराती गवर्नर होने के बावजूद उर्जित पटेल ने गुजराती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के सामने घुटने नहीं टेके.

दरअसल, रघुराम राजन ने जिस तरह से भारत सरकार के साथ काम किया था, उसमें शायद ही कोई मौका आया हो जब रघुराम राजन यूपीए सरकार के खिलाफ अर्थव्यवस्था की बेहतरी या फिर भारतीय रिजर्व बैंक के किसी अधिकार को लेकर खड़े हो सके हों. यहां तक कि देश की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी दिक्कत डूबते कर्जों को लेकर भी यूपीए सरकार के खिलाफ कभी राजन खड़े नहीं दिखे. हां, उनके बयान जरूर चर्चा में रहते थे, जिससे लगता था कि भारतीय रिजर्व बैंक को एक काम करने वाला गवर्नर मिला है.

2008 की महामंदी का अनुमान लगाने और दुनिया की बड़ी संस्थाओं में काम करने को राजन ने कुछ इस तरह से प्रचारित करने में कामयाबी हासिल कर ली कि रघुराम राजन जब वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार और उसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर बनकर आए तो लगा कि आर्थिक मोर्चे पर सब दुरुस्त हो जाने वाला है. रघुराम राजन दुनिया के बड़े आर्थिक विद्वानों में हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं है, लेकिन इस बात पर सन्देह बड़ा होता जा रहा है कि राजन की महत्वाकांक्षा सिर्फ आर्थिक विद्वान के तौर पर याद किए जाने की है या फिर अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारत सरकार के साथ काम करने के लिए लौटे, उसी समय से उनके अन्दर राजनेता बनने की भी इच्छा बलवती होने लगी थी. जिसका उदाहरण सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ खुलकर बयानबाजी के शुरुआती सबूत के तौर पर देखा जा सकता है.

कमाल की बात यह रही कि राजन भले ही शिकागो विश्वविद्यालय पढ़ाने लौट गए हों, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था, खासकर नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना में उनका बयान, साक्षात्कार जमकर आते रहते हैं. अभी हाल ही में उन्होंने जीएसटी की भी कड़ी आलोचना की. जबकि, यूपीए सरकार के समय भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर रहते हुए उन्होंने जीएसटी की जमकर वकालत की थी. इसी से सवाल खड़ा होता है कि क्या रघुराम राजन खुद को 1991 वाले डॉक्टर मनमोहन सिंह की तरह अगली यूपीए सरकार के वित्त मंत्री के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं.

रघुराम राजन की योग्यता पर किसी तरह का सन्देह नहीं है. आईआईटी दिल्ली से पढ़े रघुराम राजन अपने आखिरी साल में आईआईटी दिल्ली की छात्र परिषद के अध्यक्ष रहे. हो सकता है कि उसी समय रघुराम राजन के राजनेता बनने की बुनियाद पड़ गई हो, लेकिन राजनीति के पारम्परिक तरीके से वे राजनीति में नहीं आना चाहते हों, इसीलिए राजन ने अर्थशास्त्री के तौर पर प्रतिष्ठा हासिल की, लेकिन बयानबाजी राजनीतिक तरीके से करते रहे. और, ऐसे राजनीतिक रंग में रंगे भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर राजन के बाद उस कुर्सी को संभालने वाले शांत, संयत, विनम्र उर्जित पटेल के लिए मुश्किलें बहुत सी थीं.

गवर्नर उर्जित पटेल के लिए सबसे बड़ी मुश्किल तो यही थी कि उर्जित पटेल रिजर्व बैंक के कामों से बाहर कतई बोलना पसंद नहीं करते और रिजर्व बैंक के कामों के बारे में भी मीडिया में बयानबाजी नहीं, सिर्फ काम करते हैं. नो नॉनसेंस छवि वाले उर्जित पटेल गवर्नर बनने से पहले रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रहे, इतनी भर योग्यता उनकी नहीं है. रघुराम राजन और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की ही तरह उर्जित पटेल की पढ़ाई दुनिया के मशहूर संस्थानों से हुई है. उर्जित ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि ली, इसके बाद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमफिल और येल विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. पीएचडी पूरी करने के बाद उर्जित पटेल ने अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में काम किया.

1998 से 2001 तक उर्जित पटेल वित्त मंत्रालय से बतौर सलाहकार जुड़े रहे. रघुराम राजन के समय रिजर्व बैंक के सबसे महत्वपूर्ण मॉनिटरी पॉलिसी विभाग का जिम्मा उर्जित पटेल के ही पास था. नोटबंदी जैसे फैसले के समय भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका विवादों से परे रही तो इसका पूरा श्रेय उर्जित पटेल को ही जाता है. सरकार के सबसे कठिन फैसले के समय भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर सरकार के साथ मजबूती से खड़े रहे, लेकिन जब छोटे-बड़े मुद्दों पर नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को जरा सा कम करने की कोशिश की तो मीडिया के सामने कभी न आने वाले उर्जित पटेल सरकार के सामने खड़े हो गए.

सरकार और उर्जित पटेल की अगुवाई में 9 घंटे से ज्यादा चली बैठक से पहले ही मीडिया ने अनुमान लगा लिया था कि उर्जित इस्तीफा दे देंगे और इस अनुमान के पीछे मोदी विरोध की उनकी पक्की बुनियाद थी, लेकिन गवर्नर उर्जित पटेल हैं, रघुराम राजन नहीं, यह बात मीडिया और आलोचक समझ नहीं सके. राजन गवर्नर की कुर्सी पर रहते वित्त मंत्री की कुर्सी पर नजर गड़ाए हुए थे जबकि उर्जित भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहते, गवर्नर का ही काम कर रहे हैं, इसीलिए सरकार के साथ मुद्दों पर विरोध के बावजूद शांति से मुद्दों को सुलझाने का फैसला ले लिया गया.

इसीलिए मेरा मानना है कि रघुराम राजन के स्थान पर उर्जित पटेल होना बेहद कठिन है. आज के दौर में बिना राजनीतिक नफा-नुकसान की चिंता किए, एक संस्थान के तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक को मजबूत करने के लिए उर्जित पटेल को इतिहास में निश्चित तौर पर याद किया जाएगा.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like