सत्ताधारी कुनबे में लगी अदालत की अवमानना की होड़

शबरीमाला और अयोध्या विवाद में आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सत्ताधारी भाजपा और आरएसएस के लोगों द्वारा दी गई प्रतिक्रिया कोर्ट के असम्मान का ज्वलंत उदाहरण है.

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शबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश संबंधी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भगवान अयप्पा का मंदिर राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और घात-प्रतिघात का अखाड़ा बन गया है. भाजपा और कांग्रेस खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ लोगों को उकसाने और उसके आदेशों की अवहेलना करते दिख रहे हैं. इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने बहुप्रतीक्षित अयोध्या विवाद में सुनवाई की अगली तारीख अगले साल जनवरी महीने में नियत कर दी है. इसके बाद संघ, उसके आनुषंगिक संगठन और भाजपा के तमाम नेता खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की आलोचना और उसकी नीयत पर सवाल खड़ा करते आ रहे हैं. इसके अतिरिक्त भी कई अवसरों पर भाजपा से वैचारिक रूप से संबद्ध लोगों ने अदालतों के निर्णय पर संदेह जाताया है.

यह स्थिति स्वस्थ लोकतंत्र के विभिन्न कलपुर्जों के बीच होने वाली स्वस्थ रस्साकशी से कहीं आगे की चीज हैं. इसमें लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बेपटरी करने की ताकत है, लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता और छवि को तार-तार करने की कोशिश है. राजनीतिक जमात इस तरह की कोशिशें हमेशा से करता रहा है. यह वीडियो उन्हीं कोशिशों का एक संकलन है.

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