पुराने रजवाड़ों के नुमाइंदों ने मानवेंद्र सिंह की कांग्रेस में एंट्री के तमाम अवरोधों को कैसे किया नाकाम?
कमल का फूल, बड़ी भूल, ये मानवेंद्र सिंह के लफ्ज़ कई महीनों से है. जिस पार्टी के उनके पिता संस्थापक सदस्य हैं, अब उस पार्टी बीजेपी से मानवेंद्र सिंह इस कदर नाराज़ हैं. बाड़मेर के शियो से विधायक मानवेंद्र सिंह ने लोकसभा चुनाव में अपने पिता का टिकट कटने के बाद भी पार्टी को गुडबॉय नही कहा था, इस आस में कि कोई माकूल विकल्प दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
कमल के फूल को भूल बताने वाले मानवेंद्र सिंह ने 2004 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था. उसी चुनाव के दौरान इस लेख के लेखक से मानवेंद्र सिंह की मुलाकात तत्कालीन कद्दावर भाजपा नेता प्रमोद महाजन ने अपने सरकारी निवास सफदरजंग रोड पर कराई थी. झक सफेद धोती-कुर्ता और पगड़ी में मानवेंद्र सिंह पूरी तरह से ठेठ राजस्थानी लग रहे थे. सांसद बनने के बाद वो बदस्तूर इसी तरह संसद आते रहे. पिता जसवंत सिंह के ऊंचे क़द के सहारे वो राजनीति की पहली सीढ़ी तो आसानी से चढ़ गए, लेकिन आगे की राह आसान नहीं कही जा सकती है.
पूर्व विदेश, वित्त और रक्षा मंत्री रहे जसंवत सिंह अटल बिहारी वाजपेयी के विश्वस्त सहयोगी थे. जसवंत सिंह को वाजपेयी ने संघ के विरोध के बाद भी मंत्रिमंडल में अहम जगह दी थी. जसवंत सिंह ने कभी सोचा नहीं होगा कि जिस पार्टी में उनकी तूती बोलती थी, एक दिन उसी पार्टी में वो हाशिए पर चले जाएगें. असल में 2014 के बाद से भाजपा में एक पूरी पीढ़ी बदल चुकी है. आडवाणी हाशिए पर डाल दिए गए, जसवंत सिंह को लोकसभा चुनाव का टिकट तक नहीं दिया गया. अटल बिहारी वाजपेयी लंबे समय से सक्रिय राजनीति से दूर थे. कुछ ऐसे ही हालात में बीजेपी से सांसद और विधायक रह चुके मानवेंद्र सिंह ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. अब वे चुनावी मंचों से बीजेपी को हराने का संकल्प ले रहे हैं.
समय का पहिया पूरी तरह से घूम चुका है. 2004 में मानवेंद्र सिंह को बीजेपी बेहद जोश-खरोश के साथ पार्टी में लाई थी. उस समय बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रमोद महाजन, मानवेंद्र सिंह को वसुंधरा राजे के विकल्प के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे थे. लेकिन वसुंधरा राजे इतनी ताकतवर हो गईं कि 2014 में जसवंत सिंह को टिकट तक नहीं देने दिया. उनकी जगह कांग्रेस से भाजपा में आए कर्नल सोनाराम को टिकट दिया गया. जसंवत सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. 2014 में घर में गिर जाने की वजह से जसवंत सिंह के सिर में चोट लगी और वे इस समय कोमा में हैं. मानवेंद्र अब कांग्रेस के पाले में है.
कांग्रेस में आने की राह मुश्किल
मानवेंद्र सिंह की कांग्रेस में राह दुश्वार रही है. उनके कांग्रेस में शामिल होने की पटकथा काफी समय से लिखी जा रही थी. अपने क्षेत्र में स्वाभिमान यात्रा के ज़रिए उन्होंने अपनी ताकत का इज़हार किया. इसके जरिए वो कांग्रेस का ध्यान खींच पाने में कामयाब भी रहे, लेकिन कांग्रेस में उनकी एंट्री को लेकर कुछ न कुछ अड़चनें आती रही. पहली अड़चन तो राजस्थान कांग्रेस में मौजूद क्षत्रपों से ही थी. हालांकि अशोक गहलोत और सचिन पायलट मानवेंद्र की एंट्री के लिए तैयार हो गए थे. इसके बाद मामला दिल्ली दरबार में अटका हुआ था, यानी राहुल गांधी के यहां से देरी हो रही थी.
इसकी क्या वजह थी? मानवेंद्र की एंट्री के खिलाफ कांग्रेस के भीतर एक गुट मुखर था. कांग्रेस सचिव और राहुल गांधी के करीबी हरीश चौधरी इस विरोध का चेहरा बताए रहे हैं. हरीश चौधरी बाड़मेर से सांसद रह चुके है. जिसकी वजह से उनको मानवेंद्र सिंह का कांग्रेस में आना नागवार लग रहा था. हरीश के अलावा राहुल गांधी की एक और सहयोगी मीनाक्षी नटराजन भी मानवेंद्र की एंट्री में रोड़ा थी. लेकिन कांग्रेस में हर पॉवर सेंटर का अपना एक दायरा है, और यह हमेशा कारगर नहीं होता है.
रॉयल क्लब की भूमिका
कांग्रेस में उन नेताओं की एक पूरी जमात मौजूद है जो अतीत में रजवाड़ों और रियासतों और जमीदारियों से आते हैं. पूर्व राजाओं के इस समूह को रॉयल क्लब कहा जाता है. इसका कोई औपचारिक नाम नहीं है ना इस तरह का कोई क्लब है. इन पूर्व रजवाड़ों के वारिसों ने अपना सारा जोर मानवेंद्र सिंह के पीछे लगा दिया. उनकी वकालत राहुल गांधी के यहां की.
दरअसल मानवेंद्र सिंह ने जब अपनी व्यथा इन लोगों को सुनाई तो उन्होंने पहले मानवेंद्र सिंह को अशोक गहलोत और सचिन पायलट से बात करने की सलाह दी, लेकिन वहां पर बात बनती नहीं दिखी तो एक-एक करके इस रॉयल ग्रुप के लोगों ने राहुल गांधी के यहां पैरवी की. यह दाबव काम कर गया. कांग्रेस दफ्तर में हुई कॉन्फ्रेंस के दौरान मंच से हरीश चौधरी को कहना पड़ा कि वो मानवेंद्र सिंह के साथ मिल कर राजस्थान का स्वर्णिम युग लाएगें. मानवेंद्र की पैरवी करने वाले रॉयल क्लब में पडरौना रियासत के आरपीएन सिंह जो कांग्रेस के झारखंड प्रभारी हैं, ओडीशा के प्रभारी अलवर के भंवर जितेंद्र सिंह, कांग्रेस के पूर्व महासचिव, राघोगढ़ के दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि शामिल हैं.
राजस्थान में कांग्रेस की ताकत बढ़ेगी
राजस्थान में मौजूदा मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे सरकार के खिलाफ माहौल है. दूसरे जातीय राजनीति में बंटे राजघरानों में एक वर्ग वर्तमान मुख्यमंत्री से नाराज़ रहता है. पश्चिम राजस्थान में जसंवत सिंह की अपनी एक साख है. जो लोग जसवंत सिंह से सहानुभूति रखते हैं वो कांग्रेस के पाले में आ सकते है.
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बड़ी चतुराई से दो नेताओं के समर्थको को अपने पाले में लाने की कोशिश की है. वसुंधरा राजे पर हमला करते हुए अशोक गहलोत ने कहा कि पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत और जसंवत सिंह के साथ वर्तमान मुख्यमंत्री का रवैया सही नहीं था. जिसकी वजह से ये दोनों नेता पार्टी में बेगाने हो गए थे. भैरोसिंह के नज़दीकी रिश्तेदार प्रताप सिंह खाचरियावास उनके जीवन काल में ही कांग्रेस में चले गए थे.
राजस्थान में 7 दिसंबर को वोट डाले जाएगें. जिसके लिए खेमेबंदी हो रही है. राजस्थान में कांग्रेस ने राजपूतों को अपने पाले में लाने के लिए जसंवत सिंह का मुद्दा उठा रही है. राजपूत पूरे राजस्थान में 7 फीसदी है, लेकिन असरदार है. बताया जा रहा कि 200 विधानसभाओं में तकरीबन 50 विधानसभा में राजपूत निर्णायक है. वर्तमान विधानसभा में 26 राजपूत विधायक है. बाड़मेर में राजपूत बीजेपी से काफी नाराज़ है. माना जा रहा है कि मानवेंद्र के आने से राजपुरोहित और कई अन्य जातियों का वोट कांग्रेस को मिल सकता है.
इस सात फीसदी वोट की वजह से बीजेपी में बेचैनी है राजपूत परंपरागत तरीके से बीजेपी को वोट करता रहा है. इसलिए बीजेपी केंद्रीय राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को पार्टी की कमान देना चाहती है. लेकिन वसुंधरा के विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो पाया है. कांग्रेस ने अलवर राजपरिवार के जितेंद्र सिंह को पार्टी में अहम पद दिया है. बीजेपी समझ रही है कि राजपूत वोट में बिखराव पार्टी के पतन का कारण बन सकती है.