6 सितंबर को उस्ताद अलाउद्दीन खान की पुण्यतिथि पर विशेष.
बाबा अलाउद्दीन खान, पंडित रविशंकर और निखिल बनर्जी के गुरु और अली अकबर खान और अन्नपूर्णा देवी के पिता से कहीं अधिक आधुनिक भारतीय शास्त्रीय संगीत के पितामह हैं. वे उस मूल स्रोत की तरह हैं जहां से संगीत की अलग-अलग धाराएं निकलीं और विकसित हुईं.
बीती सदी और आज के तकरीबन सारे बड़े कलाकार और संगीतज्ञ उनसे जुड़े रहे हैं. या तो अलाउद्दीन खान से सीखा है या उनके किसी शिष्य से. इनमें प्रमुख नाम हैं: रविशंकर, निखिल बनर्जी, बसंत रॉय, पन्नालाल घोष, हरिप्रसाद चौरसिया, शरन रानी और जोतिन भट्टाचार्य.
उदय शंकर, पंडित रवि शंकर के बड़े भाई थे. उन्हें सर्वकालिक महान नर्तकों में गिना जाता है. वे हिंदुस्तान के पहले कलाकार थे जिन्हें पश्चिम में पहचान मिली. उनका नाम पश्चिम के महानतम नर्तक निजिंस्की के साथ लिया जाता है.
जब उदय शंकर ने ‘बाबा’ को वर्ल्ड टूर ज्वाइन करने के लिए लिए बुलाया तो किसी को नहीं पता था कि यह गुरु-शिष्य परंपरा की उस जोड़ी के मिलने का सबब बन जायेगी, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत का स्वरुप ही बदल जायेगा और भारतीय संगीत और वादन को पश्चिम में इतने बड़े पैमाने पर स्वीकृति मिलेगी.
इसी टूर पर पंडित रविन्द्रो शंकर की मुलाकात होती है महान बाबा अलाउद्दीन खान से. 16 साल के रवि शंकर उस वक्त एक प्रॉमिसिंग डांसर थे, जो अपने मशहूर भाई के साथ दुनिया भर में नृत्य प्रस्तुतियां देते थे.
रवि शंकर तब पेरिस में किसी पश्चिमी नौजवान की सुविधा संपन्न जिंदगी जी रहे थे. मगर बाबा से प्रभावित होकर सुनहरा डांसिंग करियर छोड़कर सितार सीखने का निर्णय लिया. और बाबा के शिष्यत्व में गुरुकुल प्रणाली में सितार सीखने पेरिस से मैहर आ गए. बाबा मैहर के महाराजा के दरबारी संगीतकार थे. इसी जगह के नाम से उनके संगीत-स्कूल का नाम ‘मैहर-घराना’ पड़ा जो भारतीय संगीत का अगुआ घराना है.
हिंदुस्तान में विलायत खान के ‘इमदादी घराने’ की सितार वादन की परंपरा सबसे पुरानी रही है. विलायत के पिता उस्ताद इनायत खान और दादा उस्ताद इमदाद खान भी मशहूर सितारिस्ट रहे. इसी तरह नुसरत फ़तेह अली और उनके परिवार के पटियाला घराने का इतिहास 600 साल से अधिक का है. मेंहदी हसन ‘कलावंत-घराने’ के सोलहवीं पीढ़ी के उस्ताद हैं. हिंदुस्तानी क्लासिक म्युज़िक के ज्यादातर कंटेम्प्रेरी नाम किसी न किसी परिवार से हैं.
‘मैहर घराना’ भारतीय संगीत का इकलौता प्रमुख घराना है जिसमें पीढ़ी हस्तांतरण किसी एक परिवार के सदस्यों की बजाय गुरु-शिष्य परंपरा के जरिये होता है. कोई और घराना सितार, सरोद, वीणा, सुरबहार, सुरसिंगार, वॉयलिन, और गिटार के इतने बड़े उस्तादों को पैदा करने का दावा नहीं कर सकता.
अलाउद्दीन खान का जन्म ब्राह्मनबरिया (आज के बांग्लादेश) में 1862 में हुआ था. संगीत सीखने के लिए 9 साल की उम्र में घर छोड़कर भाग गए. उन्होंने नुलोगोपाल, अमृतलाल दत्त, हजारी उस्ताद, अली अहमद और वजीर खान जैसे नामचीन और प्रसिद्ध गुरुओं से तालीम हासिल की.
उस्ताद वजीर खान साहब रामपुर रियासत के मुख्य दरबारी संगीतज्ञ थे और शहजादों की तरह रहते थे. आम लोगों के लिए उनसे मिलना बड़ा मुश्किल था. मगर अलाउद्दीन किसी भी तरह उनका शागिर्द बनना चाहते थे. किवदंती ये है कि वजीर खान का ध्यान खींचने के लिए अल्लाउद्दीन उनकी गाड़ी के सामने कूद गए. तब जाकर वजीर खान ने उन्हें अपना शिष्य बनाना कबूल किया.
जब पंडित निखिल बनर्जी उनके पास सितार सीखने आये तो अलाउद्दीन खान ने उन्हें रवि शंकर से बिल्कुल अलग शैली में सिखाया. यह उनके वर्सेटैलिटी की एक नजीर भर है. हालांकि पंडित रविशंकर और निखिल बनर्जी दोनों ही राग बजाते हुए निचले सप्तक पर देर तक रुकना पसंद करते हैं जो ध्रुपद से प्रभावित मैहर घराने की प्रमुख विशेषता है.
जब पंडित रवि शंकर यूरोप से आये तो अपने साथ आधुनिकतम ग्रामोफोन और रेडियो ले आये जिससे अलाउद्दीन खान को पश्चिमी शास्त्रीय संगीत को भी सुनने और समझने में मदद मिली.
बाबा का मानना था कि शास्त्रीय संगीत की तालीम में सबसे अहम अनुशासन और रियाज है. इसलिए वे बहुत सख्ती से शिष्यों से अभ्यास करवाते थे. जैसा कि पंडित रविशंकर कहते हैं कि कई उभरते हुए संगीतकार उनके पास आते थे मगर कुछ ही हफ़्तों में भाग खड़े होते थे. लेकिन जो बाबा से रिश्ता कायम कर लेते थे और कुछ महीने या कुछ साल रुक जाते थे, वे महान संगीतकार बनकर वापस लौटते थे.
1920 के दशक में उन्होंने मैहर में अनाथ बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें संगीत सिखाया और पश्चिमी स्टाइल में भारतीय यंत्रों के साथ हिंदुस्तान का सबसे पहला आर्केस्ट्रा बनाया. अक्सर वायलिन बजाते हुए बाबा ग्रुप को लीड करते थे.
वे सही मायनों में एक संत थे. उनके आसपास और शिष्यों में सभी धर्मों और वर्गों के लोग थे. जहां वे रहते थे, तकरीबन सारा त्यौहार मनाया जाता था. उन्हें जैसे ही पता चला कि उनकी बेटी अन्नपूर्णा देवी और पंडित रवि शंकर एक दूसरे को पसंद करते हैं तो न सिर्फ उन्होंने रिश्ते को मंजूरी दी बल्कि दोनों की शादी भी करवाई. यह बात 1941 की है.
उन्होंने स्थापित मानकों को तोड़ते हुए अपनी बेटियों को भी संगीत की तालीम दी. छोटी बेटी अन्नपूर्णा देवी तो सुरबहार, सुरसिंगार और गायन की लिविंग लीजेंड हैं. इसके अलावा सरस्वती और मैहर देवी उनकी आराध्य थीं. हालांकि उनका असल मज़हब तो मौशिकी ही थी और वही उनकी इबादत भी.
उस्ताद अलाउद्दीन खान को 1958 में संगीत नाटक अकादमी, और 1958 और 1971 में क्रमशः पद्म भूषण और पद्म विभूषण से नवाजा गया. बहुत सारे नामों को भारत रत्न दिए जाने की चर्चा हो रही है. मैं बाबा अलाउद्दीन खान का नाम सुझाना चाहूंगा जो निस्संदेह भारतीय संगीत और कला जगत के बीसवीं सदी के सबसे बड़े नाम हैं और किसी भी दृष्टिकोण से इस सर्वोच्च सम्मान के लिए सबसे काबिल व्यक्ति हैं. हालांकि उनको पुरस्कार मिले या नहीं, वो ‘भारत-रत्न’ हैं.