बाड़मेर के पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित कभी पटना नहीं गए. लेकिन राजेश पासवान की एक शिकायत के मुताबिक पटना में राजपुरोहित ने उन पर हमला किया.
31 मई, 2018 को बिहार की राजधानी पटना की विशेष एससी-एसटी कोर्ट में एससी-एसटी एक्ट के तहत एक शिकायत दर्ज की गई. दस्तावेजों के मुताबिक शिकायतकर्ता ने 2 जून, 2018 को अदालत के सामने अपना बयान दर्ज कराया था. 16 अगस्त, 2018, को अदालत आरोपी, ‘दुर्गेश सिंह’ के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करती है. वारंट को येन-केन-प्रकारेण बाड़मेर के एसपी मनीष अग्रवाल तक पहुंचा गया. अग्रवाल के अनुसार, इसी वारंट के आधार पर दुर्ग सिंह राजपुरोहित को बाड़मेर ग्रामीण पुलिस थाने ने गिरफ्तार कर बिहार भेजा था.
यह महत्वपूर्ण बात है कि राजपुरोहित बाड़मेर के पत्रकार हैं जो इंडिया न्यूज़- राजस्थान से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा उनका नाम दुर्ग सिंह राजपुरोहित हैं न कि दुर्गेश सिंह. दूसरा, बिहार से कोई पुलिस टीम आरोपी को गिरफ्तार करने राजस्थान नहीं आई थी बल्कि बाड़मेर पुलिस ने खुद इस मामले में मामले में सक्रियता दिखाई और सुनिश्चित किया कि राजपुरोहित को पटना में एससी / एसटी अदालत के सामने समर्पण करवा दें.
एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि एसपी मनीष अग्रवाल ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यह ‘नियमित पुलिस कार्रवाई’ है. वो कहते हैं, “मुझे याद नहीं है कि किस माध्यम से गिरफ़्तारी का वारंट हमारे पास पहुंचा था. वह बाड़मेर के एसपी के नाम से आया था.” उन्होंने आगे कहा, “पटना में राजपुरोहित का समर्पण सुनिश्चित करवा कर पुलिस ने अपना कर्तव्य निभाया है.”
राजपुरोहित के परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया कि एसपी को व्हाट्सएप पर गिरफ्तारी का वारंट मिला, न की किसी आधिकारिक माध्यम से. राजपुरोहित के शिक्षक और फ्रीलान्स पत्रकार देव किशन ने बताया, “एसपी को व्हाट्सएप पर वारंट मिला. ट्रांसिट पर देने के लिए कानूनन राजपुरोहित को बाड़मेर कोर्ट में पेश करना चाहिए था, वह भी नहीं किया गया. यहां तक कि बिहार जाने के लिए कार भी हमसे बुक कराई गई.” देव किशन जो कि इस समय राजपुरोहित के साथ पटना में ही मौजूद हैं और उनके कानूनी मामलों को निपटाने में परिवार की सहायता कर रहे हैं, ने कहा कि राजपुरोहित और तीन राजस्थान पुलिसकर्मियों ने परिवार द्वारा बुक की गयी कार से ही यात्रा की.
राजपुरोहित की गिरफ्तारी के कई पहलू हैं. अपराध की तारीख, इस मामले के शिकायतकर्ता और बिहार पुलिस की अनुपस्थिति आदि उन परिस्थितियों पर गंभीर प्रश्न चिह्न उठाते हैं जिनके तहत उन्हें गिरफ्तार किया गया था. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मामला बिहार में दर्ज हुआ था ना कि राजस्थान में.
पटना के दीघा घाट निवासी 26 वर्षीय राकेश पासवान ने अदालत में एक बयान दिया था कि 38 वर्षीय दुर्गेश सिंह ने उन पर हमला किया था और उन्हें जातिवादी गालियां दी थी. अपने बयान में पासवान ने कहा कि राजपुरोहित राजस्थान में कई तरह का व्यवसाय चलाता है और उन्होंने 6 महीने तक बाड़मेर में राजपुरोहित के यहां काम किया था. अभियुक्त ने उसे 72,000 रुपये का वेतन नहीं दिया.
अपने बयान में पासवान ने बताया कि पिता के ख़राब स्वास्थ्य के कारण जब वो बिहार लौट आये तो आरोपी तीन बार बिहार आया और उस पर काम पर लौटने के लिए दबाव डालने लगा और धमकी भी दी. अदालत में प्रस्तुत दस्तावेज बताते हैं कि ये घटनाएं 15 अप्रैल, 28 अप्रैल और 7 मई, 2018 को हुई थीं.
शिकायत के मुताबिक 7 मई को अभियुक्त (राजपुरोहित) और चार अन्य लोगों ने पासवान को पटना के दीघा इलाके में स्थित घर से जबरदस्ती बाहर निकाला. राजपुरोहित ने जातिवादी गालियां दी और सड़क पर ही उसको जमकर मारा-पीटा. जब भीड़ जमा होने लगी तो राजपुरोहित और उनके चारो साथी ‘बोलेरो कार से भाग गए’. शिकायत में यह सब लिखा हुआ है.
राजपुरोहित और उनके परिवार के सदस्य राजस्थान पुलिस के तीन पुलिसकर्मियों के साथ 18 अगस्त को बाड़मेर से निकले और सोमवार को पटना पहुंचे. उन्हें पीरबहोर पुलिस स्टेशन में ट्रांसिट के दौरान रखा गया और मंगलवार यानि 21 अगस्त को विशेष एससी / एसटी कोर्ट में प्रस्तुत किया गया.
कहानी में नया मोड़ तब आया जब 21 अगस्त को ही हिंदी अखबार दैनिक भास्कर, ने इस मामले से जुड़ी एक रिपोर्ट प्रकाशित किया. भास्कर ने मामले के शिकायतकर्ता राकेश पासवान से बातचीत की. पासवान ने भास्कर को बताया, “मैंने कभी कोई मामला दर्ज ही नहीं किया. मैं कभी बाड़मेर गया ही नहीं.”
गिरफ़्तारी की पूरी घटना के आधार को झूठा बताते हुए, पासवान ने भास्कर को बताया कि वो बाड़मेर के किसी दुर्गेश सिंह को जानते तक नहीं हैं. रिपोर्ट में पासवान यह भी बताते हैं कि इस मामले में बतौर गवाह दर्ज संजय सिंह नाम के व्यक्ति ने उन्हें एक बार किसी के खिलाफ मुकदमा दायर करने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. दो महीने पहले तक राकेश पासवान, संजय सिंह की जेसीबी मशीन चलाता था.
दुर्ग सिंह राजपुरोहित के पिता गुमान सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनके बेटे ने मंगलवार को पटना में एससी / एसटी अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. वे कहते हैं, “हमने जमानत का आवेदन दे दिया है.” अदालत गुरुवार को फिर से शुरू होगी और तभी हम उम्मीद कर रहे हैं कि जमानत की अर्जी पर सुनवाई होगी.
पटना में राजपुरोहित के परिवार के साथ मौजूद बाड़मेर के फ्रीलांस पत्रकार, 75 वर्षीय देव किशन ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “बाड़मेर के एसपी ने दुर्ग को शनिवार (18 अगस्त) को बुलाया था और उसे गिरफ़्तारी वारंट के बारे में सूचित किया. जब दुर्ग ने उनसे इस तरह के कानूनी मुद्दों की उचित प्रक्रिया के बारे में पूछा तब एसपी ने बताया कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है- उसी समय चार पुलिसकर्मियों को बुलाया गया.” देव किशन के दावे के मुताबिक, परिवार ने एक कार बुक की जिसमें वो खुद, दुर्ग, गुमान सिंह, दुर्ग के भाई भवानी सिंह राजपुरोहित और राजस्थान पुलिस के तीन जवान शनिवार की शाम पटना के लिए रवाना हुए.
परिवार के दावे पर अगर भरोसा करें तो यहां कई सवाल उठते हैं कि एक आरोपी को गिरप्तार कर ट्रांसिट करने की प्रक्रिया क्या है? बाड़मेर के एसपी कह रहे हैं कि गिरफ्तारी बाड़मेर ग्रामीण पुलिस स्टेशन से हुई थी, जबकि परिवार कह रहा है कि गिरफ्तारी एसपी ऑफिस से हुई.
राजस्थान पुलिस ने आरोपी और अपने पुलिसकर्मियों को पटना भेजने की व्यवस्था खुद क्यों नहीं की? ये सवाल हमने बाड़मेर के एसपी, मनीष अग्रवाल, से पूछा लेकिन उन्होंने साफगोई से जवाब देने से मना कर दिया. अग्रवाल ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “ये एक नियमित व्यवस्था है.”
परिवार के दावे को ख़ारिज करते हुए एसपी अग्रवाल ने कहा कि राजपुरोहित को एसपी ऑफिस से गिरफ्तार नहीं किया गया था, बल्कि बाड़मेर ग्रामीण पुलिस स्टेशन से गिरफ्तार किया था. जब हमने पूछा कि क्यों बिहार पुलिस की टीम उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पायी और अन्य विवरण मांगा तो एसपी अग्रवाल ने कहा कि उनके पास दूसरे काम भी हैं.
मामले की जानकारी के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने बाड़मेर ग्रामीण के एसएचओ, किशन सिंह को फ़ोन किया. उन्होंने बताया कि पटना अदालत द्वारा जारी गिरफ़्तारी वारंट के सम्बन्ध में ही राजपुरोहित को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन गिरफ़्तारी के विवरण और पत्रकार को गिरफ्तार करने वाली टीम के बारे में पूछने पर उन्होंने फ़ोन काट दिया.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पटना-दीघा, जहां कथित तौर पर यह आपराधिक घटना हुई, और पीरबहोर, जहां दुर्ग को ट्रांसिट के दौरान रखा गया, के दो पुलिस स्टेशनों के एसएचओ से भी बात की. दीघा के एसएचओ ने कहा कि राजस्थान के पत्रकार के खिलाफ उनके पुलिस स्टेशन में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई थी.
पीरबहोर एसएचओ से जब हमने पूछा कि राजपुरोहित को किस आधार पर ट्रांसिट रिमांड पर रखा गया था तो वो नाराज हो गए. वो बोले, “यह राजस्थान पुलिस टीम की इच्छा थी कि वो रात भर कहां ठहरना चाहते थे. चूंकि आरोपी को अदालत में मंगलवार को उपस्थित होना था इसलिए उन्हें सोमवार की रात में भी कहीं न कहीं रूकना ही था. उन्होंने पुलिस स्टेशन को चुना.” पीरबहोर के एसएचओ से जब यह पूछा गया कि क्या पत्रकार को लॉकअप में रखा गया तो उन्होंने फ़ोन काट दिया.
परिवार ने कहा कि दुर्ग के खिलाफ दर्ज शिकायत में किए गए दावों के विपरीत, वह एक पत्रकार हैं, न कि एक व्यापारी. उनके भाई भवानी सिंह ने कहा, “बाड़मेर में राजपुरोहित एक प्रसिद्ध पत्रकार हैं और हमारे पिता सरकारी कर्मचारी हैं. हमारे परिवार में कोई भी व्यवसाय नहीं करता है.” शिकायत के अनुसार दुर्ग अपने खनन व्यवसाय के लिए श्रमिकों को रोजगार देता था.
दुर्ग के पिता गुमान सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “हमारा बेटा कभी बिहार नहीं गया, पटना की तो बात ही छोड़ दीजिये. 7 मई को वो बाड़मेर में ही किसी साहित्यिक कार्यक्रम में भाग ले रहा था.”
इस संवाददाता ने दुर्ग सिंह राजपुरोहित की फेसबुक टाइमलाइन को खंगाला और पाया कि वो पासवान पर हुए कथित हमले वाले दिन बाड़मेर में ही मौजूद थे. यह 7 मई यानी हमले वाले दिन बाड़मेर कैफ़े में हुए ओपन माइक इवेंट की तस्वीर है.
इस फोटो में अयोध्या प्रसाद गौर, जो कि दुर्ग सिंह राजपुरोहित के बगल में खड़े हैं, उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को पुष्टि की कि राजपुरोहित 7 मई को बाड़मेर में ही ओपन माइक इवेंट में भाग ले रहे थे. “यह एक ओपन माइक इवेंट था, चूंकि मैं लेखक हूं इसलिए उन्होंनें मुझे अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था. दुर्ग भी उसी इवेंट का हिस्सा थे,” गौर ने बताया.
गौर ने ही बताया कि उनके फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट की गयी तस्वीरों से इसे सत्यापित किया जा सकता है. यह कैसे संभव है कि राजपुरोहित ने जिस दिन पटना में राकेश पासवान पर हमला किया उसी दिन बाड़मेर में ओपन माइक इवेंट में भाग भी ले रहे थे?
शिकायतकर्ता का दावा है कि उसने एफआईआर दर्ज नहीं की है, गिरफ़्तारी की परिस्थितियां और इसके अलावा प्रथम दृष्टया साक्ष्य यह बताते हैं कि हमले वाले दिन पत्रकार बाड़मेर में था न कि पटना में, पुलिस के आचरण पर गंभीर प्रश्न उठाते हैं.
एक बात और, बाड़मेर के एसपी और पुलिस वाले जिस तरह से पत्रकार राजपुरोहित की गिरफ़्तारी और ट्रांसिट की स्थितियों पर उत्पन्न सवालों को लेकर टाल-मटोल कर रहे हैं उससे यह मामला हल नहीं होगा.