पाकिस्तान के संस्थापक कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना और वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान में कई दिलचस्प समानताएं नजर आती हैं.
वो जहां भी गया लौटा तो मेरे पास आया,
बस यही बात अच्छी है मेरे हरज़ाई की.
ये शेर किसी से इश्क़ के इज़हार के लिए नहीं बल्कि तंज कसने के लिये कहा था. बीबीसी की एंकर रहीं रेहम खान ने अपनी जिंदगी, किताब और पूर्व पति इमरान खान के बारे में बात करते हुए कहा कि कोई महिला उस पर हुई ज्यादतियों के बारे में ज़माने से क्यों ना कहे! उससे सब कुछ सहने और उदार बने रहने की बेजा उम्मीद क्यों?
पाकिस्तान में इमरान अहमद खान नियाज़ी की ताजपोशी हो चुकी है. जहां एक तरफ परेशानियों से घिरे मुल्क में नई हुकूमत के कामकाज पर निगेहबानियां हैं, वहीं दूसरी तरफ उनकी जाती जिंदगी के बारे में भी उतनी ही अटकलें हैं.
उनके सामने पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स द्वारा ग्रे लिस्ट में डाला जाना, आईएमएफ से लोन की नयी किश्त मांगने, दहशतगर्दी, बलोचिस्तान और आर्थिक मुद्दों पर जूझने की चुनौतियां होंगीं. रेहम खान की आटोबायोग्राफी, जिसमें उन्होंने इमरान खान के बारे में कथित तौर पर कई निजी और सियासी खुलासे किए, उससे इमरान उबरते मालूम पड़ते हैं. क्योंकि ये किताब चुनाव के पहले ही आ गई थी, फिर भी इमरान खान की पार्टी ‘पाकिस्तान तहरीके इन्साफ’ आम चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
बतौर क्रिकेट कप्तान 1987 में संन्यास के बाद राष्ट्रपति जियाउल हक़ की सार्वजनिक अपील के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में दोबारा वापसी करना और पाकिस्तान के लिए 1992 में इकलौता वर्ल्ड कप जीतना. फिर अपनी वालिदा शौकत ख़ानम की याद में पाकिस्तान का सबसे बड़ा कैंसर अस्पताल बनवाना. जाहिर तौर पर पाकिस्तान में उनको पहले ही यूनानी देवताओं सरीखा दर्जा हासिल हो चुका है. मगर भारत में भी उनके बारे में काम कयासबाजियां नहीं हैं.
हिंदुस्तान में लोगों से इमरान खान के बारे में बात करिए तो लोग दो अतियों के बीच में झूलते मालूम पड़ते हैं. कुछ लोगों को लगता है कि ‘कप्तान’ हिंदुस्तान और पाकिस्तान के दरम्यान रिश्तों की नई इबारत लिख सकते हैं. वहीं ज्यादातर लोग कहेंगे कि वे फ़ौज और कट्टरपंथियों के प्यादे भर हैं. सो उनसे कोई उम्मीद बेमानी है.
इन सब चर्चाओं से इतर मुझे पाकिस्तान के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना और वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान में कई समानताएं नजर आती हैं.
हम दोनों नेताओं की जिंदगी को मुख्यतः तीन हिस्सों में बांट सकते हैं. सबसे पहला शुरुआती जिंदगी और शिक्षा. दोनों नेताओं का ताल्लुक बेहद संभ्रांत परिवारों से था. दोनों की पढ़ाई ब्रिटेन में हुई. जिन्ना ने यूनिवर्सिटी ऑफ लन्दन से वकालत की पढ़ाई की तो इमरान ने मशहूर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. दोनों ही अपनी मातृभाषा से ज्यादा इंग्लिश में निष्णात.
दूसरा हिस्सा प्रोफेशनल जिंदगी का. जिन्ना राजनीति में आने से पहले और राजनीति के दौरान भी भारत के सबसे कामयाब वकीलों में से थे. इमरान को दुनिया के बेहतरीन आलराउंडर और कप्तानों में शुमार किया जाता है. क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद फिलेंथ्रोपिस्ट के तौर पर भी उनके खाते में उल्लेखनीय उपलब्धियां दर्ज हैं.
और तीसरा हिस्सा राजनीति में आने के बाद का. इमरान और जिन्ना जिंदगी के पूर्वार्ध में अपेक्षाकृत अधिक उदार और प्रगतिशील सोच के थे. एक वक़्त था जब बाल गंगाधर तिलक तक जिन्ना को हिन्दू-मुस्लिम एकता का चैंपियन समझते थे. और दोनों नेताओं की बहनें बेहद पढ़ी लिखी, कामकाजी, प्रभावशाली और कामयाब औरतें थीं. लेकिन उत्तरार्ध में दोनों का झुकाव संकीर्णता और कट्टरपंथ की तरफ बढ़ता गया.
जिन्ना ने मज़हब के आधार पर अलग मुल्क बनवा लिया. इमरान खान को ‘वॉर ऑन टेरर’ की मुख़ालफ़त और तालिबान समूहों से सहानुभूति की वजह से ‘तालिबान खान’ भी कहा गया.
दोनों ने ही गैर मुस्लिम औरतों से शादी की. इमरान ने एक अमीर ब्रिटिश यहूदी जेमाइमा गोल्डस्मिथ से निकाह किया जिनके धर्म की वजह से पाकिस्तान में उन पर राजनैतिक हमले भी किये जाते रहे. और जिन्ना ने दूसरी शादी की एक अमीर पारसी रूटी पेटिट से. दोनों ही शादियां कमोबेश असफल रहीं.
दिलचस्प है कि शादी के वक़्त जहां जिन्ना एवं इमरान 40 की उम्र पार कर चुके थे, वहीं रूटी 16 साल की और जेमाइमा 21 साल की थीं. रूटी के पिता तो जिन्ना के अच्छे दोस्त भी थे. इस शादी का पूरे उपमहाद्वीप की तारीख में बहुत महत्त्व है. इसके बारे में शीला रेड्डी ने अपनी दिलचस्प किताब ‘मिस्टर एन्ड मिसेज जिन्ना: द मैरेज दैट शूक इण्डिया’ में तफ्सील से लिखा है.
जिन्ना तो पाकिस्तान बनने के एक साल के भीतर ही अपने ‘होमलैंड’ को अस्थिरता के भंवर में छोड़कर गुजर गए. क्या इमरान खान बेहाल मुल्क को मुश्किलों से उबारने में कामयाब होंगे?