कांग्रेस कार्यसमिति: सभी मसाले हैं राहुल की खिचड़ी में

नए-पुराने खून के अलावा भी बहुत से संदेश छिपे हैं राहुल गांधी की पहली कार्यसमिति में.

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कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च कार्यकारी संस्था कांग्रेस कार्यसमिति का नए सिरे गठन हो चुका है. नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने वादे के मुताबिक ही पुराने और नए खून का संतुलन बनाने की कोशिश की है. बावजूद इसके नई कार्यसमिति में राहुल और उनकी पार्टी के लिहाज से कई अच्छी और कुछ कम अच्छी बातें शामिल हैं. आगे हम एक-एक करके उनका आकलन करेंगे.

कांग्रेस कार्यसमिति में पार्टी अध्यक्ष, संसद में संसदीय दल के नेता के अलावा 23 सदस्य होते हैं, यानी कुल 25 सदस्य. हालांकि स्थायी आमंत्रित सदस्यों और विशेष आमंत्रित सदस्योंं को मिलाकर कार्यसमिति के कुल सदस्यों की संख्या 51 तक पहुंच जाती है. 25 में से 12 सदस्य चुनाव के जरिए आते हैं. इनका चुनाव ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारी करते हैं. बाकी 12 सदस्यों की नियुक्ति पार्टी अध्यक्ष अपने विवेक से करता है. हालांकि बीते पचास साल के इतिहास में कांग्रेस पार्टी के भीतर सिर्फ दो ही मौकों पर कार्यसमिति के भीतर स्वतंत्र तरीके से चुनाव हुए हैं और दोनों मौकों पर गांधी परिवार इसमें शामिल नहीं था. एक बार 1992 में, जब नरसिम्हा राव पार्टी अध्यक्ष थे और दूसरी बार 1997 में जब सीताराम केसरी पार्टी अध्यक्ष थे. बाकी मौकों पर गांधी परिवार के हाथ में कमान रहते कार्यसमिति के सभी सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार एआईसीसी ने दे रखा है.

राहुल गांधी ने कार्यसमिति में नौजवान चेहरों को लाने का सार्थक प्रयास किया है. हालांकि वरिष्ठ नेताओं को भी इसमें समायोजित करने की कोशिश दिखती है, जो कि राहुल का वादा भी था. लेकिन कुछ बड़े चेहरे मसलन दिग्विजय सिंह और जनार्दन द्विवेदी का नाम नहीं होना हैरान करता है. एक समय दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी का खास माना जाता था, वहीं जनार्दन द्विवेदी सोनिया गांधी के करीबी लोगों में शुमार किए जाते थे. कश्मीर से डॉ. कर्ण सिंह भी राहुल की कमेटी में जगह नहीं पा सके हैं. नई वर्किंग कमेटी में जातीय समीकरण का पूरा ध्यान दिया गया है. हालांकि अल्पसंख्यकों के लिहाज से कुछ भी नया या खुश होने लायक नहीं है.

युवा जोश के साथ राहुल की शुरुआत

इस कार्यसमिति के गठन से साफ हो गया है कि राहुल गांधी अपनी टीम बनाने का प्रयास कर रहे हैं. जाहिर है इस टीम से कांग्रेस के भविष्य के नेताओं की और कर्णधारों की एक तस्वीर भी उभरती है.

राहुल गांधी की युवा टीम में ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेन्द्र हुड्डा और जितिन प्रसाद को जगह मिली है. जितिन प्रसाद का ताल्लुक यूपी से है. जितिन यूपीए सरकार में मंत्री भी थे. उन्हें उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्य से नुमाइंदगी दी गयी है. खासकर ब्राह्मण नेता के तौर पर जितिन प्रसाद को पार्टी प्रोजेक्ट करना चाहती है. जितिन प्रसाद ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए खुद को सबसे महत्वपूर्ण कार्ययमिति का सदस्य मनोनीत करने के लिए राहुल गांधी को धन्यवाद भी दिया. उन्होंने कहा कि वे पूरी लगन से पार्टी के लिए मेहनत करते रहेंगे.

हालांकि जितिन और बाकी सदस्यों में फर्क है. ज्योतिरादित्य सिंधिया को कार्यसमिति में जगह देकर मध्य प्रदेश में कमलनाथ को एक तरह से फ्री हैंड दिया गया है. वही दीपेन्द्र हुड्डा को अपने पिता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पर तरजीह मिली है. हरियाणा के कुलदीप विश्नोई ने हाल में कांग्रेस में वापसी की है. उनको भी इसका इनाम दिया गया है. इसके अलावा कांग्रेस के मीडिया सेल के इंचार्ज रणदीप सिंह सुरजेवाला भी राहुल की टीम में जगह पाने में कामयाब रहे हैं. मध्य प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव भी यंग ब्रिगेड का हिस्सा बने हैं. असम के गौरव गोगोई बंगाल के प्रभारी हैं और वो भी टीम राहुल का हिस्सा हैं.

एनएसयूआई, यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस के अध्यक्ष भी पदेन सदस्य बनाए गए हैं. ये राहुल गांधी की युवा टीम है. जिनका कांग्रेस के भीतर बड़ा योगदान रहने वाला है. लग रहा है कि यही टीम राहुल गांधी के साथ मिलकर कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाएगी.

ओल्ड गार्ड बनाम युवा नेता

राहुल गांधी ने पार्टी के महाधिवेशन में कहा था कि कांग्रेस में बुज़ुर्ग नेताओं का सम्मान किया जाएगा. सोनिया गांधी की पुरानी टीम के सदस्यों अहमद पटेल, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक को जगह मिली है. कार्यसमिति में पुराने चेहरों को स्थान देने की एक वजह 2019 का आम चुनाव भी है. वरिष्ठ पत्रकार अजित द्विवेदी का कहना है कि अहमद पटेल, अंबिका सोनी, जैसे नेता अल्पमत की सरकार बनने की सूरत में गठबंधन खड़ा करने में बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं.

पार्टी को प्रणब मुखर्जी की कमी खलती रहेगी. लेकिन पार्टी के सीनियर नेता यूपीए को मज़बूती देने में मददगार साबित हो सकते हैं. अहमद पटेल पर्दे के पीछे प्रबंधन करने में माहिर हैं. एके एंटोनी, ओमन चंडी और मल्लिकार्जुन खड़गे दक्षिण भारत से प्रतिनिधित्व करेंगे. ये नेता दक्षिण के दलों का प्रबंधन कर सकते हैं. वहीं अहमद पटेल, गुलाम नबी आज़ाद, अंबिका सोनी बाकी राजनीतिक दलों को साधने का काम करेंगे.

तरूण गोगोई नार्थ ईस्ट में पार्टी के समीकरणों का ध्यान रख सकते हैं. 2004 में टीम सोनिया ने यूपीए गठबंधन की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि पार्टी को अर्जुन सिंह पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और लेफ्ट के नेता हरिकिशन सिंह सुरजीत की कमी खलती रहेगी.
गठबंधन की बारीकियां समझने में सीनियर नेता अनुभवी हैं. यूथ ब्रिगेड से गठबंधन का मामला संभलना मुश्किल है. वहीं कांग्रेस के सामने फंड की कमी बड़ा सवाल है. पार्टी को 2019 में फंड का प्रबंधन करना भी बड़ी चुनौती है. ये काम भी ‘ओल्ड गार्ड’ ही कर सकता है.

जातीय समीकरण का ध्यान

राहुल गांधी की नयी कार्यसमिति में सभी जातियों के बीच संतुलन साधने की कोशिश भी दिखती है. पांच दलित चेहरों को वर्किंग कमेटी में जगह दी गई है. ठाकुर नेताओं में अगर दिग्विजय सिंह की छुट्टी हुई है तो हरीश रावत की एन्ट्री हुई है. वही ब्राह्मण नेताओ में जनार्दन द्विवेदी की जगह जितिन प्रसाद को जगह मिली है. पिछड़े वर्ग से यूपी से आरपीएन सिंह मध्य प्रदेश के अरुण यादव और छत्तीसगढ़ से तामराध्वज साहू को जगह दी गयी है.

मुसलमानों को तवज्जो नहीं

मुस्लिम लीडरशिप के नाम पर कोई नया चेहरा सामने नहीं आ पाया है. गुलाम नबी आज़ाद और अहमद पटेल को मौका मिला है. तारिक हमीद कर्रा को जगह दी गयी है. वो भी आज़ाद की तरह कश्मीर से आते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री के सवाल के बाद भी किसी मुस्लिम महिला को तरजीह नहीं दी गयी है. जबकि राहुल गांधी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ मुलाक़ात के दौरान कहा था कि पार्टी के भीतर अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की नुमाइंदगी बढ़ेगी.

कार्यसमिति में ऐसा कुछ नहीं दिखा. राहुल गांधी मुस्लिम नेताओं को तरजीह देने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं. मोहसिना किदवई को राहुल गांधी ने हटाया है. उनकी जगह किसी मुस्लिम महिला को नहीं मिली है. ये वही मोहसिना किदवई हैं जिन्होंने 1977 के बाद हुए चुनाव में चन्द्रजीत यादव को आज़मगढ़ से हराकर इंदिरा गांधी के वापसी की राह हमवार की थी.

सीनियर नेताओं की अनदेखी

जयराम रमेश और सलमान खुर्शीद जैसे बड़े चेहरे जो यूपीए-2 में अहम मंत्री थे. राहुल की टीम में जगह नहीं पा सके हैं. लोकसभा में पार्टी के लीडर रह चुके दलित चेहरा सुशील कुमार शिंदे भी नयी कार्यसमिति से बाहर हैं. हालांकि महाराष्ट्र से पांच लोग जगह पाने में कामयाब रहे हैं. जिसका असर महाराष्ट्र के दलित वोटों पर पड़ सकता है.

इस तरह राजस्थान से सीपी जोशी और मोहन प्रकाश की छुट्टी कर दी गयी है. ये दोनों नेता राहुल के खास माने जाते थे. लेकिन तमाम अहम ज़िम्मेदारी मिलने के बाद भी चुनाव जितवाने में ना कामयाब रहे हैं. हालांकि दिग्विजय सिंह कभी राहुल के गुरू के तौर पर विख्यात थे लेकिन अब अपनी उपयोगिता दोबारा साबित करनी पड़ सकती है. उनके लिए मध्य प्रदेश का चुनाव जीतना अहम हो गया है.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को जगह नहीं दी गयी है. कांग्रेस में उम्र का हवाला दिया जा रहा है. जबकि तरूण गोगोई के मामले में ये पैमाना नहीं है. वीरभद्र की जगह हिमाचल से आनंद शर्मा और आशा कुमारी को जगह मिली है. लेकिन कांग्रेस में वीरभद्र सिंह जैसी पकड़ राज्य में किसी भी नेता की नहीं है.

बिहार, बंगाल, तेलांगना, आन्ध्र प्रदेश से शून्य

राहुल गांधी ने इन चार राज्यों के नेताओं को कोई तरजीह नहीं दी गयी है. बिहार, बंगाल में कांग्रेस के पास कई बड़े नेता हैं. लेकिन किसी को जगह नहीं मिली है. ऐसा लग रहा है कि पार्टी की प्राथमिकता में ये राज्य नहीं हैं. बिहार में कांग्रेस आरजेडी के साथ गठबंधन में है. बंगाल में पार्टी के भीतर घमासान है. एक धड़ा लेफ्ट से गठबंधन की वकालत कर रहा है. दूसरा धड़ा ममता बनर्जी के साथ गठबंधन का हिमायती है. तेलांगना में पार्टी विपक्ष में है. आन्ध्र प्रदेश में कांग्रेस के पास वजूद बचाने की चुनौती है.

राहुल गांधी की अध्यक्षता वाली कार्यसमिति की पहली बैठक रविवार को बुलाई गयी है. जिसमें अहम मसलों पर चर्चा होने की उम्मीद है. नयी वर्किंग कमेटी कुछ अहम प्रस्ताव पास कर सकती है. इस बैठक में सभी प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेताओं को बुलाया गया है.

क्या कहता है पार्टी का संविधान

कांग्रेस के संविधान के मुताबिक कार्यसमिति में 25 सदस्य हो सकते हैं. जिसमें 12 नामित किए जाते हैं और 12 निर्वाचित होते हैं. हालांकि एआईसीसी ने ये अधिकार भी अध्यक्ष को दे दिया था. अभी भी दो स्थान रिक्त हैं.

जानकार कहते हैं कि राहुल गांधी ने सभी को समायोजित करने का प्रयास किया है. लेकिन नयी वर्किंग कमेटी के ज़रिए राहुल गांधी नया राजनीतिक मैसेज दे सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है. संसद में महिला आरक्षण की मांग करने वाले राहुल गांधी पार्टी के भीतर 33 फीसदी आरक्षण देने में नाकामयाब रहे हैं.

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