पार्ट-1 में आपने पढ़ा किस तरह से हिंसा के बीज बोए जाते हैं. पार्ट-2 में उनकी जानकारी जो हिंसा को अंजाम देते हैं.
रविवार का दिन है. रामनगर (उत्तराखंड) के गर्जिया मंदिर में आज भीड़ आम दिनों से कहीं ज्यादा है. कोसी नदी के तट पर बसे इस खूबसूरत मंदिर की सीढ़ियों से शुरू हो रही श्रद्धालुओं की कतार लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबी हो चुकी है.
जून की इस चिलचिलाती धूप में जितने लोग गर्जिया माता के दर्शन के लिए लाइन में खड़े हैं, उससे कई गुना ज्यादा लोग कोसी नदी में डुबकियां लगा रहे हैं. रानीखेत के रहने वाले गुमान सिंह भी इनमें से एक हैं. वे अपने पूरे परिवार के साथ आज गर्जिया माता के दर्शन के लिए पहुंचे हैं. लेकिन मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ देखकर उन्होंने अपना इरादा कुछ बदल लिया है. वे कहते हैं, ‘दर्शन के लिए कई घंटे लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है. मेरा भाई मुझसे एक घंटे पहले यहां पहुंच गया था और तब से ही लाइन में खड़ा है. अभी उसे करीब एक घंटा और लगेगा. इसलिए मैंने तो अपनी प्रसाद की थाल उसे ही सौंप दी है. वो मेरे हिस्से का चढ़ावा भी देवी को चढ़ा देगा.’
गुमान सिंह की तरह ही कई अन्य श्रद्धालुओं ने भी ऐसा ही किया है. यह भी एक कारण है कि मंदिर की पंक्ति से कहीं ज्यादा लोग नदी में नहाते देखे जा सकते हैं. नदी के किनारे ही यहां दर्जनों दुकानें बनी हैं जिनमें खाने-पीने की सुविधा के साथ ही महिलाओं के लिए कपड़े बदलने की भी व्यवस्था की गई है. नदी और उसके किनारे का यह माहौल बिलकुल किसी पिकनिक-स्पॉट जैसा है. कोसी नदी के बहाव की दिशा में गर्जिया मंदिर से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर आगे एक झूला पुल है.
मंदिर से लेकर इस झूला पुल के बीच के नदी से सटे इलाके में हजारों लोग रविवार की छुट्टी का आनंद लेते नज़र आ रहे हैं. कुछ लोग यहां नदी के पानी में पैर डाले बैठे हैं, कुछ लोग एक-दूसरे पर पानी उछाल कर खेल रहे हैं, कुछ गहरे पानी में तैराकी कर रहे हैं और कुछ बच्चे बार-बार एक ऊंचे पत्थर पर चढ़कर नीचे नदी में छलांग लगा रहे हैं. भीड़ में बच्चे, बूढ़े, जवान सभी तरह के लोग शामिल हैं लेकिन युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा हैं. जवान लड़के-लड़कियों की कई छोटी-बड़ी टोलियां यहां मौजूद हैं और इस बात से बिलकुल बेखबर हैं कि कुछ निगाहें लगातार उनका पीछा कर रही हैं और उनकी हर हरकत को बारीकी से परख रही हैं. वही निगाहें जिनके चलते गर्जिया मंदिर पिछले महीने राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ियों का भी हिस्सा बन गया था.
बीती 22 मई को गर्जिया मंदिर में हुई एक घटना का वीडियो देश भर में वायरल हुआ था. इस वीडियो में दिख रहा था कि गले में भगवा गमछा डाले कुछ लोग एक लड़के को पीट रहे थे और एक पुलिस अफसर अकेला ही उस लड़के को अपने सीने से लगाए गुस्साई भीड़ से बचाने में लगा था.
इस वीडियो में जिस लड़के को पीटा जा रहा था वह काशीपुर से यहां आया एक मुस्लिम नौजवान था, जो लोग पीट रहे थे वो विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के स्थानीय कार्यकर्ता थे और जो पुलिस अफसर लड़के को बचा रहा था वह सब इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह थे.
काशीपुर से गर्जिया मंदिर आया ये लड़का गुस्साई भीड़ के हाथों इसीलिए पड़ गया क्योंकि कुछ निगाहें उसका भी पीछा ठीक वैसे ही कर रही थीं जैसे यहां आने वाले हर जवान लड़के-लड़की का किया करती हैं. 22 मई को गर्जिया मंदिर में जो घटना हुई, वह अपनी तरह की कोई पहली घटना नहीं थी. पिछले दो साल में उत्तराखंड में ऐसी दो दर्जन से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें से कई तो रामनगर थाने में दर्ज भी हुई हैं. इन सभी घटनाओं की पृष्ठभूमि उन्हीं निगाहों ने तय की हैं जो बिलकुल किसी जासूस की तरह यहां आने वाले हर जवान लड़के-लडकी का पीछा करती हैं.
जवान लड़के-लड़कियों का पीछा करती ये निगाहें किसकी हैं, इसकी प्राथमिक जानकारी तो यहां के पुजारियों से ही मिल जाती है. गर्जिया में मुख्य मंदिर के पास ही भैरों का भी एक मंदिर है जिसके पुजारी चौफुला गांव के निवासी दीपक जोशी हैं. वे बताते हैं, ‘गर्जिया मंदिर में जितने लोग दर्शन के लिए आते हैं उससे ज्यादा लोग यहां आस-पास नदी में नहाने और पिकनिक मनाने आते हैं. इसमें सभी धर्मों के लोग होते हैं और ऐसा बहुत सालों से होता आया है. लेकिन पिछले दो-ढाई साल से यहां हिन्दू संगठन के लोग काफी सक्रिय हो गए हैं. इन लोगों का काम ही है कि ये जवान लड़के-लड़कियों पर नज़र बनाए रखते हैं और नदी या उसके आस-पास बैठे लड़के-लड़कियों से कई बार उनके पहचान पत्र मांग लेते हैं. ऐसे में जब भी कोई मुस्लिम लड़का किसी हिन्दू लड़की के साथ इन्हें मिल जाता है तो उसे ये मुद्दा बना लेते हैं.’
गर्जिया मंदिर के आस-पास जब ऐसी कई घटनाएं हो गई जिनमें मुस्लिम लड़कों को निशाना बनाया गया तो रामनगर के कुछ लोगों ने मिलकर ‘आपकी खिदमत’ नाम का एक संगठन बनाया. यह संगठन मुख्यतः ऐसे लोगों की कानूनी मदद करता है जो सांप्रदायिक हिंसा का शिकार हुए हों. बीती 22 मई की घटना के बाद भी आरोपितों के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाने में इस संगठन ने अहम् भूमिका निभाई थी. इस संगठन के अध्यक्ष शोएब कुरैशी बताते हैं, ‘पिछले दो सालों में यहां ऐसी लगभग 26-27 घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें से करीब दस मामले तो थाने में भी दर्ज हैं. पिछले कुछ समय से बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े करीब 10-12 लोग सुबह से ही गर्जिया मंदिर के आस-पास आकर बैठ जाते हैं. इन लोगों का काम ही है यहां आने वाले जवान लड़के-लड़कियों की जासूसी करना.’
लड़के-लड़कियों से उनके पहचान-पत्र मांगने वाले हिन्दू संगठनों के लोगों के पास भी अपने ही तर्क हैं. गर्जिया मंदिर की हालिया घटना के अभियुक्त और विश्व हिंदू परिषद् के नगर अध्यक्ष हिमांशु अग्रवाल कहते हैं, ‘मंदिर एक आस्था का केंद्र है और उसकी गरिमा बनी रहे हम इसी के लिए काम करते हैं. इस घटना के पहले से हम लोग प्रशासन से लगातार ये मांग कर रहे थे कि इस क्षेत्र में अश्लील गतिविधियां होती हैं लिहाजा यहां कैमरे लगाए जाएं, महिलाओं के लिए कपड़े बदलने के लिए भवन निर्माण हो और अश्लील गतिविधियों में संलिप्त लोगों पर नज़र रखी जाए. लेकिन हमारे कई बार मांग करने के बाद भी प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया.’
हिमांशु अग्रवाल आगे बताते हैं, ’22 मई के दिन हमने देखा कि कुछ लड़के एक लड़की के साथ अश्लील हरकतें कर रहे थे. तब हमारे साथियों ने उनसे पहचान पत्र मांगा. लेकिन जब उन्होंने अपनी पहचान नहीं बताई तो हमने मामला पुलिस के हाथों सौंप दिया. हम पुलिस से मांग कर रहे थे कि अन्य अधिकारियों के आने तक उन लड़कों को वहीं मंदिर समिति के ऑफिस में बैठाया जाए. लेकिन सब इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह उन लड़कों को चौकी ले जाने पर अड़ गए जो वहां से लगभग एक किलोमीटर दूर थी. इससे लोगों में गुस्सा हुआ और ऐसे में कुछ लोगों ने मार-पीट शुरू कर दी. भीड़ तो आप जानते हैं कि उग्र हो ही जाती है.’
भीड़ के उग्र हो जाने की जिस प्रवृति का जिक्र हिमांशु अग्रवाल कर रहे हैं, उसी प्रवृति के चलते उत्तराखंड में बीते कुछ समय में कई हिंसक सांप्रदायिक घटनाएं हो चुकी हैं. पौड़ी, रामनगर, हल्द्वानी, कोटद्वार, और सतपुली जैसी जगहों पर हुई घटना में हिंसक भीड़ ने ही अहम भूमिका निभाई है. इस भीड़ में शामिल लोगों के मन में सांप्रदायिक द्वेष का ज़हर किस तरह भरा जा रहा है, इसका जिक्र हम इस रिपोर्ट की पहली कड़ी में कर चुके हैं. रिपोर्ट की इस कड़ी में उन लोगों का जिक्र किया जा रहा है जो भीड़ को हिंसक बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं और कैसे ये लोग इस भीड़ का नेतृत्व करते हुए हिंसा का माहौल तैयार करते हैं.
मंदिर के इर्द-गिर्द जासूसी कर रहे इन लोगों को कैसे मालूम चलता है कि मंदिर के पास कोसी नदी में घूमने आ रहे लोगों में कौन हिंदू हैं और कौन मुस्लिम? इस सवाल का जवाब खुद विश्व हिन्दू परिषद के रामनगर अध्यक्ष हिमांशु अग्रवाल दे देते हैं. वे कहते हैं, ‘हमारा नेटवर्क बहुत स्ट्रांग हैं. हमारे कई वालंटियर हैं जो हमेशा वहां मौजूद रहते हैं और लोगों पर नज़र रखते हैं. पिछले कई सालों से हम ये काम कर रहे हैं इसलिए अब ये पहचान करना हमारे लिए काफी आसान हो गया है. जहां भी हमें संदेह होता है, हम लड़कों से उनका पहचान पत्र मांग कर पुष्टि कर लेते हैं.’
उत्तराखंड में जब से भाजपा की सरकार बनी है तब से ही इस तरह की सांप्रदायिक घटनाओं में तेजी आई है. क्या सरकार इन लोगों को संरक्षण दे रही है जो ऐसी हिंसक घटनाओं में शामिल हैं? इस सवाल के हिमांशु अग्रवाल कहते हैं, ‘सरकार से हमें कोई सीधा संरक्षण नहीं मिलता. ग्राउंड पर हमें अपने दम पर ही चीज़ों को संभालना होता है. इसलिए कई बार हमारे ऊपर पुलिस केस भी दर्ज हो जाते हैं. लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा सरकार आने के बाद हमारे कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा है. भाजपा हिंदू हितों की बात तो करती ही है.’
हिमांशु की तरह ही हिंदू जागरण मंच (हल्द्वानी) के कार्यकर्ता रविंद्र बाली भी कहते हैं, ‘भाजपा सरकार आने से हमारे काम में कोई सीधा बदलाव तो नहीं आया है लेकिन हमारा सीना चौड़ा जरूर हो गया है. गर्जिया की घटना के बाद ही विधायक राजकुमार ठुकराल यहां आए थे. उन्होंने जिस तरह से खुलकर हिंदुओं के पक्ष में बयान दिया, उससे लड़कों में उत्साह बढ़ा है.’ राजकुमार ठुकराल रुद्रपुर से भाजपा के विधायक हैं.
गर्जिया में हुई घटना के बाद उन्होंने बयान दिया था कि ‘जब हम लोग मस्जिद में नहीं जाते तो वे लोग हिन्दू सभ्यता को नष्ट करने के उद्देश्य से मंदिर में क्यों गए? वो लोग हिन्दू समाज की लड़की के साथ वहां पर घूम रहे थे. वो हिन्दू समाज की भावनाओं को भड़काने का काम कर रहे थे. ऐसे लोगों को सबक सिखाने का टाइम आ गया है. अगर पुलिस और प्रशासन नहीं जागे तो मजबूरी में हिन्दू सेना को निकलना पड़ेगा और हिन्दू सेना ऐसे लोगों का मुकाबला करेगी जो हिन्दू सभ्यता को, हिन्दू संस्कृति को कुचलने में लगे हुए हैं.’
भाजपा नेताओं के ऐसे बयान स्वाभाविक है कि उन लोगों को हिम्मत देते हैं जो खुद को हिन्दुओं का रक्षक मानते हुए हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. उत्तराखंड में बीते कुछ दिनों में जितनी भी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं, उनमें सबसे पहली पंक्ति में हिंदू संगठनों के लोग ही नज़र आए हैं. लेकिन इन लोगों के पीछे एक बड़ी भीड़ कैसे खड़ी हो जाती है? इस सवाल का जवाब देहरादून के रहने वाले स्वामी दर्शन भारती से बातचीत में मिलता है. स्वामी दर्शन भारती ‘उत्तराखंड रक्षा अभियान’ नाम का एक संगठन चलाते हैं. इस संगठन के उद्देश्य के बारे में वे स्वयं बताते हैं कि ‘देवभूमि को मस्जिदों और मुसलामानों से मुक्त करना’ ही उनका उद्देश्य है. इस साल की शुरुआत में अगस्त्यमुनि में एक अफवाह के चलते मुस्लिम समुदाय की दुकाने जलाने की जो घटना हुई थी, उसमें स्वामी दर्शन भारती भी एक अभियुक्त हैं.
सोशल मीडिया पर स्वामी दर्शन भारती काफी सक्रिय हैं और उनकी दर्जनों सांप्रदायिक पोस्ट्स को फेसबुक पर सैकड़ों-हजारों बार शेयर किया जाता है. इसके अलावा वे प्रदेश भर में घूम-घूम कर भी यह सन्देश दे रहे हैं कि इस प्रदेश में कोई भी मस्जिद अब नहीं बनेगी. कुछ समय पहले उन्होंने बद्रीनाथ में जाकर भी वहां रह रहे मुसलमानों के खिलाफ काफी हंगामा किया था जिसके बाद उन्होंने खुलकर ये दावा भी किया कि उन्होंने और उनके संगठन ने बद्रीनाथ को पूरी तरह से मुस्लिम मुक्त कर दिया है.
सांप्रदायिक हिंसा के कई मामले स्वामी दर्शन भारती के खिलाफ दर्ज हैं लेकिन इससे उनके काम में कोई रुकावट नहीं आई है. कुछ समय पहले उनका एक वीडियो जमकर वायरल हुआ था जिसमें वे देहरादून के एक इलाके में मुसलामानों को धमकी देते हुए दिख रहे थे. इस वीडियो में वह खुलकर एक बड़ी भीड़ को संबोधित करते हुए कह रहे थे कि उत्तराखंड में भी मुसलामानों को वैसे ही काटा जाना चाहिए जैसे मुज़फ्फरनगर में काटा गया था.
अपने काम के बारे में स्वामी दर्शन भारती कहते हैं, ‘मेरा पूरा जीवन सार्वजानिक हितों के लिए समर्पित रहा है. लेकिन मुस्लिमों की बढ़ती संख्या और उत्तराखंड में उनकी घुसपैठ के कारण पिछले दो-ढाई साल से मैंने खुद को पूरी तरह इसी मुद्दे के लिए समर्पित कर दिया है. सबसे पहले हमने ही पोस्टर छपवा कर पूरे प्रदेश में लगाए थे और लोगों को यह बताया था कि यहां मुसलामानों की घुसपैठ तेजी से हो रही है. आप देख लीजिये कि तभी से यहां की जनता कुछ जागरूक हुई है वरना पहले तो यहां सब सोए हुए थे.’
वे आगे कहते हैं, ‘हमने ऐसा माहौल तो बना ही दिया है कि अब अगर कोई मुस्लिम किसी गलत काम में लिप्त पाया जाता है तो लोग खुद ही उन्हें ठिकाने लगा देते हैं. पहाड़ी लोग ज्यादा हिंसक नहीं होते. वो ऐसे नहीं होते कि किसी की हत्या कर दें लेकिन अब उनमें इतनी जागरूकता आ गई है कि वो मुसलामानों को पीट-पीट कर ठीक करने लगे हैं.’
स्वामी दर्शन भारती यह भी स्वीकारते हैं कि सोशल मीडिया ने हिंदुओं को ‘जागरुक’ करने में अहम भूमिका निभाई है. फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए आम लोगों में मुस्लिम समुदाय के प्रति नफरत फैलाने का काम बहुत तेजी से हो रहा है. (देखें इस रिपोर्ट की पहली कड़ी.) ऐसे में आम लोगों में जो पूर्वाग्रह मुस्लिम समुदाय के प्रति बन रहा है, उसे हिंसा में तब्दील करने का काम स्वामी दर्शन भारती जैसे लोग कर रहे हैं.
भारती स्वयं यह स्वीकारते हुए कहते हैं, ‘मुझे किसी से कोई डर नहीं है. मैं जो भी करता हूं, खुलकर करता हूं. मैं हिंदू धर्म की रक्षा के लिए काम कर रहा हूं और इसके लिए मुझे जो भी कुर्बानी देनी पड़े मैं पीछे नहीं हटने वाला. मुसलमानों के हौसले यहां इतने बुलंद हो गए थे की वो कहीं भी मस्जिद बनाने लगे थे, अपने धर्म के पैर हमारे पहाड़ों में पसारने लगे थे, पहाड़ी हिंदू लड़कियों को बहका कर भगाने लगे थे, लव जिहाद को अंजाम दे रहे थे और धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे थे. ऐसे में इन्हें सबक सीखना जरूरी था.’
वे आगे कहते हैं, ‘आज हमने पहाड़ों में ऐसा माहौल तैयार कर दिया है कि अब अगर कहीं भी कोई मुसलमान कोई गतिविधि करता है तो भीड़ खुद ही सब संभाल लेती है. बस कभी-कभी इस भीड़ को दिशा देने की जरूरत होती है जिसके लिए कई लोग काम कर ही रहे हैं.’
भीड़ को दिशा देने वाले जिन लोगों की बात स्वामी दर्शन भारती कर रहे हैं, ये वही लोग हैं जो पिछली कई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में सबसे आगे रहे हैं. ये लोग बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद्, हिन्दू रक्षा दल, हिन्दू जागरण मंच जैसे संगठनों के सदस्य होते हैं और हर हिंसक घटना में इन्हें ही भीड़ का नेतृत्व करते आसानी से देखा जा सकता है. उत्तराखंड के अगस्त्यमुनि से लेकर गर्जिया मंदिर तक जितनी भी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं, उनमें यही लोग सबसे आगे रहे हैं.
इस तरह की घटनाओं का सबसे खतरनाक पक्ष ये है कि एक बड़ी भीड़ ऐसी हिंसा के समर्थन में उतर आती है. ऐसा सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि पूरे देश में देखा जा सकता है. शंभूनाथ रैगर जैसे हत्यारे के पक्ष में भी एक बड़ी भीड़ सामने आई थी और कई लोगों ने तो शंभूनाथ की आर्थिक मदद के लिए चन्दा भी जमा कर लिया था. जबकि शंभूनाथ वह व्यक्ति है जिसने एक मुस्लिम व्यक्ति को जिंदा जला डाला था और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किया था.
इस तरह के लोगों को भीड़ का समर्थन मिलने से न सिर्फ़ इनके हौसले बुलंद होते हैं बल्कि प्रशासन के लिए भी इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है. लेकिन सांप्रदायिक हिंसा का जो माहौल कथित हिंदू संगठनों द्वारा सोशल मीडिया के ज़रिए लगातार बनाया जा रहा है, प्रशासन चाहे तो इसे आसानी से रोका जा सकता है. यदि ऐसा नहीं होता तो बहुत संभव है कि भविष्य में फिर से कोई सांप्रदायिक हिंसा की घटना हो और ऐसी घटना को अंजाम देने वाले भीड़ की आड़ में वैसे ही बच निकलें जैसे पिछली घटनाओं से बच निकले हैं.