पांच महिलाओं के साथ बलात्कार, पत्थलगड़ी आंदोलन और इनके बीच उलझे सरकार और आदिवासी.
झारखंड का आदिवासी बहुल जिला खूंटी. अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान करने वाले आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा का जन्म इसी खूंटी जिले के उलिहातू में हुआ था. फिलहाल यह इलाका जिस उथल-पुथल से गुजर रहा है उसे जाने बिना आप यहां पहुंचेंगे तो मेहनतकश लोग, पठारी नदियां, झरने, चारो तरफ पहाड़, सन-सन बहती हवाएं यही अहसास कराएंगी कि प्रकृति ने इस इलाके को क्या खूब नेमत बख्शी है.
लेकिन सुदूर गांवों की हालत जानने की कोशिश करेंगे, तो यह साफ होता जाएगा कि इलाके की बड़ी आबादी को आखिरी कतार से बाहर निकलने का अभी भी इंतजार है. इसी इंतजार में पत्थलगड़ी के जरिए आदिवासी अपना शासन, अपनी हुकूमत, ग्रामसभा होगी सबसे बड़ी ताकत, इसकी मुनादी कर रहे हैं.
ग्रामसभाएं कई किस्म के फरमान तक जारी करने लगी हैं, जिसमें बाहरी लोगों का बिना इजाजत गांवों में स्वतंत्र भ्रमण पर पाबंदी, पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं है. इसी सिलसिले में पिछले दिनों आदिवासियों ने ग्रामसभा बैंक की स्थापना भी की है.
कई जगहों पर ग्रामसभाएं बच्चों को स्कूल जाने से रोकती रही हैं और खुद पढ़ाने का इंतजाम करने में जुटी है. पिछले कुछ महीनों से पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर यह इलाका सुर्खियों में रहा है. हालांकि ये आंदोलन राज्य के दूसरे कई आदिवासी इलाकों में भी चल रहा है, लेकिन खूंटी में इसकी वजह से बेहद अलग किस्म का तानाबाना उभरता दिख रहा है.
दरअसल इस आंदोलन को लेकर यहां आदिवासी-सरकारी तंत्र बिल्कुल आमने–सामने हैं. टकराव बढ़ता जा रहा है. आदिवासियों और सिस्टम का एक दूसरे पर भरोसा कम होता जा रहा है. गतिरोध दूर करने की कोशिशें सिरे चढ़ती दिखाई नहीं पड़ती.
पत्थलगड़ी को लेकर पुलिस और आदिवासियों के बीच ताजा हिंसक झड़पों से तनाव और बढ़ गया है. पत्थलगड़ी आंदोलन को एक और घटना ने बुरी तरह से उलझा दिया है. इस खौफनाक घटना की वजह से खूंटी जिले पर देश भर की नजरें टिकी है.
पिछले 19 जून को अड़की थाना क्षेत्र के कोचांग गांव में मानव तस्करी के खिलाफ नुक्कड़ नाटक करने गई पांच युवतियों का हथियारों के बल पर अगवा कर गैंग रेप की घटना की वजह से कई गांवों की गतिविधियां बदल गई है. जगह-जगह ग्रामसभा की बैठकें की जा रही है. लोग चिंतित हैं. दरअसल उन्हें लगता है कि इस घटना से इलाके की बदनामी हुई है.
अचानक से बदलते घटनाक्रमों के बीच हालात क्या हैं इसे जानने के लिए हम दूरदराज के कई गांवों तक पहुंचे. यहां तक पहुंचना बहुत आसान नहीं था. पहाड़ों, जंगलों, नदियों के बीच से गुजरती उबड़-खाबड़ पथरीली और टूटी सड़कें तथा जगह-जगह छाया खौफ का साया.
गांवों में सरकारी योजनाओं की हालत देखकर यह कहा जा सकता है कि बिचौलिए-ठेकेदार-अफसर गठजोड़ को कथित तौर पर लूट की खुली छूट मिलती रही है. यह इलाका नक्सल आंदोलन की जद में रहा है. लिहाजा इसका भी खासा असर लोगों की जिंदगी पर पड़ा है.
जाहिर है इस घटना को लेकर कोचांग और आसपास के गांवों में आदिवासी सकते में हैं. कोचांग में पहले ही पत्थलगड़ी की गई है. कोचांग से सटे कुरंगा गांव में भी इस आंदोलन को हवा दी जाती रही है.
अब गैंग रेप को लेकर इन इलाकों में पत्थलगड़ी समर्थकों और ग्रामसभाओं की बेचैनी इसलिए बढ़ती गई क्योंकि पुलिस ने जिस जॉन जिसन तिड़ू को इस घटना का बड़ा सूत्रधार बताया है वो कुरंगा के रहने वाले हैं और पत्थलगड़ी आंदोलन के अगुवा में से एक हैं.
हालांकि गैंग रेप की घटना के उजागर होने तथा प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जॉन जिसान तिड़ू 24 जून को कोरांग में ग्रामसभा की बैठक में शामिल हुए थे. तब वे मीडिया से भी रूबरू हुए थे.
तिड़ू अपने ऊपर लगे आरोपों को निराधार बताते हैं. उनका दावा है कि अपना शासन के लिए आदिवासियों को वे गोलबंद करने में जुटे हैं. ग्रामसभा की ताकत को पहचानने-बढ़ाने की कवायद कर रहे हैं इसलिए इस घटना में उनका नाम जोड़ा जा रहा है.
जिसान तिड़ू पर पत्थलगड़ी को लेकर कई मुकदमे दर्ज हैं और अब तक वे पुलिस की गिरफ्त में आने से बचते रहे हैं. हालांकि पुलिस हर हाल में उसे पकड़ना चाहती है.
कोचांग और दूसरे कई गांवों के लोग भी इससे इत्तेफाक नहीं रखते कि गैंगरेप की घटना में पत्थलगड़ी समर्थकों या ग्राम सभा का हाथ हो सकता है. जरीका मुंडा स्थानीय भाषा में कहते हैं कि बाहर से आए असामाजिक तत्वों ने साजिश के तहत इस घटना को अंजाम दिया. पत्थलगड़ी समर्थकों की गोलबंदी को प्रशासन तोड़ने में जुटा है. इसलिए दुष्कर्म की घटना को पत्थलगड़ी से जोड़ा जा रहा है.
पत्थलगड़ी आंदोलन में तिड़ू के सहयोगी बलराम समद कहते हैः इस आंदोलन के सभी नेताओं को पुलिस जेल में डालना चाहती है, ताकि आदिवासी अपना शासन कायम नहीं कर सकें.
समद को इस बात से गुरेज है कि सरकार पत्थलगड़ी आंदोलन को गलत ठहराने में जुटी है. वे कहते हैं कि ग्रामसभा की बैठकों में सरकार के लोग आएं और हमसे संवाद करें.
समद का जोर है कि ट्राइबल सब प्लान का पैसा ग्रामसभा को मिले और विकास का काम ग्रामसभा ही कराएगी तथा अधिकारियों पर आदेश भी ग्रामसभा का चलेगा.
गौरतलब है कि अब तक पुलिस ने इस आंदोलन से जुड़े दर्जन भर लोगों को गिरफ्तार किया है. साथ ही आंदोलन का नेतृत्व कर रहे युसूफ पूर्ति पर दर्जन भर मामले दर्ज किए हैं. 26 जून को पुलिस ने युसूफ के घर की कुर्की की है जबकि इसी दिन वे घाघरा गांव में हुए पत्थलगड़ी कार्यक्रम में शामिल हुए थे.
कोचांग समेत आसपास के कई गांवों में बिजली, पानी, सिचांई जैसी सुविधाएं लोगों को अब भी मयस्सर नहीं हैं. एक युवा सनिका सोय कहते है- “सच पूछिए तो जंगल ही जीने का आधार है.”
पहाड़ की तराई में डाड़ी-चुआं से (प्रकृतिक स्रोत से गड्ढे में जमा होने वाला पानी) पानी लाती महिलाओं को कुछ लोग दिखाते हुए पूछते हैं कि आखिर विकास का कथित पहिया यहां तक आने से पहले कहां थम जाता है.
क्या सरकारी योजनाएं और प्रशासनिक कामकाज के तौर तरीके को खारिज कर व्यवस्था बदली भी जा सकती, इस सवाल पर बिरसा सोय कहते हैं कि भरोसा टूटने की वजह से ही तो ग्रामसभा के शासन पर जोर दिया जा रहा है.
बुजुर्ग रतिया मुंडा को इस बात का दुख है कि किसी भी घटना के लिए पत्थलगड़ी समर्थकों को जिम्मेदार ठहराया जाता है. वे कहते हैं, ” इस इलाके में रोजगार, गरीबी और भूख का दर्द लोगों को ज्यादा सताता है. इसे समझना होगा.”
एक युवा हासा पूर्ति का कहना था कि सरकार के लोग गांव आएं और आदिवासियों की भावना को समझें. वे स्थानीय भाषा में तमतमाए हुए कहते हैं, “आप जिधर भी जाएंगे हताशा निराशा के स्वर सुनाई पड़ेंगे. जब सत्तर सालों बाद भी इस इलाके की मुश्किलें बरकरार है, तब पत्थलगड़ी को कैसे गलत ठहराया जा सकता है.”
कोचांग के ग्राम प्रधान सुखलाल मुंडा बताते हैं कि ग्रामसभाओं को उन अपराधियों की पहचान करने तथा पकड़ने की जिम्मेदारी दी गई है.
कोचांग गांव जाने का रास्ता
वैसे गैंग रेप की घटना के बाद रास्ते में आते–जाते कई लोग किसी भी सवालों का जवाब देने से मना करते रहे. कईयों ने यह कहकर टालने की कोशिश की ग्रामप्रधान से बात कीजिए.
गांवों के दौरे तथा पत्थलगड़ी समर्थकों से बात करने पर एक बात साफ तौर पर रेखांकित होती रही कि पत्थलगड़ी की अगुवाई कर रहे लोग रणनीति के साथ ग्रामसभा को एकजुट बनाने और सरकार तथा सिस्टम के खिलाफ गतिविधियां बढ़ाने के लिए प्रेरित करने में सफल हो रहे हैं.
यही वजह है कि ग्रामसभा के फैसले से बाहर जाने की कोई जल्दी हिमाकत नहीं करता. सामूहिक फैसले नहीं मानने पर ग्रामसभा से दंड भरने का हांक लगाया जाता है. तब भोले भाले आदिवासी दोधारी तलवारों के बीच फंसते नजर आ रहे हैं.
इधर सरकारी तंत्र को यह लगने लगा है कि पत्थलगड़ी कार्यक्रमों को हर हाल में रोका जाना चाहिए वरना इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. दरअसल पत्थलगड़ी करने वाले अब सुदूर इलाके से निकलकर मुख्य मार्गों के करीब आने लगे हैं. पत्थलगड़ी कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए लोगों की जिम्मेदारी तय की जाती है और इसके अगुवा युवाओं को संगठित कर पुलिस प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए आगे बढ़ाते रहे हैं.
क्या हुआ घाघरा गांव में?
पत्थलगड़ी रोकने की कोशिश में सोमवार को घाघरा गांव में पुलिस ने पहले से घेराबंदी कर रखी थी. पुलिस ने पत्थलगड़ी समर्थकों को वापस लौटने को कहा. फिर लाठीचार्ज भी हुआ.
इस कार्रवाई से नाराज वापस लौटती भीड़ ने रास्ते में अनिगड़ा गांव स्थित भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा खूंटी के सांसद कड़िया मुंडा के घर पर तैनात पुलिस के तीन जवानों को उनके हथियार के साथ अगवा कर लिया.
मौके पर जिस तरह की तस्वीरें उभरी और लोगों का बदला मिजाज देखने को मिला उससे यह भी जाहिर होता है कि आदिवासियों की नाराजगी की वजह यह भी रही कि पुलिस ने उनके नेता युसूफ पूर्ति के घर की कुर्की की और अब उनके खिलाफ पुलिस सीधी कार्रवाई में जुटी है.
पुलिस के तीन जवानों को अगवा किए जाने के बाद पुलिस ने रात भर घाघरा गांव को घेरे रखा. बुधवार यानी 27 जून को हिंसक झड़पें हुई. लाठी चार्ज तथा आंसू गैस के गोले छोड़े जाने के बाद मची भगदड़ में एक आदिवासी की मौत होने के बाद स्थितियां बिगड़ती ही चली गईं.
अब तक अगवा जवानों को मुक्त नहीं कराया जा सका है. पुलिस और प्रशासन के कई अधिकारी हलात पर नजर बनाए हुए हैं. राज्य मुख्यालय से लगातार दिशा निर्देश दिए जा रहे हैं.
इस बीच गैंग रेप की घटना को लेकर कोचांग गांव स्थित मिशन स्कूल के फादर अल्फांसो आइंद और दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. तीन अन्य कथित अपराधियों की पहचान कर पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश में जुटी है. गैंग रेप की घटना के बाद बड़ी तादाद में पुलिस की खूंटी में तैनाती की गई है. खुद रांची के डीआइजी खूंटी में कई दिनों से कैंप कर रहे हैं.
इनमें एक की तस्वीर भी पुलिस ने जारी की है. उसे लोग नक्सली संगठन का एरिया कमांडर बता रहे हैं. पुलिस ने फादर अलफांसो आइंद को घटना के बारे में जानकारी नहीं देने तथा साजिश करने के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. दरअसल नुक्कड़ नाटक की टीम मिशन स्कूल में थी. तभी चार की संख्या में आए अपराधियों ने युवतियों का अगवा किया था.
आदिवासी विषयों के जानकार तथा कई संगठनों से जुड़े लक्ष्मी नारायण मुंडा कहते हैं, “खूंटी के जरिए इसे देखा-समझा जा सकता है कि हक़ की बात करने और जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा के लिहाज से गोलबंद होते आदिवासियों के खिलाफ सत्ता और तंत्र का दमनकारी चेहरा सामने है. बिना शर्त आदिवासियों से बातचीत की तत्काल पहल की जानी चाहिए. क्योंकि आदिवासियों का आक्रोश फूटा है, तो इसकी कुछ ठोस वजहें होंगी.”
हाल ही में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने एक अख़बार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि आदिवासियों के बीच उपजे असंतोष को समझना होगा. वैसे भी पत्थलगड़ी के वर्तमान स्वरूप को लेकर आदिवासियों के बीच से सवाल उठते रहे हैं. और इस मुद्दे पर बहस व्यापक रूप धारण करता जा रहा है.
बदलती परिस्थितियों के बीच सियासत भी गर्माने लगी है. विपक्षी दलों के निशाने पर सरकार है, तो बीजेपी के अपने पक्ष और तर्क हैं. राज्य के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने एक बार फिर कहा है कि राष्ट्र विरोधी ताकतें खूंटी और कुछ इलाके को अशांत करने में जुटी है. इसे सफल नहीं होने देंगे. मुख्यमंत्री ने कहा है कि विकास के जरिए सरकार साजिशों को नाकाम करेगी. बदले हालात में बीजेपी और सरकार इन मसलों को लेकर चर्च तथा ईसाई मिशनरियों पर खुलकर निशाना साध रही है.
दूसरी तरफ जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष तथा नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन का कहना है कि झारखंड बेहद संकट के दौर से गुजर रहा है. सरकार आदिवासियों की जान लेने पर तुली है. पांचवी अनुसूची क्षेत्र में सरकार और उनके नुमाइंदों का आदिवासियों के साथ संवाद समाप्त हो गया है. प्रशासनिक भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, पूरा खूंटी साल भर से अशांत है और पांरपरिक व्यवस्था पत्थलगड़ी की गंभीरता को समझने के बजाय सरकार दमनात्मक कार्रवाई में जुटी है.
बहरहाल, खूंटी के कई आदिवासी गावों में सन्नाटा पसरा है और पुलिस जवानों के बूटों की आवाज यह जाहिर कर रही है कि टकराव बिल्कुल नये मोड़ पर पहुंचने लगा है.