प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश और सोशल मीडिया की तफ्तीश

प्रधानमंत्री की हत्या की कथित साजिश पर कैसे उड़ी सोशल मीडिया में खिल्ली.

WrittenBy:अनिल चमड़िया
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

खतरे को हथियार बनाओ, खतरे को व्यापार बनाओ, खतरे को प्रचार बनाओ, खतरे को जयहार बनाओ, निर्मल अग्रवाल की इन लाइनों को सोशल मीडिया और बुद्धिजीवियों के बीच लोकप्रिय डा. एके अरुण ने फेसबुक पर शेयर किया है. इन लाइनों का निहितार्थ है दिल्ली, नागपुर और मुंबई से पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पांच कथित माओवाद समर्थक जिनके ऊपर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

यह ख़बर सामने आने के बाद से ही पुलिस की कारवाई के ऊपर सोशल मीडिया पर पुलिस के कारनामें की भी तफ्तीश शुरू हो गई. दलित कार्यकर्ताओं, वकील व महिला प्रोफेसर की गिरफ्तारी के बाद फेसबुक पर छह जून को महिला प्रोफेसर शोमा सेन, नागपुर के चर्चित वकील सुरेन्द्र गडलिंग, संपादक व कवि सुधीर धावले, रोना विल्सन, महेश राउत की गिरफ्तारी के खिलाफ बड़े पैमाने पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली.

पुलिस की कहानी में एक पत्र बतौर सबूत सामने आया है. दिलचस्प है कि यह पत्र पुलिस की जांच या कोर्ट में बतौर सबूत पेश होने से पहले कुछ चुनिंदा मीडिया संस्थानों की स्क्रीन पर फ्लैश होने लगी थी. (न्यूज़लॉन्ड्री इस पत्र के सही या फर्जी होने की पुष्टि नहीं करता). जाहिर हर पुलिसिया कहानी की तरह ही इस कहानी पर भी लोगों ने शक किया, शक करने की तमाम वाजिब वजहें भी रहीं.

जांच एजेसियों द्वारा गिरफ्तार किए गए पांच लोगों पर राजीव गांधी की शैली में नरेन्द्र मोदी की हत्या के आरोप को फेसबुक पर न सिर्फ खारिज किया गया बल्कि इसकी खिल्ली भी उड़ाई जा रही है. इसका एक उदाहरण सजल आनंद की पोस्ट से मिलता है. सजल आनंद ने मिच हेडबर्ग के कथन को दोहराया है- “मेरा झूठमूट में लगाया गया पेड़ मर गया क्योंकि मैंने उसे पानी नहीं दिया था.”

मुख्यधारा के मीडिया ने भले ही इन तथ्यों की खोजबीन न की हो कि नरेन्द्र मोदी के गुजरात में सत्ता संभालने के बाद से कितनी बार उनकी हत्या की साजिश का भंडाफोड़ पुलिस व जांच एजेंसियों ने किया है और जिस वक्त ये भंडाफोड़ हुए हैं उस समय की राजनीतिक परिस्तिथियां क्या थी, इस सब पर सोशल मीडिया ने गहरी टिप्पणियां की हैं.

गिरीश मालवीय ने एक लंबी पोस्ट लिखकर कई फेसबुक साथियों को शेयर किया है. मलवीय ने लिखा कि न्यूज़ चैनलों पर बड़े अक्षरों में हेडलाइन तैरने लगी- ‘…पीएम मोदी को जान का खतरा’, ‘मोदी की हत्या की गहरी साजिश बेनकाब’.

आखिर में पता लगा कि एक सादे कागज पर अंग्रेजी में टाइप की गई चिठ्ठी पुणे पुलिस को बरामद हुई है जो किसी रोना जैकब द्वारा लिखी गयी है यह चिठ्ठी दिल्ली स्थित रोना विल्सन के घर से बरामद हुई है.

वो आगे लिखते हैं- “अब चिठ्टी में क्या लिखा है इस पर यह पोस्ट नही है. यह झूठ है या महा झूठ हैं या सच है यह बाद में मालूम पड़ जाएगा लेकिन इस ख़बर से मन में एक उत्सुकता जगी कि हमारे प्राणों से प्रिय मोदीजी को कब-कब ऐसे जान से मारने की धमकी मिली है, यह थोड़ा गूगल करके देखा जाए.

आगे पोस्ट में उन्होंने गूगल से सर्च का पूरा विवरण पेश किया है. वे लिखते है- “इन सारी खबरों के लिंक आपको कमेन्ट बॉक्स में मिल जाएंगे. अब बहुत छोटा सा सवाल है कि जब इतने बड़े बड़े दुर्दांत आतंकवादी आपकी पकड़ में है तो इनके सामने बेचारे छोटे मोटे सो कॉल्ड ‘अर्बन नक्सली’ टाइप माओवादी कहा लगते हैं तो फिर ये इतना बड़ा बवाल किस खुशी में खड़ा किया जा रहा है?

imageby :

पुणे पुलिस के इस आरोप को लेकर फेसबुक पर कई लोगों ने इस तरह के आरोपों की गंभीरता को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. विष्णु राजगढ़िया ने लिखा- “पत्रकार गौरी लंकेश, श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी, झारखंड़ के मशहूर नेता महेन्द्र सिंह, झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुनील महतो, गुजरात में हरेन पांड्या की हत्या की साजिश का भांडा नहीं फोड़ा गया. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी की हत्या, संसद भवन में हथियार बंद घुसपैठ की साजिश का भांडा नहीं फोड़ा जा सका.”

संजीव त्यागी ने लिखा कि इंदिरा गांधी के पास इनपुट था कि उनके सुरक्षा कर्मियों से उनकी जान को खतरा है मग़र सिखों में संदेश देने के प्रश्न पर उन्होंने जोखिम लिया और जान दी, कहीं कोई नाटक नहीं मग़र यहां नाटकबाज का नाटक जारी है. इसी कड़ी में दुख के साथ लिखा गया है कि कलबुर्गी, पंसारे, दाभोलकर की हत्या की साजिश का पर्दाफाश नहीं किया गया. उनकी हत्या की ही खबर सुनने को मिली.

सत्ताधारी पार्टी के नेता व मंत्री पुणे पुलिस के भंडाफोड़ के दावे को भले ही चिंता जाहिर कर रहे हों लेकिन फेसबुक के सदस्यों ने अपनी तरह से लोक जांच पड़ताल की हैं और आरोपों में गंभीरता को स्वीकार नहीं किया है. पार्थिव कुमार ने सवाल किया कि क्यों न भारत के प्रधानमंत्री का निवास और कार्यालय बीजिंग में ही बनवा दिया जाए. दूसरी पोस्ट में कहा गया है कि नमो को चीन में विरोध जताना चाहिए कि माओं के अनुयायी उनकी जान लेना चाह रहे हैं.

शांतनू श्रीवास्तव ने कुलभूषण मिश्रा के उस पोस्ट को शेयर किया है जिसमें शोले फिल्म में जेलर के ख़बरिया केस्टो मुखर्जी को अपनी साजिश को सुनाने का अभिनय धर्मेन्द्र कर रहे हैं. उस सीन में धर्मेन्द्र साथी अमिताभ बच्चन से कहा रहा है कि पिस्तौल जेल में आ चुका है… बस दो चार दिन में ही जेलर और उसके जासूसों को.. ढिचक्यूं ढिचक्यूं… और हेड लगा है– गहरी साजिश.

पुलिस के आरोपों का ही पर्दाफाश करने का दावा फेसबुक के सदस्य नहीं कर रहे हैं बल्कि वे उन समर्थकों से भी सवाल कर रहे है जिन्होंने आमिर खान और उनकी पत्नी के असुरक्षा की आशंका जाहिर करने पर बवेला मचाया था. रमेश पंकज ने लिखा है जब आमिर खान और उनकी बीवी ने असुरक्षा के बोध को सार्वजनिक किया था तो भक्तों की भीड़ उन पर टूट पड़ी थी और उन्हें देश छोड़ देने के लिए कह रहे थे. नरेन्द्र मोदी की असुरक्षा की ख़बर के बाद भक्त क्या कह रहे हैं?

यह एक अलग से अध्ययन का विषय हो सकता है कि नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश की खबरें मीडिया में धड़ल्ले से छपती रही है. लेकिन यह पहला मौका है जब सोशल मीडिया पर हत्या की साजिश की खबरों पर हजारों की संख्या में फेसबुक पर प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है.

पुलिसिया जांच एजेंसियों ने कितनी वास्तविक साजिशों का भंडाफोड़ किया है. जांच एजेंसियां कब से राजनीतिज्ञों को खतरे में होने की सूचनाओं को सार्वजनिक कर रही है और इससे वे क्या हासिल करती है. जांच एजेंसियों ने अब तक कितने नेताओं की हत्या की साजिश का भंडाफोड़ किया है और उन मुकदमों में क्या हुआ है?

सोशल मीडिया लोगों की जांच पड़ताल का मंच हैं. जबकि मेनस्ट्रीम पेशेवर मीडिया को सरकारी तंत्र के मंच के रुप में देखा जाने लगा है.
यह बदला हुआ समय है. इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है. गुजरात विधानसभा चुनावों से ठीक पहले नरेंद्र मोदी को कठिन चुनौती दे रहे युवा नेता हार्दिक पटेल की एक सेक्स सीडी बंटवाई गई. लेकिन सोशल मीडिया पर हार्दिक का विरोध की बजाय समर्थन की लहर देखने को मिली. लोगों ने तार्किक तरीके से पूछा, क्या किसी लड़की ने शिकायत की है, क्या दोनों में कोई नाबालिग है. दो वयस्कों के बीच के संबंध पर किसी अन्य को आपत्ति क्यों. किसी के निजी मामले में ताकाझाकी क्यों. इस तरह यह मामला फुस्स हो गया.

पर गुजरात में इस तरह के हथकंडे काफी आजमाए और पुराने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक स्पर्धी संजय जोशी की इसी तरह की एक सीडी आने के साथ उनका सियासी अवसान हो गया. नेताओं द्वारा अपनी जान को खतरा बताना भी उनमें से एक बेहद प्रचलित हथकंडा है. कुछ हथकंडे समय के साथ कुंद पड़ जाते हैं. सोशल मीडिया उसका बड़ा औजार बन गया है.

subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like