7 जून, 1893: आज वक्त बैरिस्टर गांधी के उस अपमान का बदला लेगा

125 साल पहले दक्षिण अफ्रीका के सेंट पीटरमारिट्ज़बर्ग में बैरिस्टर गांधी को ट्रेन से फेंक दिया गया, जहां से महात्मा गांधी बनने की शुरुआत हुई.

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बात शुरू होती है उस वक़्त से जब सेठ अब्दुल्ला ने एक मुकदमा लड़ने के लिए बैरिस्टर गांधी (तब तक वे महात्मा नहीं बने थे) को दक्षिण अफ्रीका बुलाया. गांधीजी तब गुजरात के राजकोट में वकालत की प्रैक्टिस किया करते थे.

तब तो ये हवाई जहाज नहीं थे जो झट से बैठो और सट से पहुंच जाओ. तब लोग दूर देश की यात्रा पनिया जहाज के द्वारा किया करते थे. गांधीजी भी उसी पर सवार हो कर दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में पहुंचे. 7 जून, 1893 को वो अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए ट्रेन में चढ़े. उन्होंने फर्स्ट क्लास की टिकट कटाई थी. सब कुछ सही था, ट्रेन अपनी रफ़्तार से चल रही थी. लेकिन जब ट्रेन पीटरमारिट्ज़बर्ग पहुंचने वाली थी तो अंग्रेज टिकट चेकर ने उन्हें कहा कि वो उतर कर थर्ड क्लास में चले जाएं. अब भला उन्होंने फर्स्ट क्लास की टिकट ली थी तो वो थर्ड क्लास में क्यों जाते. यही कारण था कि वो अपनी बात पर अड़ गए. लेकिन जब ट्रेन पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर पहुंची तो उन्हें जबरदस्ती ट्रेन से उतर दिया गया.

गांधीजी के साथ ऐसा केवल इसलिए किया गया क्योंकि वो अश्वेत थे. इस घटना ने बैरिस्टर गांधी के मन पर इतना गहरा असर किया कि उन्होंने ठान ली कि वो अन्याय के खिलाफ तब तक लड़ेंगे जब तक अश्वेतों को उनका हक़ नहीं मिल जाता.

मौसम ठंड का था और ऐसी वैसी ठंड नहीं बल्कि कड़ाके की ठंड. बैरिस्टर गांधी पीटरमारिट्ज़बर्ग स्टेशन के वोटिंग रूम में जा कर बैठ गए. यहां सारी रात ठंड से ठिठुरते हुए वो सोचते रहे कि उन्हें क्या करना चाहिए. और रात भर में जो उन्होंने मंथन किया उस मंथन ने सुबह तक उनके मन में सत्याग्रह यानि अन्याय के खिलाफ लड़ने की भावना जगा दी और यहीं से बैरिस्टर गांधी ने महात्मा गांधी बनने की ओर अपना पहला कदम उठाया.

7 जून, 1893 को जो घटना बैरिस्टर गांधी के साथ हुई उसी घटना ने भारत के सबसे बड़े आन्दोलन को जन्म दिया. उस दिन बैरिस्टर गांधी को भी ये नहीं पता होगा कि उनके द्वारा किया गया निर्णय एक दिन भारत की आजादी का अहम हथियार बनेगा और दुनिया ये जान सकेगी के शांति को हथियार बना कर भी बड़ी से बड़ी सत्ता की नींव हिलाई जा सकती है.

वक्त खुद को दोहराता है, और जब भी दोहराता है तब एक नया इतिहास लिखा जाता है. 7 जून, 1893 को भी एक इतिहास लिखा गया था और उसके ठीक एक सौ पच्चीस साल बाद यानी 7 जून, 2018 को फिर से एक इतिहास लिखा जायेगा. उस दिन एक आम भारतीय बैरिस्टर गांधी को उनके अश्वेत होने की वजह से ट्रेन से उतरा गया था और 7 जून, 2018 को एक भारतीय महात्मा गांधी के नाम पर उसी पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन को पूरी तरह से खादीमय किया जायेगा.

7 जून को महात्मा गांधी के साथ पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर हुई घटना की 125 वीं बरसी पर समारोह आयोजित किया जायेगा जिसमें उस स्टेशन के प्लेटफॉर्म तथा ट्रेन के डिब्बों को खादी से सजाया जा रहा है. खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने बताया कि उसे इस सिलसिले में प्रीटोरिया स्थित भारतीय उच्चायोग और डरबन स्थित भारतीय महावाणिज्यिक दूतावास से 36 इंच चौड़े और 40-50 मीटर लंबे 400 मीटर खादी कपड़े का ठेका मिला है. खादी के इन कपड़ों का इस्तेमाल ट्रेन के डिब्बों को सजाने में किया जाएगा.

आयोग ने कहा कि समारोह में विदेशमंत्री सुषमा स्वराज भी उपस्थित होंगी. यह साल दक्षिण अफ्रीकी इतिहास के लिए इस कारण भी महत्वपूर्ण है कि यह नेल्सन मंडेला की जन्मशती का साल है. उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में खादी को एक महत्वपूर्ण हथियार बना दिया था. खादी उनके स्वदेशी आंदोलन का आधार बनकर सामने आया था.

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