कर्नाटक की आजमाइश में कांग्रेसी जीत का सूत्रधार

विधानसभा चुनाव में सबसे अमीर उम्मीदवार के तौर पर नामांकन करने वाला नेता पार्टी का खेवनहार सिद्ध हुआ.

WrittenBy:अमित भारद्वाज
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बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे के घंटे भर के भीतर ही उत्साहित नज़र आ रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद यह उनकी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. प्रेस कॉन्फ्रेंस का मकसद किसी से छुपा हुआ नहीं था, क्योंकि कर्नाटक में खराब नतीजे आने के बाद से ही राहुल गांधी नदारद थे, वो तभी दोबारा नज़र आए जब चीजें उनके पक्ष में जाती दिखने लगीं.

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इसके उलट वहां बंगलुरु में ज्यादातर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के लिए इस जीत के असली हीरो- अगर इसे जीत माने तो- डोड्डलहल्ली केम्पेगौड़ा शिवकुमार हैं जिन्हें लोग शॉर्ट में डीके शिवकुमार के नाम से जानते हैं. कर्नाटक यूथ कांग्रेस के एक नेता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “शिवकुमार कर्नाटक के शेर हैं.” शिवकुमार के पक्ष में लगने वाले नारे आसानी से कांग्रेस और राहुल गांधी के पक्ष में लगने वाले नारों को मात दे सकते हैं.

700 करोड़ की घोषित संपत्ति के साथ शिवकुमार कांग्रेस के सबसे धनी उम्मीदवार थे. अब वे विधानसभा सदस्य भी हैं. सात बार के विधायक शिवकुमार पहले सथनुर और बाद में कनकपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे. वे बंगलुरु के पॉश इलाके सदाशिवनगर में रहते हैं जहां कन्नड़ फिल्मों के सुपरस्टार स्वर्गीय राजकुमार उनके पड़ोसी हुआ करते थे.

उनके छोटे भाई डीके सुरेश बंगलुरू ग्रामीण लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. कनकपुर क्षेत्र में दोनों भाइयों की काफी प्रतिष्ठा और पकड़ है.

सदाशिवनगर में उनका विशाल आवास दो हिस्सों में बंटा हुआ है. एक हिस्सा उनके दफ्तर के तौर पर काम करता है जहां उनके समर्थक और कार्यकर्ता अपनी फरियाद लेकर उनसे मिल सकते हैं. दूसरा हिस्सा उनका निजी आवास है.

उनके घर में घुसते ही एक बड़ा सा हॉलनुमा कमरा है. एक तरफ से हॉल शीशे की आलमारियों से भरा हुआ है जिसमें यादगार और ट्रॉफियां सजी हुई हैं. इन्हीं ट्रॉफियों की कतार में एक ट्रॉफी है जिसमें एक झंडा लगा हुआ है, उस पर लिखा है, ‘डीकेएस’. यह कांग्रेस पार्टी और कर्नाटक की राजनीति में उनकी महत्वाकांक्षा का भी संकेतक है.

समर्पित कांग्रेसी होते होने के अलावा उनके ऊपर तमाम आपराधिक मामले भी दर्ज हैं. इनमें जमीन हड़पने, अवैध ग्रेनाइट खनन और भ्रष्टाचार के आरोप हैं. लिहाजा इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होता है कि कांग्रेस आलाकमान ने भाजपा की रेड्डी-येड्डी युगलबंदी से निपटने के लिए उन्हें चुना.

15 मई को नतीजे आने के बाद ही शिवकुमार सक्रिय हो गए थे, विशेषकर नए चुने गए विधायकों की सुरक्षा और एकजुट रखने का प्रबंधन उन्होंने संभाल लिया था. जेडी-एस के एक वरिष्ठ नेता ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में बताया, “दो-तीन बड़े नेता मिलकर जेडीएस के 38 विधायकों की निगरानी कर रहे थे, जबकि कांग्रेस आलाकमान ने 78 विधायकों का जिम्मा अकेले शिवकुमार के ऊपर छोड़ रखा था.”

वो आगे बताते हैं, “रिज़ॉर्ट की व्यवस्था या फिर विधायकों को लाने, ले जाने जैसे कामों की जिम्मेदारी शिवकुमार के हाथों में थी.”

उनकी प्रतिभा का पहला परीक्षण दो निर्दलीय विधायकों- आर शंकर और एच नागेश- को कांग्रेस के पाले में लाने के साथ शुरू हुआ. 15 मई की शाम को शिवकुमार दोनों को कांग्रेस के साथ लाने में सफल रहे. एक दिन बाद जब भाजपा नेता येदियुरप्पा राज्यपाल वजूभाई वाला से मिलने पहुंचे तब शंकर उनके साथ भी नज़र आए. कुछ ही घंटों में भाजपा को फिर से शर्मिंदगी उठानी पड़ी जब शंकर वापस कांग्रेस खेमे में लौट गए.

कांग्रेस के विधायकों पर पड़ रहे जबर्दस्त दबाव के बारे में कांग्रेस महासचिव और राज्य के प्रभारी केसी वेणुगोपाल ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “हमारे विधायकों के ऊपर भाजपा ने अकल्पनीय दबाव डाला. उन्होंने पैसा, ताकत और सरकारी एजेंसियों को उनके पीछे लगा दिया ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अस्थिर किया जा सके.”

वेणुगोपाल ने कांग्रेस की इस सफलता के लिए राज्य इकाई के तीन नेताओं को श्रेय दिया. “यह सम्मिलित प्रयास था. सिद्धरमैय्या, जी परमेश्वर और शिवकुमार का.”

“इस संकट ने शिवकुमार की क्षमता, उनकी ईमानदारी और पार्टी के प्रति उनके समर्पण को कई गुणा बढ़ा दिया है,” कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष ई राधाकृष्णन कहते हैं.

वो आगे जोड़ते हैं, “भाजपा के तमाम पदाधिकारियों और सरकार के अधिकारियों ने उन्हें प्रभावित करने की कोशिश की, लेकिन इस तरह के हर हमले के बाद वो किसी हीरो की तरह उभरे.” राधाकृष्णन के मुताबिक कनकपुर के विधायक की भूमिका सिर्फ लॉजिस्टिकल प्रबंधन में ही नहीं थी.

“शिवकुमार ने वैचारिक मोर्चे पर भी लड़ाई लड़ी. उन्होंने ऐसे विधायकों को अपने पक्ष में राजी किया जिन्हें अमित शाह के इशारे पर लालच दिया जा रहा था. ऐसे विधायकों को उन्होंने पार्टी के साथ जोड़े रखने में सफलता हासिल की. हम उन्हें सलाम करते हैं,” राधाकृष्णन कहते हैं. राधाकृष्णन की माने तो शिवकुमार उन नेताओं में भी शामिल रहे जिन्होंने जेडी-एस के साथ गठबंधन की पटकथा लिखी.

कांग्रेसी विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती शिवकुमार के सामने पहली बार नहीं आई थी. जून 2002 में उन्होंने महाराष्ट्र के कांग्रेस विधायकों का इसी तरह सफलतापूर्वक प्रबंधन कर विलासराव देशमुख की सरकार बचाई थी. उन्होंने 40 कांग्रेसी विधायकों को गोल्डेन पाम रिजॉर्ट में रखकर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार को फ्लोर टेस्ट में विजय दिलवाई थी.

2017 में जब कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल अपनी राज्यसभा सीट लगभग हारने के मुहाने पर थे, तब भी शिवकुमार उनके खेवनहार सिद्ध हुए. और अब 2018 में जब पार्टी को उनकी इस क्षमता की सबसे अधिक जरूरत थी तब वो फिर से पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरे. यह चुनौती इसलिए भी बड़ी थी कि उनके सामने परम शक्तिशाली केंद्र और राज्य की भाजपा और उसका केंद्रीय नेतृत्व खड़ा था.

दिलचस्प है कि 1998 में जेडी-एस के एचडी कुमारस्वामी को लोकसभा चुनाव में हराने के पीछे भी शिवकुमार की अहम भूमिका रही थी. 2004 में उन्होंने एक बार फिर से कनकपुर लोकसभा सीट पर एचडी देवगौड़ा को लोकसभा चुनाव में हराने में भूमिका अदा की. लेकिन 2018 में कुमारस्वामी उन्हीं शिवकुमार की बदौलत मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं.

जेडी-एस के एक नेता कहते हैं, “उनके (शिवकुमार) कुमारस्वामी के साथ सिद्धरमैय्या के मुकाबले बेहतर रिश्ते हैं, लेकिन इस बात की प्रबल संभावना है कि उन्हें उपमुख्यमंत्री न बनाया जाय.” उनके मुताबिक कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष परमेश्वर इस पद की रेस में सबसे आगे हैं. इसकी वजह ये है कि जेडी-एस और कांग्रेस दो शीर्ष पदों पर वोक्कालिगा समुदाय को नहीं बिठा सकती. शिवकुमार और कुमारस्वामी, दोनों ही वोक्कालिगा हैं.

मतदान से पूर्व न्यूज़लॉन्ड्री के साथ एक इंटरव्यू में शिवकुमार ने अपनी मुख्यमंत्री पद की आकांक्षा का खुलेआम इजहार किया था. लेकिन उन्होंने साथ ही यह भी कहा था कि अभी इसके लिए उनके पास पर्याप्त समय है, और पार्टी उनसे जो चाहेगी वो करेंगे. ताजा घटनाक्रम के बाद यही एक बात है जिस पर वो भरोसा कर सकते हैं.

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