द हूट नामक मीडिया वेबसाइट ने वर्ष 2018 के शुरुआती चार महीने में भारतीय मीडिया की दुर्गति का एक तथ्यात्मक विश्लेषण किया है.
द हूट नाम की मीडिया विश्लेषण करने वाली संस्था ने वर्ष 2018 के शुरुआती चार महीनों (जनवरी, 2018 से अप्रैल, 2018) में मीडिया की स्वतंत्रता से जुड़े आंकड़े जारी किए हैं. इस रिपोर्ट में पत्रकारों पर हुए हमले, मानहानि के मुकदमों, राजद्रोह के केस, सरकारी नीतियों, सेंसरशिप व इंटरनेट बंद करने की घटनाओं का सिलसिलेवार उल्लेख किया गया है.
हत्या और हत्यारे
रिपोर्ट बताती है इन चार महीनों के दौरान दो अलग-अलग घटनाओं में तीन पत्रकार मारे गए. 26 मार्च को हिंदी दैनिक अखबार दैनिक भास्कर के नवीन निश्चल और विजय सिंह की बाईक को बिहार के भोजपुर में एक नेता की एसयूवी से टक्कर मारी गई.
इस घटना के अगले ही दिन मध्य प्रदेश के भिंड में संदीप शर्मा को ट्रक से कुचलकर मार दिया गया. संदीप ने भिंड में खनन माफियाओं का स्टिंग किया था. उन्हें जान से मारने की धमकी मिली थी. संदीप ने अपनी सुरक्षा बाबत पुलिस महकमे से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक पत्र लिखा था.
पुलिस इन दोनों ही मामलों की जांच कर रही है. प्रथमदृष्ट्या दैनिक भास्कर के पत्रकारों पर हमले में गांव का सरपंच और रिश्तेदार जिम्मेदार थे. वहीं संदीप के मामले में खनन माफिया के शामिल होने की प्रबल संभावना है.
द हूट की रिपोर्ट हमलावरों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात रेखांकित करती है, “हिंदुवादी संगठनों का समर्थन करने वाले विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग खासकर एक्टर, राजनेता, व्यापारी, फिल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड, सूचना व प्रसारण मंत्रालय जैसी सरकारी संस्थाएं और यहां तक कि मीडिया संगठनों ने भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला किया है.”
हमले
साल के शुरुआती चार महीनों में ही पत्रकारों पर हमले के कुल 13 मामले सामने आए हैं. इनमें से 5 वारदातें ऐसी थी जिसमें पत्रकार किसी खास विषय पर रिपोर्ट लिख रहे थे. 13 में से 6 मामलों में हमला करने वाले हिंदुवादी दक्षिणपंथी संगठनों के सदस्य और पुलिस शामिल थी.
धमकियां और उत्पीड़न
धमकी और उत्पीड़न के भी कई मामले सामने आए हैं. पांच में से तीन ऐसे मौके रहे हैं जहां पत्रकारों को धमकियां देने वाले लोग हिंदुवादी संगठनों से संबंधित पाये गये. कासगंज हिंसा की रिपोर्टिंग के बाद एक टीवी पत्रकार को अज्ञात नंबरों से जान से मार डालने की धमकी मिली. छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा में एक आदिवासी पत्रकार का सीआरपीएफ के जवानों ने उत्पीड़न किया.
इसी तरह पत्रकारों को इंटरनेट पर भी गालियों और धमकियों का सामना करना पड़ा. पत्रकारों की निजी जानकारियां सोशल मीडिया पर साझा कर दी गईं. कई पत्रकारों ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई है लेकिन अबतक कोई कारवाई नहीं हो सकी है.
गिरफ्तारियां
भीड़ द्वारा पत्रकारों पर हमले किए जाने की भी घटनाएं बढ़ रही हैं. केरल के एक गांव में जातीय भेदभाव की रिपोर्टिंग करने के दौरान दो पत्रकारों पर हमला हुआ. विदेशी मीडिया पर पाबंदियां लगाई गईं. गौतम अडानी पर स्टोरी करने वाले दो ऑस्ट्रेलियाई पत्रकारों को वीज़ा नहीं दिया गया.
अल्पसंख्यकों और हाशिये के समाज के खिलाफ होने वाले अत्याचारों ने डर का माहौल पैदा किया, जहां नागरिक अधिकारों का हनन हुआ है. कुछ पत्रकारों के बारे में इंटरनेट पर फेक न्यूज़ भी फैलाई गई.
द हूट की रिपोर्ट न्यायपालिका के रवैये पर भी टिप्पणी करती है. फ्री स्पीच के मामले में न्यायपालिका का रूख ढीला-ढाला रहा है. मीडिया कवरेज पर कोर्ट ने पाबंदियां लगाई हैं. मीडिया संगठनों पर नाबालिग रेप पीड़िता का पहचान उजागर करने के कारण कोर्ट ने फाइन भी लगाया.
फरवरी में, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने राज्यसभा में बताया था कि वर्ष 2017 में पत्रकारों पर हमले की 15 घटनाएं हुईं हैं, जिसमें 26 लोग गिरफ्तार हुए हैं. 2015-17 के बीच, मंत्री ने बताया कि पत्रकारों पर हमले की 90 वारदातें हुईं . 108 लोगों को गिरफ्तार किया गया. मंत्री ने एनसीआरबी के आंकड़ों का संदर्भ देते हुए यह जानकारी दी थी.
जबकि द हूट की 2017 की रिपोर्ट बताती है कि इस साल में पत्रकारों पर हमले की 46 वारदातें हुई थी. हूट की रिपोर्ट मंत्री के उस दावे का भी पोल खोलती है जिसमें उन्होंने हमलावरों के संगठनों की जानकारी नहीं होने का जिक्र किया था. हूट के मुताबिक, सारे हमलावरों की पहचान साफ थी.
राजद्रोह का मुकदमा
भूमकाल समाचार के संपादक कमल शुक्ला पर 30 अप्रैल को राजद्रोह की धारा लगाई गई. उन पर आरोप लगे कि उन्होंने कठुआ में बच्ची से बलात्कार मामले में न्यायपालिका और सरकार का फेसबुक पर मखौल उड़ाया. केस छत्तीसगढ़ के कांकर जिले की कोतवाली में दर्ज हुआ है.
शुक्ला क्षेत्र में फर्जी इंकाउटर का सवाल उठाते रहे हैं. वह पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष भी हैं.
मानहानि
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह ने द वायर पर मानहानि का मुकदमा दायर किया. इसी तरह अरिन्दम चौधरी ने कारवां पत्रिका पर मानहानि का मुकदमा ठोंका. दोनों ही मामलों में कोर्ट ने ख़बर पर रोक लगाने से मना कर दिया.
कुछ मामले ऐसे भी रहे जहां मामला ट्रायल तक पहुंचा. जैसे- राइज़िंग कश्मीर के संपादक सुज़ात बुख़ारी ने मानुषी की संपादक और टिप्पणीकार मधु किश्वर पर मानहानि का मुकदमा किया.
जेएनयू के लापता स्टूडेंट नज़ीब अहमद की मां फातिमा नफ़ीस ने टाइम्स ऑफ इंडिया के खिलाफ मानहानि का आरोप लगाया. टाइम्स ने नज़ीब के आईएसआईएस से सहानुभूति रखने की फर्ज़ी खबर छापी थी. बाद में दिल्ली पुलिस ने भी स्पष्टीकरण जारी किया था.
नीतियां और सेंसरशिप
हूट की रिपोर्ट बताती है, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने प्रिंट, ब्रॉडकास्ट और ऑनलाइन मीडिया पर निगरानी के लिए कई नीतियां बनाईं हैं.
अप्रैल में इसी मंत्रालय ने सरकार द्वारा अधिकृत पत्रकारों को फ़ेक न्यूज़ फैलाने संबंधी नोटिस जारी हुआ. इसके अंतर्गत पत्रकारों की प्रेस एक्रेडिशन खत्म करने का प्रावधान था. प्रधानमंत्री के हस्तेक्षप के बाद मंत्रालय ने इसे वापस ले लिया.
हालांकि ऑनलाइन कंटेंट के लिए नियामक बनाने के लिए मंत्रालय ने अधिकारियों, प्रेस काउंसिल के सदस्यों और एनबीएसए के सदस्यों की एक समीति का प्रस्ताव आगे बढ़ा दिया है.
सेंसरशिप
चार महीने में नौ ऐसे मौके आए जब पत्रकारों को केंद्र व राज्य सरकारों से सेंसरशिप झेलना पड़ा. सरकारी दफ्तरों, विधानसभाओं में जाने संबंधी पत्रकारों पर बेजा नियम लगाए गए. एक वक्त ऐसा भी आया जब एनआईए जैसी सुरक्षा एजेंसी ने पत्रकारों को किस तरह की पत्रकारिता करनी चाहिए, इस पर नसीहत दे डाली.
20 से ज्यादा फिल्मों पर सीबीएफसी की कैंची चली. यहां तक कि फिल्म का नाम बदलकर रिलीज करने के कोर्ट ऑर्डर के बावजूद राज्य सरकारों ने अपने राज्य में फिल्म पर प्रतिबंध जारी रखा. उदाहरण है पद्मावत, जिसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में प्रतिबंधित कर दिया गया.
30 अप्रैल को गायिका सोना मोहापात्रा ने सांता क्रूज़ पुलिस थाने में केस दर्ज करवाया. उन पर एक म्यूजिक वीडियो हटाने का दबाव बनाया जा रहा था. इसी तरह मुकेश अंबानी के बेटे के वीडियो को तमाम ऑनलाइन साइट्स से हटावाया गया. इस वीडियो में मुकेश के बेटे भाषण देते दिख रहे थे.
इंटरनेट बंदी
इंटरनेट सेवाएं स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकारों की मोहताज हो गई हैं. वर्ष 2017 में इंटरनेट शटडाउन के 77 मौके आए थे. वहीं इस वर्ष सिर्फ चार महीने में 25 मौके पर इंटरनेट बंद करवाया जा चुका है. इन 25 में 7 बार जम्मू कश्मीर में इंटरनेट बंद करवाया गया है.
श्रीनगर में इंटरनेट बंद करवाने की सबसे अज़ीबोगरीब घटना हुई. वहां अफवाह थी कि पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद आफ़रीदी ज़ामा मस्जिद से सभा को संबोधित करने वाले हैं.
न्याययिक आदेश
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोहराबुद्दीन मामले में जिला जज के घूसखोरी मामले की मीडिया कवरेज पर रोक लगा दी थी. बाद में इसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने हटा दिया था. प्रतिष्ठित मीडिया घरानों द्वारा बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने फाइन लगाया.
द हूट की चार महीनों की रिपोर्ट भारत में मीडिया की स्वतंत्रता और उसके ऊपर आसन्न खतरों की एक चिंताजनक तस्वीर सामने रखती है.