रोहिंग्या: शरणार्थियों की शरणस्थली स्वाहा

दिल्ली के सरिता विहार की रोहिंग्या शरणार्थी बस्ती जलकर खाक हो गई. सुप्रीम कोर्ट ने 9 अप्रैल को यहां दी गई सुविधाओं की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी.

WrittenBy:Rohin Kumar
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“लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में”

यहां हम जिस मसले की बात करने जा रहे हैं उसमें बशीर बद्र का यह शेर पौना सच है, चौथाई शंका. दिल्ली के मदनपुर खादर इलाके में बनी रोहिंग्या बस्ती जलकर खाक हो गई. लोगों की उम्र बीत जाती है घर बनाने में, यहां तो अभी घर के नाम पर सिर्फ टिन की शेड और चादरें थीं. लेकिन बस्ती में आधी रात को आग लगी और बस्ती जलकर खाक हो गई. जितने मुंह उतनी कहानियां, हालांकि ज्यादातर कहानियों में भरोसा, आशंकाएं ज्यादा थीं. इसीलिए कहा गया, पौना सच और चौथाई शंका.

कालिंदी कुंज मेट्रो स्टेशन के समीप ही स्थित है मदनपुर खादर का इलाका. यमुना की रेती में होने के कारण यह खेती किसानी के लिहाज से उपजाऊ माना जाता है. गांववाले बताते हैं कि अस्सी के दशक के आसपास सरिता विहार योजना अस्तित्व में आने से इस क्षेत्र की भौगोलिकी में परिवर्तन आए हैं. सस्ते किराए ने विस्थापित मजदूरों की भरी-पुरी बस्ती मदनपुर खादर में बसा दी है. गांव में हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या लगभग बराबर है. जगह की इफ़रात के कारण ही रोहिंग्या विस्थापितों ने वर्ष 2012 में यहां शरण ली.

रोहिंग्या शरणार्थियों ने अपने कैंप खुद ही बनाए थे. कुछ ज़कात फाउन्डेशन की मदद से कुछ इस्लामी संगठन उन्हें समय-समय पर जरूरत के सामान मुहैया कराते रहते थे. वक्त के साथ वहां बांस-बल्ली-टीन की मदद से छोटे-छोटे करीब 46 झोपड़ेनुमा कमरे बन गए थे. लेकिन रविवार अहले सुबह लगी भीषण आग में यह सबकुछ खत्म हो गया. कैंप मलबे में तब्दील हो गया.

फिलहाल दिल्ली पुलिस ने क्षेत्र को घेर रखा है. लोगों का आना-जाना बंद कर दिया गया है. कुछ-एक मीडिया के लोग, पुलिस और सिविल डिफेंस के कर्मचारियों को ही घटनास्थल पर जाने की अनुमति है.

कब और कैसे लगी आग?

“15 अप्रैल की सुबह 3:10 बजे मदरसे की तरफ से आग लगनी शुरू हुई और धीरे-धीरे सारे कैंप में फैल गई,” रब आलम ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया. रब आलम इस शरणार्थी कैंप में वर्ष 2013 में आए थे. वे आस-पास के क्षेत्रों में मजदूरी का काम करते हैं. रब अपनी समस्या बताते हुए कहते हैं कि पिछले साल से काम मिलने में दिक्कत हो रही है, लोग रोहिंग्या जानकर काम देने से कतराते हैं.

रब के मुताबिक आग कैसे लगी, उन्हें नहीं मालूम. अगले ही पल वे मलबे की ओर हाथ करते हुए, “आप देखो. हमारे घर में एक बल्ब और एक पंखा था. आपको लगता है ये वायरिंग थी जिससे शॉट सर्किट हुआ होगा?” कहते हुए उनका गला रुंध जाता है.

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घटनास्थल पर ही हमारी मुलाकात सिविल डिफेंस के पोस्ट वार्डन शाह आलम से होती है. वो कैंप में आग लगने के समय पर थोड़ा अलग राय रखते हैं. आलम बताते हैं, “आग करीब 3 बजकर 20 मिनट पर लगी.” सिविल डिफेंस के मुताबिक यह ‘जनरल फायर’ की घटना है. मतलब आग सामान्य कारणों से लगी. “रात को किसी ने कचरा वगैरह जलाया था और लोग सो गए, उसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया. यही आग फैल गई. चूंकि कैंप लकड़ी और इसी तरह के ज्वलनशील सामान से बना था और गर्मी ज्यादा होने के कारण जल्द ही आग ने भीषण रूप ले लिया,” शाह आलम ने जोड़ा.

घटना स्थल पर मौजूद दिल्ली पुलिस के एक कॉन्सटेबल जो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते, हमें बताते हैं, “आग शॉट सर्किट से लगी.” जब इस रिपोर्टर ने उससे जानना चाहा कि क्या वे ये बात दिल्ली पुलिस की शुरुआती जांच के आधार पर कह रहे हैं, वे झिझक गए. उन्होंने कहा, “लोग कह रहे हैं आग लगने के साथ ‘चटाक’..की आवाज़ आई और तुरंत ही लाइट चली गई.”

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दिल्ली पुलिस के सीनियर इंस्पेक्टर संजय सिन्हा से जब हमने यह पूछा कि क्या पुलिस शॉट सर्किट की ही दिशा में जांच आगे बढ़ाने जा रही हैं तो उन्होंने कहा, “नहीं, नहीं ऐसा नहीं है. देखिए पुलिस अपने स्तर से और भी तरीकों से तफ्तीश करेगी. इसके साथ ही फायर डिपार्टमेंट, सिविल डिफेंस और फोरेंसिक टीम भी अपनी रिपोर्ट दायर करेगी. उसके बाद फैक्ट इस्टैब्लिश हो सकेगा.”

जैसा कि अमूमन हर मामले में देखने को मिलता है, यहां भी वैसा ही हुआ. फयर ब्रिगेड की गाड़ी आग लगने के करीब 40 मिनट बाद पहुंची. रोहिंग्या शरणार्थियों को मलाल है कि इस देरी की वजह से भी आग ने विकराल रूप धारण कर लिया और उनका सबकुछ खत्म हो चुका था.

शरणार्थी कैंप में कुल 230 लोग रह रहे थे. इसमें 70 पुरुष, 68 महिलाएं और 90 बच्चे शामिल हैं. आग के दौरान कैंप से लोगों को निकालने में मदद करने में एक व्यक्ति गंभीर रूप से और दो लोग आंशिक रूप से घायल हुए हैं. बाकी सभी सुरक्षित निकाल लिए गए. हालांकि लोग जान बचाकर निकल पाने में सफल रहे लेकिन उनके घर, सामान, कपड़े, खाने की सभी वस्तुएं जलकर राख हो गयी.

यहां रहने वाले ज्यादातर शरणार्थियों के म्यांमार के सरकारी दस्तावेज और भारत में रहने के लिए अनिवार्य स्टे वीज़ा और यूएन द्वारा जारी शरणार्थी पहचान पत्र भी जलकर खाक हो गए हैं.

क्या साजिशन आग लगी?

शरणार्थियों खासकर पुरुषों के बीच आग का कारण शॉट सर्किट हो सकने की बात स्वीकार की गई लेकिन इस दलील पर सभी सहमत नहीं दिखे. कुछ ऐसे लोग भी वहां थे जिन्हें लगता है कि किसी ने आग लगाई है. लेकिन उनके पास इसका कोई पुख्ता सबूत या तर्क नहीं है. उन्हें किसी पर शक आदि भी नहीं है. ऐसे लोगों को सिविल डिफेंस के कचरे की आग वाली बात पर कुछ हैरानी होती है, वहीं कुछ इसे मानते भी हैं. “भाई साब, ये इतना छोटी जगह है, पास में कचरे में आग लगी होगी और हमें धुंआ का पता भी नहीं चलेगा?” सैफुल्लाह सवाल पूछते हैं.

जामिया नगर से आए रफीक मियां (68) कहते हैं, “आप बताओ, रोहिंग्या को कौन पसंद करता है? जब हम भारतीयों को ही विदेशी साबित करने पर तुले हुए हैं, फिर ये तो विदेशी ही हैं.” रफीक को आग की सूचना सुबह सात बजे मिली. उन्होंने जामिया नगर में मदद के लिए लोगों से बच्चों के कपड़े, बुर्के और खाने के लिए बिस्कुट के पैकेट का इंतज़ाम किया और यहां आ गए.

रोहिंग्या कैंप से ठीक सामने कुछ हिंदू परिवार रहते हैं. यहां हमारी मुलाकात रामदेव से हुई. उन्होंने बताया, “हम लोग मिलजुल कर इस जगह पर एक दूसरे के साथ रहते हैं. हमारे बच्चे उनके साथ खेलते हैं. मुझे जरूरत पड़ी तो मैं उनसे पैसे कर्ज भी लिया करता हूं. किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं रही है हमारे बीच.”

वो आगे बताते हैं, “जब रात को आग लगी, हमारे लड़के ने बच्चों को कैंप से निकालने में मदद की है.”

रामदेव के कच्चे मकान की छत भी आग की चपेट में आ गई है. पास के गराज की दो गाड़ियां भी जल गईं हैं.

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रब आलम भले आग लगने के बताये जा रहे संभावित कारणों से संतुष्ट न हों लेकिन आसपास के हिंदू समुदाय से किसी प्रकार की कोई तनाव या परेशानी की बात से इंकार करते हैं. “वे भी हमारी तरह ही मजदूर लोग हैं. यहां सबलोग मिल-जुलकर रहते हैं. बाहर में रोहिंग्या जानकर लोग काम देने से मना करते हैं, पर यहां हमारा आपस में कोई झगड़ा नहीं है,” आलम ने कहा.

अब्दुल्लाह (26) को लगता है, “चूंकि रोहिंग्या के बारे में गलत बताया जाता है इसीलिए कोई गुस्से में जगह खाली करवाने के लिए आग लगा सकता है.” लेकिन उन्होंने किसी पर अपना शक जाहिर नहीं किया.

आगे क्या?

पुराने कैंप (जिसमें आग लगी) से लगभग 20 मीटर की दूरी पर एक छोटा सा टेंट लगाया गया है. वहीं पर महिलाओं और बच्चों को रखा गया है. जामिया और डीयू के छात्रों का समूह महिलाओं को पुराने कपड़े बांट रहा है. उसमें खाने की भी साम्रगी है. इसी तरह खालसा, ज़कात फाउन्डेशन, जमात-ए-इस्लामी और यूएन एशिया के कार्यकर्ता भी यहां मौजूद हैं.

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दोपहर की चिलचिलाती धूप टेंट के भीतर पड़ रही है. खाने के लिए ब्रेड, बटर, दाल और खमीरी रोटी का बंदोबस्त किया गया है. महिलाएं बारी-बारी से अपने हिस्से का खाना ले रही है. बच्चे रो रहे हैं. हमारी नज़र टेंट की दाईं ओर बैठी एक महिला पर पड़ी. वे जत्थे से अलग बैठकर रोए जा रही थीं. एक नौनिहाल बच्चा उनकी गोद में था. रिपोर्टर उनकी तरफ बढ़ा. वे अपने हाथों से अपने कमर के पीछे पड़ा बैग दिखाती हैं. फिर अपने बच्चे की तरफ इशारा करती हैं. रोते हुए बताती हैं, “बस यही बचा है. सब खत्म.”

इसी बीच अमीना नाम की महिला प्लेट में रोटी का टुकड़ा लेकर लौटती हैं. मेरे हाथ में मोबाइल कैमरा देखकर कुछ कहना शुरू कर देती हैं. उनकी भाषा हमारी समझ नहीं आई. हमने एक लड़के से मदद मांगी जिसे हिंदी समझ आती थी. उसने हमारे लिए अमीना की बात को अनूदित किया, “अपने देश में मारा. यहां भी मार डालो! अल्लाह इंसाफ करेगा.”

अमीना एक दूसरी नकाबपोश महिला का हाथ पकड़ बताती हैं, “इसके शौहर को उधर अपने देश में (म्यांमार) मार डाला, इसके सामने. इसके साथ बहुत गलत किया. जान बचाकर यहां भागे. यहां भी हमारी किस्मत में सुकून नहीं. अब हमलोग इधर रहने के लिए लायक भी नहीं?”

कैंप में गहरी अनिश्चितता फैली हुई है. मदनपुर खादर के रोहिंग्या शरणार्थियों को उम्मीद थी कि 9 अप्रैल को केंद्र सरकार को दी गई सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद कैंप के हालात सुधरेंगे. दरअसल, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने रोहिंग्या शरणार्थियों की एक याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार से चार सप्ताह के भीतर यह बताने को कहा है कि शरणार्थियों के लिए क्या मूलभूत सुविधाएं (शौचालय, पीने का पानी आदि) मुहैया कराई गई हैं.

इस आगजनी के बाद पता नहीं केंद्र सरकार इस रोहिंग्या बस्ती के बारे में क्या स्टेटस रिपोर्ट जमा करेगी. कैंप जल जाने के बाद सबसे बड़ी मुसीबत है कि ज्यादातर लोगों के जरूरी दस्तावेज जल गए हैं. पहले से उनके सामने शरणार्थी अधिकारों को पाने की चुनौती थी, अब तो पहचान भी साबित करने की चुनौती आन पड़ी है.

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