आज तक: पुण्य प्रसून का आप्रवास और पात्रा की पत्रकारिता

आजतक ने हल्ला बोल कार्यक्रम के लिए भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा को गेस्ट एंकर बनाया.

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भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा टीवी डिबेट शो का जाना-पहचाना चेहरा हैं. समाचार चैनल आजतक ने शनिवार को उन्हें एक नई जिम्मेदारी सौंपी. यह नई जिम्मेदारी थी इस भाजपा प्रवक्ता को एंकर बनाने की. शनिवार को उन्होंने आज तक के लोकप्रिय कार्यक्रम हल्ला बोल की एंकरिंग की. जी हां, संबित पात्रा पहले डॉक्टर, फिर भाजपा कार्यकर्ता, प्रवक्ता, ओएनजीसी के निदेशक से अब पत्रकार बन चुके हैं. सबका साथ, सबका विकास हो न हो, पात्रा का सतत विकास जारी है.

आज तक ने यह तय किया है कि उनके शो ‘हल्ला बोल’ का संचालन अब विभिन्न पार्टियों के प्रवक्ता किया करेंगे. इस प्रयोग के पीछे तर्क क्या है, यह चैनल ने स्पष्ट नहीं किया है. चैनल इतना जरूर कर रहा है कि कार्यक्रम की शुरुआत में एंकर कम प्रवक्ता से एक शपथ लेता है कि वो पत्रकारीय मर्यादा का पालन करेंगे और तटस्थता का सम्मान करेंगे.

शनिवार के हल्ला बोल में संबित पात्रा के कार्यक्रम का विषय था आजादी की लड़ाई के वक्त बीजेपी-आरएसएस कहां थे? जिसमें सपा, जदयू, कांग्रेस के अलावा भाजपा के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी भी मौजूद थे.

संबित शुरू से अंत तक खुद को एक एंकर के रूप में पेश करने की कोशिश करते रहे. उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत में जो शपथ लिया, वह यूं था- “मैं शपथ लेता हूं कि एंकर के तौर पर मैं पत्रकारिता धर्म का पालन करूंगा. किसी पार्टी का पक्ष नहीं लूंगा. हर मेहमान को बराबरी से बोलने का मौका दूंगा. एंकर के तौर पर किसी की भी तरफदारी नहीं करूंगा.”

लेकिन एक कर्मठ प्रवक्ता के लक्षण कुर्सियां बदलने से थोड़े ही बदलने वाले थी. संबित ने अपने बड़बोले अंदाज में अपने शपथ में बोले गए पंक्तियों पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिए. उन्होंने कहा, वैसे, यह शपथ जब मैं ले रहा था तो मुझे रामधारी सिंह दिनकर की कविता याद आ गई- “समर शेष है. नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा, उनका भी इतिहास.”

एक पेशेवर प्रवक्ता से एक पेशेवर पत्रकार की भूमिका एक झटके में निबाह लेने की उम्मीद करना बेमानी है. इसलिए संबित को इस लिहाज से ज्यादा आंकना ठीक नहीं होगा. उनकी तटस्थता और पत्रकारीय मूल्यों की शपथ कार्यक्रम आगे बढ़ने के साथ ही नाटकीयता में तब्दील होती गई. संबित कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश सिंह और सपा प्रवक्ता घनश्याम तिवारी को बीच-बीच में लगातार टोकाटाकी करते रहे जबकि भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के बोलते समय उन्होंने चुप्पी साधे रखी. एक प्रवक्ता से पेशेवर रवैए की अपेक्षा करना भी नहीं चाहिए.

इतना ही नहीं, तथ्य पत्रकारिता में सबसे पवित्र पक्ष होता है. संबित पात्रा को इसकी भी परवाह नहीं थी. उन्होंने अपने शुरुआती इंट्रोडक्शन में ही कहा- “अटक से लेकर कटक तक मोदीजी का रथ पूरे भारत में निर्बाध दौड़ रहा है. कांग्रेस या कोई विपक्षी उसे चुनौती देता नज़र नहीं आ रहा.” एक पत्रकार ऐसे किसी हिस्से को अपने देश या नेता के साथ नहीं जोड़ेगा जो किसी अन्य संप्रभु देश का हिस्सा है. अटक पाकिस्तान का शहर है. पर बतौर पात्रा मोदीजी का रथ वहां भी दौड़ रहा है.

हल्ला बोल कार्यक्रम के दौरान हुई बहस में भी दर्शकों को विचित्र जानकारियां मिलीं. पैनल में मौजूद थे, सुधांशु त्रिवेदी (भाजपा), अखिलेश प्रताप सिंह (कांग्रेस), अजय आलोक (जेडीयू) और घनश्याम तिवारी (सपा). बहस में कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने यह अजूबा ज्ञान दिया कि सोनिया गांधी के पिता जवाहर लाल नेहरू थे. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस प्रवक्ता के अनुसार, भारतीय संस्कृति में शादी के बाद ससुर बहु का पिता हो जाता है.

अजूबा कार्यक्रम के पीछे आज तक की मजबूरी

आज तक के इस अजूबा विचार के पीछे क्या सोच हो सकती है? इसका एक जवाब हम पिछले हफ्ते आई बार्क की रेटिंग में खोज सकते हैं. इस सप्ताह के टीआरपी के आंकड़ें बताते हैं, एबीपी न्यूज़ जो लगातार कई हफ्ते से रेटिंग में नीचे चल रहा था, उसने लगभग 10 अंकों की ऊंची छलांग लगाई है. एबीपी न्यूज़ की टीआरपी रेटिंग 10.8 से उठकर 20.9 पर पहुंच गई है. दूसरी तरफ आज तक है जिसका टीआरपी नंबर 21.2 है. यानी दोनों चैनलों के बीच महज .3 अंकों का अंतर है. जाहिर है चैनल के कर्ताधर्ताओं पर एबीपी से इस करीबी स्पर्धा में आगे निकलने का बड़ा दबाव है.

ऐसी विषम परिस्थिति में संबित पात्रा या किसी पार्टी के प्रवक्ता को एंकर बनाकर बिठा देने जैसे अजूबे विचार पर टीआरपी आंकड़ों में निश्चित तौर पर बढ़त मिलेगी. हालांकि इसके लिए हमें अगले हफ्ते तक आंकड़ों का इंतजार करना होगा. क्या यह पार्टी प्रवक्ताओं को एंकर बनाकर बिठाने का प्रयोग इस स्पर्धा में लंबी बढ़त बनाने के उद्देश्य से की गई है?

वीकेंड पर आजतक ने अपने दर्शकों की सूचना और ज्ञान में बढ़ोत्तरी की हो या नहीं लेकिन उनका भरपूर मनोरंजन जरूर किया है. यहां दो बातें और जान लें. अभी हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने संबित पात्रा को ओएनजीसी का डायरेक्टर बनाए जाने के सिलसिले में उनकी योग्यता संबंधी सवाल पूछे थे और दूसरा, संबित पात्रा ने हाल ही में एक टीवी चैनल पर एक बयान दिया जिसमें वो एक मौलाना को सीधे शब्दों में कह रहे थे कि अभी तो हम आपसे बाकायदा रामचंद्रजी की आरती भी करवाएंगे. ऐसे किसी व्यक्ति को एंकर की कुर्सी पर बिठाना ही असहज करने वाली बात है.

ऐसे व्यक्तियों पर जो पार्टियों की सही-गलत नीतियों का हर सही-गलत तरीके से बचाव करते रहते हैं, उन लोगों को आज तक आधे घंटे के लिए अपनी भूमिका बदल कर पत्रकारिता करने का मंच दे रहा है. जाहिर है इसके पीछे पत्रकारिता की भलाई से ज्यादा दर्शकों के ऊट-पटांग चीजों के प्रति आकर्षण को दुहना है. पुरानी कहावत है विचित्रता आकर्षण की जननी है. आज तक पूरी संजीदगी से उसे साकार कर रहा है.

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